द्विप्रक्रिया तथा एकाकी प्रक्रिया परिकल्पना या सिद्धान्त की विवेचना करें !
उत्तर – अल्पकालीन स्मृति तथा दीर्घकालीन स्मृति के सम्बन्ध में एक जटिल समस्या यह है कि मंस्तिक में इन दोनों तरह की स्मृतियों का नियंत्रण एक ही संरचना द्वारा होता है अथवा दो अलग – अलग स्नायु संरचनों के द्वारा होता है। इस समस्या से सम्बन्धित निम्नलिखित दो परिकल्पनाएँ या सिद्धान्त हैं—
इन दोनों परिकल्पनाओं या सिद्धान्तों की समीक्षा अलग-अलग की जाएगी ।
(1) द्विप्रक्रिया परिकल्पना या सिद्धान्त (Dual Process Hypothesis or Theory ) – एटकिंसन एवं शिफरिन ने द्विप्रक्रिया परिकल्पना का समर्थन किया और कहा कि अल्पकालीन स्मरण तथा दीर्घकालीन स्मरण दो भिन्न प्रक्रियाएँ हैं और दोनों के दो अलग संचयन है | अल्पकालीन भंडार अस्थाई तथा क्षणिक होता है जबकि दीर्घकालीन भंडार अपेक्षाकृत स्थाई होता है । अल्पकालीन स्मरण की सामग्री जल्दी भुला जाती है, जबकि दीर्घकालीन स्मरण की सामग्री लगभग स्थाई रूप से कायम रहती है । पेटर्सन एवं पेटर्सन के अनुसार सामग्री का अधिकतम विस्मरण आरम्भ में अर्थात् अल्पकालीन स्मरण के रूप में होता है ।
द्विप्रक्रिया-सिद्धान्त के रूप में शारीरिक प्रमाणों का भी उल्लेख मिलता है | अपस्मारी दौरा के रोगियों के ऑपरेशन से प्राप्त स्नायु दित्ता से पता चलता है कि मस्तिष्क में अल्पकालीन स्मरण तथा दीर्घकालीन स्मरण के दो अलग-अलग संचयन हैं । मिलनर ने देखाकि एक रोगी के मस्तिष्क के हिप्पोकैम्पस को काट दिया गया तो इसका फल यह हुआ कि नई सूचनाओं का स्मरण समाप्त हो गया । परन्तु, पुरानी सूचनाएँ सुरक्षित रहीं । वह नऐ व्यक्ति से बातें कर सकता था, परन्तु वह कुछ मिनट के लिए बाहर चला जाता और वापस लौटकर आता तो वह उसे पहचान नहीं पाता था । इसका अर्थ यह हुआ कि अल्पकालीन स्मरण में सूचनाएँ प्रवेश करती थीं, परन्तु दीर्घकालीन स्मरण में वे नहीं जा पाती थीं, क्योंकि हिप्पोकैम्पस के नष्ट हो जाने पर अल्पकालीन संचयन तथा दीर्घकालीन संचयन के बीच सम्बन्ध टूट गया । इससे द्विप्रक्रिया – सिद्धान्त प्रमाणित होता है ।
स्वतंत्र प्रत्यावाह्न प्रयोगों से भी द्विप्रक्रिया – परिकल्पना प्रमाणित होती है । दस निरर्थक पदों को एक-एक करके प्रयोज्यों को 3-3 सेकण्ड के लिए स्मृति पटल द्वारा दिखलाया जाता है । फिर प्रयोज्य से उन पदों का प्रत्यावाह्न करने के लिए कहा जाता है । प्रयोज्य को स्वतंत्रता रहती है कि वह अपनी इच्छा से किसी भी पद का प्रत्यावाह्न पहले या बाद में कर सकता है। देखा जाता है कि वह सूची के शुरू के पदों तथा अन्त के पदों का प्रत्यावाह्न पहले करता है । इसे क्रमशः प्राथमिकी- प्रभाव तथा अभिनवता – प्रभाव का आधार अल्पकालीन स्मरण से सम्बन्धित पुनः प्राप्ति है, और प्राथमिकी – प्रभाव कहते हैं । द्विप्रक्रिया – सिद्धांत के अनुसार अभिवक्ता-प्रभाव का आधार दीर्घकालीन स्मरण से सम्बन्ध पुनः प्राप्ति है । मुर्डोक के अध्ययन से इस विचार का समर्थन होता है ।
अपकर्ष, विस्थापन तथा बाधा या हस्तक्षेप से सम्बन्धित अध्ययनों से भी द्विप्रक्रिया – सिद्धान्त का प्रमाण मिलता है । विस्मरण की व्याख्या करने में इन तीनों चरों पर बल दिया गया है । बैडेली तथा डाले, पेटर्सन तथा जेन्टाइल तथा वीकेलग्रेन के अनुसार क्लासिकी हस्तक्षेप से सम्बन्धित सारी बातों की व्याख्या तभी सम्भव है जबकि अल्पकालीन संचयन तथा दीर्घकालीन संचयन की अलग-अलग कल्पना की जाए । केपेल तथा अण्डरउड, लोयस आदि के अध्ययनों से भी द्विप्रक्रिया सिद्धान्त की पुष्टि होती है ।
(2) एकाकी प्रक्रिया परिकल्पना या सिद्धान्त (Single Process Hypothesis or Theory) —इस परिकल्पना या सिद्धान्त के अनुसार अल्पकालीन स्मृति तथा दीर्घकालीन स्मृति के बीच कोई मौलिक भेद नहीं है। इन दोनों का सम्बन्ध मस्तिष्क के एक ही संरचन या भण्डार से है । अल्पकालीन स्मरण तथा दीर्घकालीन स्मरण से सम्बन्धित द्विप्रक्रिया – सिद्धान्त के पक्ष में कई प्रमाणों का उल्लेख किया गया है । परन्तु मिल्टन ने इस सिद्धान्त का विरोध करते हुए कहा है कि अल्पकालीन स्मरण तथा दीर्घकालीन स्मरण वास्तव में अभिन्न तथा समान प्रक्रियाएँ हैं । उनके अनुसार प्रारम्भिक स्मरण तथा अनुषंगी स्मरण एक ही सतत – रेखा के दो बिन्दु हैं । इनका द्विविभाजन सम्भव नहीं है । उन्होंने दावा किया कि क्लासिकी द्विकारक हस्तक्षेप-सिद्धान्त अल्पकालीन स्मरण तथा दीर्घकालीन स्मरण की व्याख्या करने में सक्षम है । अतः, एक ही संरचन दोनों तरह के समरण के लिए उपयुक्त है ।
क्रेक तथा लॉकहार्ट ने कहा है कि द्विप्रक्रिया – सिद्धान्त के समर्थन में जिन बातों को प्रस्तुत किया गया है, उनकी व्याख्या स्मरण के संसाधन-स्तरों के रूप में की जा सकती है। उनके अनुसार उद्दीपनों के प्रत्यक्षीकरण के विश्लेषण का एक परिणाम स्मृति चिह्न है और इसकी दृढ़ता विश्लेषण की गहराई पर निर्भर करती है। जिस सूचना के संसाधन का स्तर जितना ही गहरा होता है, यह उतना अधिक टिकाऊ होती है ।
सेरमक ने संसाधन, दृष्टिकोण का समर्थन किया है। उन्होंने मिलनर के अध्ययन की आलोचना की है और कहा है कि उनके अध्ययन से द्विप्रक्रिया – सिद्धान्त आवश्यक रूप से प्रमाणित नहीं होता है | अल्पकालीन स्मरण से नई सूचनाओं का स्थानान्तरण दीर्घकालीन स्मरण में नहीं होना, आवश्यक रूप से द्विप्रक्रिया – सिद्धान्त को प्रमाणित नहीं करता है। इससे केवल इतना पता चलता है कि रोगी में नई सूचनाओं के गहरे स्तर पर संसाधन की योग्यता समाप्त हो जाती है ।
इस प्रकार स्पष्ट हुआ कि द्विप्रक्रिया-सिद्धान्त तथा एकाकी प्रक्रिया – सिद्धान्त के सम्बन्धन में कोई निश्चित निष्कर्ष नहीं दिया जा सकता है। हल्स, डीज तथा इगेथ ने अनेक शोधकार्यों के आलोक में निष्कर्ष के रूप में कहा कि सभी बाधा-प्रभावों की समुचित व्याख्या एकाकी प्रक्रिया-सिद्धान्त से अधिक सम्भव है ।
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