पाठ्यान्तर क्रियाओं के संगठन के सिद्धांत की विवेचना करें।

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प्रश्न – पाठ्यान्तर क्रियाओं के संगठन के सिद्धांत की विवेचना करें। 
उत्तर – (1) विभिन्न क्रियाएँ – विभिन्न प्रकार की क्रियाओं का प्रबंध हो ताकि विभिन्न रुचि वाले छात्र भाग ले सकें ।
(2) समय – जहाँ तक हो सके स्कूल समय में ही ऐसे कार्यक्रम रखे जाएँ ।
(3) सहयोग – प्रत्येक छात्र और अध्यापक को पारस्परिक सहयोग, विश्वास और सहानुभूति से कार्य करना चाहिए ।
(4) रोचकता-सहपाठीय कार्य रोचक तथा रचनात्मक हो ताकि छात्र उत्साह और अनुराग से उनमें भाग लें ।
(5) निरीक्षण – सहपाठीय कार्यक्रम शिक्षक वर्ग के निरीक्षण में होना चाहिए । प्रत्येक समिति अथवा परिषद् का प्रत्यक्ष सम्बन्ध किसी अध्यापक से होना चाहिए जो इसके सलाहकार के रूप में कार्य करेंगे ।
(6) समान अवसर – प्रत्येक छात्र को भाग लेने के लिए समान अवसर तथा सुविधाएँ दी जाएँ ।
(7) धीरे-धीरे-धीरे-धीरे क्रियाओं को रचना बड़े पैमाने पर ले जाया जाए ।
(8) सावधानी से संस्था का निर्माण – नई संस्था स्थापित करते समय सावधानी दिखाई जाए । इस बार संस्था का निर्माण होने पर इसे जीवित ही रखा जाए ।
(9) सदस्यता अनिवार्य न हो- किसी परिषद् अथवा समिति की सदस्यता अनिवार्य नहीं होनी चाहिए । अनिवार्य होने से छात्र कार्य को भार मानेंगे ।
(10) अध्यापकों का कम हस्तक्षेप – अध्यापकों की ओर से अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं होनी चाहिए ।
(11) चुनाव – प्रत्येक समिति का प्रधान गणतंत्रात्मक पद्धति से चुना जाना चाहिए ।
(12) ठीक समय – ऐसे कार्य असीमित मात्रा में नहीं होने चाहिए अन्यथा नियमित पाठ्यक्रम में बाधा पड़ने का भय ।
(13) योजनाबद्ध कार्य – इनमें होने वाले व्यय के प्रबंध के संबंध में पहले से ही सोच लेना चाहिए ।
(14) विभिन्न क्रियाओं पर पर्याप्त बल – अधिक रुपये कुछ ही खिलाड़ियों अथवा अन्य क्षेत्रों में ख्याति प्राप्त विद्यार्थियों पर ही नहीं खर्च करने चाहिए ।
(15) शिक्षकों को उचित सुविधाएँ – इन क्रियाओं में भाग लेने वाले शिक्षकों को विशेष सुविधाएँ दी जाएँ ।
(16) मूल्यांकन- समय-समय पर देखा जाए कि इस प्रकार के कार्यक्रम कहाँ तक निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक सिद्ध ही रहे हैं ।
(17) प्रचार – समाज के सदस्यों में स्कूल के इन कार्यक्रमों का प्रचार किया जाना चाहिए ताकि वे भी इनका वास्तविक महत्व जान पाएँ ।
(18) क्रियाओं का संगठन – प्रधानाध्यापक को चाहिए कि इन क्रियाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिए किसी अध्यापक के जिम्मे से काम लगा दे । उसके निम्नलिखित कार्य होंगे ।
(i) इन कार्यक्रमों की वार्षिक योजना बनाना ।
(ii) शिक्षकों से उनके विषय सम्बन्धी क्लबों की सूची तैयार कराना ।
(iii) यातायात संबंधी सुविधाओं के लिए अधिकारियों से लिखा-पढ़ी करना ।
(iv) ऐसी सहपाठीय क्रियाओं की रचना करना जो पाठ्यक्रम से संबंधित हों।
(v) ऐसे उपायों की खोज करना जिनके द्वारा इन सहपाठीय क्रियाओं पर. कम खर्च आए ।
(vi) छात्रों को सहपाठीय क्रियाओं में भाग लेने के लिए उत्साहित करना ।
(vii) प्रत्येक अध्यापक को किसी न किसी क्रिया का उत्तरदायित्व सौंपना ।
(19) स्थान – जहाँ तक सम्भव हो क्रियाएँ विद्यालय के भवन तथा प्रागण में हों ।
(20) वित्त व्यवस्था – छात्रों को हिसाब किताब रखने के लिए तैयार किया जाए । मितव्ययिता के सिद्धांत का पालन किया जाए । जहाँ तक सम्भव हो पाठ्यान्तर क्रियाएँ आत्म-निर्भर होनी चाहिए । जनता से भी इन क्रियाओं के लिए धन इकट्ठा किया जा सकता है । छात्र-सदस्यों से भी शुल्क लिया जाए । क्रियाओं के लिए टिकट भी बेचे जा सकते हैं । इस बात का ध्यान रहे कि छात्रों पर आर्थिक दबाव अधिक नहीं पड़ना चाहिए ।
(21) पाठ्यान्तर क्रियाओं के पदाधिकारी – पदाधिकारी की दृष्टि से केवल उन्हीं छात्र-छात्राओं का अधिकार न बढ़ाया जाए जो पहले से ही प्रख्यात है, अन्य व्यक्तियों को भी अपने विकास का पूरा-पूरा अवसर मिलना चाहिए ।
(22) लिखित नियमावली – पाठ्यान्तर क्रिया से सम्बन्धित प्रत्येक संस्था की लिखित नियमावली होनी चाहिए ।
(23) स्थायी अभिलेख – विद्यालय में इस बात का स्थायी अभिलेख रखा जाए कि किन-किन छात्रों ने किन-किन क्रियाओं में भाग लिया है ।
(24) सामुदायिक सहयोग की भावना – खेल आदि में व्यक्तिगत या दलगत प्रदर्शन की अपेक्षा सामुदायिक सहयोग की भावना पर अधिक बल दिया जाए ।
(25) गतिविधियों का प्रकाशन – विद्यालय के अपने प्रकाशन होने चाहिए जैसे विद्यालय पत्रिका, कक्षा की हस्तलिखित पत्रिका आदि ।
(26) समाज से सम्पर्क – इन क्रियाओं द्वारा इस बात का प्रयास किया जाए कि विद्यालय और समाज एक-दूसरे के निकट आएँ ।
(27) मूल्यांकन – उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति कहाँ तक हो रही है, इसकी देख-रेख समय-समय पर होती रहनी चाहिए ।
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