नवजात शिशु के क्रियात्मक विकास की विवेचना करें।

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प्रश्न – नवजात शिशु के क्रियात्मक विकास की विवेचना करें।
उत्तर – अध्ययनों से यह स्पष्ट है कि नवजात शिशु में कुछ क्रियात्मक योग्यताएँ (motor capacities) रहती हैं। प्रारंभ में शिशु अपने सम्पूर्ण शरीर से किसी उत्तेजना के प्रति प्रतिक्रिया करता है। उस समय वह मात्र उतनी ही क्रिया कर पाता है कि जितना कि जीवन रक्षा के लिए आवश्यक है। वह अपनी सारी जरूरतों के लिए दूसरों पर ही निर्भर रहता है। उसे जहाँ रखा जाय, वहीं रहता है क्योंकि उस समय उसके विभिन्न अंगों की माँसपेशियों का विकास नहीं हुआ रहता । वह सिर्फ सहज क्रियाएँ (reflex actions) ही कर पाता है। थोड़े शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि किसी उत्तेजना से उत्तेजित होने पर उसके प्रतिकार के लिए जो तात्कालिक (immediate), स्नायविक (muscular) अथवा पेशिक (glandular) प्रतिक्रिया होती है, उसे सहज-क्रियाएँ या reflex action कहते हैं। इन्हें हम अपने अनुभव से नहीं सीखते, बल्कि इसकी योग्यता जन्मजात होती है। पलक गिराना, आँसू गिराना, खाँसना आदि सहज क्रियाएँ हैं। इन सबमें कुछ सहज क्रियाएँ वाह्य उत्तेजना के कारण होती है और कुछ आंतरिक उत्तेजना (internal stimulus) के कारण होती है। सहज क्रियाएँ अत्यंत सरल स्वरूप की होती है। इसपर व्यक्ति का कोई नियंत्रण नहीं होता क्योंकि जिस समय यह क्रिया होती है, उस समय इसका ज्ञान जीव को नहीं होता। छींकने, खाँसने या खुजलाने आदि की क्रिया का ज्ञान जीन को बिल्कुल ही नहीं होता। बहुत-सी सहज क्रियाएँ जीवन-भर बनी रहती हैं और कुछ शैशवावस्था में ही खत्म हो जाती हैं। ये क्रियाएँ सदैव एकरूप (uniform) होती है क्योंकि इनके होने का ढंग सदैव एक ही होता है एवं तत्काल प्रतिक्रिया हाती है। जैसे आँख के आगे हाथ आने पर सहज ही आँखे बंद हो जाती हैं और शीघ्र ही समाप्त भी हो जाती हैं। कोई चीज नाक में पड़ने पर छींकने के साथ ही यह क्रिया भी तुरन्त ही सम्पन्न हो जाती है। इस कार्य हेतु कोई विशेष अंग ही क्रियाशील होता है, पूरा अंग नहीं। अतः मनोवैज्ञानिकों ने इस स्थानीय (local) भी कहा है।
सहज क्रियाओं के प्रकार 
(Type of Reflex Actions) 
नवजात शिशु में कई प्रकार की सहज क्रियाएँ स्वतः होती हैं :
(1) पलक प्रत्यावर्तन (Pupilary Reflex)—सभी सामान्य मनुष्यों में पलक-प्रत्यावर्तन की क्रिया होती है। अपनी इसी क्रिया द्वारा व्यक्ति अंधकार एवं प्रकाश में अपनी आँखों की पुतली को अभियोजित कर पाता है। कम प्रकाश में पुतलियाँ बड़ी एवं अधिक प्रकाश में छोटी हो कम प्रकाश को पुतलियों एवं रेटिना पर पड़ने देती हैं। यद्यपि नवजात शिशुओं में इसका परीक्षण अत्यंत कठिन होता है। शेरमन का कहना है कि जन्म के समय शिशु में यह सहज क्रिया नहीं पाई जाती पर पाँच-छ: घंटे बाद यह क्रिया विकसित हो जाती है। तैंतीस ( 33 ) घंटों के बच्चों में यह प्रतिक्रिया निश्चित और स्पष्ट दिखती है।
(2) स्नायु प्रत्यावर्तन (Tendon Reflex ) – मांसपेशियों से आबद्ध स्नायुओं के थपथपाने माँसपेशी में जो संकुचन होता है, उसे स्नायु सहज क्रिया (tendon reflex) कहते हैं। जैसे घुटना झटकारने की उत्तेजना घुटने की चक्की के ठीक नीचे उससे आबद्ध स्नायु के थपथपाने के कारण होती है। यह प्रतिक्रिया जांघ के सामने वाली माँसपेशी के संकुचन के कारण होती है। यदि किसी तरह की रूकावट न हो, तो इस समय पैर झटकारने की क्रिया होती है। स्नायु प्रत्यावर्तन क्रिया का एक दूसरा उदाहरण है एचिल स्नायु सहज क्रिया (achilles reflex) जिसकी उत्पत्ति पैर की एड़ी के ठीक ऊपर स्थित एचिल स्नायु के थपथपाने से होती है। इसी प्रकार द्विमूल (Bicep-reflex) तथा त्रिमूल (Tricep Reflex) सहज क्रियाएँ भी होती हैं जो द्विमुख (biceps ) तथा त्रिमूल पेशियों के संकुचन के कारण होती हैं। स्वतः यद्यपि डीवी (Dewey) ने स्नायु प्रत्यवर्तन की सत्ता (Existence) सात महीने के गर्भस्थ शिशु में भी मानी है परन्तु अनुसंधानों में पाया गया है कि नवजात शिशुओं में यह प्रतिक्रिया नहीं पाई जाती। किन्तु जन्म के समय इसका अभाव किसी शिशु- विशेष की असामान्यता के कारण नहीं कहा जा सकता। इसके कई दूसरे कारण भी हो सकते हैं।
(3) धारण- प्रत्यावर्तन (Grasping Reflex) — धारण-सहज क्रिया का व्यापार सभी शिशुओं में जन्म से ही पाया जाता है किन्तु चार वर्षों के बाद यह स्वतः खत्म हो जाता हैं। भूख एवं रोने की स्थिति में शिशु का सह धारण प्रत्यावर्तन आसानी से देखा जा सकता है किन्तु नवजात शिशु की हथेली पर हल्का भार देने पर या उसके सामने कोई पकड़ने की चीज आने पर उसमें पकड़ने की सहज क्रिया होती है। लेकिन सुप्तावस्था में इस तरह की क्रियाएँ नहीं होतीं। जे० बी० मार्गन ने एक असामान्य बच्चे (abnormal child) का अध्ययन कर बताया कि उसमें किसी खास प्रवृत्ति को काफी समय तक करते रहने की प्रवृत्ति पाई गई जो कि सामान्य बच्चों में संभव नहीं है। नवजात शिशु के पास जब हम कोई पकड़ने वाली चीज ले जाते हैं तो कुछ समय तक उसे पकड़कर वह उसका वजन संभाले रखता है। इसकी उपयोगिता मानव-शिशु में विशेष नहीं होती क्योंकि चार महीने बाद बच्चे इस तरह की सामान्य क्रियाएँ करना छोड़ देते हैं।
(4) पादतालिका प्रत्यावर्त्तन (Plantar Reflex or Bibinski Reflex ) — नवजात शिशु को सहलाने या किसी प्रकार भी उत्तेजित करने पर वह अपनी हथेली को फैला देता है। मनोवैज्ञानिकों ने इस प्रतिक्रिया को पादतालिका प्रत्यावर्त्तन (plantar reflex) कहा है जो सभी सामान्य बालकों में पाया जाता है। रिचर्ड तथा डरविन ने भी इसमें कई प्रकार के परिवर्तनों को प्रदर्शित किया है परंतु कई मनोवैज्ञानिकों ने इसे अस्वीकार किया है। उनका मानना है कि हथेली या अंगूठा फैलाने की प्रतिक्रिया किसी अन्य कारण से भी हो सकती है। यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि शरीर के किस अंग को सहलाने पर शिशु में क्या प्रतिक्रिया होगी। इस दशा में विभिन्न अवस्था के बच्चों के निरीक्षण से स्पष्ट है कि इसका विकास सामान्य (general) से विशिष्ठ (specific) की ओर होता है। दूसरे शब्दों में, आरम्भ में यह प्रत्यावर्त्तन सामान्य स्वरूप का होता है, बाद में उनमें विशिष्टता आती है।
इसी तरह कपोल-प्रत्यावर्त्तन (Cheek reflex) तथा अन्य सहज क्रियाएँ भी उम्र की वृद्धि के साथ होती हैं।
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