भारतीय संविधान में सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के सशक्तीकरण हेतु प्रावधान का वर्णन करें।
उत्तर— भारतीय संविधान में सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के सशक्तीकरण हेतु विशेष प्रावधान—
उपबन्ध 16–लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता—
- राज्य की अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से सम्बन्धित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी।
- राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के सम्बन्ध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इनमें से किसी आधार पर न कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा।
- इस अनुच्छेद की कोई बात संसद को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नहीं करेंगी जो किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र की सरकार के या उसमें के किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन वाले किसी वर्ग या वर्गों के पद पर नियोजन या नियुक्ति के सम्बन्ध में ऐसे नियोजन या नियुक्ति से पहले उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के भीतर निवास विषयक कोई अपेक्षा विहित करती है।
- इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करंगी ।
(4क) इस अनुच्छंद की कोई बात राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, राज्य के अधीन सेवाओं में किसी वर्ग या वर्गों के पदों पर प्रोन्नति के मामलों में आरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेंगी ।
- इस अनुच्छेद की कोई बात किसी विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी जो यह उपबंध करती है कि किसी धार्मिक या सांप्रदायिक संस्था के कार्यकलाप से सम्बन्धित कोई पदधारी या उसके शासी निकाय का कोई सदस्य किसी विशिष्ट धर्म का मानने वाला या विशिष्ट संप्रदाय का ही हो ।
उपबन्ध 17 – अस्पृश्यता का अंत — ‘अस्पृश्यता’ का अंत किया जाता है और उसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध किया जाता है । ‘अस्पृश्यता’ से उपजी किसी निर्योग्यता को लागू करना अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा ।
उपबन्ध 18 – उपाधियों का अंत –
- राज्य, सेना या विद्या सम्मान के सिवाय और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा ।
- भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा ।
- कोई व्यक्ति, जो भारत का नागरिक नहीं है, राज्य के अधीन लाभ या विश्वास के किसी पद को धारण करते हुए किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा ।
- राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने वाला कोई व्यक्ति किसी विदेशी राज्य से या उसके किसी रूप में कोई भेंटे, उपलब्धि या पद राष्ट्रपति की करेगा । सहमति के बिना स्वीकार
शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right Against Exploitation ) –
उपबन्ध 23— मानव के टर्व्यापार और बलात् श्रम का प्रतिषेध –
- मानव का दुर्व्यापार और * तथा इसी प्रकार का अन्य बलात् श्रम प्रतिषिद्ध किया जाता है और इस उपबंध का कोई भी उघन अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा । “
- इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए अनिवार्य सेवा अधिरोपित करने से निवारित नहीं करेगी। ऐसी सेवा अधिरोपित करने में राज्य केवल धर्म, मूलवंश, जाति या वर्ग या इनमें से किसी आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा ।
उपबन्ध 24 – कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध– चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा ।
धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion )
उपबन्ध 25 – अंतःकरण की और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता – (1) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा । (2) इस अनुच्छेद की कोई बात किसी ऐसी विद्यमान विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या राज्य को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नहीं करेगी जो —
(क) धार्मिक आचरण से संबद्ध किसी आर्थिक, वित्तीय, राजनैतिक या अन्य लौकिक क्रियाकलाप का विनियमन या निर्बंधन करती है।
राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
उपबन्ध 36- परिभाषा – भाग 4 में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, ‘राज्य’ का वही अर्थ है जो भाग 3 में है।
उपबन्ध 37 – इस भाग में अंतर्विष्ट तत्त्वों का लागू होना – इस भाग में अंतर्विष्ट उपबंध किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होंगे किंतु फिर भी इनमें अधिकथित तत्त्व देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि बनाने में इन तत्त्वों को लागू करना राज्य का कर्त्तव्य होगा।
उपबन्ध 38 – राज्य लोकल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा – (1) राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनैति न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्रमाणित करे । भरसक प्रभावी रूप में स्थापना और संरक्षण करके लोग कल्याण की अभिवृद्धि का प्रयास करेगा। (2) राज्य, विशिष्टतया, आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करेगा और न केवल व्यष्टियों के बीच बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले और विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए लोगों के समूहों के बीच भी प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा ।
उपबन्ध 39- राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्त्व — राज्य अपनी नीति का, विशिष्टतया, इस प्रकार संचालन करेगा कि सुनिश्चित रूप से –
(क) पुरुष और स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो;
(ख) समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार बंटा हो जिससे सामूहिक हित का सर्वोत्तम रूप से साधन हो;
(ग) आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार चले जिससे धन और उत्पादन-साधनों का सर्वसाधारण के लिए अहितकारी संकेंद्रण न हो;
(घ) पुरुषों और स्त्रियों दोनों का समान कार्य के लिए समान वेतन हो;
(ङ) पुरुष और स्त्री कर्मकारों के स्वास्थ्य और शक्ति का तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो और आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे रोजगारों में न जाना पड़े जो उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हो;
(च) बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएं दी जाएँ और बालकों और अल्पवय व्यक्तियों की शोषण से तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा की जाए ।
उपबन्ध 39क—समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता — राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधिक तंत्र इस प्रकार काम करे कि समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो और वह विशिष्टतया, यह सुनिश्चित करने के लिए कि आर्थिक या किसी अन्य निर्योग्यता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए, उपयुक्त विधान या स्कीम द्वारा या किसी अन्य रीति से निःशुल्क विधिक सहायता की व्यवस्था करेगा।
उपबन्ध 40 – ग्राम पंचायतों का संगठन– राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन के लिए ‘कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक हों ।
उपबन्ध 41 – कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार — राज्य अपनी आर्थिक सामर्थ्य और विकास की सीमाओं की भीतर, काम पाने के, शिक्षा पाने के और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और निःशक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा ।
उपबन्ध 42–काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध– राज्य काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित करने के लिए और प्रसूति सहायता के लिए उपबंध करेगा
उपबन्ध 43 – कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि— राज्य, उपयुक्त विधान या आर्थिक संगठन द्वारा या किसी अन्य रीति से कृषि के, उद्योग के या अन्य प्रकार के सभी कर्मकारों को काम, निर्वाह मजदूरी, शिष्ट जीवनस्तर और अवकाश का संपूर्ण उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशाएं तथा सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर प्राप्त कराने का प्रयास करेगा और विशिष्टतया ग्रामों में कुटीर उद्योगों को वैयक्तिक या सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करेगा ।
उपबन्ध 43क—उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना— राज्य किसी उद्योग में लगे हुए उपक्रमों, स्थानों या अन्य संगठनों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त विधान द्वारा या किसी अन्य रीति से कदम उठाएगा ।
उपबन्ध 44– नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता — राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा ।
उपबन्ध 45 – बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध – राज्य, इस संविधान के प्रारंभ से दस वर्ष की अवधि के भीतर सभी चौदह वर्ष की आयु पूरी करने तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा ।
उपबन्ध 46 – अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ सम्बन्धी हितों की अभिवृद्धि– राज्य, जनता के दुर्बल वर्गों के, विशिष्टतया, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा और अर्थ सम्बन्धी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उनकी संरक्षा करेगा ।
उपबन्ध 47 – पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्त्तव्य-राज्य अपने लोगों के पोपाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने और लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कर्त्तव्यों में मानेगा औषधीय और राज्य, विशिष्टतया, मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिए हानिकर औषधियों के, प्रयोजनों से भिन्न, उपभोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा ।
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