मापन किसे कहते है? परिभाषा, प्रकार, मात्रक!

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मापन किसे कहते है? परिभाषा, प्रकार, मात्रक!

मापन किसे कहते है? ( Who is measuring )

मापन किसे कहते है :— मापन का अर्थ है किसी अज्ञात राशि से ज्ञात राशि की तुलना करना । किसी मापन के परिणाम को एक संख्या और उससे सम्बन्ध किसी मात्रक द्वारा व्यक्त किया जाता है । प्राचीन काल से मापन के लिए हाथ , फुट , गज , पग , अंगुल एवं मुट्ठी आदि का प्रयोग होता रहा है । लेकिन मापन के ये तरीके सही नहीं थे क्योंकि ये व्यक्ति से व्यक्ति तक भिन्न होते थे । आजकल मापन के लिए मानक इकाइयों का प्रयोग होता है जो विश्व भर में समान होते हैं ।

मापन की परिभाषा (Definition of Measurement)

1. एस० एस० स्टीवेन्स के अनुसार, “मापन किन्ही निश्चित स्वीकृत नियमों के अनुसार वस्तुओं को अंक प्रदान करने की प्रक्रिया है।”

2. हैल्मस्टेडटर के अनुसार, “मापन को एक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें किसी व्यक्ति या पदार्थ में निहित विशेषताओं का आंकिक वर्णन होता है।”

3. गिलफोर्ड के अनुसार- “मापन वस्तुओं या घटनाओं को तर्कपूर्ण ढंग से संख्या प्रदान करने की क्रिया है।”

साधारण शब्दों में, “मापन क्रिया विभिन्न निरीक्षणों, वस्तुओं अथवा घटनाओं को कुछ विशिष्ट नियमों के अनुसार सार्थक एवं संगत रूप से संकेत चिह्न अथवा आंकिक संकेत प्रदान करने की प्रक्रिया है।” अर्थात् हम मापन के अन्तर्गत विभिन्न निरीक्षणों, वस्तुओं एवं घटनाओं का मात्रात्मक रूप से वर्णन करते हैं। इसमें अंक प्रदान करने के लिए मापन के विभिन्न स्तरों के अनुकूल विशिष्ट नियमों एवं सिद्धान्तों को प्रतिपादित किया जाता है।

मापन के आवश्यक तत्व( Essential elements of measurement)

मूल्यतः मापन प्रक्रिया के तीन चरण है

  1. गुणों को पहचानना
  2. गुणों को अभिव्यक्त करने वाले सक्रिय विन्यास को निश्चित करना
  3. गुणों को अंशो या युगों की इकाइयों में मात्रांकित करना

 1. गुणों को पहचानना( Identifying and defining the traits)-

किसी भी व्यक्ति या वस्तु के मापन से पूर्व सर्वप्रथम उसके गुणों को पहचान लिया पहचान कर उनकी व्याख्या की जाती है क्योंकि मापन के अंतर्गत व्यक्ति या वस्तु के संपूर्ण व्यवहार का अध्ययन करके उसके केवल कुछ ही गुणों का मापन किया जाता है जैसे मेज या कमरे की लंबाई, शरीर का तापक्रम, बालक की बुद्धि एवं सृजनात्मकता किशोर की संवेगात्मक परिपक्वता रुचि आदि

2. गुणों को अभिव्यक्त करने वाले सक्रिय विन्यास को निश्चित करनाकरना(Determining set of operations by which traits may be expressed):

मापन के दूसरे चरण में उन सक्रिय विद्यालयों को निश्चित करना जिनके माध्यम से मापनकर्ता उन गुणों को अभिव्यक्त कर सके जैसे लंबाई मापन हेतु मीटर और टेप का प्रयोग करते हैं परंतु कुछ लंबाई एवं दूरी का मापन इतना सरल नहीं होता जैसे पृथ्वी की सूरज से दूरी या फिर भारत से अमेरिका की दूरी

3. गुणों को अंशो या योग की इकाइयों में मात्रांकिक करना( To quantify the traits in the units of parts or sum) :

मापन के तीसरे चरण में संक्रियाओं के निष्कर्षों को मात्रात्मक रूप में व्यक्त करते हैं मापन में हमारा संबंध अधिकांश रूप में इन प्रश्नों- कितने तथा कितना में रहता है

मापन के प्रकार (Types of Measurement)

मापन को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-

1. मानसिक मापन:- मानसिक मापन के अन्तर्गत विभिन्न मानसिक क्रियाओं; जैसे-बुद्धि, रुचि अभियोग्यता उपलब्धि आदि का मापन किया जाता है। इसकी प्रकृति सापेक्षिक होती है अर्थात् इसमें प्राप्तांकों का स्वयं में कोई अस्तित्व नहीं होता। उदाहरण के लिए, किसी शिक्षक के कार्य का मापन श्रेष्ठ, मध्यम या निम्न रूप में किया जाता है, किन्तु कितना श्रेष्ठ, मध्यम या निम्न यह नहीं कहा जा सकता। मानसिक मापन में अग्रलिखित विशेषताएँ होती हैं-

  1. मानसिक मापन में कोई वास्तविक शून्य बिन्दु नहीं होता।
  2. मानसिक मापन की इकाइयाँ एकसमान नहीं होती। इसकी इकाइयाँ सापेक्ष मूल्य की होती है; जैसे-13 और 14 मानसिक आयु के बालकों में उतना अन्तर नहीं होता जितना 7 और 8 मानसिक आयु के बालकों में होता है, यद्यपि निरपेक्ष अन्तर दोनों में एक ही वर्ष का है।
  3. मानसिक मापन में किसी गुण का आंशिक मापन ही सम्भव हो पाता है।
  4. मानसिक मापन आत्मनिष्ठ होता है और प्रायः मानकों के आधार पर तुलना की जाती है।

2. भौतिक मापन:- भौतिक मापन के अन्तर्गत विभिन्न भौतिक गुणों; जैसे-लम्बाई, दूरी, ऊंचाई आदि का मापन किया जाता है। इसकी प्रकृति निरपेक्ष होती है तथा इसके प्राप्तांक बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। भौतिक मापन की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. भौतिक मापन में एक वास्तविक शून्य बिन्दु होता है; जहाँ से कार्य प्रारम्भ करते हैं; जैसे-5 फीट का अर्थ है 0 से 5 ऊपर 5 फीट।
  2. भौतिक मापन की सभी इकाइयाँ समान अनुपात में होती है; जैसे- एक फुट के सभी इंच समान दूरी पर स्थित होते है।
  3. भौतिक मापन में किसी वस्तु या गुण का पूर्ण मापन सम्भव है, जैसे—सम्पूर्ण पृथ्वी के क्षेत्रफल की गणना कर सकते हैं, पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच कुल दूरी का मापन किया जा सकता है।
  4. भौतिक मापन स्थिर रहता है; जैसे-यदि किसी मेज की लम्बाई 4 फुट है, तो दो साल बीत जाने पर भी लम्बाई उतनी ही रहेगी।

मानसिक मापन तथा भौतिक मापन में अंतर (Difference between mental measurement and physical measurement)

  1. मानसिक मापन के अंतर्गत विभिन्न मानसिक क्रियाओं एवं शील गुणों का मापन होता है जबकि भौतिक मापन के अंतर्गत भौतिक गुणों का मापन होता है
  2. मानसिक मापन की प्रकृति सापेक्षिक प्रकार की होती है जबकि भौतिक मापन की प्रकृति निरपेक्ष प्रकार की होती है
  3. मानसिक मापन में अंको का स्वयं में कोई अस्तित्व नहीं होता है जबकि भौतिक मापन में अंक महत्वपूर्ण होते हैं
  4. मानसिक मापन में कोई यदाची शून्य नहीं होता है जबकि भौतिक मापन में शून्य बिंदु होता है
  5. मानसिक मापन भौतिक मापन की अपेक्षा अधिक परिवर्तनीय होते है जबकि भौतिक मापन स्थिर होता है
  6. मानसिक मापन में आत्मनिष्ठता पाई जाती है जबकि भौतिक मापन में वस्तुनिष्ठता पाई जाती है
  7. मानसिक मापन वस्तु के किसी आंशिक गुण के मापन से संबंधित होता है जबकि भौतिक मापन में संपूर्णता पाई जाती है

मापन एवं मूल्यांकन की आवश्यकता (Need for Measurement and Evaluation)

मापन व मूल्यांकन की सहायता से अभिभावक गण अपने बच्चों की प्रगति को जानते हैं। उनकी रुचि, योग्यता, क्षमता, व्यक्तिव, सामर्थ्य, कमियों आदि को पहचानकर उन्हें उचित मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। शिक्षा प्रशासक तथा नीति-निर्धारक भी मापन एवं मूल्यांकन के परिणामों का उपयोग शैक्षिक प्रशासन की व्यवस्था तथा नीति-निर्माण में करते है। समाज तथा राष्ट्र की उन्नति के लिए शिक्षा में सुधार का एक सतत् प्रयास होना आवश्यक है। संक्षेप में मापन एवं मूल्यांकन की आवश्यकता निम्नलिखित है-

  1. मापन तथा मूल्यांकन उचित शैक्षिक निर्णय लेने के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
  2. मापन तथा मूल्यांकन से शिक्षाशास्त्री, प्रशासक, अध्यापक, छात्र तथा अभिभावक शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति की सीमा को जान सकते हैं।
  3. मापन तथा मूल्यांकन शिक्षक को प्रभावशीलता को इंगित करता है।
  4. मापन तथा मूल्यांकन शिक्षा के उद्देश्यों को स्पष्ट करता है।
  5. मापन तथा मूल्यांकन छात्रों को अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करता है।
  6. मापन तथा मूल्यांकन के आधार पर पाठ्यक्रम शिक्षण विधियों सहायक सामग्री आदि में आवश्यक सुधार किया जा सकता है।
  7. मापन तथा मूल्यांकन कक्षा शिक्षण में सुधार लाता है। अध्यापक को अपनी कमी ज्ञात हो जाती है जिससे वह अपने शिक्षण को अधिक सुसंगठित कर लेता है।
  8. मापन एवं मूल्यांकन के आधार पर छात्रों को शैक्षिक तथा व्यावसायिक निर्देशन दिया जा सकता है।
  9. मापन तथा मूल्यांकन से छात्रों की रुचियों, अभिरुचियों, कुशलताओं, योग्यताओं, दृष्टिकोणों एवं व्यवहारों की जाँच का ज्ञान सम्भव है।
  10. मापन तथा मूल्यांकन से विभिन्न कार्यक्रमों की उपयोगिता का ज्ञान किया जा सकता है।

मापन के कार्य (Functions of Measurement )

मूलतः प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में भिन्न प्रकृति का होता है व्यक्ति विशेष की अपनी विशेष योग्यता होती है इस प्रकार के वैयक्तिक विभिन्नताओं का ज्ञान प्राप्त करने का एकमात्र साधन मापन ही है मापन के निम्न मुख्य कार्य है

 

  1. वर्गीकरण
  2. पूर्वकथन
  3. तुलना
  4. परामर्श एवं निर्देशन
  5. निदान
  6. अन्वेषण

1.वर्गीकरण (Classification):

पूरी दुनिया में कोई भी दो व्यक्ति एक समान नहीं है वह न केवल शरीर बल्कि मानसिक दृष्टिकोण से एक दूसरे से भिन्न होते हैं शोध से यह निष्कर्ष निकला है कि प्रत्येक व्यक्ति क्षमता रुचि एवं व्यक्तित्व के अन्य शीलगुणों की दृष्टि से भिन्न होते हैं मापन एक प्रमुख कार्य विभिन्न आधार पर वर्गीकरण करना है

2. पूर्व कथन (Prediction):

पूर्व कथन से हमारा तात्पर्य व्यक्ति की वर्तमान योग्यताओं के आधार पर भविष्य के बारे में घोषणा करना है मनोविज्ञान में पूर्व कथन करने की विशेष आवश्यकता पड़ती है बहुत से बुद्धि परीक्षणों के आधार पर हम लोग किसी भी व्यक्ति विशेष के संबंध में निर्णय लेते हैं

3. तुलना (Comparison):

तुलना मापन का एक अति महत्वपूर्ण कार्य है प्रत्येक परीक्षा का उद्देश्य होता है कि उसके परिणामों के आधार पर दो व्यक्तियों, दो कक्षाओं व दो अध्ययन प्रणालियों की तुलना की जा सके प्रमापीकृत परीक्षाओं के आधार पर जिनके मानक पहले से ही तय किए होते हैं भिन्न-भिन्न व्यक्तियों की तुलना आपस में आसानी से की जा सकती है

4.परामर्श एवं निर्देशन (Guidance and counselling):

मनोवैज्ञानिक एवं व्यावसायिक क्षेत्र में विद्यार्थी में मापन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के आधार पर शिक्षक ना केवल अपने विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करता है बल्कि उनको व्यवसायिक मार्गदर्शन भी प्रदान करता है

5. निदान (Diagnosis):

चिकित्सा में चिकित्सक निदान अनेक प्रकार के उपकरणों जैसे- थर्मामीटर, एक्स-रे आदि की सहायता से करता है लेकिन मनोविज्ञान के क्षेत्र में वह विभिन्न प्रकार के उपकरणों जैसे- बुद्धि लब्धि परीक्षण, रुचि परीक्षण इत्यादि के माध्यम से करता है

6. अन्वेषण (Research):

कोई भी मनोवैज्ञानिक अनुसंधान मापन का प्रयोग किए बिना अधूरा है मनोविज्ञान के क्षेत्र में भूत से शोध कार्य में मापन उपकरणों का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि जिस प्रकार भौतिक विज्ञान में शोध के लिए यंत्रों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मनोविज्ञान में मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की आवश्यकता होती है

मापन सम्बन्धी शब्दावली ( Measurement terminology )

राशि ( Amount )

जिसे संख्या के रूप में प्रकट किया जा सके , उसे राशि कहते हैं । जैसे — जनसंख्या , दूरी , लम्बाई इत्यादि ।

भौतिक राशियाँ ( Physical quantities )

जिन राशियों को पदों में व्यक्त किया जा सकता है उन्हें भौतिक राशियाँ कहते हैं । ये दो प्रकार की होती हैं :— ( i ). सदिश राशि ( Vector sum ) , ( ii ). अदिश राशि ( Scalar ) आदि ।

( i ). सदिश राशि ( Vector sum ) : इन भौतिक राशियों का केवल परिमाण होता है । जैसे — वेग , विस्थापन , त्वरण , बल इत्यादि ।

( ii ). अदिश राशि ( Scalar ) : इन भौतिक राशियों का केवल परिमाण होता है । जैसे — तापमान , समय , चाल . घनत्व , द्रव्यमान इत्यादि ।

इकाई मात्रक ( Unit )

किसी राशि के माप के लिए उसी राशि के जिस निश्चित परिमाण को मानक मान लिया जाता है , उसे इकाई कहते हैं । यह 2 प्रकार की होती है :— ( i ). मूल मात्रक ( Basic unit ) , ( ii ). व्युत्पन्न मात्रक ( Derived unit ) आदि ।

( i ). मूल मात्रक ( Basic unit ) : जो मानक अन्य मानकों से स्वतंत्र होते हैं , उन्हें मूल मात्रक कहते हैं । जैसे — लम्बाई , समय एवं द्रव्यमान के मानक ।

( ii ). व्युत्पन्न मात्रक ( Derived unit ) : किसी भौतिक राशि को दो या दो से अधिक मूल इकाइयों में व्यवत करना , व्युत्पन्न मात्रक कहलाता है । जैसे — बल , दाब , कार्य इत्यादि ।

इकाई पद्धतियाँ ( Unit methods )

ये पद्धतियाँ निम्नलिखित हैं :

( 1 ). सी.जी.एस. पद्धति / फ्रेंच मीट्रिक पद्धति ( CGS method ) :

इस पद्धति में लम्बाई , द्रव्यमान एवं समय को क्रमश : सेंटीमीटर , ग्राम और सेकेन्ड में मापा जाता है ।

( 2 ). एफ.पी.एस. / ब्रिटिश पद्धति ( FPS method ) :

इस पद्धति में लम्बाई , द्रव्यमान और समय के क्रमश : फुट , पाउण्ड और सेकेण्ड में मापा जाता है ।

( 3 ). एम.के.एस. पद्धति ( MKS method ) :

इस पद्धति में लम्बाई , द्रव्यमान और समय को क्रमश : मीटर , किलोग्राम और सेकेण्ड में मापा जाता है ।

( 4 ). अन्तर्राष्ट्रीय मात्रक पद्धति ( एस.आई.इकाई ) ( SI unit ) :

इस पद्धति को सन 1960 में स्वीकार किया गया था । यह M.K.S. पद्धति का संशोधित और परिवर्द्धित रूप है । आजकल इसी पद्धति का प्रयोग किया जाता है । इसमें निम्नलिखित 7 मूल मात्रक और 2 सम्पूरक मात्रक हैं :

SI के 7 मूल मात्रक निम्न हैं :

( 1 ). लम्बाई का मूल मात्रक ‘मीटर’ है ,

1 मीटर वह दूरी है, जिसे प्रकाश निर्वात में 1/299792458 सेकेण्ड में तय करता है Ι

( 2 ). द्रव्यमान का मूल मात्रक ‘किलोग्राम’ है ,

फ्रांस के सेवरिस नामक स्थान पर माप-तौल के अंतर्राष्ट्रीय माप तौल ब्यूरो में सुरक्षित रखे प्लेटिनम-इरीडियम मिश्रित धातु के बने हुए बेलन के द्रव्यमान को मानक किलोग्राम कहते हैं Ι इसे सांकेतिक भाषा में किलोग्राम Kg लिखा जाता हैं Ι

( 3 ). समय का मूल मात्रक ‘सेकेण्ड’ है ,

सीजियम-133 परमाणु की मूल अवस्था के दो निश्चित ऊर्जा स्तरों के बीच संक्रमण से उत्पन्न विकिरण के आवर्तकालों की अवधि को 1 सेकेण्ड कहते हैं Ι

( 4 ). विद्युत-धारा का मूल मात्रक ‘ऐम्पियर’ है ,

दो लम्बे और पतले तारों को निर्वात में 1 मीटर की दूरी पर एक-दूसरे के सामानांतर रखने पर और उनमें ऐसे परिमाण की सामान विद्युत् धारा प्रवाहित करने पर तारों के बीच प्रति मीटर लम्बाई में 2 x 10-7 न्यूटन का बल लगने लगे तो विद्युत् धारा के उस परिमाण को 1 ऐम्पियर कहा जाता है , इसका प्रतीक A है Ι

( 5 ). ताप का मूल मात्रक ‘केल्विन’ है ,

जल के त्रिक बिंदु (triple point) के उष्मागतिक ताप के 1/273.16 वें भाग को केल्विन कहते हैं , इसका प्रतीक K होता है Ι

( 6 ). ज्योति-तीव्रता का मूल मात्रक ‘कैण्डेला’ है ,

किसी निश्चित दिशा में किसी प्रकाश स्रोत की ज्योति-तीव्रता 1 कैण्डेला तब कही जाती है , जब यह स्रोत उस दिशा में 540 x 1012 हर्ट्ज़ का तथा 1/ 683 वाट/स्टेरेडियन तीव्रता का एकवर्णीय प्रकाश उत्सर्जित करता है Ι

Note :— यदि घन कोण के अन्दर प्रति सेकेण्ड 1 जूल प्रकाश प्रकाश उर्जा उत्सर्जित हो, तो उसे 1 वाट/स्टेरेडियन कहते हैं Ι

( 7 ). पदार्थ की मात्रा का मूल मात्रक ‘मोल’ है ,

एक मोल , पदार्थ की वह मात्रा है , जिसमें उसके अवयवी तत्वों की संख्या 6.023 x 1023 होती है Ι इस संख्या को ऐवोगाड्रो नियतांक कहते हैं Ι

SI के 2 सम्पूरक मात्रक निम्न हैं :

( 1 ). रेडियन 

किसी वृत्त की त्रिज्या के बराबर लम्बाई के चाप द्वारा उसके केंद्र पर बनाया गया कोण एक रेडियन होता है Ι इस मात्रक का प्रयोग समतल पर बने कोणों को मापने के लिए किया जाता है Ι

( 2 ). स्टेरेडियन

किसी गोले की सतह पर उसकी त्रिज्या के बराबर भुजा वाले वर्गाकार क्षेत्रफल द्वारा गोले के केंद्र पर बनाए गए घन कोण को 1 स्टेरेडियन कहते हैं Ι यह ठोस कोणों को मापने का मात्रक है Ι

 

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