महिला सशक्तीकरण में बाधाओं एवं स्थिति पर प्रकाश डालें।
प्रश्न – महिला सशक्तीकरण में बाधाओं एवं स्थिति पर प्रकाश डालें।
उत्तर – महिला सशक्तीकरण के मार्ग में अनेक बाधायें हैं, जिसके कारण महिलायें आज उस मुकाम को प्राप्त नहीं कर पायी हैं, जिनकी वे हकदार हैं। जितनी क्षमतायें और शक्तियाँ उनमें हैं, उसका समुचित उपयोग आज भी नहीं हो पाया है, जबकि भारतीय संविधान ने प्रत्येक नागरिक को, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष (अनुच्छेद 15) लिंगभेद तथा जाति से ऊपर उठकर समानेता का मौलिक अधिकार प्रदान किया है, वहीं अनुच्छेद (4) में राज्य के नीति-निदेशक तत्त्वों के द्वारा शिक्षा के सर्वव्यापीकरण का संकल्प लिया गया है । संविधान की धारा 45 के द्वारा शिक्षा को निःशुल्क तथा अनिवार्य बना दिया गया है। इन प्रावधानों का प्रभाव महिला शिक्षा, समानता और स्वतन्त्रता के साथ सशक्तीकरण पर भी पड़ा है । फिर भी हमारी पितृसत्तात्मक व्यवस्था में पुरुष ही केन्द्र में है और स्त्रियों की इच्छा तथा अनिच्छा को आज भी कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है, चाहे वह खान-पान हो, वेशभूषा हो, शादी हो या अपना मनपसन्द कोर्स और नौकरी चुनने की बात हो । इसी कारण समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया पिछड़े वर्ग के अन्तर्गत महिलाओं को भी सम्मिलित करते हैं। स्वामी विवेकानन्द महिला सशक्तीकरण के पक्षपाती थे । इस विषय में उनके विचार इस प्रकार हैं—“बालिकाओं का पालन-पोषण तथा शिक्षण बालकों के समान होना चाहिए ।’ स्त्रियों की क्षमता पहचानते हुए उन्होंने नारियों में आत्मविश्वास तथा निर्भीकता की भावना जाग्रत की। वे उनमें उन गुणों का आविर्भाव करना चाहते थे जिनसे स्त्रियाँ संघमित्रा, अहिल्याबाई तथा मीरा की परम्परा कायम रख सकें। उनके अनुसार, “एक शिक्षित माँ के गर्भ से ही महापुरुषों का जन्म सम्भव है । “
इतना सब होने के बाद भी महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में कुछ बाधायें हैं, जो निम्न प्रकार हैं –
- अशिक्षा एवं गरीबी – महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में आने वाली प्रमुख बाधा अशिक्षा और गरीबी है । गरीबी के कारण लोग अपनी बालिकाओं की शिक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं कर पाते हैं और अशिक्षित स्त्रियाँ अपने अधिकारों और दायित्वों से सुपरिचित नहीं होती हैं । अतः वे समाज के बने बनाये साँचे में रहकर ही अपना जीवन व्यतीत कर देती हैं । शिक्षा के द्वारा महिला सशक्तीकरण के लिए महिलाओं की आन्तरिक शक्तियों को बाहर निकाला जाता है, परन्तु इसके अभाव में उनका सशक्तीकरण नहीं हो पाता है ।
- जागरूकता की कमी – महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र की प्रमुख बाधा है लोगों में अभाव । जागरूकता की कमी के कारण महिलाओं को घर की चारदीवारी के भीतर रहने हेतु बाध्य किया जाता है, उनकी क्षमताओं की शिक्षा और सशक्तीकरण के महत्त्वों से अनभिज्ञ रहते हैं, जिससे महिला सशक्तीकरण नहीं हो पाता है ।
- दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली महिलाओं का सशक्तीकरण बिना शिक्षा के नहीं हो सकता है और हमारी शिक्षा प्रणाली में महिलाओं की रूचियों तथा आवश्यकतानुरूप पाठ्यक्रम का अभाव है । रोजगारोन्मुखी शिक्षा नहीं है और शिक्षा नितान्त सैद्धान्तिक होने से व्यावहारिक जीवन में अनुपयोगी सिद्ध होती है जिससे बालिका शिक्षा और उससे होने वाले सशक्तीकरण को गति मिलने की बजाय अपव्यय और अवरोधन की समस्या से बालिकाओं का निर्विद्यालयीकरण बढ़ रहा है ।
- सांस्कृतिक मान्यतायें एवं परम्परायें – महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में हमारी सांस्कृतिक मान्यतायें और परम्परायें अवरोध उत्पन्न करती हैं जहाँ पर स्त्री के ऊपर पुरुष का स्वामित्व स्वीकारा जाता है। स्त्रियाँ अपने किसी भी निर्णय को नहीं ले सकती हैं । कन्या के जन्म को अभिशाप माना जाता है, क्योंकि पुत्र ही स्वर्ग दिलायेगा, पिण्डकर्म करेगा और अन्तिम यात्रा में मुखाग्नि देगा तथा वंश- परम्परा को चलाने और समृद्ध करने का कार्य करेगा । अतः ऐसे में स्त्री का समाज में महत्त्व क्या होगा, क्योंकि सभी महत्त्वपूर्ण कार्यों का सम्पादन तो पुरुष के द्वारा किया जा रहा है। ऐसे में स्त्री को पुरुष के इशारों पर नाचने वाली कठपुतली मात्र समझा जाता है। महिलाओं को यदि सशक्त करना होगा तो सांस्कृतिक मान्यताओं तथा परम्पराओं में परिवर्तन लाना होगा ।
- संकीर्ण विचारधारा – हमारे समाज में बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोग भी जब बालक-बालिकाओं की समानता की बात आती है तो वे भी भेदभाव करते हैं । इसी संकीर्ण विचारधारा के कारण लिंगभेद किया जाता है, जिसके दुष्परिणाम कन्या भ्रूण हत्या, कन्या शिशु हत्या की घटनायें सभ्य और सुशिक्षित परिवारों में बढ़ रही हैं। संकीर्ण विचारधारा के कारण इस पुरुष-प्रधान समाज में बालिकाओं को अभिशाप समझा जाता है और उनकी शिक्षा-दीक्षा ही नहीं, अपितु पालन-पोषण में भी सौतेला व्यवहार किया जाता है । चूल्हे-चौके या अन्य कार्यों के लिए बालिकाओं की पढ़ाई छुड़वा दी जाती है, कम आयु में ही उनका विवाह कर शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व होने से पूर्व ही उन्हें बाँध दिया जाता है और दिनों-दिन यह जकड़न गहरी होती जाती है और महिलायें अपना स्वत्व कभी खोज ही नहीं पाती हैं । इस प्रकार संकीर्ण समाज में महिलाओं के सशक्तीकरण में बाधा आती है ।
- पितृसत्तात्मकता – भारतीय समाज प्राचीन काल से ही पितृसत्तात्मक समाज रहा है पितृसत्तात्मक समाज में पैतृक सम्पत्ति का और अधिकारों का हस्तान्तरण सदैव पुत्र की ओर होता है न कि पुत्री की ओर । इस प्रकार पिता और पति दोनों ही स्थलों पर स्त्रियों को किसी भी प्रकार के आर्थिक अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं । आर्थिक असुरक्षा से बचने के लिए स्त्रियाँ सदैव पुरुषों की अधीनता और श्रेष्ठता को स्वीकार करने के लिए बाध्य होती हैं और यह क्रम पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते रहने से महिलाओं की सशक्त छवि प्रस्तुत नहीं हो पाती है।
- सामाजिक कुप्रथायें— महिलाओं से सम्बन्धित अनेक कुप्रथायें हमारे समाज में प्राचीन काल से लेकर आज तक चली आ रही है, जो अग्र प्रकार हैं –
- देवदासी प्रथा
- जौहर प्रथा
- सती प्रथा
- बाल-विवाह
- पर्दा प्रथा
- दहेज प्रथा
- विधवा विवाह निषेध आदि ।
ये सामाजिक कुप्रथायें महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में प्रमुख रूप से बाधक हैं, क्योंकि इन कुप्रथाओं की ओट में महिलाओं को पुरुषों के समान समानता और स्वतन्त्रता से वंचित कर दिया जाता है ।
- प्रौढ़ शिक्षा का अभाव – वर्तमान में शिक्षा का प्रसार करने के लिए अनेक प्रयास किये जा रहे हैं । इसी प्रकार महिलाओं को सशक्त बनाने हेतु बालिका शिक्षा पर बल दिया जा रहा है, परन्तु शिक्षा के प्रसार का कार्य तो तभी सम्पन्न होगा जब हमारा समाज शिक्षित हो । अतः इस हेतु प्रौढ़ों की शिक्षा की समुचित व्यवस्था की आवश्यकता अत्यधिक है, परन्तु प्रौढ़ शिक्षा के कार्यक्रमों में व्यापकता और समुचित रणनीति के अभाव के कारण आज भी इसका प्रसार नहीं हो पाया है। अशिक्षित प्रौढ़ अपने समाज तथा घर की बेटियों की शिक्षा और समानता की आवश्यकता नहीं अनुभूत करते हैं, जिससे महिला सशक्तीकरण का मार्ग अवरुद्ध हो रहा है ।
- निर्देशन एवं परामर्श की व्यवस्था न होना — विद्यालयों में निर्देशन तथा परामर्श की आवश्यकता अनुभूत करते हुए स्वतन्त्र भारत में गठित विभिन्न आयोगों द्वारा सुझाव दिया गया, परन्तु इस विषय में आज भी प्रगति नहीं हुई है। समुचित निर्देशन तथा परामर्श के अभाव में अधिकांश बालिकायें अपनी शिक्षा सुचारु रूप से क्रियान्वित नहीं कर पाती हैं और परिणामस्वरूप वे सशक्त भी नहीं बन पाती हैं ।
- विद्यालय तथा शिक्षिकाओं का अभाव – बालिकाओं की शिक्षा के क्षेत्र में प्रमुख समस्या है विद्यालय का दूर होना, बालिकाओं हेतु पृथक, विद्यालयों का न होना और महिला शिक्षिकाओं का अभाव । अभी भी ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्रों में बालिकाओं को सह-शिक्षा प्रदान कराना उचित नहीं समझा जाता है और लोग जहाँ महिला शिक्षिकायें हैं वहाँ पर अपनी बालिकाओं को पढ़ाना सुरक्षित समझते हैं । इस प्रकार विद्यालय तथा शिक्षिकाओं की कमी के कारण बालिकायें शिक्षा ही नहीं, अपितु सशक्तीकरण की प्रक्रिया में भाग लेने से भी पिछड़ जाती हैं ।
- लिंगभेद – भारतीय प्रजातांत्रिक प्रणाली में लिंग, जाति, धर्म, जन्म, स्थान आदि किसी भी आधार पर भेदभावों का निषेध किया गया है, परन्तु लिंग-भेद के उदाहरण परिवार, विद्यालय, कार्यस्थल तथा सार्वजनिक स्थलों पर देखे जा सकते हैं । लिंग-भेद के कारण परिवार में पुत्री-जन्म पर शोक देखने को मिलता है तो पुत्र-जन्म पर लड्डू बाँटे जाते हैं। इतना ही नहीं, पुत्र तथा पुत्री के पालन-पोषण, वस्त्र तथा शिक्षा आदि में भी भेदभाव किया जाता है । कार्यस्थल पर भी महिलाओं को उपेक्षा तथा अभद्र व्यवहार का सामना करना पड़ता है इतना ही नहीं, महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा समान कार्य के लिए वेतन कम मिलता है । चकाचौंध से भरे हमारे फिल्म उद्योग में भी महिला तथा पुरुष नायिकाओं और नायकों के पारिश्रमिक में अन्तर है और महिलाओं के प्रति इस जगत के भेदभाव इतना अधिक है कि महिला मेकअप आर्टिस्ट को यह नगरी अनुमति प्रदान नहीं करती है, भले ही इस विषय में सर्वोच्च न्यायालय ने.ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए इसे मान्यता प्रदान कर दी है। इस प्रकार प्रत्येक स्तर और क्षेत्र में लिंग-भेद हैं, जिससे महिलाओं का सशक्तीकरण समुचित रूप से नहीं हो पा रहा है। उन्हें अपने अधिकारों के लिए आज भी संघर्ष करना पड़ रहा है ।
- संवैधानिक प्रावधानों के प्रति उपेक्षा – संविधान महिलाओं के अधिकारों और सशक्तीकरण हेतु कितना कृतसंकल्पित है, इस विषय में संविधान की प्रस्तावना देखने मात्र से ही ज्ञात हो जाता है, जिसमें स्वतन्त्रता, समानता और न्याय जैसे शब्द प्रयुक्त हुए हैं । संविधान में बिना किसी भेदभाव के स्त्री तथा पुरुष दोनों को ही समान अधिकार प्रदान किये गये हैं, बल्कि स्त्रियों को मुख्य धारा में लाने के लिए संविधान का झुकाव इस ओर है, परन्तु आज भी स्त्रियों के प्रति किये गये इन संवैधानिक प्रावधानों के प्रति उपेक्षा का भाव व्याप्त है । इस प्रकार महिला सशक्तीकरण का कार्य बाधित हो रहा है ।
- राजनीतिकरण – महिला सशक्तीकरण के लिए तमाम योजनाओं का क्रियान्वयन हो रहा है, परन्तु इन कार्यक्रमों की उपलब्धियों को लेकर जितना शोर होता है, वास्तविकता उसके विपरीत होती है । महिलाओं के सशक्तीकरण के मुद्दे को राजनीतिक पार्टियाँ भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। महिला सुरक्षा हो या महिला आरक्षण, इन सारे मुद्दों का राजनीतिकरण कर दिया गया है। जब किसी महिला के साथ अन्याय और अत्याचार होता है तब भी हमारे लोकतन्त्र के प्रहरी राजनेता उसमें धर्म और जाति का पुट जोड़कर विषय को कुछ-से-कुंछ बना देते हैं, जिससे महिलाओं के सशक्तीकरण का मुद्दा खोता जा रहा है।
इस प्रकार महिलाओं के सशक्तीकरण के प्रत्येक पग पर बाधायें और अवरोध हैं, परन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् प्रत्येक क्षेत्र में महिलायें सशक्त हुई हैं, उन्होंने अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज करायी है, फिर भी यदि इन अवरोधों को कम या समाप्त कर दिया जाये तो महिला सशक्तीकरण तीव्रता से सम्पन्न होगा ।
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