भारत में बालिकाओं की शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न समितियों की सिफारिशों का वर्णन करें ?

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
प्रश्न – भारत में बालिकाओं की शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न समितियों की सिफारिशों का वर्णन करें ?
उत्तर — भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् बालिका शिक्षा हेतु चहुँमुखी प्रयास किये गये, जिनके फलस्वरूप इनकी शिक्षा एवं नामांकन में पर्याप्त वृद्धि हुई है। भारतीय जनमानस की मानसिकता में अब बालिका शिक्षा के प्रति परिवर्त्तन हुआ है, वे बालिकाओं को बालकों के समान ही शिक्षा प्रदान करने के प्रति प्रयासरत हुए हैं । संविधान लागू होने के पश्चात् संविधान की धारा 45 में 6-14 आयु वर्ग के सभी बालक-बालिकाओं को अगले 10 वर्षों में अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा प्रदान करना शासन का दायित्व निश्चित किया गया । इन सरकारी प्रयासों के फलस्वरूप सन् 1950-52 बालिका शिक्षा का द्रुत गति से प्रसार हुआ । किन्तु वर्ष 1952-55 के दौरान शिक्षा मद में कटौती करने के कारण जिला परिषद्ों ने अनेक बालिका विद्यालय कम कर दिये एवं अध्यापिकाओं की छँटनी कर दी जो बालिका शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा पक्षपात था । द्वितीय पंचवर्षीय योजना 1956-61 में बालिका शिक्षा के क्षेत्र में निम्नलिखित विभिन्न सिफारिशें प्रस्तुत कीं –
  1. केन्द्र सरकार को सभी राज्यों में बालिका शिक्षा के विस्तार हेतु नीति निर्धारित करनी चाहिए और उसका क्रियान्वयन करने हेतु राज्य सरकारों को आर्थिक सहायता प्रदान करनी चाहिए ।
  2. केन्द्रीय शिक्षा मन्त्रालय के अधीन बालिका शिक्षा के संचालन हेतु एक पृथक विभाग होना चाहिए ।
  3. बालिका शिक्षा को देश की प्रमुख समस्याओं में स्थान प्रदान करना चाहिए ।
  4. बालक एवं बालिका शिक्षा के क्षेत्र में जो विषमता बनी हुई है, उसे शीघ्रातिशीघ्र समाप्त किया जाना चाहिए ।
  5. केन्द्र सरकार को बालिका शिक्षा से सम्बन्धित भार स्वयं वहन करना चाहिए और करनी इसके प्रसार हेतु सुव्यवस्थित एवं समयबद्ध योजना बनाकर निश्चित समय में इसे लागू चाहिए ।
  6. ग्रामीण क्षेत्रों में बालिका शिक्षा का भरसक प्रयास किया जाय, जिसका सारा खर्च सरकार द्वारा उठाया जाय ।
  7. प्रत्येक राज्य में बालिका शिक्षा के प्रसार हेतु बालिका एवं स्त्री शिक्षा हेतु राज्य समितियाँ गठित की जाय
राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद् : 1959 (National Council of Women’s Education 1959) — केन्द्रीय शिक्षा मन्त्रालय ने राष्ट्रीय महिला समिति, 1958 की सिफारिशों को अपनाते हुए सन् 1959 में राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद् की स्थापना की । इसका सन् 1964 में पुनर्गठन किया गया । राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद् ने बालिका शिक्षा के क्षेत्र में निम्नलिखित कार्य किये –
  1. बालिका (महिला) शिक्षा के पक्ष में लोकमत का निर्माण करने हेतु उचित उपाय सुझाना ।
  2. बालिका शिक्षा के क्षेत्र में होने वाली प्रगति का समय-समय पर मूल्यांकन करना और भावी कार्यक्रम की प्रगति के बारे में सोचना ।
  3. बालिका शिक्षा से सम्बन्धित समस्याओं पर विचार करने हेतु आवश्यकतानुसार अनुसन्धान, सर्वेक्षण एवं विचार गोष्ठियों के आयोजन हेतु केन्द्र सरकार से सिफारिश करना ।
  4. औपचारिक बालिका शिक्षा (विद्यालय शिक्षा), अनौपचारिक बालिका शिक्षा (प्रौढ़ शिक्षा) से सम्बन्धित समस्याओं पर सरकार को परामर्श प्रदान करना ।
  5. बालिका शिक्षा के क्षेत्र में बालिकाओं (महिलाओं) की शिक्षा के प्रसार-प्रचार एवं सुधार हेतु कार्यक्रमों, नीतियों, लक्ष्यों के विषय में सरकार को सुझाव देना ।
  6. बालिका शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत प्रयोगार्थ विभिन्न उपाय सुझाना ।
हंसा मेहता समिति : 1952 (Hansa Mehta Committee : 1962)– राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद् के उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने के उद्देश्य से सन् 1962 में हंसा मेहता समिति का गठन किया गया । इस समिति का मुख्य उद्देश्य विद्यालयी स्तर पर बालक-बालिकाओं के पाठ्यक्रमों में लैंगिक भिन्नता सम्बन्धी निर्णय लेना था ।
हंसा मेहता समिति के सुझाव (Suggestions of Hansa Mehta Committee)— बालिका शिक्षा के सन्दर्भ में हंसा मेहता समिति के निम्नलिखित सुझाव थे –
  1. हंसा मेहता समिति का सुझाव था कि भारतीय समाज में लिंग के आधार पर विद्यालयी पाठ्यक्रमों में अन्तर करने की आवश्यकता नहीं है ।
  2. बालक एवं बालिकाओं के सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक कार्यों के अन्तर के आधार पर पाठ्यक्रम में विभेद करना चाहिए । किन्तु पाठ्यक्रम की विभिन्नता समाज के निर्माण कार्य में बाधा न बने – ऐसा भी प्रयास करना चाहिए ।
कोठारी कमीशन : 1964-66 (Kothari Commission : 1964-66) — कोठारी. आयोग ने बालिका शिक्षा के उन्नयन हेतु अनेक सुझाव प्रस्तुत किये, जो अग्रलिखित हैं-
  1. बालिकाओं में अनिवार्य शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार करने हेतु भारतीय संविधान द्वारा प्रतिपादित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु विशेष प्रयास किये जाने चाहिए ।
  2. उच्च प्राथमिक स्तर पर बालिका शिक्षा हेतु अलग से विद्यालय स्थापित किये जायें ।
  3. बालिकाओं को मुफ्त पाठ्य पुस्तकें, लेखन सामग्री, वस्त्र आदि प्रदान कर उन्हें शिक्षा के प्रति आकृष्ट किया जा सकता है ।
  4. बालिकाओं को बालकों के प्राथमिक विद्यालयों में भेजने के लिए लोकमत का निर्माण करना |
  5. 11-14 आयु-वर्ग की सभी बालिकाओं की अल्पकालीन शिक्षा का प्रबन्ध करना चाहिए ।
  6. बालिका शिक्षा के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने हेतु ठोस कदम उठाये जायें ।
  7. बालक/बालिकाओं (स्त्री एवं पुरुषों) के बीच जो खाई बनी हुई है उसे यथाशीघ्र समाप्त करने के लिए योजनाएँ बनायी जायें ।
  8. बालिका शिक्षा की निगरानी हेतु केन्द्र तथा राज्य स्तर पर उपयुक्त प्रशासनिक कदम उठाये जायें ।
  9. स्त्रियों के लिए अंशकालिक रोजगारों की व्यवस्था की जाय, जिससे वे पारिवारिक कार्यों से मुक्त होकर शिक्षा का समुचित लाभ उठा सकें ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति : 1986 (National Education Policy : 1986)स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में बालिका शिक्षा के क्षेत्र में अनेक परिवर्त्तन हुए, किन्तु उनके परिणाम सन्तोषजनक नहीं रहे । राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 ने यह महसूस किया कि तमाम प्रयासों के बावजूद वर्त्तमान शिक्षा प्रणाली महिलाओं की समानता के प्रति पर्याप्त भूमिका अदा नहीं कर सकी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने बालिका की प्रगति हेतु निम्नलिखित नीति सम्बन्धी निर्देश जारी किये –
  1. 15-35 आयु वर्ग की महिलाओं के लिए सन् 1995 तक प्रौढ़ शिक्षा का एक चरणबद्ध एवं समयबद्ध कार्यक्रम |
  2. प्रारम्भिक शिक्षा का बालिकाओं हेतु चरणबद्ध एवं समयबद्ध कार्यक्रम ।
  3. लिंगमूलक विभाजन को शिक्षा में से समाप्त किया जाय एवं गैर परम्परागत एवं आधुनिक काम-धन्धों में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित किया जाय ।
  4. महिलाओं की स्थिति में बुनियादी परिवर्तन लाने हेतु शिक्षा का उपयोग एक साधन में किया जाय । अतीत से चली आ रही विकृतियों एवं विषमताओं को समाप्त करने के लिए शिक्षा व्यवस्था का स्पष्ट झुकाव महिलाओं के पक्ष में होगा ।
  5. नये मूल्यों की स्थापना हेतु शिक्षण संस्थाओं के सक्रिय सहयोग से पाठ्यक्रमों तथा पठन-पाठन सामग्री की पुनर्रचना की जायेगी तथा अध्यापकों एवं प्रशासकों को पुन: प्रशिक्षण प्रदान किया जायेगा ।
आचार्य राममूर्ति समिति, 1990 (Acharya Ram Murti Committee, 1990)– आचार्य राममूर्ति समिति ने बालिका शिक्षा के अभीष्ट लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में निम्नलिखित परिवर्तन किये-
  1. कक्षा 1 से 3 तक का पाठ्यक्रम शिशु शिक्षा केन्द्रों के आधार पर बनाया जाय ।
  2. आँगनबाड़ी कार्यकर्त्ताओं एवं विद्यालय शिक्षकों में समन्वय स्थापित किया जाय ।
  3. 300 से अधिक आबादी वाले क्षेत्रों में प्राथमिक विद्यालय स्थापित किये जायें ।
  4. 500 से अधिक आबादी वाले क्षेत्रों में बालिकाओं के लिए उच्च प्राथमिक विद्यालय स्थापित किया जाय ।
  5. विद्यालय की समयावधि को स्थानीय क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुकूल निर्धारित किया जाय ।
  6. शाला-त्यागी बालिकाओं के लिए औपचारिक केन्द्रों पर नामांकन की व्यवस्था की जाय ।
  7. बालिकाओं को मध्याह्न भोजन, पाठ्य पुस्तकें एवं शैक्षणिक सामग्री मुफ्त प्रदान की जाय ।
  8. बालिकाओं को विद्यालय जाने हेतु परिवहन की व्यवस्था की जाय ।
  9. योग्य बालिकाओं को छात्रवृत्ति प्रोत्साहन योजना में सम्मिलित किया जाय ।
बालिका – शिक्षा की समस्याएँ (Problems of Girls Education) — यह सत्य है कि भारतीय संविधान में स्त्रियों को बिना किसी भेद-भाव के राजनीतिक, सामाजिक तथा शैक्षिक अधिकार प्रदान किये गये हैं। इस कारण ही सरकार ने बालिका शिक्षा के विकास की दिशा में अनेक सराहनीय कदम भी उठाये हैं । इस पर भी बालिका – शिक्षा का विकास जिस गति से होना चाहिए उस गति से नहीं हो पा रहा है । कारण यह है कि अनेक समस्याएँ और बाधाएँ, जो बालिका – शिक्षा के विकास को अवरुद्ध कर रही हैं; जब तक इन समस्याओं पर उचित ढंग से विचार नहीं किया जाता तब तक बालिका शिक्षा का विकास तथा प्रगति सम्भव नहीं है । अतः बालिका शिक्षा से सम्बन्धित समस्याओं पर विचार करना आवश्यक है । बालिका शिक्षा से सम्बन्धित प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं –
  1. आर्थिक समस्याएँ- हमारा देश आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। अतः बालिका शिक्षण संस्थाओं की स्थापना में आर्थिक बाधा सबसे आगे आ जाती है। कुछ विद्यालय जो व्यक्तिगत प्रयास द्वारा स्थापित किये जाते है, आर्थिक अभाव के कारण बीच में ही बन्द कर दिये जाते हैं, क्योंकि इन्हें सरकारी अनुदान नहीं मिलता। ऐसी दशा में प्रश्न उठता है कि बालिका शिक्षा के लिए धन की व्यवस्था किस प्रकार की जाय ?
  2. रूढ़िवादिता की समस्या – भारतीय समाज अनेक रूढ़िवादिताओं से ग्रस्त है । अधिकांश भारतीय रजोदर्शन से पूर्व ही अपनी कन्या का विवाह कर देना अपना कर्तव्य समझते हैं, क्योंकि ऐसा न करना स्मृतिकारों के अनुसार पाप है। मुसलमान रूढ़िवादिता में हिन्दुओं से भी आगे हैं । पर्दा प्रथा और बाल विवाह का प्रचलन उनके यहाँ आज भी बड़े पैमाने पर है । इन सभी कारणों से वे बालिकाओं को विद्यालय भेजना मजहब के विरुद्ध समझते हैं। वहाँ सह-शिक्षा का तो प्रश्न ही नहीं उठता ।
  3. अनुचित दृष्टिकोण की समस्या – भारत में निरक्षता का बोलबाला है । निरक्षर – व्यक्ति न तो शिक्षा के महत्त्व को समझता है और न जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण स्वस्थ होता है । अधिकांश भारतीयों के अनुसार शिक्षा का मूल उद्देश्य नौकरी प्राप्त करना है । अतः वे सोचते हैं कि जब हमें स्त्रियों से नौकरी करानी नहीं है, तो उन्हें शिक्षा क्यों दी जाय ?
  4. दोषपूर्ण शिक्षा प्रशासन की समस्या – हमारे देश में बालिका शिक्षा का प्रशासन भी दोषपूर्ण है। कुछ राज्यों को छोड़कर स्त्री-शिक्षा के प्रशासन का भार पुरुष अधिकारी वर्ग पर है, परन्तु पुरुष अधिकारी वर्ग बालिका – शिक्षा की विभिन्न समस्याओं तथा आवश्यकताओं को न तो भली प्रकार समझ पाता है और उनमें ठीक से रूचि लेता है।
  5. अपव्यय एवं अवरोधन की समस्या – बालिका – शिक्षा सबसे अधिक अपव्यय और अवरोधन की समस्या से ग्रस्त है । अपव्यय और अवरोधन बालकों की अपेक्षा बालिकाओं में अधिक है। कार्य अधिकता, निर्धनता, पर्दा-प्रथा, बाल विवाह आदि के कारण अनेक कन्याओं को बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। अनेक अभिभावक अपनी बालिकाओं को अधिक-से-अधिक प्राथमिक या मिडिल स्तर तक ही शिक्षा देने के पक्ष में हैं |
  6. बालिका विद्यालयों के अभाव की समस्या – हमारे देश में बालिका विद्यालयों का पर्याप्त अभाव है। देश में दो-तिहाई ग्राम ऐसे हैं जहाँ प्राथमिक शिक्षा के लिए किसी भी प्रकार के भवन नहीं है। शेष ग्रामों में अधिकांश विद्यालय केवल छात्रों के लिए हैं । मजबूर होकर इन विद्यालयों में ही बालिकाओं को भी अध्ययन के लिए जाना पड़ता है। बालिका विद्यालयों का सबसे अधिक अभाव माध्यमिक और उच्च स्तर पर है। नगरों में तो बालिकाओं के लिए कुछ स्कूल और कॉलेज होते भी हैं परन्तु गाँवों में तो इनका पूर्णतया अभाव है । अभी बालिकाओं के लिए व्यावसायिक कॉलेजों का पर्याप्त अभाव है । अतः जब अधिकांश माता-पिता सह-शिक्षा के विरोधी हैं, तो अनेक बालिकाएँ शिक्षा के लाभ से वंचित रह जाती है।
  7. अध्यापिकाओं के अभाव की समस्या – बालिका शिक्षा के समस्त स्तरों पर अध्यापिकों की संख्या केवल 11% थी । अध्यापिकाओं का अभाव नगरों की अपेक्षा ग्रामों में कहीं अधिक है । इस अभाव के अनेक कारण (जैसे- स्त्रियों में शिक्षा प्रसार की कमी) स्त्रियों द्वारा नौकरी करना अपमानजनक मानना, आवास-निवास की सुविधाओं का अभाव । जो स्त्रियाँ शिक्षित होती हैं वे पिता या पति की इच्छा के विरुद्ध नौकरी करने के लिए बाहर नहीं जा सकतीं ।
  8. दोषपूर्ण पाठ्यक्रम की समस्या – बालिका शिक्षा पाठ्यक्रम अनेक दोषों से युक्त है। शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर बालक तथा बालिकाओं के पाठ्यक्रम में किसी प्रकार का अन्तर नहीं है । केवल चित्र कला संगीत – कला तथा गृह विज्ञान के अध्यापन की आवश्यक सुविधाएँ प्रदान की गयी हैं, परन्तु इन विषयों के अध्ययन से बालिकाओं को विशेष लाभ नहीं  है । उच्च स्तर पर तो इन विषयों का अध्ययन भी समाप्त हो जाता है । वास्तव में बालिकाओं को जो विषय पढ़ाये जाते हैं, उनका गृहस्थ जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं होता । स्वतन्त्रता और समानता का यह तात्पर्य नहीं है कि स्त्रियाँ अपनी गृहस्थी के उत्तरदायित्व को छोड़कर अभियन्ता बनें, व्यापारी बनें तथा पुरुषों के प्रत्येक क्षेत्र में हस्तक्षेप करें ।
  9. सरकार के उदासीन दृष्टिकोण की समस्या- – सरकार बालिका – शिक्षा के प्रति इतनी जागरूक नहीं है जितनी कि बालकों की शिक्षा के प्रति । वर्त्तमान सरकार ने यह उपेक्षा का दृष्टिगत ब्रिटिश सरकार जैसा ही अपना रखा है और इस कारण ही बालिका शिक्षा के विकास पर बहुत कम धन व्यय किया जाता है। सरकार के इस उपेक्षापूर्ण दृष्टिकोण के कारण बालिका शिक्षा का वांछित विकास नहीं हो पा रहा है ।
  10. ग्रामीण क्षेत्रों में पिछड़ेपन की समस्या – नगरवासियों की अपेक्षा ग्रामवासियों का दृष्टिकोण अत्यन्त संकीर्ण और रूढ़िग्रस्त है । वे स्वयं निरक्षर होने के कारण शिक्षा के महत्त्व को नहीं समझते तथा बालिकाओं को शिक्षा प्रदान करना वे पूर्णतया व्यर्थ समझते हैं । इस कारण ही ग्रामीण क्षेत्रों में बालिका – शिक्षा का प्रसार सबसे कम है ।
बालिका शिक्षा की समस्याओं का समाधान (Solution of Problems of Girls Education ) – बालिका शिक्षा के विकास में यद्यपि अनेक बाधाएँ हैं, परन्तु यदि साहसपूर्ण ढंग से इन बाधाओं का सामना किया जाय, तो इन पर विजय प्राप्त की जा सकती है । यहाँ हम बालिका शिक्षा की समस्याओं के हल के लिए सुझाव प्रस्तुत कर रहे हैं-
  1. आर्थिक समस्या का हल — आर्थिक समस्या को हल करने के लिए केन्द्र सरकार का कर्त्तव्य है कि राज्य सरकारों को पर्याप्त अनुदान दे । राज्य सरकारों का कर्त्तव्य है कि वे इस अनुदान का उचित मात्रा में प्रयोग बालिका शिक्षा के विकास के लिए करें तथा बालिका विद्यालयों को इतनी आर्थिक सहायता दें कि वे अपने यहाँ अधिक से अधिक बालिकाओं को प्रवेश दे सकें ।
  2. रूढ़िवादिता का उन्मूलन – जब तक समाज में रूढ़िवादिता का उन्मूलन नहीं किया जायेगा तब तक स्त्री शिक्षा का विकास सम्भव नहीं है ।
  3. दृष्टिकोण में परिवर्त्तन – बालिका शिक्षा के विकास के लिए जन-साधारण के दृष्टिकोण से भी परिवर्तन करना होगा। इसके लिए आवश्यक है कि जन-साधारण को शिक्षा के वास्तविक अर्थ बताया जायें तथा उसके उद्देश्यों पर व्यापक प्रकाश डाला जाय । शिक्षा को केवल नौकरी प्राप्त करने का साधन मात्र न माना जाय । शिक्षा के महत्त्व और लाभों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए फिल्मों, प्रदर्शनियों तथा व्याख्यानों आदि का प्रयोग भी प्रचुर मात्रा में करना आवश्यक है । जब हमारे देश के पुरुष वर्ग का शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण बदल जायेगा और वह समझने लगेगा कि सुयोग्य नागरिकों का निर्माण सुयोग्य और शिक्षित माताओं द्वारा ही सम्भव है तो बालिका – शिक्षा के मार्ग में आने वाली समस्याओं का समाधान स्वतः ही हो जायेगा ।
  4. शिक्षा प्रशासन में सुधार – बालिका शिक्षा का सम्पूर्ण प्रशासन पुरुष वर्ग के हाथों में न होकर बालिका वर्ग के हाथ में होना चाहिए । सरकार का कर्त्तव्य है कि वह प्रत्येक राज्य में एक शिक्षा उपसंचालिका तथा उसकी अधीनता में विद्यालय निरीक्षिकों की नियुक्ति करे । निरीक्षिकाओं के द्वारा ही बालिका विद्यालयों का निरीक्षण किया जाय । बालिकाओं के लिए पाठ्यक्रम तथा शिक्षा नीति का निर्धारण भी स्त्री शिक्षाविदों द्वारा ही किया जाय । वास्तव में स्त्रियाँ ही समस्या तथा आवश्यकता को भली प्रकार से समझ सकती हैं ।
  5. अपव्यय एवं अवरोधन का उपचार – बालिका शिक्षा में अपव्यय एवं अवरोधन  को समाप्त करने के लिए अनेक बातों पर ध्यान देना आवश्यक है, यथा—
    1. विद्यालय के वातावरण को आकर्षक बनाना ।
    2. पाठ्यक्रम को यथासम्भव रोचक एवं उपयोगी बनाने का प्रयास ।
    3. रोचक और मनोवैज्ञानिक शिक्षण प्रणालियों का प्रयोग |
    4. परीक्षा-प्रणाली में सुधार ।
    5. अंशकालीन शिक्षा का प्रबन्धन |
    6. शिक्षण में खेल विधियों का उपयोग ।
    7. बालिका शिक्षा के प्रति अभिभावकों के दृष्टिकोण में परिवर्त्तन लाना ।
  6. बालिका विद्यालयों की स्थापना – बालिका विद्यालयों की स्थापना करके ही इस समस्या को हल किया जा सकता है। सरकार का कर्त्तव्य है कि यथासम्भव अधिक से अधिक बालिका विद्यालयों की स्थापना करे। माध्यमिक स्तर पर अधिक से अधिक विद्यालय खोलने की आवश्यकता है । जो बालिका विद्यालय अमान्य हैं, उन्हें सरकार द्वारा शीघ्र मान्यता प्रदान की जाय । आवश्यकता पड़ने पर बालिका विद्यालयों के निर्माण के लिए स्थानीय कर की स्थापना हेतु अधिक सहायता के लिए प्रोत्साहित किया जाय ।
  7. ग्रामीण अंचल की शालाओं अथवा सह-शिक्षण शालाओं में अध्यापिकाओं की नियुक्ति – अध्यापिकाओं के अभाव की पूर्ति के लिए निम्नलिखित बातों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाय-
    1. शिक्षित अध्यापिकाओं को सम्बन्धित अथवा निकटतम ग्राम के विद्यालय में नियुक्त करना ।
    2. अध्यापन के प्रति अधिक से अधिक स्त्रियाँ आकर्षित हों, इसके लिए अध्यापिकाओं के वेतन दरों में वृद्धि की जाय ।
    3. जिन अध्यापिकाओं के पति भी अध्यापक हैं उन्हें एक साथ रहने की सुविधाएँ प्रदान करना तथा उनका स्थानान्तरण भी एक स्थान पर करना ।
    4. अध्यापकों की शिक्षित पत्नियों को शिक्षण कार्य की सुविधाएँ प्रदान करना ।
    5. ग्रामीण क्षेत्रों में अध्यापिकाओं के लिए निःशुल्क आवास की व्यवस्था करना ।
    6. आयु तथा योग्यता सम्बन्धी छूट प्रदान करना ।
    7. अप्रशिक्षित स्त्रियों को भी आवश्यकता पड़ने पर नियुक्त करना ।
    8. शिक्षण में रूचि रखने वाली बालिकाओं को पर्याप्त आर्थिक सहायता प्रदान करना ।
    9. वर्त्तमान प्रशिक्षण संस्थानों का विस्तार करना तथा नवीन महिला-प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना करना ।
    10. अध्यापिकाओं के संरक्षण तथा उनके अस्तित्व की रक्षार्थ उन्हें सरकारी सहायता देना ।
  8. विभिन्न पाठ्यक्रमों की व्यवस्था – बालिकाओं के पाठ्यक्रमों में भी पर्याप्त परिवर्तन की आवश्यकता है । यह बात ध्यान में रखने की है कि बालकों और बालिकाओं की व्यक्तिगत क्षमताओं, अभिवृत्तियों और रूचियों में भिन्नता होती है । अत: पाठ्यक्रम का पाठ्यक्रम के सुधार · निर्धारण करते समय इस तथ्य की उपेक्षा नहीं की जाय । बालिकाओं के के विषय में हम निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत कर रहे हैं—
    1. प्राथमिक स्तर के बालक-बालिकाओं के पाठ्यक्रम में समानता रखी जा सकती है ।
    2. माध्यमिक स्तर पर भोजन – शास्त्र, गृह – विज्ञान, सिलाई, कढ़ाई, धुलाई की शिक्षा प्रदान की जाय ।
    3. उच्चतर स्तर पर गृह – प्रबन्ध, गृह – शिल्प आदि की शिक्षा का प्रबन्ध किया जाय तथा सामान्य विषयों के शिक्षण को भी चलने दिया जाय । बालिकाओं के लिए संगीत तथा चित्र-कला की शिक्षा की व्यवस्था विशेष रूप से की जाय ।
    4. बालिका शिक्षा के लिए विशेष शारीरिक शिक्षा का प्रबन्ध करना आवश्यक है। प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर शारीरिक शिक्षा की व्यवस्था करना भी आवश्यक है ।
  9. सरकार का उदार दृष्टिकोण – सरकार का कर्त्तव्य है कि वह बालिका शिक्षा के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाये । बालिका – शिक्षा के महत्त्व की उपेक्षा न करके उसे राष्ट्रीय हित की योजना माना जाय । साथ ही विभिन्न साधनों द्वारा स्त्री शिक्षा के प्रसार में योग प्रदान किया जाय ।
  10. ग्रामीण दृष्टिकोण में परिवर्त्तन – ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक पैमाने पर समान शिक्षा का प्रसार किया जाय तथा विभिन्न गोष्ठियों और आन्दोलनों के द्वारा ग्रामीण दृष्टिकोणों में परिवर्तन करने का प्रयास किया जाय। ग्रामवासियों को शिक्षा का महत्त्व समझाया जाय तथा शिक्षा के प्रति जो उनकी परम्परागत विचारधाराएँ हैं, उनका उन्मूलन किया जाय ।
बालिका – शिक्षा में ह्रास तथा अवरोधन की समस्या – स्वतंत्रता के पश्चात् बालिकाओं की स्थिति में महान परिवर्त्तन आया है, परन्तु इस क्रान्तिकारी परिवर्तन के बावजूद पुरुषों ने बालिकाओं के महत्त्व को स्वीकार नहीं किया है। अभी भी बालिका – शिक्षा को अधिक बढ़ावा नहीं दिया जाता है। बालिका शिक्षा धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है। प्राचीन विचारधारा मानने वाले व्यक्ति हिन्दु हों या मुसलमान, अभी पर्दा- प्रथा में विश्वास करते हैं । बाल-विवाह का भारत में अभी भी प्रचलन है। अधिक आयु की बालिकाएँ अभी भी विद्यालय नहीं जाती हैं।
अपव्यय तथा अवरोधन की समस्या शिक्षा जगत् की एक प्रमुख समस्या है । प्राथमिक शिक्षा में इस समस्या ने विकराल रूप धारण कर रखा है। बालिका शिक्षा में यह एक पर्याप्त गम्भीर समस्या है। कोठारी कमीशन ने कहा था कि वर्ष 1958-59 में प्रवेश लेने वालीं बालिकाएँ 1961-62 तक चौथी कक्षा में केवल 37.5% ही पहुँची थीं। जिन बालिकाओं ने कक्षा 5 में प्रवेश लिया था, उनमें सातवीं कक्षा में प्रवेश लेने वाली बालिकाएँ 66.2% थीं । इस प्रकार स्पष्ट है कि बालिकाओं की शिक्षा में ह्रास एक गम्भीर समस्या है ।
बालिका शिक्षा में ह्रास तथा अवरोधन के कारण (Causes of Wastage and Stagnation in Girls Education)– बालिका शिक्षा में हास तथा अवरोधन की समस्या के कारण निम्नलिखित हैं –
1. बाल विवाह का प्रचलन ।
2. पर्दा प्रथा का समाप्त न होना ।
3. पुराने विचारों को न छोड़ना ।
4. प्राचीन परम्पराओं में विश्वास ।
5. धार्मिक सिद्धान्तों में अटूट विश्वास ।
6. अन्ध विश्वासों की आस्था ।
7. बालिकाओं की शिक्षा के प्रति उदासीनता ।
8. बालिका विद्यालयों की दूरी ।
9. यातायात के साधनों का अभाव ।
10. बालिका विद्यालयों का अभाव ।
11. परीक्षा-प्रणाली का दोषपूर्ण होना ।
12. पाठ्यक्रम का बालिकाओं के लिए उपयोगी न होना ।
13. कीन्स शिक्षण-विधियाँ ।
14. परम्परागत-रूढ़ियाँ ।
15. पुरुषों का संकुचित दृष्टिकोण |
16. परिवार की निर्धनता ।
17. स्त्रियों से घरेलू कार्य लिया जाना ।
18. बालिकाओं के लिए पृथक् विद्यालयों का अभाव ।
19. महिला शिक्षिकाओं की कमी; तथा
20. सह-शिक्षा के प्रति उदासीनता ।
बालिका – शिक्षा प्रसार हेतु उपाय (Measures for the Extension of Girls Education)–बालिकाओं की शिक्षा के प्रसार तथा उन्नयन के लिए निम्नलिखित उपाय प्रयोग में लाये जा सकते हैं
1. बालिकाओं की शिक्षा के लिये प्रचार किया जाय ।
2. अभिभावकों से सम्पर्क किया जाय तथा उनको बालिका शिक्षा का महत्त्व समझाया जाय ।
3. बालिकाओं को सम्पूर्ण शिक्षा निःशुल्क दी जाय ।
4. परीक्षा प्रणाली में परिवर्त्तन किया जाय ।
5. बालिका विद्यालयों की संख्या में वृद्धि की जाय ।
6. सह – शिक्षा को अधिक लोकप्रिय बनाया जाय ।
7. प्राथमिक विद्यालयों को मिश्रित विद्यालयों में बदला जाय ।
8. महिलाओं को शिक्षित बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाय ।
9. अप्रशिक्षित शिक्षिकाओं को प्रशिक्षण दिया जाय ।
10. शिक्षिकाओं को, जो ग्रामों में शिक्षण कार्य करने जायें, ग्रामीण भत्ता दिया जाय ।
11. क्रमोत्तर कक्षाओं की योजना बनायी जाय । क्रमोत्तर कक्षाएँ प्राथमिक बालिका विद्यालयों से संलग्न की गयी हैं ।
12. हाई स्कूल स्तर तक निःशुल्क शिक्षा दिलाने का प्रबन्ध किया जाय ।
13. अध्यापिकाओं के आवास के लिए आवास गृह बनाये जायें ।
14. मिश्रित विद्यालयों में स्कूल माताओं की नियुक्त की जाय

हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..

  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *