डीवी के दार्शनिक विचार पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – डीवी के दार्शनिक विचारों को जानने से पूर्व, उन पर पड़ने वाले प्रभावों को जान लेना आवश्यक है, क्योंकि उन प्रभावों ने उसके दर्शन के निर्माण में पर्याप्त योग दिया। उसके दार्शनिक विचारों पर सर्वप्रथम जार्ज एस० मॉरिस (George S. Morris) का प्रभाव पड़ा । मॉरिस के कारण वह हीगेल (Hegel) के आदर्शवाद से प्रभावित हुआ, जिसके फलस्वरूप उसने अपने दर्शन को प्रयोगात्मक आदर्शवादी की संज्ञा दी। बाद में उसके विचारों पर डारविन का प्रभाव पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप उसके दर्शन में प्रकृतिवादी लक्षण दिखाई दिये। जेम्स तथा चार्ल्स पीयर्स के प्रभाव के कारण डीवी प्रयोजनवादी हो गया । इन विचारों के अतिरिक्त, वह प्लेटो, इमर्सन (Emerson), बर्गसन (Bergson), काण्ट (Kant) आदि के विचारों से भी प्रभावित हुआ । साथ ही वह अमेरिकन लोकतन्त्र, प्रौद्योगिकी तथा विज्ञान के विकास से भी प्रभावित हुआ । इन समस्त प्रभावों के फलस्वरूप डीवी ने दर्शन का लक्ष्य व्यावहारिक तथा व्यवहार के क्षेत्र को भौतिक एवं सामाजिक स्वीकार किया ।
दर्शन का उद्गम (Origin of Philosophy) – जॉन डीवी समाज को दर्शन का उद्गम स्थान मानता है। उसका कहना है कि दर्शनशास्त्र का एक व्यावहारिक उद्देश्य होता है, जो जीवन की क्रियाओं पर प्रभाव डालता है । दर्शन पूर्व निर्धारित सत्य की प्रकृति पर विचार नहीं करता है, वरन् यह एक ऐसी वस्तु है, जो नवीन जीवन का निर्माण करता है । दर्शन में समाज की समस्याओं का प्रतिबिम्ब होता है और यह जीवन की विभिन्न व्यावहारिक तथा सामाजिक समस्याओं एवं ग्रन्थियों को हल करता है । ये सामाजिक ग्रन्थियाँ, आधुनिक समाज की तीन शक्तियों-लोकतन्त्र, प्रौद्योगिक, तथा विज्ञान के पारस्परिक सम्पर्क से उत्पन्न होती हैं । जैसे ही व्यक्ति के समक्ष सामाजिक समस्याएँ उपस्थित होती हैं, वैसे ही वह उनके समाधान के लिये क्रियाशील हो जाता है। उसके द्वारा खोजे गये समाधान सामान्य रूप में दर्शन का निर्माण करते हैं ।
मूल्य निश्चित नहीं, वरन् निर्मित होते हैं (Values are not Absolute but Created) – डीवी का दृढ़ विश्वास है कि जिस संसार में हम रहते हैं, वह स्थिर एवं पूर्वनिर्मित न होकर गतिशील एवं परिवर्तनशील है । इस विश्व में घटनाओं का निश्चयीकरण पूर्वनिश्चित या आध्यात्मिक शक्तियों द्वारा नहीं होता है, वरन् उनका निर्धारण समय, स्थान, आवश्यकता तथा व्यक्ति के अनुसार होता है। इसी कारण डीवी पूर्वनिश्चित मूल्यों या सत्यों में आस्था नहीं रखता है। उसका विश्वास है कि जीवन-मूल्य निश्चित नहीं होते हैं, वरन् उनका निर्माण किया जाता है। वह सत्य या वास्तविकता या मूल्यों के स्वरूप को सदैव के लिये एक-सा नहीं मानता है। उसके अनुसार, सत्य या वास्तविकता या मूल्यों के स्वरूप पर समय तथा स्थान का गहन प्रभाव पड़ता है। जो आज सत्य है, वह आने वाले कल में सत्य नहीं हो सकता है । डीवी ने बताया कि जीवन-मूल्य समय, स्थान एवं व्यक्ति के अनुसार परिवर्तित होते रहते हैं। मनुष्य जीवन-मूल्यों को अपनी सृजनात्मक शक्तियों एवं बुद्धि द्वारा निर्मित एवं पुनर्निर्मित करता है । डीवी का विश्वास है कि मूल्यों के निर्माण में सफलता का निर्धारण उन क्रियाओं के परिणाम पर निर्भर होता है, जिसकी ओर विचार उन्मुख होते हैं । यदि विचार पूर्ण एवं उपयुक्त हैं, तो वे सत्य हैं । यदि वे कार्य में परिणत होते समय भ्रम, संशय एवं बुराई आदि को बढ़ाते हैं, तो वे अवास्तविक होते हैं। इस प्रकार, डीवी के अनुसार सत्य केवल व्यक्ति का अनुभव मात्र ही है। अनुभव द्वारा ज्ञान की वृद्धि एवं सत्य का आगमन होता है।
मन सम्बन्धी विचार (Views about Mind) – डीवी का मत है कि विकास का परिणाम है। उसके अनुसार, मन जीवन की विविध सामाजिक तथा व्यावहारिक समस्याओं को हल करने के लिये की गई मानव क्रियाओं का परिणाम है। उसका विचार है कि इन मन की उपयोगिता एकान्त में न होकर समाज में ही है। इसी कारण उसने वैयक्तिक मन की अपेक्षा सामाजिक मन को अधिक महत्ता प्रदान की है ।
ज्ञान सम्बन्धी विचार (Views about Knowledge)- डीवी ज्ञान को मन से पृथक् मानता है। उसके अनुसार, ‘विचार’ केवल मन की प्रक्रियायें ही हैं। उसका कथन है कि विचार व्यक्ति द्वारा वातावरण की वस्तुओं को नियन्त्रित करने की प्रक्रिया में विकसित किये जाते हैं । व्यक्ति, दुःखों को दूर करने या सन्तोष प्राप्त करने के लिये वातावरण को नियन्त्रित करता है । डीवी इस बात में विश्वास न करके कि ‘ज्ञान’ क्रिया का मार्गदर्शक है, इस बात में विश्वास करता है कि ‘ज्ञान क्रिया का परिणाम है । उसने बताया है कि क्रिया या कार्य, व्यापार – ज्ञान के स्त्रोत हैं । क्रिया अनुभव से पूर्व होती है । अतः अनुसार, ज्ञान या सीखना, क्रिया के परिणाम हैं । इस प्रकार, डीवी ज्ञान एवं अनुभव में कोई विशेष अन्तर नहीं मानता है । उसका कथन है कि ज्ञान, अनुभव से प्राप्त होता है और अनुभव क्रिया द्वारा उत्पन्न होता है | अतः अनुभव क्रिया का अंग मात्र है । इस प्रकार डीवी ज्ञानार्जन की प्रयोगात्मक विधि पर बल देता है ।
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