बालक के विकास में विद्यालय एवं समुदाय के योगदान का वर्णन करें।

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प्रश्न – बालक के विकास में विद्यालय एवं समुदाय के योगदान का वर्णन करें।
उत्तर – “विद्यालय अपनी चाहारदीवारी के बाहर वृहत् समाज का प्रतिबिम्ब है जिसमें जीवन को व्यतीत करके सीखा जाता है। यह एक शुद्ध, सरल तथा उत्तम समाज है ।”
– जॉन ड्यूवी
“The school is to be a reflection of the larger society outside its walls, in which life can be learned by living. But it is to be a purified, simplified and better balanced society.”
– John Dewey.
स्कूल (School) शब्द स्कोला (Schola) से बना जिसका अर्थ है अवकाश। यूनान में विद्यालयों में पहले खेलकूद आदि पर बल दिया जाता था। कालान्तर में ये विद्यालय, विद्यालय के केन्द्र बन गये। टी. एफ. लीच के शब्दों में—“वाद-विवाद या वार्ता के स्थान, जहाँ एथेन्स के युवक अपने अवकाश के समय को खेलकूद, व्यवसाय और युद्ध कौशल के प्रशिक्षण में बिताते थे। धीरे-धीरे दर्शन और उच्च कलाओं के स्कूलों में बदल गये। एकेडेमी के सुन्दर उद्यानों में व्यतीत किये जाने वाले अवकाश के माध्यम से विद्यालयों का विकास हुआ।”
“The decision forums or talking shops where the youth of Athens spent their leisure time in sport and exercise, in training for war, gradually crystallised into schools of philosophy and the higher arts. In the leisure spent in the trim gardens of the academy, schools developed.”
– T.F. Leach
> विद्यालय की परिभाषाएँ इस प्रकार दी गई हैं—
( 1 ) जॉन ड्यूवी – “विद्यालय एक ऐसा वातावरण है, जहाँ जीवन के कुछ गुणों और विशेष प्रकार की क्रियाओं तथा व्यवसायों की शिक्षा इस उद्देश्य से दी जाती है कि बालक का विकास वांछित दिशा में हो । ”
( 2 ) रॉस– “विद्यालय वे संस्थायें हैं जिनको सभ्य मनुष्यों द्वारा इस उद्देश्य से स्थापित किया जाता है कि समाज में सुव्यवस्थित और योग्य सदस्यता के लिये बालकों को तैयारी में सहायता मिले । ”
( 3 ) के० जी० सैयदैन– “एक राष्ट्र के विद्यालय जनता की आवश्यकताओं तथा समस्याओं पर आधारित होने चाहिये । विद्यालय का पाठ्यक्रम उनके जीवन का सार रूप होना चाहिये। इसको सामुदायिक जीवन की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं को अपने स्वाभाविक वातावरण में प्रतिबिम्बित करना
चाहिये । ”
बालक के विकास में विद्यालयों का योगदान
(Contribution of Schools in Child Development)
टी० पी० नन के अनुसार– “एक राष्ट्र के विद्यालय उसके जीवन के अंग हैं, जिनका विशेष कार्य उसकी आध्यात्मिक शक्ति को दृढ़ बनाना, उसकी ऐतिहासिकता की निरन्तरता को बनाये रखना, उसकी भूतकाल की सफलताओं को सुरक्षित रखना और उसके भविष्य की गारन्टी करना ।”
> इस दृष्टि से विद्यालय, बालक के विकास में इस प्रकार योगदान करता है-
1. बालकों को जीवन की जटिल परिस्थितियों का सामना करने योग्य बनाता है।
2. सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण करता है तथा उसे अगली पीढ़ी में हस्तान्तरित करता है।
3. विद्यालय, बालकों को घर तथा संसार से जोड़ने का कार्य करते हैं।
4. व्यक्तित्व का सामंजस्यपूर्ण विकास करने में विद्यालय का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
5. विद्यालय में समाज के आदर्शों, विचारधाराओं का प्रसार होता है एवं शिक्षित नागरिकों के निर्माण में योग देता है।
6. मनोविज्ञान ने बालक के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव लाने में सहायता दी है, इसलिये विद्यालय, सूचना के बजाय, बालक को अनुभव प्रदान करते हैं ।
7. आधुनिक विद्यालयों ने बालकों का दृष्टिकोण विश्व के सन्दर्भ में विकसित किया है।
8. आज के विद्यालय, बालक के विकास के लिये विशेष वातावरण प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं। पवित्र वातावरण में बालकों में पवित्र भावों का सृजन होता है। उनके व्यक्तित्व में सन्तुलन उत्पन्न होता है।
9. आज विद्यालय, सामुदायिक केन्द्र के रूप में विकसित हो यह लघु समाज है।
10. टॉमसन के अनुसार विद्यालय, बालकों का मानसिक, चारित्रिक, सामुदायिक, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्री विकास करता है तथा स्वस्थ रहने का प्रशिक्षण देता है।
3. बालक के विकास में समुदाय का योगदान
(Contribution of Community for Child Development)
को एवं क़ो के शब्दों में— “कोई समुदाय व्यर्थ में किसी बात की आशा नहीं कर सकता। यदि वह चाहता है, उसके तरुण व्यक्ति अपने समुदाय की भली-भाँति सेवा करें तो उसे उन सब शैक्षिक साधनों को जुटाना चाहिये जिनकी तरुण व्यक्तियों को व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से आवश्यकता है। “
“A community cannot expect something for nothing. If it wishes its young people to serve their community well, it must provide whatever advantages are needed by the young people.”
– Crow and Crow.
मैकाइवर एवं पेज के शब्दों में – “जब कभी छोटे या बड़े समूह के सदस्य इस प्रकार रहते हैं कि वे इस अथवा उस विशिष्ट उद्देश्य में भाग नहीं लेते वरन् जीवन की समस्त भौतिक दशाओं में भाग लेते हैं, तब हम ऐसे समूह को समुदाय कहते हैं । “
“Whenever the members of any group, small or large, live together in such a wa that they share not this or that particular interest but the basic conditions of common life we call the group a community.”
– Maclver and page.
बालक की शिक्षा में समुदाय की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। समुदाय अपने आदर्शों तथा मान्यताओं के अनुसार व्यक्ति के व्यवहार का निर्माण करता है। विलियम ईगर के अनुसार– “मनुष्य स्वभाव से सामाजिक प्राणी है, इसलिये उसने वर्षों के अनुभव से यह सीख लिया है कि व्यक्तित्व तथा सामूहिक क्रियाओं का विकास समुदाय द्वारा ही सर्वोत्तम रूप से किया जा सकता है। “
बालक के विकास पर समुदाय का प्रभाव
(Influence of Community on Child Development)
समुदाय बालक के विकास पर इस प्रकार प्रभाव डालते हैं—
( 1 ) सामाजिक प्रभाव – समुदाय का प्रत्यक्ष प्रभाव बालक के सामाजिक विकास पर पड़ता है। यहाँ उसका सामाजीकरण होता है। अधिकार तथा कर्त्तव्यों के ज्ञान के साथ-साथ स्वतन्त्रता के अनुशासन की जानकारी भी होती है।
( 2 ) राजनैतिक प्रभाव – समुदाय, बालक पर राजनैतिक प्रभाव भी डालता है। विद्यालयों में छात्र संघों के माध्यम से राजनैतिक संरचना का अनुभव मिलता है तथा समाज के राजनैतिक वातावरण के लिये वे तैयार हो जाते हैं।
( 3 ) आर्थिक प्रभाव – समुदाय की आर्थिक स्थिति का प्रत्यक्ष प्रभाव विद्यालयों तथा बालकों पर प्रकट होता है। सम्पन्न समुदायों में विद्यालय आकर्षक होते हैं और उनमें पढ़ने वाले छात्रों को सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती है। अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों का स्तर, परिषदों के विद्यालयों से इसी कारण भिन्न होता है। जिला
(4) सांस्कृतिक प्रभाव – प्रत्येक समुदाय की अपनी संस्कृति होती है और उसका शब्दावली प्रभाव वहाँ के विद्यालयों तथा छात्रों पर पड़ना स्वाभाविक है। बोलचाल, व्यवहार, तथा शैली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है।
( 5 ) साम्प्रदायिक प्रभाव – समुदायों में यदि एक से अधिक सम्प्रदायों के लोग रहते हैं और उनमें समरसता नहीं है तो ऐसे समाज के विद्यालयों का वातावरण दूषित हो जाता है।
( 6 ) सार्वभौमिक माँग – समुदाय, विद्यालय तथा शिक्षा की सार्वभौमिक माँग की पूर्ति करते हैं। शिक्षा के प्रथम प्रसार के लिये विद्यालयों की माँग बढ़ रही है और समुदाय उसे पूरा कर रहे हैं।
( 7 ) प्रारम्भिक शिक्षा का विकास- समुदाय प्राय: अपने छोटे-छोटे बालकों के लिये समुदाय परिसर में विद्यालय खोलता है। इस प्रकार उनकी प्रारम्भिक शिक्षा की व्यवस्था करता है।
( 8 ) माध्यमिक शिक्षा का विकास- समुदाय का प्रभाव माध्यमिक शिक्षा पर भी देखा जाता है। देश में माध्यमिक शिक्षा के विकास में समुदायों का योगदान प्रमुख है।
( 9 ) उच्च शिक्षा – भारतीय समुदायों ने उच्च शिक्षा के विकास पर भी बल दिया है। आज उच्च शिक्षा स्थानीय आवश्यकताओं तथा साधनों के अनुसार दी जाती है।
इस प्रकार, हम देखते हैं कि घर, विद्यालय तथा समुदाय बालक के विकास को पृथक्- पृथक् नहीं बल्कि समन्वित रूप से प्रभावित करते हैं।
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