भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का वर्णन कीजिए। किस प्रकार अनुच्छेद-21 की न्यायिक व्याख्याओं ने जीवन के अधिकार के विषय क्षेत्र का विस्तार किया है ?

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प्रश्न – भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का वर्णन कीजिए। किस प्रकार अनुच्छेद-21 की न्यायिक व्याख्याओं ने जीवन के अधिकार के विषय क्षेत्र का विस्तार किया है ?
उत्तर –  मौलिक अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्ति के जीवन के लिए मौलिक होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किए जाते हैं, और जिनमें राज्य द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। किसी भी लोकतांत्रिक देश के द्वारा अपने नागरिकों को उनके जीवन के विकास हेतु यह अधिकार प्रदान किया जाता है। यह अधिकार उन्हें उस देश के संविधान द्वारा प्रदान किया जाता है। ये ऐसे अधिकार हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए आवश्यक हैं और जिनके बिना मनुष्य अपना पूर्ण विकास नहीं कर सकता।

मौलिक अधिकार का महत्त्व –  मौलिक अधिकार का मनुष्य के जीवन में बहुत महत्त्व है। जिसका उल्लेख नीचे किया गया है।

  1. यह अधिकार मानव के जीवन के विकास के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। यह उनके शारीरिक मानसिक और नैतिक विकास में सहायक है।
  2. इस अधिकार के बिना हम अपना जीवन सुखी और खुशहाल नहीं बना सकते।
  3. इस अधिकार की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह राज्य द्वारा प्रदत्त हैं। अगर कोई सरकार इस पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करती है तो हम इसके विरुद्ध न्यायालय में जा सकते हैं।
मौलिक अधिकार के प्रकार : भारतीय संविधान में सात मौलिक अधिकार वर्णित थे । यद्यपि वर्ष 1976 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा मौलिक अधिकारों की सूची से संपत्ति के अधिकार को हटा दिया गया था। तब से यह एक कानूनी अधिकार बन गया है। अब कुल छः मौलिक अधिकार हैं जो निम्नवत हैं –
  1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18 ) –  भारतीय समाज में व्याप्त असमानताओं और विषमताओं को दूर करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 में समानता के अधिकार का वर्णन किया गया है। इसके अनुसार भारत के राज्य क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को वंचित नहीं किया जाएगा। राज्य द्वारा किसी नागरिक के विरुद्ध धर्म, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान आदि के आधार पर कोई पक्षपात नहीं किया जाएगा। इसमें अस्पृश्यता का अंत कर दिया गया है। सेना अथवा शिक्षा संबंधी उपाधियों के अलावा राज्य अन्य कोई उपाधियाँ प्रदान नहीं कर सकता।
  2. स्वतंत्रता का अधिकार – स्वतंत्रता किसी लोकतांत्रिक देश की आधारभूत स्तंभ होती है। संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 तक इन अधिकारों : का उल्लेख किया गया। भारतीय नागरिकों को संविधान द्वारा निम्नलिखित स्वतंत्रता के अधिकार प्रदान किए गए हैं –
    1. विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
    2. शांतिपूर्ण एवं निःशस्त्र सभा करने की स्वतंत्रता
    3. समुदाय और संघ बनाने की स्वतंत्रता
    4. भ्रमण की स्वतंत्रता
    5. अपराध के दोष सिद्धि के विषय में संरक्षण की स्वतंत्रता
    6. जीवन और शरीर रक्षण की स्वतंत्रता
    7. बंदीकरण से संरक्षण की स्वतंत्रता
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 वर्ष एवं 24 ) – संविधान के अनुच्छेद 23 व 24 के अनुसार कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति का शोषण नहीं कर सकेगा। संविधान के अनुच्छेद 23 (1) के अनुसार मनुष्यों, स्त्रियों और बच्चों के क्रय, विक्रय को घोर अपराध और दण्डनीय माना गया है। संविधान के अनुच्छेद 24 के अनुसार, 14 वर्ष से कम आयु वाले बालकों को कारखानों अथवा खानों में कठोर श्रम के कार्यों के लिए नौकरी में नहीं रखा जा सकता है।
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28 ) – धार्मिक स्वतंत्रता का अभिप्राय यह है कि किसी धर्म में आस्था रखने या न रखने के बारे में राज्य कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा। संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक भारत के सभी नागरिकों के लिए धार्मिक स्वतंत्रता की व्यवस्था की गयी है। इसके अतंर्गत धार्मिक, आचरण एवं प्रचार की स्वतंत्रता धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता, व्यक्तिगत शिक्षण की व्यवस्था की गई है।
  5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार – संविधान के अनुच्छेद 29 व 30 के द्वारा नागरिकों को संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार प्रदान किए गए हैं। इसके अंतर्गत अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा लिपि या संस्कृति को सुरक्षित रखने का पूर्ण अधिकार है। धर्म एवं भाषा के आधार पर सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रूचि के अनुसार शिक्षण संस्थाओं की स्थापना और उनके प्रशासन का अधिकार है।
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार –  भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को केवल मौलिक अधिकार ही प्रदान नहीं किए गए हैं। वरन् उनके संरक्षण की भी पूर्ण व्यवस्था की गई है। अनुच्छेद 32 से 35 के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार दिया गया है कि वह अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय की शरण ले सकता है।
न्यायालयों द्वारा इन अधिकारों की रक्षा के लिए निम्नलिखित पाँच उपचार प्रयोग किए जा सकते हैं –
  1. बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख
  2. परमादेश लेख
  3. प्रतिषेध लेखा
  4. उत्प्रेषण लेख
  5. अधिकार पृच्छा लेख

अनुच्छेद-21 की न्यायिक व्याख्या –  मूल अधिकार न्यायालय में वाद योग्य हैं। इन अधिकारों के हनन की स्थिति में कोई भी व्यक्ति सीधे उच्च न्यायालयों अथवा उच्चतम न्यायालय में अपने अधिकारों की रक्षा हेतु प्रस्तुत हो सकता है। अनुच्छेद – 21 के तहत संविधान में वर्णित है कि किसी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा उसके जीवन या उसकी व्यक्तिक स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा। गोपालन वाद में जीवन एवं वैयक्तिक स्वतंत्रता का अभिप्राय व्यक्ति के देह अथवा शरीर की स्वतंत्रता से लगाया गया। साथ ही इसके अंतर्गत केवल कार्यपालिका की कार्यवाही के विरुद्ध संरक्षण माना गया।

परंतु, आने वाले दौर में न्यायालय द्वारा प्रस्तुत व्याख्याओं में जीवन के अधिकार को विस्तृत आधार क्षेत्र प्रदान किया गया है। मेनका गाँधी वाद में उच्चतम न्यायालय ने विधायी कार्यवाही के विरुद्ध भी अनुच्छेद-21 के तहत संरक्षण प्रदान किया। उच्चतम न्यायालय ने यह मत प्रकट किया कि जीवन के अधिकार का अभिप्राय सिर्फ जीवन की सुरक्षा नहीं है वरन् इसमें गारिमामयी जीवन जीने का अधिकार भी सन्निहित है। उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद-19 में वर्णित सभी स्वतंत्रता के अधिकारों को अनुच्छेद-21 के तहत प्रदत्त जीवन और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार में सन्निहित माना। न्यायालय ने जीवन के अधिकार की व्यापकता को दृष्टिगत करते हुए इसके अंतर्गत शिक्षा का अधिकार, स्वच्छता का अधिकार, स्वस्थ्य जीवन जीने का अधिकार, न्यूनतम एवं गरिमायी आजीविका का अधिकार, यौन शोषण के विरुद्ध अधिकार त्वरित न्याय का अधिकार, गोपनीयता का अधिकार आदि को शामिल किया।

ज्ञान कौर वाद में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि जीवन के अधिकार में आत्महत्या का अधिकार सम्मिलित नहीं है। संथारा के संबंध में न्यायालय ने तर्क प्रस्तुत किया कि धर्म मानव जीवन के उत्थान के लिए आवश्यक है न कि उसे खत्म करने के लिए। अतः जीवन का अधिकार धार्मिक अधिकार से अधिक प्राथमिक है। अनुच्छेद-21 देश के और विदेशी नागरिकों को प्रदान किए गए कुछ अधिकारों से संबंधित है, न कि किसी देश या विदेशी कंपनी के कार्यों से । न्यायालय द्वारा अनुच्छेद-21 के व्याख्या के दौरान अन्य कई महत्त्वपूर्ण निर्णय दिए गए है। जो निम्नवत है –

  • त्वरित न्यायिक प्रक्रिया चलाने का अधिकार (थीला बसरा) बनाम यूओआई।
  • जेल में दिए गए यातना एवं उस दौरान होने वाले मृत्यु के विरुद्ध अधिकार (सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन ) ।
  • अकारन हथकड़ी लगाने के विरुद्ध दिया गया अधिकार ( प्रेम शंकर शुक्ला बनाम दिल्ली प्रशासन ) ।
  • गैर कानूनी तरीके से हिरासत में लेने के विरुद्ध मुआवजे का अधिकार ( रूदल साह बनाम बिहार सरकार )

यह सही है कि लोकतंत्र में कोई अधिकार निश्चित नहीं है सभी अधिकार नैतिकता, देश की सुरक्षा नागरिकों की सुरक्षा और उनके लिए तैयार की गई नीति के आलोक में प्रदान किए जाते हैं।

निष्कर्ष : भारतीय संविधान में प्रदान किया गया मौलिक अधिकार ऐसा व्यापक माध्यम है जो आदर्श लोकतंत्र के विकास एवं व्यक्तित्व विस्तार के तमाम अवसर उपलब्ध कराने में सक्षम है। भारतीय संविधान के अनुच्छदे 21 के तहत वर्णित जीवन का अधिकार सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मौलिक अधिकार है।

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