पठन के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए ।

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प्रश्न – पठन के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए ।

उत्तर – पठन के स्तर – जब से बालक पढ़ना प्रारम्भ करता है तब से ही उसकी पठन क्रिया का विकास कई स्तरों से होकर गुजरता है। प्रत्येक स्तर पर बालक को काफी अभ्यास करना पड़ता है जो उस स्तर को बनाता है। पठन के इन स्तरों को पाँच भागों में बाँटा गया है।

(1) चित्र पठन, (2) शब्द पठन, (3) शाब्दिक पठन तथा (4) चिन्तनात्मक पठन और (5) सृजनात्मक पठन ।

प्रारम्भ में प्राथमिक स्तर पर पढ़ना प्रारम्भ करते हैं तो चित्र पठन, शब्द पठन, शाब्दिक पठन और वर्ण पठन पर अधिक बल दिया जाता है, क्योंकि बालक की आयु के अनुरूप इस प्रकार के पठन पर बल दिया जाना आवश्यक भी है, किन्तु बाद में उच्च प्राथमिक कक्षाओं में चिन्तनात्मक व सृजनात्मक पठन पर विशेष बल दिया जाता है ।

पढ़ने की सीखने की विधियाँ

(1) चित्र पठन–प्रारम्भिक अवस्था में बालक में पठन के प्रति रुचि जागृत करने के लिए तथा पूर्व तैयारी के रूप में चित्रों के माध्यम से ही पठन कराया जाता है । बालक को रंगीन चित्र दिखाये जाते हैं जिसमें उन्हीं चित्रों को दिखाया जाता है जो वह अपने परिवेश में रात-दिन देखता है तथा अध्यापक उन चित्रों पर खुलकर बालक से बातचीत करता है तथा बालक से उनके नाम, उनके काम, उनका रंग, उनका आकार आदि पर छोटे-छोटे प्रश्न करता है। बालक इन चित्रों को जो वस्तुओं, पशुओं, पक्षियों या दृश्यों के होते हैं, उन्हें एकाग्रता से देखता है तथा बालक चित्र से सम्बन्धित भाव व आकृति बिम्ब अपने मस्तिष्क में बनाता है । चित्र दिखाकर बालक में अर्थ और आशय ग्रहण की योग्यता विकसित करना चित्र पठन है ।

हमारे यहाँ हिन्दी की पहली पुस्तक में प्रारम्भ में 01 से 18 पेज तक विभिन्न रंगीन चित्र ही हैं। अध्यापक इन चित्रों को दिखाते हुए क्या, कैसे, किसके, किसलिए आदि अनेक प्रश्न बालकों से पूछे । इसी पुस्तक में आगे लघु कहानियों के क्रमशः चित्र दिखाये गये हैं। बालक प्रथमतः इन चित्रों को देखकर एक चित्र से दूसरे व दूसरे से तीसरे में सम्बन्ध स्थापित करता रहता है तथा आगे होने वाली क्रियाओं को जानता है । इस प्रकार चित्रों को आगे से आगे देखता जाता है तथा उनमें सम्बन्ध स्थापित करता रहता है और एक छोटी-सी कहानी का पठन चित्रों के माध्यम से कर लेता है । यही क्रिया चित्र पठन है अर्थात् ‘चित्र पठन’ से बालक में ‘मौखिक अभिव्यक्ति’ का विकास होता है तथा बालक की झिझक व संकोच वृत्ति दूर होती है । यहाँ बालक के मस्तिष्क में चित्र पठन से दृश्य बिम्ब बनने लगते हैं और बालक को बायीं से दायीं ओर, ऊपर से नीचे की ओर देखने का अभ्यास हो जाता है ।

(2) शब्द पठन–पठन शिक्षण के स्तर में ‘चित्र पठन’ के बाद बालक ‘शब्द पठन’ की ओर अग्रसर होता है। इसमें बालक शब्द की पहचान, उसके उच्चारण और अर्थ को जानने का प्रयास करता है । यहाँ से वस्तु से शब्द का सम्बन्ध जोड़ देना ही ‘शब्द पठन’ है। शब्द पठन में सरल वाक्यों का वाचन तक कराया जाता है । शब्द पठन में चित्रों के नीचे लघु वाक्य या शब्द लिख दिये जाते हैं। बालक चित्रों के साथ उन शब्दों को देखकर, चित्र बिम्ब के साथ-साथ शब्द बिम्ब भी अपने मस्तिष्क में बनाने लग जाता है और अब धीरे-धीरे चित्र से शब्द और शब्द से चित्र को पहचानने लग जाता है। अब शब्दों को देखकर उसे पढ़ लेता है और पहचानने लग जाता है । यही शब्द पठन की प्रथम स्थिति है । इस प्रकार बालक धीरे-धीरे अनेक प्रकार के शब्दों से परिचित हो जाता है और इन्हीं शब्दों का परस्पर सम्बन्ध स्थापित करते हुए पठन करने में बालक समर्थ हो जाता है । हिन्दी की पहली पुस्तक में रंगीन चित्रों के आगे एक- एक वाक्य लिखे हैं तथा चित्रों में तथा वाक्यों में तारतम्य है। इस प्रकार बालक चित्रों को देखता है और शब्दों पर अंगुली रखता जाता है और उत्तरोत्तर पढ़ता जाता है । पहली पुस्तक में मकड़ी-ककड़ी इसी प्रकार का पाठ है। अध्यापक नवीन शब्दों को श्यामपट्ट पर लिखे और सामूहिक ही बुलवाये, स्वयं भी बोले । इस प्रकार इनका खूब अभ्यास कराये। अनेक विधियों से शब्दों के अर्थ भी बताये । इस प्रकार करने से बालक शब्दों का अर्थ समझने योग्य हो जाता है और यहाँ शब्द का अर्थ स्पष्ट करने के लिए अध्यापक चित्र, प्रदर्शन, प्रतयक्ष दर्शन, संकेत, पर्याय, विलोम आदि विधियों को काम में ले सकता है ।

शब्द पठन से ही वर्ण व ध्वनि तथा लिपि का शिक्षण सम्भव है । चित्रमय पठन होने से छोटे बालकों में शब्द पठन की रुचि रहती है ।

(3) शाब्दिक पठन–’ शब्द पठन’ से आगे का स्तर ‘शाब्दिक पठन’ का है । वाक्यों प्रयुक्त शब्दों का उच्चारण करके उन शब्दों के आधार पर वाक्यों का अर्थ समझ लेना ही ‘शाब्दिक पठन’ कहलाता है । वास्तव में शाब्दिक पठन मन में होता है । अतः इसे मौन पठन भी कह सकते हैं। जैसे बसों में लिखा रहता है ‘धूम्रपान निषेध है’, ‘चलती बस में हाथ-मुँह बाहर न निकालें’ तो यात्री इसे मन में ही पढ़कर उसी अनुरूप कार्य करता है । इस प्रकार इसका पठन शाब्दिक पठन होता है अर्थात् यहाँ इस बात का स्पष्टीकरण होता है कि वाक्यों को मन में पढ़कर उसका अर्थ समझना और उसके अनुसार क्रिया करना ही शाब्दिक पठन है । शाब्दिक पठन में ध्वनि, होठ हिलाना, गर्दन घुमाना आदि क्रियाएँ नहीं होती हैं। इसमें पठन की गति तीव्र होती है और दृष्टि-बिम्ब वाक्य या वाक्यांश तक विस्तृत होता है ।

शब्द पठन व शाब्दिक पठन में अन्तर–शब्द पठन का ही विकसित रूप शाब्दिक पठन है । यहाँ शब्द पठन में दृष्टि का क्षेत्र शब्द या दो-तीन शब्द समूह तक रहता है और शाब्दिक पठन में दृष्टि क्षेत्र वाक्य या वाक्यांश तक रहता है । शब्द पठन में सस्वर वाचन भी होता है। शब्द पठन के वाचन में हौठ हिलाना, गर्दन घुमाना आदि शाब्दिक क्रियाएँ भी होती हैं। शब्द पठन के वाचन में होठ हिलाना, गर्दन घुमाना आदि शाब्दिक क्रियाएँ भी होती हैं। शब्द पठने क्रिया कक्षा प्रथम व द्वितीय तक ही सीमित रहती है । शाब्दिक पठन में मौन पठन ही होता है अत: इसमें होठ हिलाना, गर्दन घुमाना आदि प्रकार की क्रियाएँ नहीं होती हैं। यह क्रिया कक्षा 3 से शुरू होती है ।

(4) चिन्तनात्मक पठन– शाब्दिक पठन से आगे का स्तर ‘चिन्तनात्मक पठन’ है। जिस पठन से वाक्य का विशेष अर्थ समझ में आये और कारण कार्य का भाव स्पष्ट हो जाय वह चिन्तनात्मक पठन है। यहाँ यह स्वीकार करना होगा कि इसमें अध्यापक के सहयोग की कोई आवश्यकता नहीं है। पढ़ी हुई बात के आगे की घटना का पूर्वानुमान करना, वर्तमान का पिछली किसी बात से सम्बन्ध स्थापित करना, अनुच्छेद के शीर्षक का निश्चय करना, अनुच्छेद के भावों को ग्रहण करना, सारांश समझ लेना, किसी बात को कम से कम शब्दों में सारगर्भिता अभिव्यक्त करने की योग्यता प्राप्त करना ये सभी चिन्तनात्मक पठन के अन्तर्गत ही आते हैं। बालक किसी गद्यांश या कविता को पढ़ने के बाद स्वयं भी चिन्तन कर उसके भाव को ग्रहण करता है। उसके सारे सार को समझ लेता है तो वह चिन्तनात्मक पठन ही है। स्वाध्याय करना ही चिन्तनात्मक पठन का ही दूसरा रूप है । यह पठन कक्षा 4 से प्रारम्भ होता है।

(5) सृजनात्मक पठन–पठन का अन्तिम स्तर सृजनात्मक पठन है, अर्थात् सृजन का अर्थ है रचना करना । चिन्तनात्मक पठन का अच्छा अभ्यास हो जाने के बाद बालक में ज्ञान का विस्तार हो जाता है । वह अनुभवों के आधार पर नवीन कल्पनाएँ करने लग जाता है । ऐसी स्थिति में नई-नई कहानियाँ, कविताएँ लिखने लग जाता है । यह स्थिति ‘सृजनात्मक पठन’ की होती है। उच्च प्राथमिक स्तर पर बालक सृजनात्मक पठन में निम्न प्रकार की रचनाएँ अपने अनुभवों, अपनी कल्पना के द्वारा करने लगता है—

(क) किसी अपूर्ण कहानी को पूर्ण करता है ।
(ख) अपनी कल्पना से किसी घटना का विस्तार करता है ।
(ग) छोटे-छोटे लेख, निबन्ध लिखने लगता है ।
(घ) किसी सूक्ति का विश्लेषण करता है ।
(च) लोकोक्ति, मुहावरे का वाक्य में प्रयोग करता है ।
(छ) किसी कथन की पुष्टि उदाहरण देकर करता है ।

माध्यमिक स्तर पर ललित निबन्ध, विवेचना लेख, कविता रचना, एकांकी आदि की रचना सभी सृजनात्मक पठन में ही आते हैं। कक्षा 5 से सृजनात्मक पठन प्रारम्भ किया जाता है ।

चिन्तनात्मक पठन एवं सृजनात्मक पठन में अन्तर–चिन्तनात्मक पठन में स्वाध्याय है, लिखित विषय वस्तु पर चिन्तन । अपठित गद्य का शीर्षक निर्धारण, आशय बोध, चिन्तनात्मक पठन के अन्तर्गत है। सृजनात्मक पठन से नवीन रचना, अपूर्ण रचना को पूर्ण करना, किसी घटना को विस्तार देना होता है। चिन्तनात्मक पठन में चिन्तन प्रधान है और सृजनात्मक पठन में अनुभवों का संयोग, कल्पना से नवीन रचना करना प्रधान है ।

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