बच्चे / छात्र के सम्पूर्ण विकास में एक बोली के रूप में मातृभाषा का योगदान बताइये।

प्रश्न – बच्चे / छात्र के सम्पूर्ण विकास में एक बोली के रूप में मातृभाषा का योगदान बताइये। 
उत्तर – 
छात्र के सर्वांगीण विकास में बोली
के रूप में मातृभाषा का योगदान
छात्र के सम्पूर्ण विकास को मातृ-भाषा निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करती है –
1. शारीरिक विकास में सहायक– शारीरिक विकास के लिये जितना आवश्यक पौष्टिक भोजन होता है, उतना ही आवश्यक पूरी नींद सोना और प्रसन्नचित रहना भी होता है। मातृ-भाषा दूसरी आवश्यकता की पूर्ति में सहायक सिद्ध होती है। माताएँ शिशुओं को संगीत प्रधान ध्वनियों (लोरियों) के उच्चारण द्वारा प्रसन्न करती हैं और इस प्रकार निद्रानिमग्न करती हैं, जिससे बच्चे का शारीरिक विकास होता है।
2. मानसिक विकास में सहायक – यद्यपि मानसिक विकास के विषय में विद्वानों के विभिन्न मत हैं। कुछ लोगों का मत है कि बुद्धि वंशगत होती है अर्थात् बुद्धिमान माता-पिता का बालक भी बुद्धिमान होगा। दूसरे विद्वानों का कहना है कि बुद्धि पर वातावरण पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इससे भी भिन्न मत यह है कि बुद्धि वंशानुगत होती है और उस पर वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है। अच्छे वातावरण में रहकर बुद्धि का विकास हो सकता है और प्रतिकूल वातावरण में बुद्धि का ह्रास भी सम्भव है । निःसन्देह रूप से यह कहा जा
सकता है कि विचारों का जन्मदाता बालक का वातावरण ही होता है। महाकवि तुलसीदास ने प्रौढ़ों के विषय में इसी मत को माना है—
“सठ सुधरहिंसत् संगत पाई । “
3. सामाजिक विकास में सहायक – मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अतः उसे समाज में रहते हुए परस्पर वस्तुओं के आदान-प्रदान एवं विचार-विनिमय की आवश्यकता होती है और बिना इस आवश्यकता की पूर्ति के वह समाज में किसी भी प्रकार नहीं रह सकता है। अतः परस्पर सहयोग के लिए उसी भाषा का प्रयोग होना चाहिए जिसे दोनों पक्ष सरलता से समझ सकें। इसलिए इस विकास हेतु मातृ-भाषा का स्थान ही प्रमुख है, क्योंकि मातृ-भाषा के प्रति छात्र का प्रेम स्वाभाविक होता है। उनका यह प्रेम किसी भी लिखित विषय को पढ़ने और समझने में अधिकाधिक रुचि उत्पन्न करता है।
4. भावात्मक विकास में सहायक – हम जितना प्रेम अपनी माता एवं मातृ-भूमि से करते हैं, उतना ही प्रेम अपनी मातृ-भाषा से भी करते हैं। अतः हम उन व्यक्तियों के साथ अधिक सहानुभूति एवं सद्भावना रखते हैं जो हमारी मातृ-भाषा का प्रयोग करते हैं। इस प्रकार मातृ-भाषा भावात्मक विकास में भी सहायक होती है।
5. नैतिक विकास में सहायक — छात्रों के नैतिक एवं चारित्रिक विकास में अध्यापक का चरित्र एवं पड़ोसियों का वातावरण अत्यन्त प्रभावशाली होता है। छात्रों में स्वभावतः अनुकरण की प्रधानता होती है। अतः छात्र अपने घर या पड़ौस वाले व्यक्तियों से जिन बातों को. सुनता है उनका भी उसके चरित्र पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अतः मातृ-भाषा छात्रों के नैतिक विकास में भी सहायक होती है।
6. सांस्कृतिक विकास में सहायक – सुखमय जीवन बिताने के लिये आवश्यक है कि हम अपने समाज की रीति-नीति, परम्पराओं, आचार-विचार, धर्म और संस्कृति से परिचित हों। चूँकि साहित्य समाज का दर्पण होता है। अतः समस्त ज्ञान साहित्य में छिपा होता है और साहित्य के ज्ञानवर्द्धन के लिये आवश्यक है कि हमारा अपनी मातृ-भाषा पर पूर्ण अधिकार हो। तभी हम अपना सांस्कृतिक विकास करने में समर्थ हैं। अतः मातृ-भूमि सांस्कृतिक विकास में करने में समर्थ हैं। अतः मातृ-भूमि सांस्कृतिक विकास में सहायक होती है।
7. साहित्य से परिचय एवं ज्ञान की वृद्धि में सहायक – संस्कृति एवं सभ्यता की सुरक्षा तथा अग्रसरण शिक्षा का एक प्रमुख ध्येय मानव परम्परा में यह एक साहित्य की सक्षम विधि।
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