भारतीय संघात्मक व्यवस्था में केंद्र तथा राज्यों के मध्य तनाव के क्षेत्र का विश्लेषण कीजिए । वर्तमान समय में संघीय सरकार तथा बिहार राज्य के मध्य संबंधों का वर्णन कीजिए।
- केंद्र राज्य संबंध अभिप्राय किसी लोकतांत्रिक राष्ट्रीय राज्य से संघवादी केंद्र और उसकी इकाइयों के बीच के आपसी संबंध से होता है। किसी भी देश की एकता अखंडता को बनाए रखने हेतु संघवाद का विशेष महत्त्व है । यह केंद्र और राज्यों के बीच आपसी संबंधों पर निर्भर करता है। लेकिन यह भी एक यथार्थ है कि पूरे विश्व में हर जगह केंद्र सरकार हमेशा से ही राज्य सरकार से ज्यादा शक्तिशाली रहती है और राज्यों को उनके अनुरूप ही कार्य करना होता है। भारत के अंदर भी यह परंपरा चली आ रही है । संविधान में न सिर्फ केंद्र और राज्य के अधिकारों को बाँटा गया है बल्कि केंद्र को राज्य की तुलना में अधिक शाक्ति भी प्रदान की गई है। इस कारण ही समय-समय पर इसको लेकर विवाद भी उठता है और यह मांग की जाती है कि राज्यों की शक्ति में इजाफा किया जाए, ताकि केंद्र का दखल राज्य में कम से कम हो । भारत के लगभग सभी राज्य समय-समय पर केंद्र सरकार के समक्ष अपनी इस इच्छा को व्यक्त कर चुके हैं। केंद्र और राज्य के बीच प्रमुख विवादस्पद मुद्दे निम्नवत हैं –
राज्य सूची पर केंद्र का दखल – इस बात की त्वरित समीक्षा करने की आवश्यकता है कि राज्य से विधायी मामलों को संघ की समवर्ती सूची को स्थानांतरित करने के क्या प्रभाव होंगे। राज्य विषयों पर ये केंद्रीय योजनाएँ, जिनमें केंद्र द्वारा लगाए गए कठोर निर्देश होते हैं, वित्तीय निहितार्थों के अतिरिक्त राज्य की स्वायत्तता एवं उनके विकास अधिमानताओं को प्रभावित करते हैं। इसके अतिरिक्त समवर्ती सूची के तहत विषयों के क्षेत्रों पर संघ राज्य के बीच परामर्श करने का कोई औपचारिक संस्थागत ढाँचा नहीं है। तीसरे, छठे, सातवें और बयालिसवें संविधान संशोधन के माध्यम से राज्य की बहुत सारी शक्तियों को समाप्त कर दिया गया, और उस पर केंद्र का नियंत्रण हो गया। इस कारण ही केंद्र को वित्त, औद्योगिक, प्रशासनिक और कानूनी शक्तियाँ प्रदान कर दी गई हैं।
वित्तीय मुद्दे – केंद्रीय करों के राज्यों को आवंटन के लिए एक निष्पक्ष सिद्धांत पर कार्य करने की बेहद आवश्यकता है राज्य करारोपण की अवशिष्ट शक्तियों को विशिष्ट रूप से सेवाओं पर कर, राज्य को हस्तांतरित करने की न्यायसंगत मांग करते रहे हैं। इस मांग को दरकिनार करते हुए केंद्र ने संविधान संशोधन द्वारा सेवाओं पर कर लगाने की समस्त शक्तियाँ प्राप्त कर ली।
केंद्र प्रायोजित योजनाओं में तीव्र वृद्धि, जिनका निर्माण एवं कार्यान्वयन राज्य सरकार के साथ बिना किसी पर्याप्त विचार-विमर्श के पूरी तरह से केंद्र द्वारा निर्धारित किया जाता है एक अन्य गंभीर समस्या है। यह बेहद केंद्रीकृत एवं कठोर रूपरेखा वाली योजनाएँ प्रायः राज्यों की विशिष्ट जरूरतों से असंगत होती हैं। क्योंकि अधिकतर मामलों में इन योजनाओं के व्यय पर एक हिस्सा राज्य सरकार का होता है, राज्य सरकार अपनी प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए इन पर अपने संसाधनों का आवंटन करने में बेहद कठिनाई महसूस करती है।
सीआरपीएफ एवं बीएसएफ की राज्यों में तैनाती – केंद्र और राज्यों के बीच तनाव का एक प्रमुख मुद्दा राज्यों में पैरामिलिट्री फोर्स की तैनाती का भी है देश के सभी राज्यों में केंद्र सरकार द्वारा पैरामिलिट्री फोर्स की तैनाती शासन व्यवस्था को नियंत्रित करने के नाम पर की जाती है। लेकिन कभी-कभी राज्य सरकारें इसका विरोध भी करती है, क्योंकि ये राज्य के शासन व्यवस्था में दखल देते हैं। स्थानीय पुलिस एवं प्रशासन से तालमेल नहीं बैठाते और स्वयं का निर्णय कभी-कभी ले लेते हैं, जिससे राज्य के लिए स्थिति काफी असहज हो जाती है।
अनुच्छेद 356 एवं 355 का दुरुपयोग – केंद्र द्वारा संविधान के अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग राज्य विधानसभा को भंग करने के लिए बार-बार किया जाता है। जो संघीय सिद्धांत एवं राज्यों के अधिकारों के लिए घातक बनता जा रहा है।
अंतर्राज्यीय परिषद् की लगातार बैठकों में विभिन्न वर्गों से अनुच्छेद 356 के प्रयोग को ऐसे मामलों तक सीमित करने की मांग उठती रही है, जहाँ देश की राष्ट्रीय एकता या धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को गंभीर खतरा पैदा हो गया हो। अनुच्छेद 355 को स्पष्ट करने की आवश्यकता है।
राज्यपाल की नियुक्ति एवं भूमिका – केंद्र द्वारा राज्यों के लिए नियुक्त राज्यपाल का प्रावधान अराजकतापूर्ण रहा है, जो संघीय लोकतांत्रिक राजव्यवस्था के अनुरूप नहीं है। विश्व में कहीं भी किसी बड़े देश में राज्यों के लिए केंद्र द्वारा राज्यपाल नियुक्त करने का प्रावधान नहीं है। राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपाल की मंजूरी की सीमा भी निश्चित होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त राज्यपाल का राज्य सरकार से खुले तौर पर असहमति एवं मतभेद व्यक्त करने को रोकने हेतु मापदंड होना चाहिए ।
वर्तमान में संघ सरकार एवं बिहार सरकार के बीच संबंध सहज एवं सामान्य न होकर तनावपूर्ण है। इसे निम्न बिन्दुओं के मद्देनजर देखा जा सकता है।
- वस्तु एवं सेवाकर में राज्यों की हिस्सेदारी के संबंध में मतभेद ।
- केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्य का रूचि न लेना।
- केंद्र द्वारा वित्तीय मदद की स्थिति में पक्षपातपूर्ण व्यवहार एवं राजनीतिक पूर्वाग्रह से ग्रसित होना ।
- राज्यपालों की राजनीतिक एवं प्रशासनिक भूमिका ।
- नक्सलवाद के मुद्दे पर दोनों के बीच मतभेद का होना ।
- मध निषेध की स्थिति में राज्य एवं केंद्र की भिन्न-भिन्न स्थितियाँ |
- पंथ निरपेक्षता की व्यवस्था के संबंध में केंद्र एवं राज्यों के मध्य तनाव की स्थिति ।
- 14वें वित्त आयोग की अनुशंसा में बिहार की हिस्सेदारी को लेकर राज्य सरकार में असंतोष का भाव है, जिससे दोनों के बीच मतभेद है।
अत: यह स्पष्ट है कि केंद्र एवं बिहार राज्य के बीच संबंध राजनीतिक समीकरण से अभिप्रेरित है। समय-समय विभिन्न मुद्दों को लेकर दोनों के बीच विवाद होते रहे हैं। इसके निपटारे हेतु कई समितियों एवं आयोगों का गठन किया गया है, लेकिन इस समस्या का समाधान नहीं निकाला जा सका है।
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