महिला शिक्षा के विकास में समाज की भूमिका की विवेचना करें ।
प्रश्न – महिला शिक्षा के विकास में समाज की भूमिका की विवेचना करें ।
उत्तर – Introduction : किसी भी समाज की आधारशिला महिला ही होती है । हमारे देश की लगभग आधी आबादी महिला ही है। किसी भी सभ्य और सुसंस्कृत राष्ट्र की कल्पना महिला के बगैर नहीं की जा सकती है ।
महिलाएँ समाज की नींव होती हैं। महिलाओं के आगे बढ़ने से समाज आगे बढ़ता है। स्वामी विवेकानन्द ने कहा है – “एक समाज का धार्मिक उन्नति, सुसंस्कृत विकास तभी संभव है जब वहाँ की महिलाएँ शिक्षित होंगी ।”
हमारे समाज में यह धारणा है कि एक पुरुष को अगर शिक्षित करते हैं तो सिर्फ एक पुरुष ही शिक्षित होगा लेकिन एक महिला को शिक्षित करते हैं तो पूरा परिवार शिक्षित होगा ।
महिला-शिक्षा के विकास में समाज की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। समाज के द्वारा महिला शिक्षा के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं ।
महिला शिक्षा के विकास में समाज की भूमिका – महिला शिक्षा के विकास में समाज निम्नलिखित रूपों में अपनी भूमिका निभाता है—
- रूढ़िवादी परम्पराओं को दूर करके- हमारे समाज में कुछ ऐसी रूढ़िवादी परम्पराएँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है जिनको दूर करना बहुत ही आवश्यक है जिनमें प्रमुख हैं—बाल-विवाह, पर्दा – प्रथा, दहेज प्रथा, भ्रूण हत्या इत्यादि ।
- लिंग संबंधी भेद-भाव दूर करके – समाज में आज भी लिंग संबंधी भेद-भाव व्याप्त है। लड़कों को लड़कियों की अपेक्षा ज्यादा लाड़ प्यार मिलता है। समाज द्वारा इस भेद-भाव को समाप्त किया जाना चाहिए ।
- कन्या भ्रूण हत्या को रोककर – आज के दौर में कन्या को अभिशाप समझा जाता है । उन्हें पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है । अतः समाज के द्वारा कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगाया जाना चाहिए ।
- कन्या विद्यालयों की स्थापना – समाज के द्वारा कन्या विद्यालयों की स्थापना की जानी चाहिए । सह शिक्षा की व्यवस्था होने के कारण माता-पिता अपने लड़कियों को स्कूल नहीं भेजना चाहते हैं ।
- विद्यालय में बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराके – कन्या विद्यालयों में बुनियादी सुविधाओं का होना भी बहुत आवश्यक है। जैसे-कॉमन रूप, शौचालय आदि की व्यवस्था ।
- महिला अध्यापकों की नियुक्ति– कन्या विद्यालयों में महिला अध्यापकों की नियुक्ति कराकर समाज महिला शिक्षा को बढ़ावा दे सकता है ।
- सामाजिक फैसलों में भागीदार बनाकर – महिला भी समाज का ही अंग होती है । अतः उसे सामाजिक फैसलों में भागीदार बनाना चाहिए ।
- अनौपचारिक शिक्षा की व्यवस्था – समाज को महिलाओं के लिए अनौपचारिक शिक्षा की भी व्यवस्था करनी चाहिए । वैसी महिलाएँ जो बीच में ही पढ़ाई छोड़ देती है उनके लिए अनौपचारिक शिक्षा करनी चाहिए।
- जन-जागरुकता पैदा करके – मीडिया, रेडियो आदि के द्वारा महिलाओं में जन-जागरूकता पैदा की जा सकती है जिससे कि वह जागरूक हो और शिक्षा प्राप्त कर सके । समाज के द्वारा समय-समय पर शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु सेमिनार, गोष्ठी, नाटकों इत्यादि का आयोजन करते रहना चाहिए ताकि उनमें जागरूकता पैदा हो सके और वह शिक्षित हो सके ।
- परिवार नियोजन में प्रचार-प्रसार – महिला के शिक्षा में आने वाली एक बड़ी समस्या जनसंख्या वृद्धि भी है। कम उम्र में ही उनकी शादी हो जाती है और बच्चे का भार उनके ऊपर आ जाता है| अतः समाज को परिवार नियोजन का प्रचार करना चाहिए ।
- सरकार के द्वारा नीतियों का निर्धारण – समाज भी तो सरकार की ही एक इकाई होती है | अतः समय-समय पर सरकार के द्वारा नीतियों को बनाकर तथा इसका क्रियान्वयन किया जा सकता है ।
- जनता की आर्थिक कठिनाइयों को दूर करके – समाज का यह दायित्व है कि महिला शिक्षा के मार्ग में जो कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है उसे दूर किया जाए । बालिकाओं के लिए साइकिल, पोशाक, मिड-डे-मिल आदि की व्यवस्था होनी चाहिए ।
- शैक्षणिक योजनाओं, कार्यक्रमों एवं नीतियों का विभिन्न स्तरों पर ईमानदारीपूर्ण एवं समुचित तरीके से क्रियान्वयन हो, इस बारे में समाज की सजगता होने पर महिला शिक्षा का विकास अवश्य होगा ।
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