निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत -बिंदुओं के आधार पर लगभग 250-300 शब्दों में निबंध लिखें।
प्रश्न – निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत -बिंदुओं के आधार पर लगभग 250-300 शब्दों में निबंध लिखें।
(क) भ्रष्टाचार
(i) भूमिका
(ii) भ्रष्टाचार के कारण
(iii) भ्रष्टाचार की स्वरूप
(iv) भ्रष्टाचार के निवारण के उपाय
(v) निष्कर्ष
(ख) गरीबी
(i) भूमिका
(ii) गरीबी के कारण
(iii) गरीबी उन्मूलन के उपाय
(iv) निष्कर्ष
(ग) मेरा प्रिय लेखक
(i) भूमिका
(ii) लेखक की विशेषता
(iii) निष्कर्ष
(घ) अनुशासन
(i) भूमिका
(ii) अनुशासन का महत्त्व
(iii) अनुशासनहीनता के दुष्प्रभाव
(iv) निष्कर्ष
उत्तर –
(क) भ्रष्टाचार.
(i) भूमिका – अनैतिकतापूर्ण आचरण को भ्रष्टाचार कहा जाता है। स्वार्थ की भावना भ्रष्टाचार को प्रेरित करती है। हमारे देश का सामाजिक और राजनीतिक स्वार्थ तो यही सिद्ध करता है कि राष्ट्रीय चरित्र के नाम पर हमारे पास कुछ बचा ही नहीं। छल-कपट, धोखा, रिश्वतखोरी, जमाखोरी, पक्षपात, स्वार्थ, भाई- भतीजावाद, क्षेत्रवाद, जातीयता, धनलोलुपता आदि के चलते हमारे समाज और देश में नैतिकता का पूर्णतः अभाव हो गया है। यह नितांत चिंतनीय है।
(ii) भ्रष्टाचार के कारण- भ्रष्टाचार के पीछे मुख्य कारण है भौतिक समृद्धि के प्रति विशेष अनुरक्ति। आज प्रत्येक व्यक्ति कम-से-कम समय में और अल्प परिश्रम से अधिकाधिक धन प्राप्ति की कामना करता है। यही कामना व्यक्ति को अनैतिकता की ओर प्रवृत्त करती है तथा इसी कामना के चलते वह भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाता है।
(iii) भ्रष्टाचार का स्वरूप – – भ्रष्टाचार के अनेक रूप हैं; जैसे- भाई- भतीजावाद, पक्षपात, जातीयता, क्षेत्रवाद, भाषावाद, घूसखोरी, जमाखोरी, छल-कपट, बेईमानी, अर्थ के लिए अपहरण, चोरी, धन के प्रति अनुचित आग्रह आदि। इन सबकी जड़ में धन का लालच है। असंतोष भ्रष्टाचार का जनक है।
(iv) भ्रष्टाचार के निवारण के उपाय- – विभिन्न सामाजिक एवं राजनीतिक भ्रष्टाचारों के निवारण के लिए अनेक कानून बनाए गए हैं। पर, ये कानून पर्याप्त नहीं है। इसके लिए आवश्यक है कि समाज और देश के सभी लोगों में नैतिकता का बोध हो । प्रशासनिक, सामाजिक, सांप्रदायिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक स्तर पर भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति में दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए। (v) निष्कर्ष – देश हर क्षेत्र में अपेक्षित विकास करे, इसके लिए यह आवश्यक है कि हम सभी अपने-अपने प्रति ईमानदार हो । प्रत्येक की व्यक्तिगत स्तर की ईमानदारी ही भ्रष्टाचार को दूर कर सकती है।
(ख) गरीबी
(i) भूमिका – गरीबी वैसा अभिशाप है जो जन्म से लेकर मृत्यु तक पीछा छोड़ने का नाम नहीं लेती। यह किसी क्षेत्र विशेष या देश का ही समस्या नहीं है बल्कि यह विश्वव्यापी समस्या बनी हुई है। जीवन यापन की मूलभूत सुविधाओं का अभाव की स्थिति ही गरीबी है। गरीब व्यक्ति भोजन, वस्त्र, आवास, चिकित्सा जैसी सुविधाओं से वंचित रहता है और अथक परिश्रम के बावजूद भी उस भँवर से नहीं निकल पाता है।
(ii) गरीबी के कारण – गरीबी के अनेकों कारण गिने जा सकते हैं – बेरोजगारी, अशिक्षा, जनसंख्या वृद्धि आदि इसमें प्रमुख हैं। व्यक्ति को पर्याप्त रोजगार उपलब्ध नहीं होने व कम मजदूरी मिलने से वह अपनी मौलिक आवश्यकताओं को भी पूर्ण नहीं कर पाता है। उसकी आमदनी इतनी भी नहीं होती कि वह दो जून की रोटी प्राप्त कर सके। रोजगार के अभाव में उसके परिवार को कई दिनों तक भूखा रहना पड़ता है। अशिक्षा के कारण वह किंकर्त्तव्यविमूढ़ रहता है कि वह क्या करे या क्या न करे।
(iii) गरीबी उन्मूलन के उपाय – – गरीबी निवारण के लिए सर्वोत्तम उपाय रोजगार के अवसर का सृजन करना है। रोजगार जितनी मात्रा में उपलब्ध होगा, आमदनी उसी अनुपात में बढ़ेगी और गरीबी दूर होगी। साथ ही शिक्षा का प्रसार मूलभूत वस्तुओं की सस्ते दर पर पर्याप्त उपलब्धता भी इसकी भयावहता को कम कर सकती है। सरकार भी इसे दूर करने के लिए कई रोजगार योजनाएँ जैसे प्रधानमंत्री रोजगार योजना, मनरेगा आदि चला रही है, लेकिन बढ़ती हुई आबादी के कारण ये योजनाएँ कम पड़ रही हैं।
(iv) निष्कर्ष – अंत में निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि गरीबी एक विस्तृत सामाजिक व आर्थिक समस्या है, जिसके प्रभाव को योजनाबद्ध तरीके से कम अथवा समाप्त किया जा सकता ।
(ग) मेरा प्रिय लेखक
(i) भूमिका : हिन्दी साहित्य को अनेक विद्वान लेखकों ने अपनी रचनाओं से समृद्ध किया है। इस संदर्भ में प्रेमचंद, फणीश्वरनाथ ‘रेणु’, हजारी प्रसाद द्विवेदी, शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष ‘बेनीपुरी’, नलिन विलोचन शर्मा आदि महान साहित्यकारों का नाम लिया जा सकता है। किन्तु मेरे अत्यंत प्रिय लेखक प्रेमचंद हैं। उनकी अद्भुत लेखन क्षमता से मैं पूर्णतया प्रभावित हूँ।
(ii) रचनाकार का परिचय : प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को वाराणसी के लमही ग्राम में हुआ था। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था। आरंभ में उन्होंने नवाब राय के नाम से उर्दू में लेखन प्रारम्भ किया। आगे चलकर हिन्दी में उन्होंने हिन्दी साहित्य को अपनी लेखनी से समृद्ध किया। अपने कथा-साहित्य को उन्होंने जन-जीवन के चित्रण द्वारा सजीव बना दिया।
(iii) उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ: प्रेमचन्द ने अनेकानेक कहानी संग्रह, उपन्यास तथा निबन्ध-संग्रह एवं नाटक लिखे। इसमें प्रमुख रचनाएँ हैं- मानसरोवर ( आठ खण्डों में कहानी संग्रह), गबन, गोदान (उपन्यास), कर्बला, संग्राम, प्रेम की वेदी (नाटक), कुछ विचार (निबंध संग्रह) तथा अनेक अन्य रचनाएँ। उनका उपन्यास गोदान मुझे काफी पसंद आया । गोदान एक यथार्थवादी उपन्यास है।
(iv) सर्वप्रियता का आधार : सर्वप्रियता का आधर है प्रेमचंद का जन-जीवन से जुड़ाव। उन्होंने अपने कथा-साहित्य को जन-जीवन के चित्रण से सजीव बना दिया है। वे स्वयं जीवन भर आर्थिक अभाव की विषम चक्की में पिसते रहे। जीवन की यही विषमता उनके कथा-साहित्य में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त आर्थिक एवं सााजिक विषमता को अत्यंत निकटता से देखा है। यही कारण है कि जीवन की यथार्थ अभिव्यक्ति का सजीव चित्रण उनके उपन्यासों एवं कहानियों में उपलब्ध होता है। उन्होंने वही लिखा जो उनकी आत्मा ने कहा। अतः उनकी रचनाएँ मानव जीवन की गहराइयों में जाकर उसकी वास्तविक समस्याओं का सफलतापूर्वक चित्रण करती हैं।
(v) उपसंहार : इस प्रकार प्रेमचंद निर्विवाद स्पर्श आम जन के प्रवक्ता तथा समस्याग्रस्त समाज के दर्पण हैं। वे एक प्रखर युग-दृष्टा हैं। हिन्दी साहित्य उनकी मानवीय करुणा की संवेदनापूर्ण अभिव्यक्ति के लिए उन्हें सदैव याद करता रहेगा।
(घ) अनुशासन
(i) भूमिका : अनुशासन किसी के व्यक्तित्व का आधार होता है। हर व्यक्ति के जीवन में अनुशासन सबसे महत्वपूर्ण है। अगर आधार सही नहीं है, तो व्यक्तित्व मजबूत नहीं हो सकता। अनुशासन हमे सही समय में सही तरीके से समय का उपयोग करना तथा काम करना सिखाता हैं। अनुशासित होने का अर्थ है अपने शरीर और मस्तिष्क पर नियंत्रण रखना। यह हमें अपने समाज के नियमों का पालन करने योग्य बनाता है।
(ii) अनुशासन का महत्त्व : छात्र-जीवन में अनुशासन का बड़ा महत्त्व होता है। छात्र को हर सुबह जल्दी जग जाना चाहिए। उसे अपने बड़ों का सम्मान करना चाहिए। उसे अपना अधिकांश समय अपने अध्ययन में देना चाहिए। उसे झूठ नहीं बोलना चाहिए। उसे कभी भी धोखा नहीं देना चाहिए। उसे कभी किसी के प्रति अशिष्ट नहीं होना चाहिए। उसे अच्छी संगति रखनी चाहिए। छात्र देश के भविष्य होते हैं। इसलिए उन्हें उचित रूप से अनुशासित होना चाहिए। संसार के प्रत्येक महान् व्यक्ति का जीवन अनुशासित रहा है। अनुशासन के बिना कोई व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। अनुशासन हमें हमेशा शानदार अवसर देता है जैसे, आगे बढ़ने का सही तरीका, जीवन में नई चीजें सीखने, कम समय के भीतर अधिक अनुभव करने, आदि। जबकि, अनुशासन की कमी से बहुत भ्रम और विकार पैदा होते हैं। अनुशासनहीनता के कारण जीवन में कोई शांति और प्रगति नहीं होती है, जिस कारण मनुष्य अपने जीवन में कभी सफल नहीं हो पाता और अपने जीवन से निराश होकर गलत कदम उठाने पर विवश हो जाता हैं।
(iii) अनुशासनहीनता के दुष्प्रभाव : अनुशासनहीनता की वजह से जीवन में ढेर सारी दुविधा हो जाती है और व्यक्ति को गैर-जिम्मेदार और आलसी बना देता है। ये हमारे विश्वास के स्तर को कम करती है और आसान कार्यों में भी व्यक्ति को दुविधाग्रस्त रखती है। जबकि अनुशासन में होने से ये हमें जीवन के सबसे अधिक ऊंचाईयों की सीढ़ी पर ले जाती है।
(iv) निष्कर्ष : स्वतंत्रता के पहले बहुत-सी समस्याएँ नहीं थीं। लेकिन अब, हमारा देश भ्रष्टाचार, घूसखोरी, घोटाला, धोखेबाजी, आतंकवाद आदि जैसी समस्याओं का सामना कर रहा है। कुछ युवा भ्रमित हो चुके हैं। सिर्फ शिक्षित और अनुशासित युवा ही हमारे देश को उज्ज्वल भविष्य दे सकते हैं। अंतः यह कहना गलत नहीं होगा कि अनुशासन वह सीढ़ी है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन में सफलता की ऊँचाई की ओर चढ़ सकता है। यह उसे अपने लक्ष्य की ओर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है और उसे अपने लक्ष्य से भटकने नहीं देता हैं। अनुशासन ही इन समस्याओं का एकमात्र समाधान है।
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