दिए गए संकेत बिन्दुओं के आधार पर लगभग शब्दों में किसी एक विषय पर निबंध लिखें।

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प्रश्न – दिए गए संकेत बिन्दुओं के आधार पर लगभग  शब्दों में किसी एक विषय पर निबंध लिखें।
(क) वृक्षारोपण
(i) भूमिका
(ii) वृक्ष की महत्ता
(iii) वृक्ष से लाभ
(iv) कटाई की प्रतिपूर्ति
(v) उपसंहार
(ख) मेरे प्रिय नेता
(i) भूमिका
(ii) बाल्यावस्था (जीवनी)
(iii) राजनीति
(iv) उनकी महत्ता (देशहित में)
(v) उपसंहार
(ग) स्त्री शिक्षा
(i) भूमिका
(ii) माँ भी, बेटी भी, दोनों रूपों में
(iii) कारण
(iv) समानाधिकार
(v) सही दिशा
(vi) उपसंहार
उत्तर – (क) वृक्षारोपण
(i) भूमिका : वृक्ष हमारे लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वह हमेशा चौकन्ना रहकर हमारी रक्षा के लिए तत्पर रहता है। इसके महत्त्व का बखान शब्दों में नहीं किया जा सकता है। वृक्ष जन्म लेने से लेकर मृत्योपरांत हमारे उपयोग में आता है लेकिन हमलोगों को भी उसकी महत्ता समझनी चाहिए। भोजन के लिए फल, जलावन की लकड़ी, घर निर्माण के लिए लकड़ी, बिछावन के लिए लकड़ी यहाँ तक कि बूढ़े का सहारा भी एक लकड़ी ही है। जीवन के लिए शुद्ध हवा भी तो वृक्ष ही देता है।
(ii) वृक्ष की महत्ता : यदि पूरी धरती को मरुस्थल हो जाने से बचाना है तो हमें वृक्ष लगाना चाहिए। अंधाधुंध हम उसे काटते जा रहे हैं। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते जा रहे हैं, लेकिन वृक्ष लगाना भी है इसपर किसी का ध्यान नहीं है। कल-कारखानों से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड और मोनोक्साइड गैसें वायु में घुलकर हमारे जीवन को निगलने के लिए सुरसा की तरह मुँह फैलाए जा रही है। जीवन शक्ति प्रदान करने वाली ऑक्सीजन घटते-घटते इतना कम हो जाएगी कि दम घुटकर जीव मर जाएगा। प्रकृति पर नियंत्रण और जीवन शक्ति को बनाए रखने के लिए वृक्ष लगाना आवश्यक हो गया है। इसकी महत्ता को हम नकार नहीं सकते।
(iii) लाभ : आज हमें मीठे पानी का स्रोत उपलब्ध है। यह तभी तक है, जब तक वन है। शुद्ध वायु, मीठे फल आवश्यक लकड़ियाँ, जड़ी-बूटी, औषधीय पौधे, पशुओं की दुर्लभ प्रजातियाँ, रंग-बिरंगी चिड़ियाँ और उन पशुओं और पक्षियों से प्राप्त होने वाले खाल-बाल, पंख सब हमारे लिए आवश्यक वस्तुओं के निर्माण में काम आते हैं, 1952 में सरकार ने “वन नीति” बनाई थी। वन महोत्सव मनाए गए।
(iv) कटाई की प्रतिपूर्ति : अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए कटाई की जगह रोपाई को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। बढ़ती जनसंख्या के लिए अनाज के खेत की भी आवश्यकता है लेकिन यदि हमारी इच्छा शक्ति मजबूत होगी तो हम बंजर में भी वृक्ष उगा सकते हैं। सड़कों के किनारे, नदियों, नालों और नहरों के किनारे-किनारे यदि योजनाबद्ध ढंग से वृक्ष लगाए जाएँ, तो कंटे वृक्षों की प्रतिपूर्ति हो सकती है और जीवन बच सकता है।
(v) उपसंहार : वृक्षारोपण आवश्यक है, क्योंकि मानव जीवन में मौन खड़ा रहकर यह जीवन और आनंद प्रदान करता है। यह मौसम के संतुलन को बनाए रखता है जिससे सर्दी-गर्मी बरसात समय पर होती है। जीवन देने के साथ ही प्राकृतिक सौन्दर्य में भी वृद्धि करता है। अतः यह समझकर वृक्षारोपण करना चाहिए कि “एक वृक्ष सौ पुत्र समान । “
(ख) मेरे प्रिय नेता
(i) भूमिका : मेरे सबसे प्रिय नेता लाल बहादुर शास्त्री हैं। क्योंकि मैं समझता हूँ कि वे संसार की उन महान विभूतियों में से एक हैं। जिनकी मानवता की स्थायी देन है।
एक समय ऐसा भी आता है जब आकाश सहसा काले बादलों से आच्छादन हो जाता है, चारों ओर अंधकार-ही-अंधकार दिखाई पड़ने लगता है, न कोई राह सूझती है, न कहीं कोई ठिकाना दीखता। निराशा की ऐसी घड़ी में सहसा एक प्रकाश किरण हमें राह दिखाती है। नेहरू के निधन की संकटापन्न घड़ी में बिजली की भाँति कौंधकर जिन्होंने हमारा पथ-प्रदर्शन किया था, वे थे महान नेता लाल बहादुर शास्त्री |
(ii) बाल्यावस्था (जीवनी) : बालक लाल बहादुर का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को बनारस के निकट मुगलसराय नामक स्थान में एक अति साधारण कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता शारदा प्रसाद जी एक साधारण शिक्षक थे। डेढ़ वर्ष की अबोध आयु में ही उनके ऊपर से पिता की स्नेहवत्सल छाया हट गई। इसके पश्चात् तो उनकी धर्मपरायण माता जी श्रीमती रामदुलारी देवी का स्नेह-सलिल ही नवजात बिखरे को सींचता रहा।
(iii) राजनीति : अध्ययन के पश्चात् शास्त्री जी सक्रिय राजनीति में कूद पड़े। उन्होंने अपना कार्य क्षेत्र इलाहाबाद चुना। वे इलाहाबाद इंप्रूवमेंट ट्रस्ट के सक्रिय सदस्य रहे। वहाँ की कांग्रेस कमिटी के महासचिव के दायित्वपूर्ण कार्य को वे बड़ी तत्परतापूर्वक करते रहे। 1937 ई० में वे उत्तर प्रदेश की विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। 1941 ई० में वे दूसरी बार जेल गए।
(iv) उनकी महत्ता ( देश हित में ) : अब लाल बहादुर जी के जीवन का लाल सितारा चमका। पं० नेहरू का ध्यान भी इस राष्ट्र भक्त एवं साधना के भगीरथ की ओर गया। उन्होंने शास्त्री जी को दिल्ली बुलाकर काँग्रेस संगठन का कार्य भार सौंपा। शास्त्री जी बड़ी कुशलता से संगठन का कार्य करते रहे। जब 1952 ई० में पं० नेहरू के नेतृत्व में पहली बार भारतीय गणतंत्र का नवनिर्वाचित मंत्रिमंडल बना, पंडित जी ने शास्त्री जी को रेल तथा परिवहन मंत्री बनाया। शास्त्री जी जानते थे कि जिस गाड़ी में सभी श्रेणियों के डिब्बे रहते हैं, उनमें तृतीय श्रेणी के यात्रियों को कितना कष्ट होता है। सामान्य जनता की सुविधा के लिए उन्होंने ‘जनता गाड़ी’ चलाई।
27 मई, 1964 को दो बजे दिन में हमारे बीच से पं० नेहरू उठ गए तो ‘नेहरू के बाद कौन’ की विकट समस्या तत्काल समाधान माँगने लगी किन्तु यह बेचैनी बहुत देर नहीं रही और काँग्रेस दल ने सर्वसम्मति से 9 जून, 1964 को शास्त्रीजी ने ज्योंही शासन भार सँभाला, त्योंही उनका ध्यान देश के चतुर्दिक विकास की ओर उन्मुख हुआ किन्तु सितम्बर, 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया।
(v) उपसंहार : शास्त्री जी ने उस समय ‘जय जवान, जय किसान’ का जो नारा दिया था, वह भारतीय प्रगति का सनातन नारा बन गया है। 1962 ई० में भारत ने चीन युद्ध में जो पराजय झेली थी उस कारण जब प्रधानमंत्री हुए थे, तब भारत का सर झुका हुआ था। उन्हें जो सेना मिली हुई थी, वह भी ग्लानि के भार से दबी जा रही थी। उन्होंने उसी सेना में फिर से संजीवनी फूंकी और उसे चेतनावान किया। शास्त्री जी चाहते थे, भारत और पाकिस्तान दोनों पड़ोसी देश शांति से रहे। इसी शांति की खोज में वे अपने देश से दूर ताशकंद गए और वहाँ 1966 ई० की 11 जनवरी की मध्य रात्रि में सदा के लिए हमें छोड़ चले गये।
(ग) स्त्री शिक्षा
भूमिका : कहावत है – एक नारी को शिक्षा देने का अर्थ है पूरे परिवार को शिक्षा देना। यह सच भी है क्योंकि बच्चा जन्म से लेकर युवावस्था तक अपनी माँ के ही सम्पर्क में रहता है और यदि माँ शिक्षित हुई तो अनायास ही वह अपने बच्चों को शिक्षित कर सुयोग्य नागरिक बनाने में बहुमूल्य योगदान करती है।
नारी-शिक्षा का महत्त्व : इस प्रकार स्पष्ट है कि नारी शिक्षा का महत्त्व बहुत है। वस्तुतः यह राष्ट्रीय महत्त्व का विषय है। यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने आरम्भ में नारी शिक्षा पर बहुत जोर दिया जिसके कारण देश में विद्योत्तमा, मैत्रेयी, गार्गी, लोपामुद्रा और भारती जैसी विदुषी नारियाँ हुईं और ज्ञान-विज्ञान में पुरुषों को भी पराजित कर सबको चकित कर दिया। लेकिन ज्ञान-दान की यह धारा मध्य युग में आकर सूख गई। सच तो यह है कि पुरुष और नारी दोनों ही समाजरूपी रथ को खींचने वाले दो पहिए हैं। एक के भी कमजोर रहने से समाज ठीक से नहीं चल सकेगा। एक के अशिक्षित रहने से समाज शिक्षित नहीं रहेगा और समाज पूरी तरह शिक्षित नहीं रहा तो राष्ट्र कभी भी उन्नति नहीं कर सकेगा।
देश-कार्यों में नारी की भागीदारी: यह खुशी की बात है कि अंग्रेजों के आगमन और गाँधीजी की प्रेरणा से नारी – शिक्षा का एक नया अध्याय अपने देश में शुरू हुआ। नारियाँ आज पूरी कुशलता से अपने दायित्वों का निर्वाह कर रही हैं। देश ने महिला को अपना राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बनाया है, वे न्यायाधीश के आसन पर विराजमान हैं। बिहार में तो पंचायतों में उनका आधा हिस्सा है। लेकिन यह भी सच है कि शिक्षा के मामले में वे अभी काफी पीछे हैं। अन्धविश्वास के गर्त में वे अभी पड़ी हुई हैं। हमारी अपेक्षित उन्नति न होने का यह भी एक प्रमुख कारण है।
समुचित शिक्षा की जरूरत : लेकिन इस सम्बन्ध में एक बात का उल्लेख करना आवश्यक है। वह यह कि अभी जो शिक्षा दी जा रही है, वह पश्चिमी शिक्षा है और वहाँ के समाज के ही अनुकूल है। भारतीय समाज दूसरे ढंग का है। अतः अपने समाज के अनुसार ही इन्हें शिक्षा दी जानी चाहिए। हमारी स्त्रियों का अधिकांश समय घर पर ही बीतता है। इसलिए ऐसी शिक्षा दी जानी चाहिए कि गृह-कार्यों के सम्पादन के पश्चात् उनके पास जो समय बचता है उसमें वे अर्थोपार्जन कर सकें।
उपसंहार : आज देश को उनकी भागीदारी की बड़ी आवश्यकता है। हमें उनके लिए ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि वे घर और बाहर दोनों को कुशलतापूर्वक सम्भाल सकें।

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