भाषा के क्रमिक विकास पर दृष्टिपात करते हुए भाषा विकास के विभिन्न अंगों का उल्लेख कीजिए ।

प्रश्न – भाषा के क्रमिक विकास पर दृष्टिपात करते हुए भाषा विकास के विभिन्न अंगों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – भाषा–‘भाषा’ शब्द संस्कृत की ‘भाषा’ धातु, जिसका अर्थ व्यक्त वाक् है, से व्युत्पन्न हुआ है। सामान्य रूप में ‘भाषा’ का अर्थ बोलचाल की भाषा या बोली से ही है। महाकवि दण्डी के अनुसार
“इदमन्धन्तमः कृत्स्नं जायते भुवनत्रयम् ।
यदि शब्दाह्यं ज्योतिरासंसार न दीप्यते ॥”
अर्थात् यह सम्पूर्ण भुवन अन्धकारपूर्ण हो जाता है, यदि संसार में शब्द स्वरूप ज्योति (भाषा) का प्रकाश न होता। जब मनुष्य जब कभी अपने विचारों को अंग भंगिमा और मुख विवृति के द्वारा प्रकट करता है तो सामान्य रूप से यह भाषा होते हुए भी ‘व्यक्त वाक्’ नहीं है।
विकास अवस्थाएँ–बालक के शारीरिक विकास के साथ-साथ उसका असभ्य की वस्तुओं, वातावरण आदि से भी परिचय बढ़ जाता है। उसके मस्तिष्क में प्रत्येक वस्तु का चित्र बनता चला जाता है। एक ही वस्तु को या दृश्य को बार-बार देखता है तो पूर्व अनुभव तथा पूर्व ज्ञान के आधार पर बालक उनको पहचानने लग जाता है। बार-बार देखने से उसे मस्तिष्क में उसका बिम्ब या चित्र स्पष्ट या परिपुष्ट हो जाता है। इसी प्रकार जब बालक एक ध्वनि को बार-बार सुनता है तो वह उस ध्वनि से परिचत हो जाता है। उसके मस्तिष्क हैं में ध्वनि का बिम्ब बनने लगता है। जब बार-बार उस ध्वनि को सुनता है तो बाद में उसे पहचानने भी लगता है। इसी तरह उच्चारण करने भी लग जाता है।
सर्वप्रथम तो बालक अपने होठ तथा जीभ हिलाकर एक शब्द वाली अस्पष्ट ध्वनि करता है, वह बोलने का असफल प्रयास करता है। इन प्रयासों में उसका मस्तिष्क, फेफड़े, स्वर यन्त्र, मुँह, जीभ, होठ, हाथ सभी अंग-प्रत्यंग काम करते हैं। बालक जब ध्वनि को कुछ-कुछ बोलने में सफल हो जाता है तो वह उसका बार-बार उच्चारण करता है, यह उसका प्रयत्न है। इसको प्रयत्न अवस्था कहेंगे तथा बालक की भाषा विकासक्रम की प्रथम अवस्था कहलाती है। धीरे-धीरे बालक दूसरे व्यक्तियों को अनुसरण करके सार्थक शब्दों को उच्चारण करने लग जाता है। उसके द्वारा उच्चारित शब्दों में दो पदों के मूर्त संज्ञावाची शब्द होते हैं। चाहे बालक एक या दो पदों में बोलता है, परन्तु उसकी दृष्टि से वह एक पूरा वाक्य है अर्थात् प्रथम अवस्था के बाद सिर्फ छोटे एक- दो पदों में बालक बोलना सीखता है उसे ही पूरा वाक्य मानता है। यह भाषा विकासक्रम की दूसरी अवस्था है।
धीरे-धीरे बालक संज्ञा व क्रियापदों को मिलाकर दो या तीन पदों में बोलने लगता है जो भाषा विकासक्रम की तीसरी अवस्था कहलाती है।
अब बालक सब संज्ञा व क्रिया के साथ-साथ विशेषण, सर्वनाम, क्रिया विशेषण, अव्ययों का उच्चारण करने लगता है और उनका वाक्यों में प्रयोग भी करने लग जाता है तो यह भाषा विकासक्रम की चौथी अवस्था है।
इस प्रकार एक छोटा बालक भाषा को अपने भावी जीवन को बढ़ने के साथ-साथ भाषा बोलने, सीखने का क्रम भी सीखता जाता है तथा धीरे-धीरे वह शुद्ध व स्पष्ट भाषा बोलना सीख लेता है। इसमें उसे अभ्यास व अनुकरण पर अधिक जोर देना होता है। भाषा विकास के अंग
मनोवैज्ञानिकों तथा भाषाशास्त्रियों के अनुसार भाषा कोई एक दिन का प्रयास नहीं है बल्कि यह एक सतत् विकास की प्रक्रिया है। इस विकास की प्रक्रिया में भाषा विकास के पाँच महत्त्वपूर्ण अंग आते हैं, जिनका वर्णन निम्न प्रकार है
(1) शब्द भण्डार—जैसा हम अब तक जान चुके हैं कि भाषा विकास की चार प्रमुख अवस्थाएँ हैं जिनमें से गुजरते हुए बालक अपने शब्द भण्डार की वृद्धि करता है। स्मिथ के अनुसार 1 वर्ष का बालक तीन शब्द सीख जाता है, फिर तीव्र गति से उसका शब्द ज्ञान बढ़ता है तथा 5 वर्ष तक बालक वस्तुओं के नाम, घर, परिवार, पशु-पक्षी के नाम, उनके रंग आदि की जानकारी प्राप्त कर लेता है तथा 6 वर्ष की आयु तक उसकी शब्दावली 2,500 शब्दों की हो जाती है। अब वह संज्ञा, सर्वनाम, समय, महीना, दिन, तारीख आदि सभी से परिचित हो जाता है। इसी क्रम में 9 वर्ष की आयु तक वह 5,000 शब्द सीख लेता है अर्थात् प्रथम 6 वर्ष में जितने शब्द सीखता है उसके आधे तो वह अगले दो वर्ष में ही सीख लेता है।
( 2 ) वाक्य विन्यास – बालक जब छोटा होता है तो शुरूआत में तो एक दो वर्णों के छोटे-छोटे शब्द बोलता है, प्रारम्भ में वाक्य भी दो-तीन पदों के ही होते हैं। धीरे-धीरे उसके वाक्य में पदों की संख्या बढ़ती जाती है और कुछ बड़े वाक्यों को बोलने लगता है।
(3) अभिव्यक्ति–प्रारम्भ में बालक 3 वर्ष तक अस्पष्ट रूप से केवल मौखिक अभिव्यक्ति ही करता है तथा अटक-अटककर सिर्फ तुतलाती बोली ही बोलता है फिर धीरे-धीरे छ: वर्ष की आयु तक उसकी बोली के उच्चारण में स्पष्टता आती रहती है तथा वर्ष तक वह पूर्णतः स्पष्ट रूप से बोलने लग जाता है यदि कोई शारीरिक रुकावट न हो तो।
( 4 ) वाचन – जब बालक छोटा होता है तो केवल मौखिक अभिव्यक्ति ही करता है लेकिन जब 6 से 9 वर्ष की आयु प्राप्त करता है तो उस आयु में चित्रों से, अक्षरों के ज्ञान के आधार पर अक्षर पहचानकर बोलने का प्रयास करता है। कुछ बालकों में इसकी तीव्रता अधिक होती है अर्थात् वह चित्रों का वाचन कर लेता है, अक्षरों का स्पष्ट स्वर में वाचन कर लेता है।
(5) लिपि-शैशवावस्था में बालक की हाथ की मांसपेशियाँ बड़ी कोमल रहती हैं लेकिन उम्र बढ़ने के साथ 6 वर्ष की आयु तक उसकी हाथों की मांसपेशियाँ सुदृढ हो जाती है तथा वह लिखना भी प्रारम्भ कर देता है।
इस प्रकार इन पाँचों भाषा विकास अंगों के अध्ययन से भाषा का प्रवाह होता है एवं परिपक्वता की अवस्था को प्राप्त करता है।
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