बाल्यावस्था का वैश्वीकरण एवं गरीबी के परिप्रेक्ष्य में वर्णन कीजिए।

प्रश्न – बाल्यावस्था का वैश्वीकरण एवं गरीबी के परिप्रेक्ष्य में वर्णन कीजिए। 
उत्तर – वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक या सांस्कृतिक प्रभाव पूरी दुनिया में पड़ता है। अर्थशास्त्र की दृष्टि से वैश्वीकरण का अर्थ है देश की घरेलू अर्थव्यवस्था का व्यापार, पूँजी और प्रौद्योगिकी के निर्वाध प्रवाह के माध्यम से पूरी दुनिया के देशों के साथ सामंजस्य स्थापित करना । इसका अर्थ है माल और सेवाओं के अंतर्राष्ट्रीय विपणन में वृद्धि पूँजी के व्यापक प्रसार द्वारा दुनिया के देशों के आर्थिक अन्योन्याश्रितता अर्थात् परस्पर निर्भरता में वृद्धि करना।
किसी भी व्यक्ति की सामाजिक आर्थिक स्थिति उसकी शिक्षा, सम्मान, नौकरी के लिए कार्यकुशलता तथा आमदनी पर निर्भर होती है। इनमें आनेवाली परिवर्तन का परिवार में बच्चों एवं माता-पिता पर उनके संबंधों पर प्रभाव पड़ता है। वैश्वीकरण में भारत में आर्थिक विकास को प्रोत्साहित किया है जिसका सकारात्मक प्रभाव बच्चों के रहन-सहन, शिक्षा स्वास्थ्य आदि पर पड़ा है। स्वास्थ्य सेवाओं पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ा है। देश में शिशु मृत्यु दर में कमी आई है। देश में जीवन प्रत्याशा दर में वृद्धि हुई हैं। बच्चों के जीवन गुणवत्ता में है। बच्चों के शिक्षण व ज्ञान कौशल में आशातीत वृद्धि हुई हैं। देश में सुधार हुआ सूचना प्रौद्योगिकी के व्यापक प्रसार यथा मोबाइल, इंटरनेट, टेलीविजन आदि ने बालकों के जीवन में व्यापक असर डाला है।
निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले माता-पिता अपने बच्चों के पालन पोषण में अपने को हारा हुआ महसूस करते हैं। उच्च सामाजिक स्थिति वाले माता-पिता किसी भी क्षमता प्राप्त करने के लिए बहुत प्रोत्साहित करते हैं एवं स्वतंत्रता भी देते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा उपलब्धि प्राप्त कर सकें।
किसी भी समाज में शिक्षा बालक के विकास को प्रभावित करते हैं। उच्च स्थिति वाले माता-पिता बच्चों को उच्च शिक्षा एवं काफी दिनों तक पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। आर्थिक स्थिति अच्छी होने के कारण बच्चे बीच में शिक्षा के बाधित होने के भय से मुक्त रहते हैं। ऐसे माता-पिता बच्चे को ज्यादा समय, ऊर्जा, एवं अन्य संसाधन उपलब्ध करा सकते हैं ताकि संतोषपूर्वक सारी शिक्षा सम्पन्न हों, किन्तु निम्न आर्थिक स्थिति वाले माता-पिता अपनी आर्थिक स्थिति के कारण ऐसा नहीं कर पाते।
वैश्वीकरण में समाज में व्याप्त जड़ता, जातिवाद, अंधविश्वास, धर्माधता सम्प्रदायवाद आदि को शिथिल किया है। इसने बालकों के व्यक्तित्त्व के सर्वांगीण विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
परिवार की संरचना बालकों के विकास को प्रभावित करता है। छोटे परिवारों में माता-पिता एवं बच्चों में अंतरंग संबंध होता है। छोटे-परिवारों में माता-पिता में धैर्य ज्यादा होता है तथा वे कम दण्डात्मक कार्यवाही ही करते हैं। उनके पास प्रत्येक बच्चे के कार्य कलापों, विद्यालय के कार्यों एवं अन्य अवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता होती है। जबकि बड़े परिवारों में इसका आभाव होता है। भारत में वैश्वीकरण ने संयुक्त परिवार प्रणाली पर गहरा अघात किया है। देश में अब (एकल परिवार) व्यवस्था का व्यापक प्रसार हो रहा है। इसने बहुत सारी समस्याओं को भी जन्म दिया है।
उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में हम कह सकते हैं कि वैश्वीकरण ने बालक के विकास को काफी प्रभावित किया है।
गरीबी (Poverty)—जब परिवार गरीबी से ग्रस्त रहता है तो ऐसे में parenting (पितृत्व) तथा बालक का विकास – दोनों ही काफी प्रभावित होते हैं। देश एवं सामजिक परिस्थितियों, बेरोजगारी के कारण परिवार नौकरी की खोज में इधर-उधर भटकते हैं। ऐसे में बच्चों के लिए भोजन एवं अन्य जरूरी संसाधनों की व्यवस्था करना भी कठिन होता है। लागातार झेलने वाले तनाव, असुरक्षा की भावना के कारण पारिवारिक तंत्र कमजोर पड़ जाता है। गरीब परिवार में प्रतिदिन के ढेर सारे खर्च होते हैं और जब इन दैनिक खर्चों के कारण संकट पैदा होता है तो माता-पिता एवं अभिभावक अवसादग्रस्त, चिड़चिड़े एवं व्याकुल हो जाते हैं। ऐसे में प्रतिकूल अन्तः क्रियाएँ बढ़ जाती हैं और बच्चों का विकास में प्रभावित होता है। (Mc Loyd, 1998 b.) ऐसी परिस्थितियाँ ज्यादातर एकल परिवारों, खतरनाक एवं खराब पड़ोस, अस्वास्थ्यकर घरों में ज्यादा पाई जाती हैं जहाँ घटते हुए सामाजिक सहयोग और सहायिता के कारण संकट ज्यादा बढ़ता जाता है। तनाव एवं लड़ाई-झगड़े के अतिरिक्त माता-पिता की कम सहभागिता, टूटे निवास स्थान आदि पढ़ने के वातावरण के कारण बच्चों का बौद्धिक विकास व सांवेगिक संतुलन रूक जाता है। प्रारम्भ में गरीबी की शुरूआत, फिर ज्यादा आर्थिक संकट और जितने ज्यादा समय यह स्थिति बनी रहती है, बच्चों का शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य, बुद्धि तथा विद्यालय की उपलब्धियों पर खतरनाक प्रभाव देखे जा सकते हैं।
पारिवारिक संरचना एवं आकार ( Family structure and size) — छोटे (Small ) परिवारों और बड़े परिवारों (large) यथा Nuclear and Extended family दोनों के बच्चों के पोषण करने के ढंग में अंतर आ ही जाता है। छोटे परिवारों में माता-पिता एवं बच्चों में अंतरंग सम्बन्ध होता हैं छोटे परिवारों में माता-पिता में धैर्य जयादा होता है तथा वे कम दण्डात्मक कारवाई करते हैं। उनके पास प्रत्येक बच्चे के कार्य कलापों, विद्यालय के कार्यों एवं अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता होती है। साथ ही साथ छोटे परिवारों में भाई-बहनों की उम्र में कुछ अंतर भी होता है जिससे माता-पिता के पास पर्याप्त संसाध न एवं ध्यान देने का समय मिल पाता है। इस तरह के परिवार के बच्चों में तीव्र बुद्धि, बेहतर स्वास्थ्य, उच्चकोटि की शिक्षा होती है एवं बहुत कम संख्या में ये असामाजिक कार्यों में संलिप्त देखे जाते हैं (Grant, 1994; Powell &Steelman, 1993)।
बड़े परिवारों में प्राय: आर्थिक कमी होती है। घर में सदस्यों की बड़ी संख्या, अपर्याप्त -पोषण भोजन, कम शिक्षित एवं तनावग्रस्त माता-पिता – ये सभी मिलकर बच्चों के पालनमें कठिनाई उत्पन्न करते हैं। ऐसे परिवारों के बच्चों में निम्न बौद्धिक स्तर, खराब स्वास्थ्य होना आम बात है।
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