पुनर्स्थापना का स्वरूप – Structure of Restoration

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पुनर्स्थापना का स्वरूप – Structure of Restoration

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सन् 1660 ई. के दौरान कनवेन्शन पार्लियामेंट करने के पश्चात् प्राचीन राजवंश और पार्लियामेंट नये सिरे से स्थापित किया। इसके एक वर्ष पश्चात् कैवेलियर पार्लियामेंट द्वारा एग्लिकन चर्च का भी पुनर्स्थापना हो गया। चार्ल्स द्वितीय सिंहासनारूद करते समय उससे किसी प्रकार की शर्त को स्वीकृति प्रदान नहीं की गई थी पार्लियामेंट की सर्वोच्चता अथवा जनता की सम्प्रभुता सम्बन्धी कोई भी घोषणा राजा अथवा पार्लियामेंट ने नहीं की। सम्राट अपने पुराने स्वरूप में निरंकुश प्रधान बना रहा। मन्त्री उसके अभी भी व्यक्तिगत सेवक के रूप में थे। सम्राट द्वारा ही देशी तथा विदेशी नीति का संचालन किया जाता था। इतना अवश्य था कि सामन्तशाही करों को उठा दिया गया था। किन्तु पार्लियामेंट ने आबकारी तथा चुंगी से प्राप्त आय राजा को जीवन भर के लिए दे दी। अभी सम्राट की अधीनता में कुछ सेना भी थी। इस प्रकार कहा जा सकता है कि विधान सिद्धांत की दृष्टि से वे भी अधिकार चार्ल्स द्वितीय को प्राप्त थे जो उसके पिता को थे। जिन प्रश्नों को संविधान के अंतर्गत लिखित प्रश्नों के रूप में शामिल किया जा सकता है, उनके संबंध में यह कहना गलत नहीं होगा कि वास्तव में कोई भी संवैधानिक प्रगति 1 नवम्बर सन् 1660 ई तक नहीं हुई।
राजा का स्वरूप एक इतिहास के शब्दों मे- “The Restoration was also a revolution.
थोड़े बहुत बदलाव राजतन्त्र, पार्लियामेंट और चर्च तीनों में देखे जा सकते थे। चार्ल्स द्वितीय इस प्रकार के बदलाव को अच्छी प्रकार से समझ रहा था, एवं उसने कहा था- “He does not wish to go no travel again. “
उसने अपनी नीति का निर्धारण भी इसी आधार पर किया। यह कथन सत्य है कि राजा वापस आ गया था। उसकी निरंकुशता का अंत हो गया था। अब सम्राट अपने दैवी अधिकार की आड़ में अत्याचार नहीं कर सकता था। जनता की इच्छा से ही चार्ल्स द्वितीयस को राजगद्दी सौंपी गई थी ईश्वर की इच्छा से नहीं । जनता और पार्लियामेंट दोनों के दिलों में यह बात समा गई थी। राजा स्वेच्छावचारी शासन नहीं कर सकता। यदि सम्राट द्वारा स्वेच्छाचारी शासन किया तो उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ सकता था। इस प्रकार लिखित संविधान में राजा की सर्वोच्चता होते हुए भी वह पार्लियामेंट के अधीन था।
उस दौरान पार्लियामेंट अथवा सम्राट के सर्वोच्चता पर सवाल उठाये जा रहे थे? पुनर्स्थापना ने इस प्रश्न का निर्णय समझौते के आधार पर किया । वास्तविक सर्वोच्चता पार्लियामेंट में रही और वैधानिक प्रभुसत्ता सम्राट में निहित रही। इंग्लैंड के आधुनिक संविधान का स्वरूप भी पुनर्स्थापना काल में ही निर्धारित किया गया था। वह समझौता ही इंग्लैंड संविधान की आधारशिला है। कैबिनेट शासन व्यवस्था का मूल आधार इसे ही कहा जा सकता है।
चर्च व्यवस्था ( The Church Settlement )
ऍग्लिकन चर्च की भी पुनर्स्थापना पुनर्स्थापना काल में हुई, किन्तु चर्च की पुनर्स्थापना पार्लियामेंट के आधार पर हुई, दैवी अधिकार के आधार पर नहीं हुई। एक लेखक के अनुसार – “The church settlement of the Restoration was mainly the work of parliament.”
कैवेबियर पार्लियामेंट द्वारा कैलेरन्डन कोड पारित करने के पश्चात् एंग्लिकन चर्च की सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्र में सर्वोच्च स्थान प्रदान किया किन्तु Court of High Commission को दोबारा स्थापित करने की हिम्मत नहीं हुई। Court of Star Chamber को जिस कानून के आधार पर समाप्त किया गया था उसे भी रद्द नहीं किया गया। इससे यह साफ होता है कि यह पूर्ण क्रांति नहीं थी जेसा कि एक लेखक ने भी स्पष्ट किया है- “The Restoration was not a complete revolution”
अब पार्लियामेंट का शासन चर्च पर भी चलने लगा। सम्राट चार्ल्स द्वितीय ने धार्मिक अनुग्रह की घोषणा द्वारा कैथोलिकों की सुविधा देनी चाहिए तो उसे मुँह की खानी पड़ी Test Act इसका प्रत्युत्तर था । इस प्रकार सम्राट की सभी योजनाओं पर पानी फिर गया एवं उसका मन्त्रिमंडल जिसका नाम Cabal था, भी समाप्त हो गया। इस प्रकार प्रत्येक क्षेत्र में पार्लियामेंट की सम्प्रभुता स्थापित हो गई।
सीली के अनुसार – ” At the restoration and not at Revolution of the English monarchy and the system of Government took the form which it ……..ained throughout the eighteenth century.”
वास्तविक रूप में यह उचित अतिरंजित है। सन् 1660 ई. में संवैधानिक शासन की किसी भी समस्या का निराकरण करना सरल कार्य नहीं था। अब भी निरंकुश शासन के रास्ते बाकी थे, जिनका उपयोग चार्ल्स द्वितीय तथा जेम्स द्वितीय ने खुलकर किया। उस दौरान भी राजा को कुछ विशेषाधिकार प्रदान किये गये थे जिन्हें प्रयोग में लाते हुए वह संवैधानिक शासन को असफल बना सकता था। चार्ल्स द्वितीय ने इस अधिकार का ही प्रयोग करके बहिष्कार बिल न पास होने दिया। जब भी पार्लियामेंट द्वारा इसे पारित करने की कोशिश की गई, चार्ल्स ने पास न होने दिया उसके बाद सन् 1681 ई. से सन् 1685 ई. तक कोई पार्लियामेंट की बैठक ही नहीं की। राजा द्वारा मंत्रियों की नियुक्ति की जाती थी, एवं सम्राट ऐसे व्यक्तियों को नियुक्त कर सकता था, जिनमें पार्लियामेंट का तनिक भी विश्वास न हो क्लोरेन्डन, हैनवी कवाल आदि ऐसे मन्त्री थे, जिन्हें जनता नहीं चालती थी, यद्यपि पार्लियामेंट ने एक-एक को हटने के लिए कहा। इससे राजा के अत्यधिक शक्तिशाली होने का पता चलता है। किन्तु फ्रांस से धन प्राप्त कर चार्ल्स पार्लियामेंट की उपेक्षा अभी कर सकता था। राजा ने अपनी Suspending power का उपयोग कर सन् 1672 ई. में करीब 42 कानूनों को स्थापित कर दिया। किन्तु जब सन् 1673ई में पार्लियामेंट द्वारा इसका विरोध किया तो चार्ल्स की / को Declaration of Indulogence वापस करनी पड़ी। वैदेशिक नीति में भी राजा के इच्छानुसार कार्य करने का उल्लेख था। चार्ल्स द्वितीय ने पार्लियामेंट की उपेक्षा करके इसी आधार पर फ्रांस से गुप्त सन्धि करके धन की प्राप्ति की। स्थायी सेना के नियंत्रण का प्रश्न अब भी सामने था । गृहयुद्ध भी इसी आधार पर छिड़ा था। गृहयुद्ध का आधार यही प्रश्न था । गृहयुद्ध का आधार यही प्रश्न था । गृहयुद्ध के पश्चात् ही इसका निर्णय हो सका। मन्त्रियों के उत्तरदायित्व का आधुनिक सिद्धान्त अभी निर्धारित न हुआ था।
इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता है कि पुनर्स्थापना के समय नहीं, बल्कि गौरवपूर्ण क्रांति के समय उस युग की सभी समस्याओं का निराकरण किया जा सकता था। उपरोक्त बातों से इस पर काफी प्रकाश पड़ता है कि राजा की स्थिति पहले जैसी नहीं थी। पार्लियामेंट के विरोध के साथ-साथ राजा को दबना पड़ा। इस संबंध में यह कहना उचित होगा कि पुनर्स्थापना क्रांति ही थी ।
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