नगर निगम के मुख्य कार्यों का वर्णन करें। अथवा, भारत में लोकतंत्र कैसे सफल हो सकता है ?

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प्रश्न – नगर निगम के मुख्य कार्यों का वर्णन करें। अथवा, भारत में लोकतंत्र कैसे सफल हो सकता है ?

उत्तर – भारत के राज्यों में नगरों के स्थानीय शासन के लिए तीन प्रकार की संस्थाएँ होती हैं। इन तीनों संस्थाओं में नगर निगम बड़े-बड़े शहरों में स्थापित की जाती है। तात्पर्य यह है कि जिस शहर की जनसंख्या तीन लाख से अधिक होती है वैसे शहरों में नगर निगम की स्थापना की जाती है।
 नगर निगम के प्रमुख कार्य : नगर निगम नागरिकों की स्थानीय आवश्यकता एवं सुख-सुविधा के लिए अनेक कार्य करता है। नगर निगम के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं – (i) नगर क्षेत्र की नलियों, पेशाबखाना, शौचालय आदि का निर्माण करना एवं उसकी देखभाल करना । (ii) कूड़ा-कर्कट तथा गंदगी की सफाई करना। (iii) पीने के पानी का प्रबंध करना । (iv) गलियों, पुलों एवं उद्यानों की सफाई एवं निर्माण करना। (v) मनुष्यों तथा पशुओं के लिए चिकित्सा केन्द्र की स्थापना करना एवं छुआछूत जैसी बीमारी पर रोक लगाने का प्रयास करना। (vi) प्रारंभिक सरकारी विद्यालयों, पुस्तकालयों, अजायबघर की स्थापना तथा व्यवस्था करना। (vii) विभिन्न कल्याण केन्द्रों जैसे मातृ केन्द्र, शिशु केन्द्र, वृद्धाश्रम की स्थापना एवं देखभाल करना । (viii) खतरनाक व्यापारों की रोकथाम, खतरनाक जानवरों तथा पागल कुत्तों को मारने का प्रबंध करना । (ix) दुग्धशाला की स्थापना एवं प्रबंध करना। (x) आग बुझाने का प्रबंध करना। (xi) मनोरंजन गृह का प्रबंध करना। (xii) जन्म, मृत्यु का पंजीकरण का प्रबंध करना। (xiii) नगर की जनगणना करना ।
अथवा,
भारतवर्ष में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली पायी जाती है। भारतीय लोकतंत्र की साख पूरी दुनिया में बढ़ी है। परन्तु लोकतंत्र उतना परिपक्व नहीं हुआ है। कारण कि जनता का जुड़ाव उस स्तर तक नहीं पहुँचा है जहाँ जनता सीधे तौर पर हस्तक्षेप कर सके। अतएव इसकी सफलता के लिए आवश्यक है कि सर्वप्रथम जनता शिक्षित हो, यह सच्चाई है। लोकतांत्रिक सरकारें बहुमत के आधार पर बनती हैं, परंतु लोकतंत्र का अर्थ बहुमत की राय से चलनेवाली व्यवस्था नहीं है बल्कि यहाँ अल्पमत की आकांक्षाओं पर ध्यान देना आवश्यक होता है। भारतीय लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक होता है सरकारें प्रत्येक नागरिक को यह अवसर अवश्य प्रदान करें ताकि वे किसी-न-किसी अवसर पर बहुमत का हिस्सा बन सके। लोकतंत्र की सफलता के लिए लोकतांत्रिक संस्थाओं के अन्दर आंतरिक लोकतंत्र हो । बिडम्बना है कि भारतवर्ष में नागरिकों के स्तर पर और खासतौर पर राजनीतिक दलों के अन्दर आंतरिक विमर्श अथवा आंतरिक लोकतंत्र भी स्वस्थ परम्परा का सर्वथा अभाव दिखता है। जाहिर है कि इसके दुष्परिणाम के तौर पर सत्ताधारी लोगों के चरित्र एवं व्यवहार गैर-लोकतांत्रिक दिखेंगे और लोकतंत्र के प्रति हमारे विश्वास में कमी होगी। इसे हम अपनी सक्रिय भागीदारी एवं लोकतंत्र में अटूट विश्वास से दूर हो सकते हैं।
वास्तव में लोकतंत्र के उपर्युक्त तथ्यों का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि लोकतंत्र उपयुक्त तरीकों द्वारा सफल बनाया जा सकता है।

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