पितृसत्ता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें ।

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प्रश्न – पितृसत्ता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें । 
उत्तर – विद्वानों ने पितृसत्ता को एक सामाजिक व्यवस्था माना है, जिसके अन्तर्गत पिता या कोई पुरुष, जो परिवार के सभी सदस्यों, सम्पत्ति व अन्य आर्थिक साधनों पर नियन्त्रण रखता है, वही मुखिया कहलाता है, क्योंकि वंश या खानदान पुरुषों के नाम से ही चलता है। समाज की इस पितृसत्ता या पुरुष प्रधान व्यवस्था में पुरुष का स्थान स्त्रियों से ऊँचा माना गया है और पुरुष को महिला का स्वामी या मालिक भी माना गया है । इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था के अन्तर्गत यह मान्यता भी है कि “महिलाओं को पुरुषों के अधीन और नियन्त्रण में रहना चाहिए । ”
परिवार समाज की यह विचारधारा महिलाओं को भी पुरुष की सम्पत्ति का एक हिस्सा मानती है और महिलाओं के शरीर पर भी पुरुषों का अधिकार माना जाता है। महिलाओं के सम्बन्ध में ऐसे निर्णय भी कि वह कब और किसके साथ यौन सम्बन्ध बनाए कब बच्चा पैदा न करे, किससे करे, लड़के को जन्म दे या लड़की को तथा कितने बच्चों को जन्म दे ? आदि । परिवार समाज व सरकार के द्वारा किये जाते रहे हैं। ये निर्णय किसी भी महिला के अपने नहीं होते । यह पितृसत्तात्मक व्यवस्था की सबसे बड़ी त्रासदी है |
पितृसत्तात्मक व्यवस्था का धार्मिक क्षेत्र विश्व के सभी धर्म पितृसत्तात्मक हैं और महिलाओं के सम्बन्ध में समान दृष्टिकोण अपनाते हैं । विश्व के विभिन्न धर्मों के बहुत सारे कानून भी धर्मों पर आधारित होते हैं; जैसे- हिन्दू विधि, मुस्लिम विधि, ईसाई विधि आदि । इन समस्त कानूनों के अन्तर्गत विवाह, तलाक, भरण-पोषण तथा सम्पत्ति के अधिकार भी वर्णित किए गए हैं। समाज की इस व्यवस्था में पुरुष और महिलाओं के बीच असमानता है जो जन्म से लेकर मृत्यु तक बहुत ही स्पष्ट दिखाई देती है। भारतीय घर-परिवार के मामलों में विशेष रूप से महिलाओं से सम्बन्धित मामलों में राजकीय विधियों से अधिक सामाजिक नियमों का विशेष महत्त्व है । अतः इस पितृसत्तात्मक समाज द्वारा अपनी व्यवस्था को सुचारू रूप से जारी रखने के लिए पुरुषों तथा महिलाओं के सम्बन्ध में कुछ अधिकार एवं कर्त्तव्य निर्धारित किये गये हैं। इस सामाजिक लिंग-भेद का परिणाम यह हुआ है कि पुरुर्षों को दिये हुए अधिकारों का पलड़ा महिलाओं को दिए गए अधिकारों से सदैव ही भारी रहा है, जबकि कर्त्तव्य महिलाओं की तुलना में बहुत ही कम है।
पुरुषों एवं महिलाओं के सामाजिक अधिकार एवं कर्त्तव्य पुरुषों और महिलाओं को समाज द्वारा दिये गये अधिकारों और कर्त्तव्यों का विवरण इस प्रकार है
(I) समाज के द्वारा दिये गये अधिकार – समाज द्वारा प्रदत्त पुरुषों एवं महिलाओं के.सामाजिक अधिकार इस प्रकार हैं-
(i) पुरुर्षों के सामाजिक अधिकार – समाज द्वारा पुरुष को निम्न अधिकार दिए गए हैं –
(1) घूमने-फिरने की छूट,
(2) परिवार का मुखिया रहना,
(3) सम्बन्ध स्थापित करने की छूट,
(4) सभी प्रकार के निर्णय करना,
(5) सम्पत्ति पर कब्जा रखना,
(6) वंश को अपने नाम पर चलाना ।
(ii) महिलाओं के सामाजिक अधिकार –
(1) शादी के बाद पति के साथ सम्बन्ध बनाना,
(2) शादी के बाद माँ बनना ।
(ii) समाज के द्वारा दिये गये कर्त्तप्य – समाज में पुरुषों एवं महिलाओं के कर्त्तव्य निम्न प्रकार हैं –
(i) पुरुषों के सामाजिक कर्त्तव्य
(1) परिवार की सुरक्षा प्रदान करना,
(2) परिवार का भरण-पोषण करना ।
(ii) महलाओं के सामाजिक कर्त्तव्य – महिलाओं के सामाजिक कर्त्तव्य इस प्रकार हैं –
(1) पति को परमेश्वर मानकर खुश रखना,
(2) परिवार के बड़ों-बूढ़ों एवं बीमार की सेवा करना,
(3) परिवार नियोजन अपनाना,
(4) बच्चा पैदा करना,
(5) धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करना,
(6) प्रात:काल से रात्रि तक घर के सारे घरेलू काम करना |

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