भाषा के विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए।

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प्रश्न – भाषा के विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए। 
उत्तर-  भाषा के विभिन्न रूप
भाषा के दो रूप होते हैं— (1) उच्चरित भाषा (मौखिक), (2) लिखित भाषा।
1. उच्चरित भाषा – हम अपने बोलचाल में प्रतिदिन भाषा में उच्चरित रूप का व्यवहार करते हैं। यह भाषा का मौखिक तथा मौलिक रूप है। विद्यालयों में छात्रों की विचार-अभिव्यक्ति की क्षमता को विकसित करने के लिये इससे सबसे बड़ा लाभ मिलता है।
2. लिखित भाषा – लिखित भाषा का उपयोग सामान्यतः अपना सन्देश दूर के व्यक्ति को पहुँचाने हेतु किया जाता है। विज्ञान की प्रगति ने कुछ अंशों में यह क्षेत्र मौखिक भाषा को हस्तान्तरित कर दिया है। रेडियो और टेलीफोन इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं। भाषा की लिखित रूप में अभिव्यक्ति स्थायित्व ले लेती है और हम पीढ़ियों तक सत्साहित्य का रसास्वादन करते हैं और छात्र समष्टि के अनुभवों के सार को भाषा के इस लिखित रूप से प्राप्त करते हैं।
विद्यालयीन पाठ्यक्रम में भाषा स्वतन्त्र विषय के साथ ही साथ अन्य विषयों के अध्ययन एवं अध्यापन के माध्यम के रूप में स्थान पाती है। भाषा को पाठ्यक्रम में किस रूप से प्रस्तावित किया जाता है, इस सम्बन्ध में विचार व्यक्त करते समय भाषा के चार रूप सामने आते हैं
(1) मातृ-भाषा, (2) राष्ट्र-भाषा, (3) सांस्कृतिक भाषा, (4) राज भाषा एवं विदेशी भाषा ।
1. मातृ-भाषा–मातृ-भाषा विचार विनिमय का सरलतम साधन होती है; इसलिए प्रारम्भ में शिक्षा का माध्यम बच्चे की मातृ-भाषा को बनाया जाता है। शिक्षा का माध्यम होने के कारण यह मातृ भाषा अन्य भाषाओं एवं समस्त ज्ञान-विज्ञान के अध्ययन की नींव होती है। –
“मातृ-भाषा में शिक्षा प्रदान करने की माँग में न केवल देश भक्ति का ही भाव निहित है बल्कि मनोविज्ञान और अच्छी शिक्षा के सिद्धान्तों का भी यही तकाजा है कि शिक्षा का माध्यम मातृ-भाषा होना चाहिए। यही तकाजा शिक्षा के आर्थिक पक्ष का भी है।’ -डॉ. जाकिर हुसैन
2. राष्ट्र – भाषा– पाठ्यक्रम में सामान्यतः मुख्य भाषा के रूप में प्रान्तीय भाषा या मातृ-भाषा को ही स्थान मिलता है, परन्तु नागरिकता की भावना के प्रश्रय तथा राष्ट्रीय चेतना को बनाये रखने के लिये राष्ट्र भाषा का भी अपना विशेष महत्त्व होता है। यदि मातृ भाषा और राष्ट्र-भाषा एक ही हुई तो पाठ्यक्रम में प्राथमिक एवं महत्त्वपूर्ण स्थान उसे ही मिलता है, परन्तु दोनों अलग-अलग होने पर समस्याएँ सामने आ जाती हैं।
एक लोकतांत्रिक समाज व्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति का योग्यतापूर्वक सामाजिक कल्याण की प्रक्रिया में भाग लेना और सामाजिक जीवन को अपनी प्रतिभा एवं विवेकपूर्ण विचारों से प्रभावित करना अत्यन्त आवश्यक है। यह योग्यता भाषा के समुचित शिक्षण के द्वारा ही सम्भव होती है। भावी नागरिकों के व्यक्तित्व के सम्यक् विकास हेतु तथा राष्ट्रीय चेतना को जीवन में सतत् प्रवाहित करने के लिये राष्ट्र-भाषा का पाठ्यक्रम में महत्त्वपूर्ण स्थान होना आवश्यक है ।
3. सांस्कृतिक भाषा – सांस्कृतिक भाषा से प्रगति-पथ की जानकारी मिलती है“हम क्या थे, क्या हो गये और क्या होंगे ?” यह सांस्कृतिक भाषा से ही ज्ञात हो पाता ।
4. राज भाषा तथा विदेशी भाषा – राज भाषा तथा विदेशी भाषा का अपना विशेष महत्त्व होता है। भाषा वैज्ञानिकों के अनुसार, कोई भाषा अक्षम नहीं है। प्रयोग न करने पर ही भाषा अक्षम हो जाती है। अतः राज भाषा का पाठ्यक्रम में स्थान अपना अलग महत्त्व रखता है। प्रशासनिक एवं राजनैतिक सन्दर्भों में विदेशी भाषा का अपना महत्त्व होता है। अतः इनकी अपेक्षा भी नहीं होनी चाहिए।
पाठ्यक्रम में वर्तमान शिक्षा नीति के अनुसार इसलिए एक भाषा को स्थान नहीं मिला, अपितु त्रिभाषा फार्मूला को महत्त्व दिया जा रहा है ।
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