मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान से आप क्या समझते हैं ? इसके क्षेत्र, लक्षण एवं उपचार का वर्णन करें।
उत्तर- लैण्डिस तथा बोल्स (1950) के अनुसार, “मानसिक स्वास्थ्य – विज्ञान, मानसिक स्वास्थ्य के रोकथाम या आरोग्य अथवा दोनों के उपायों का क्रमबद्ध प्रयोग है। ”
जे० डी० पेज (1960) के अनुसार, “मानसिक स्वास्थ्य – विज्ञान एवं शिक्षा आन्दोलन है जिसका सम्बन्ध स्नायुविक तथा मानसिक विकृतियों के निरोग और निराकरण तथा स्वास्थ्यकर व्यक्तित्व विकास से है जिससे अधिकाधिक कार्यक्षमता और सुख की प्राप्ति हो । ”
डब्लयू० जे० कोवाइल (1963) और उनके साथियों ने मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान अर्थ अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसियेशन के विचारों के आधार पर व्यक्त करते हुए लिखा कि “मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान में वह सभी साधन आते हैं जिनकी सहायता से उपर्युक्त रोकथाम और प्रारम्भिक उपचार के द्वारा मानसिक रोग की घटनाओं को कम किया जाता है तथा लोगों के स्वास्थ्य को बढ़ाया जाता है । ”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि “मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान वह विज्ञान है जिसमें मानसिक और स्नायुविक विकृतियों की रोकथाम और निराकरण के वह सभी साधन आते हैं जिनमें स्वास्थ्य व्यक्तित्व विकास, अधिकाधिक : कार्यक्षमता और सुख की प्राप्ति होती है । ” इस परिभाषा से यह स्पष्ट है कि मानसिक और स्नायुविक विकृतियों की रोकथाम और निराकरण ही इस विज्ञान का मुख्य लक्ष्य है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रत्येक व्यक्ति, समूह, समाज और राष्ट्र को प्रयास करना चाहिए। इस लक्ष्य की प्राप्ति पर निश्चित रूप से व्यक्ति मानसिक रूप से निरोग ही नहीं होंगे, बल्कि उनकी कार्यक्षमता अधिक होगी, उनका समायोजन प्रभावपूर्ण होगा तथा वह सुख और शांति का जीवन व्यतीत कर रहे होंगे। अपने देश में मानसिक स्वास्थ्य की दिशा में न महत्त्वपूर्ण शोध कार्य ही हुए हैं और न अधिक सुविधाएँ ही उपलब्ध हैं। इसका मुख्य कारण यह दिखाई देता है कि अपने देश का जीवन दर्शन इस प्रकार का है कि अन्य विकासशील देशों की अपेक्षा यहाँ के लोगों के मानसिक और स्नायुविक विकृतियाँ अपेक्षाकृत कम उत्पन्न होती हैं। सुविधाओं के अभाव और महत्त्वपूर्ण शोध कार्यों के अभाव का दूसरा प्रमुख कारण देश का दुर्बल आर्थिक स्तर और राजनीतिक अस्थिरता है। इतना सब होते हुए भी आ आवश्यकता इस बात की है कि मानसिक स्वास्थ्य की दिशा में ध्यान ही न दिया जाय, बल्कि प्रभावी कदम उठाए जाएँ अन्यथा अपने समाज, अपने राष्ट्र और अपनी संस्कृति का विकास और उन्नति सम्भव न होगा। गरीबी और बेरोजगारी पिछले कुछ वर्षों से तो बढ़ती चली आ रही थी, परन्तु महँगाई और अराजकता में आशा के विपरीत वृद्धि ने अपने समाज और संस्कृति के मूल्यों को इतना प्रभावित किया है कि अब व्यक्ति उतना प्रसन्नचित और शान्तिपूर्ण नहीं रह गया है जितना कि कुछ वर्षों पहले था। इन सब कारणों से व्यक्ति जब अधिक व्यस्त रहने लगा है। उसकी व्यस्तता ने उसकी शान्ति छीनकर बदले में अनेक प्रकार के मानसिक और स्नायुविक रोग देने प्रारम्भ कर दिए हैं। अपने देश में मानसिक और स्नायुविक रोगों की चिकित्सा के लिए लगभग वे सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं जो पाश्चात्य देशों में हैं, परन्तु उपलब्ध सुविधाएँ बढ़ते हुए रोगों की संख्या की दृष्टि से बहुत कम हैं। मानसिक अस्पतालों की संख्या बहुत कम है। यद्यपि बड़े-बड़े अस्पताल और मेडिकल कॉलेजों में स्नायुविक रोगों के उपचार के लिए विभाग खोले गये हैं; परन्तु इन विभागों में मनोवैज्ञानिक उपचार के साधन अत्यन्त सीमित हैं। आज पाश्चात्य देशों में से प्रत्येक में हजारों मानसिक स्वास्थ्य क्लीनिक्स हैं और सुविधाएँ भी अधिक हैं।
- आत्म- मूल्यांकन (Self-evaluation)– मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति अपने गुणों और सीमाओं का सही-सही मूल्यांकन कर सकता है। उसमें विभिन्न अन्तर्निहित योग्यताएँ क्या-क्या और कितनी मात्रा में हैं इसका उसे सही-सही ज्ञान होता है। पारस्परिक अन्तःक्रियाओं में वह अपनी इन्हीं योग्यताओं के आधार पर सामान्य अन्तः क्रियाएँ करने. अथवा उपयुक्त समायोजन करने में सफल होता है।
- आत्म विश्वास (Self-confidence) मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में पर्याप्त मात्रा में आत्मविश्वास पाया जाता है। वह जीवन की विभिन्न संघर्षमय परिस्थितियों में धैर्य नहीं खोता है, वह आत्म-विश्वास और उत्साह के साथ संघर्षमय परिस्थितियों का सामना करता है और उन परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने के लिए आशावान होता है।
- समायोजनशीलता (Adjustibility)– मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में पर्याप्त मात्रा में समायोजनशीलता पाई जाती है। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों में, चाहे वह कितनी जटिल हों, उसका समायोजन प्रभावपूर्ण होता है। वह विभिन्न समायोजन परिस्थितियों में बड़े ही शान्तिपूर्ण ढंग से स्वयं और दूसरों को प्रसन्नचित्त रखने का प्रयास करता है।
- जीवन लक्ष्य का चुनाव ( Selection of Life Goal)—मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति के जीवन के लक्ष्य समाज के मूल्यों और आकांक्षाओं के अनुसार ही नहीं होते हैं, बल्कि उसके परिवार और संस्कृति की मान्यताओं और परिस्थितियों के अनुसार होते हैं। उसके जो भी लक्ष्य होते हैं, वह उन सभी लक्ष्यों को पूरा करने का प्रयास ही नहीं करता है, बल्कि अधिकांश लक्ष्यों को प्राप्त भी कर लेता है ।
- संवेगात्मक स्थिरता (Emotional Stability) — मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में पर्याप्त मात्रा में संवेगात्मक स्थिरता पाई जाती है। उसके विभिन्न संवेग इतने नियन्त्रित होते हैं कि वह संवेगों की अभिव्यक्ति परिस्थितियों के अनुसार आवश्यकतानुसार ही करता है। जहाँ जितनी संवेगात्मक अभिव्यक्ति की आवश्यकता होती है वहाँ वह उसी रूप में संवेगों की अभिव्यक्ति करता है। ऐसा नहीं होता है कि वह हर समय प्रेम प्रदर्शित करे या क्रोध या भय प्रदर्शित करे ।
- संवेगात्मक स्थिरता (Emotional Stability) — मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में पर्याप्त मात्रा में संवेगात्मक स्थिरता पाई जाती है। उसके विभिन्न संवेग इतने नियन्त्रित होते हैं कि वह संवेगों की अभिव्यक्ति परिस्थितियों के अनुसार आवश्यकतानुसार ही करता है। जहाँ जितनी संवेगात्मक अभिव्यक्ति की आवश्यकता होती है वहाँ वह उसी रूप में संवेगों की अभिव्यक्ति करता है। ऐसा नहीं होता है कि वह हर समय प्रेम प्रदर्शित करे या क्रोध या भय प्रदर्शित करे।
- लैंगिक परिपक्वता (Sexual Maturity) — मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति का एक यह भी लक्षण है कि उसमें पर्याप्त लैंगिक परिपक्वता पाई जाती है। वह अपनी लैंगिक इच्छाओं की सन्तुष्टि केवल समाज द्वारा मान्य तरीकों और स्त्रोतों से प्राप्त करता है । वह समाज में सुसंस्कृत व्यक्तियों की तरह जीवन व्यतीत करता है और आवश्यक समय और साधनों के होने पर ही अपनी कामवासनाओं की सन्तुष्टि प्राप्त करता है।
- मुख्य कार्यों में सन्तोष (Satisfaction in Chief Works) — मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति अपने विभिन्न लक्ष्यों से सम्बन्धित कार्यों को करने में रुचि ही नहीं लेता है, बल्कि पर्याप्त सन्तोष का अनुभव भी करता है। वह अपने कामों को करने में हमेशा प्रसन्नचित भाव से संलग्न रहता है।
- नियमित जीवन (Regular. Life)– मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति का जीवन पर्याप्त रूप से नियमित होता है। सुबह से शाम तक की दिनचर्या उसका पहनावा आदि सब नियमित तथा समाज और संस्कृति की परिस्थितियों के अनुसार होता है।
- अतिशयता का अभाव (Absence of Extremism) सामान्य रूप से मानसिक स्वस्थ व्यक्ति में प्रत्येक प्रकार की अतिशयता का अभाव पाया जाता है। वह न अधिक सम्मान पाना चाहता है, न अधिक प्रतिष्ठा । वह न अधिक कामुक होता है और न अधिक संवेगी। किसी भी चीज की अतिशयता अच्छी नहीं होती है, क्योंकि व्यवहार में एक चीज की अतिशयता व्यवहार के अन्य क्षेत्रों में असन्तुलन उत्पन्न कर देती है।
मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में उपर्युक्त विशेषताएँ पर्याप्त मात्रा में पायी जाती हैं। उपरोक्त विशेषताएँ जिस भी व्यक्ति में पर्याप्त मात्रा में हैं हम उसे मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति कह सकते हैं और यदि वे विशेषताएँ पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं तो हम उस व्यक्ति को मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं कह सकते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य समान लक्षण हैं—अत्यधिक संवेदनशीलता, रुचियों का अभाव, भूख और नींद में कमी, अधिक जिद्द और वड़चिड़ापन, दूसरों पर अधिक सन्देह और सामाजिक सम्पर्क से पलायन आदि कुछ ऐसे “लक्षण हैं जिनकी सहायता से सरलता से पहचाना जा सकता है कि एक व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ है अथवा नहीं।
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