निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर लगभग 20-30 शब्दों में दें।

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प्रश्न – निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर लगभग 20-30 शब्दों में दें।

(क) लेखक के अनुसार आदर्श समाज में किस प्रकार की गतिशीलता होनी चाहिए ?
(ख) लेखक के अनुसार सफलता और चरितार्थता क्या है?
(ग) लेखक ने पटना से नागरी का क्या संबंध बताया है ?
(घ) ‘राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा’ पद का मुख्य भाव क्या है ?
(ङ) नेताओं के बारे में कवि प्रेमधन की क्या राय है?
(च) हिरोशिमा कविता से हमें क्या सीख मिलती है ?
(छ) मंगम्मा की बहु ने विवाद निपटाने में पहल क्यों की?
(ज) मंगु को उसकी माँ अस्पताल में भर्ती क्यों नहीं करवाना चाहती थी ?
उत्तर –
(क) किसी भी वांछित परिवर्तन का प्रभाव समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचरित हो जाना।
(ख) लेखक (हजारी प्रसाद द्विवेदी) के अनुसार, सफलता का संबंध मनुष्य के भौतिक विकास से है और चरितार्थता का संबंध उसके आत्मिक विकास से सफलता और चरितार्थता भिन्नार्थक शब्द हैं।
(ग) नागरी लिपि की उत्पत्ति के संबंध में लेखक का कहना है कि चंद्रगुप्त (द्वितीय) विक्रमादित्य का व्यक्तिगत नाम ‘देव’ था। इनके नाम के आधार पर ही गुप्त साम्राज्य की राजधानी ‘पटना’ ‘देवनगर’ के रूप में विख्यात हुई। इसी ‘देवनगर’ के नाम पर यहाँ प्रचलित लिपि को ‘देवनागरी’ कहा गया।
(घ) संत कवि गुरु नानक कहते हैं कि राम नाम के बिना संसार में जन्म लेना व्यर्थ है। राम नाम के बिना हम विष खाते हैं, विष बोलते हैं और राम नाम के बिना हमारी बुद्धि निष्फल यहाँ-वहाँ भ्रमण करती रहती है। पुस्तक पढ़ने, व्याकरण पर चर्चा करने और संध्याकालीन उपासना करने से हमें मोक्ष नहीं प्राप्त होता । नानक कहते हैं कि गुरुवाणी के अभाव में हमें मुक्ति नहीं प्राप्त होती और राम नाम के बिना हम विभिन्न जंजालों में उलझकर मर जाते हैं।
 (ङ) नेताओं के बारे में कवि ‘प्रेमघन’ (बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन) की राय है कि इनसे देश के विकास के बारे में सोचना व्यर्थ है। ये स्वयं अपने को नहीं सँभाल पाते, तो भला देश को कैसे सँभाल पाएँगे।
(च) यह कविता एक ओर जहाँ अतीत की भीषणतम मानवीय बर्बरता की साक्ष्य है, वहीं दूसरी ओर आणविक आयुधों की होड़ में फँसी, आज की वैश्विक राजनीति से उपजते संकट की आशंकाओं को भी अभिव्यक्त करती हैं।
(छ) रंगप्पा उसकी सास से कहीं धन हड़प न कर ले यह सोच बहू ने विवाद निपटने में पहल की।
(ज) माँ को अस्पतालवालों (अस्पताल के कर्मचारियों) पर यह भरोसा नहीं है कि वे जन्म की पागल और गूँगी मंगु की यथोचित सेवा कर सकेंगे। माँ अस्पताल को अपंग जानवरों की गौशाला के रूप में समझती थी। उसके भीतर न जाने यह धारणा कैसे गहरे पैंठ गई थी कि यदि वह अपनी पुत्री को अस्पताल भेजेगी तो वहाँ उसकी मृत्यु हो जाएगी। अतः, मंगु को अस्पताल द्वारा मौत के मुँह में ढकेलने को भाँ तैयार नहीं थीं। माँ अपने मन में तरह-तरह की बातें सोचती- क्या जाने अस्पताल में मंगु को समय पर बढ़िया खाना मिलेगा कि नहीं। उसके मल-मूत्र की सफाई ठीक से होगी कि नहीं। मैं तो उसके पास हूँ तो मेरा सारा ध्यान उसी पर रहता है, उसकी साफ-सफाई, खिलाना-पिलाना, नहलाना-धुलाना, ओढ़ाना – सुलाना आदि पर मैं अपना पूरा समय देती हूँ। अस्पताल के लोग क्या मेरी तरह मंगु पर ध्यान दे पाएँगे? नहीं, नहीं, ऐसा तो नहीं लगता मुझे। माँ अस्पताल में मंगु की परेशानियों और असुविधाओं की कल्पना कर सिहर जाती। मंगु एकदम पागल है, कोई इसके पास बैठकर खिलाए नहीं, तो वह खाती भी नहीं। उसे ठीक   पैखाना-पेशाब का ध्यान नहीं रहता। वह रात में रोशनी जलती रहने से सो नहीं पाती। कौन रखेगा इन सारी चीजों का ख्याल ! कोई उपद्रवी मरीज इसके साथ मारपीट करे तो उसे कौन बचाएगा । इस प्रकार, तरह-तरह की चिंताओं से माँ आक्रांत रहती । इसीलिए, वह मंगु को अस्पताल में भरती कराना नहीं चाहती थी ।

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