निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें –
प्रश्न – निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें –
इस संसार को कर्मक्षेत्र कहा गया है। सारी सृष्टि कर्मरत है। छोटा-से-छोटा प्राणी भी कर्म का शाश्वत संदेश दे रहा है। प्रकृति के साम्राज्य में कहीं भी अकर्मण्यता के दर्शन नहीं हो रहे हैं। सूर्य, चंद्र, पृथ्वी, ग्रह-नक्षत्रादि निरंतर गतिशील है। नियमानुकूल सूर्योदय होता है और सूर्यास्त तक किरणें प्रकाश बिखेरती रहती है। रात्रिकालीन आकाश में तारावली तथा नक्षत्रावली का सौंदर्य विहंस उठता है। क्रमश: बढ़ती घटती चंद्रकला के दर्शन होते हैं। इसी तरह विभिन्न ऋतुओं का चक्र अपनी धुरी पर चलता रहता है। नदियाँ अविरल गति से बहती रहती है। पेड़-पौधे, सबके जीवन में सक्रियता है। वस्तुतः कर्म से परे जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है।
मनुष्य का जन्म पाकर हाथ-पैर तो हिलाने ही होंगे। हमारे प्राचीन ऋषियों ने शतायु होने की किंतु कर्म करते जीने की इच्छा प्रकट की थी। इतिहास साक्षी है कि कितने ही भारतीय युवकों ने कर्मशक्ति के बल पर चंद्रगुप्त की भाँति शक्तिशाली साम्राज्यों की स्थापना की। आधुनिक युग में भारत जैसे विशाल जनतंत्र की स्थापना करने वाले गाँधी, नेहरू, पटेल आदि कर्मपथ पर दृढ़ता के प्रतिरूप थे। दूसरी ओर इतिहास उन सम्राटों को भी रेखांकित करता है जिनकी अकर्मण्यता के कारण महान साम्राज्य नष्ट हो गए। वेद, उपनिषद्, कुरान, बाइबिल आदि सारे धर्मग्रंथ कर्मठ मनीषियों की ही उपलब्धियाँ हैं। आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की गौरव- गरिमा उन वैज्ञानिकों की देन है जिन्होंने साधना की बलि वेदी पर अपनी हर साँस समर्पित कर दी। विज्ञान कर्म का साक्षात् प्रतीक है। सुख-समृद्धि के शिखर पर आसीन प्रत्येक व्यक्ति अथवा जाति-कर्म शक्ति का परिचय देती है।
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दें –
(क) कर्म का संदेश निरंतर हमें किनसे मिल रहा है?
(ख) ऋषियों ने सौ वर्ष का कैसा जीवन चाहा था?
(ग) कर्म के बल पर किन साम्राज्यों की स्थापना हुई ?
(घ) अकर्मण्यता के क्या परिणाम होते हैं?
(ङ) विज्ञान कर्म का प्रतीक कैसे है?
उत्तर –
(क) कर्म का संदेश निरंतर हमें सारी सृष्टि से मिल रहा है।
(ख) ऋषियों ने सौ वर्ष कर्म करते हुए जीने की इच्छज्ञ प्रकट की थी।
(ग) चंद्रगुप्त की भांति कई शक्तिशाली साम्राज्यों की स्थापना कर्म के बल पर ही हुई थी।
(घ) अकर्मण्यता के कारण कई महान साम्राज्य नष्ट हो गये।
(ङ) विज्ञान कर्म का साक्षात प्रतीक है।
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