मुख्याध्यापक के दायित्वों तथा कार्यों का वर्णन करें ।

प्रश्न – मुख्याध्यापक के दायित्वों तथा कार्यों का वर्णन करें ।
उत्तर – (i) विद्यालय के कार्यालय की देख-रेख – प्रधानाध्यापक देखे कि अभिलेख उचित ढंग से रखे जाते हैं तथा पूर्ण हैं | वह पत्र व्यवहार में शीघ्र कार्यवाही करे । उसे विद्यालय-कार्यालय को अध्यापकों की सेवा एजेंसी के रूप में उपयोगी करने हेतु सुविधा देनी चाहिए ।
(ii) समय-सारणी-एक सुनिश्चित विद्यालय समय-सारणी विद्यालय आरम्भ होने के प्रथम दिवस से ही कार्यान्वित हो जाए । जहाँ तक सम्भव हो, अध्यापकों के कार्यभार का सम्मान करना चाहिए । उसे अपने कार्यालय का समय और कार्य इस प्रकार नियोजित करना चाहिए कि अध्यापक उसे सुगमता से मिल सकें । उसे विद्यालय समय-सारणी अध्यापकों की सलाह से तैयार करनी चाहिए ।
(iii) विद्यालय बजट – विद्यालय – बजट सावधानी से नया वर्ष आरम्भ होने से काफी पहले . बना लेना चाहिए । अध्यापकों को विद्यालय – बजट बनाते समय सम्मिलित करना चाहिए | उसे देखना चाहिए कि नियमित और अनुमानित आवश्यकताओं के लिए बजट में धन है ।
(iv) विद्यालय – सामग्री – कागज, पैंसिल, पैन, स्याही, चाक, ब्लैक-बोर्ड, रंग और प्रयोगशाला-सामग्री केवल विश्वसनीय संस्थाओं से न्यूनतम मूल्य पर खरीदी जाए | उसे हमेशा खरीदी जाने वाली वस्तुओं के नमूने माँगने चाहिए। विद्यालय के उपयोग के लिए खरीदी जाने वाली वस्तुओं की कोटि अच्छी होनी चाहिए ।
(v) विद्यालय भवन आदि – उसे विद्यालय की कक्षाओं, प्रयोगशालाओं और क्रीड़ास्थल की स्वच्छता का नियमित रूप से निरीक्षण का प्रबंध करना चाहिए । वह यह भी देखे कि छात्रों के डेस्क और साज-सामान की अन्य वस्तुएँ उचित रूप में हैं । उसे देखना चाहिए कि छात्रों और अध्यापकों के लिए पीने के पानी का प्रबंध उचित मात्रा में और स्वच्छ परिस्थिति में रखा गया है तथा विद्यालय भवन उचित अवस्था में रखा जा रहा है। उसे देखना चाहिए कि विद्यालय का प्रांगण छायादार वृक्षों, झाड़ियों तथा फूलों के पौधों से सुन्दर एवं आकर्षक बनाया गया है ।
(vi) विद्यालय – पुस्तकालय – विद्यालय पुस्तकालय विद्यालय का एक व्यावहारिक अंग हो, पुस्तकें पर्याप्त मात्रा में हों, उनका नियमानुसार उपयोग हो तथा पुस्तकालय के उपयोग हेतु छात्रों को उचित निर्देश दिए जाएँ और उनका ठीक पालन हो ।
(vii) अध्यापन कार्य का निरीक्षण – प्रधानाचार्य का मुख्य कर्त्तव्य यह है कि वह देखे कि विद्यालय में अध्यापन कार्य अच्छे रूप से चल रहा है। घंटे ठीक समय पर बजते रहते हैं। छात्र तथा शिक्षक घंटा बजते ही अपना कार्य शुरू कर देते हैं। समय-समय पर प्रधानाचार्य को क्लासों में जाकर देखना चाहिए कि शिक्षक अध्यापन कार्य सुचारू रूप से कर रहे हैं। उनकी शिक्षण विधि समयानुकूल है। परंतु उसे कभी भी क्लास में अथवा बच्चों के सम्मुख शिक्षकों को कोई भी ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए जिससे उनके मान को धक्का पहुँचे । अध्यापकों को उनकी त्रुटियाँ कार्यालय में बुलाकर बता देनी चाहिए । बताते समय इस बात का ध्यान रखा जाए कि वाद-विवाद न हो ।
नियमित रूप से जैसे महीने में दो बार विद्यार्थियों की प्रत्येक विषय की कापियाँ मँगवाकर अध्यापकों द्वारा दिए हर लिखित कार्य का निरीक्षण भी प्रधानाचार्य को करना चाहिए । यदि इस कार्य में त्रुटियाँ देखें तो शिक्षकों को मित्रवत ढंग से अनुभव करा देना चाहिए कि कापियाँ जाँचने में त्रुटियाँ रह गई हैं और ये रहनी नहीं चाहिए थीं । ठीक कार्य की प्रशंसा भी करनी चाहिए । कभी-कभी आदर्श पाठों की योजना भी करनी चाहिए ।
आजकल ट्यूशन करने का रिवाज बहुत प्रचलित है। इससे शिक्षकों का मान भी घट गया है | ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जब ट्यूशन लगाकर बच्चे पास करवा लिए जाते हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि अध्यापकों का वेतन कम है परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि अनुचित उपायों से रुपया कमाया जाए । मुख्याध्यापक इस पर अंकुश लगाए ।
(viii) पाठ्य पुस्तकों का निरीक्षण – बहुत सी पुस्तकें तो शिक्षा विभाग द्वारा निर्धारित की जाती हैं परंतु कुछ ऐसी भी होती हैं जो प्रधानाचार्य तथा शिक्षक चुनते हैं । चुनते समय किसी भी प्रकार से प्रकाशकों के दबाव में नहीं आना चाहिए । पुस्तक उसके गुणों के आधार पर ही चुनी जानी चाहिए । पुस्तक का चुनाव करते समय बड़ी सावधानी की आवश्यकता है ।
(ix) रजिस्टरों का निरीक्षण – प्रत्येक विद्यालय में अनेक रजिस्टर होते हैं । इन रजिस्टरों के निरीक्षण करने का उत्तरदायित्व भी प्रधानाचार्य पर है, यद्यपि उनकी सहायता के लिए कार्यालय में क्लर्क होता है । यहाँ इतना लिखना जरूरी है कि प्रधानाचार्य कैशबुक अर्थात् रोकड़ – पुस्तक, कंटिंजेंसीज रजिस्टर, उपस्थिति के रजिस्टर, भिन्न-भिन्न फण्डों के रजिस्टर, परीक्षा – फल का रजिस्टर, बच्चों के प्रवेश अथवा नाम काटने के रजिस्टरों का बड़ी सावधानी से निरीक्षण करे ।
(x) परीक्षाओं का निरीक्षण – प्रधानाचार्य देखे कि प्रश्न-पत्र न अधिक कठिन हों और न ही अधिक सरल । प्रश्न पाठ्यक्रम से बाहर नहीं होना चाहिए । प्रत्येक प्रश्न-पत्र पर समय की अवधि, कुल अंक, कक्षा तथा आवश्यक टिप्पणियाँ होनी चाहिए । परीक्षा के समय बच्चों के बैठने का प्रबंध इस युक्ति से किया जाए कि बच्चों को अनुचित उपाय प्रयोग में लाने का अवसर ही न मिले। किसी श्रेष्ठ अध्यापक के जिम्मे परीक्षा का कार्य सौंप देना चाहिए । अध्यापकों से कहा जाए कि वे विशेष सावधानी से उत्तरों को जाँचें । कभी-कभी जाँचें हुए पर्चों का भी प्रधानाचार्य को निरीक्षण करना चाहिए ।
(xi) छात्रावास का निरीक्षण – प्रायः छात्रावास की देखभाल के लिए एक सुपरिंटेंडेंट को नियुक्त किया जाता है । यह सुपरिंटेंडेंट स्कूल का कोई अध्यापक ही होता है, जो अध्यापन कार्य के अतिरिक्त छात्रावास की देखभाल भी करता है । इसके लिए उसे कुछ वेतन तथा सुविधाएँ दी जाती हैं। छात्रावास के अधीक्षक की नियुक्ति से प्रधानाचार्य का उत्तरदायित्व समाप्त नहीं हो जाता । समय-समय पर छात्रावास में पहुँचकर देखना चाहिए कि विद्यार्थियों के कमरे की सफाई और भोजन की व्यवस्था ठीक ढंग से हो रही है। छात्रावास का वातावरण विशुद्ध तथा पवित्र है। पढ़ाई में कोई बाधाजनक तत्व तो नहीं ? छात्रों का जीवन सुखी तथा अनुशासनमय है। कभी-कभी भोजन की जाँच के लिए छात्रावास में भोजन करना भी अच्छा है ।
(xii) अध्यापन कार्य अर्थात् प्रधानाध्यापक शिक्षक के रूप में प्रधानाचार्य किस कक्षा को पढ़ाये तथा कितना समय पढ़ाने में लगाए, वाद-विवाद का विषय है । यद्यपि प्रधानाध्यापक के लिए स्कूल के कुछ विषयों में विशेषज्ञ होना आवश्यक है, परंतु उसके कार्य को केवल पढ़ाने के दृष्टिकोण द्वारा नापना बहुत भूल है। पढ़ाना उसके लिए इतना महत्वपूर्ण कार्य नहीं जितना शिक्षकों तथा छात्रों को मार्गदर्शन करना, निरीक्षण करना तथा अनुशासन में रखना। आजकल सहपाठीय कार्यक्रम इतने बढ़ गए हैं कि उनकी उचित देखभाल तथा प्रबंध का भार प्रधानाचार्य के कन्धों पर ही आ जाता है। प्रधानाचार्य को प्रतिदिन बच्चों के अभिभावकों से भी मिलने का समय चाहिए | बच्चों तथा शिक्षकों की कठिनाइयों को भी सुनना चाहिए | कार्यालय में आए हुए पत्रों का उत्तर भी देना होता है। स्कूल में सुधार के लिए कई संस्थाओं से पत्र व्यवहार करना होता है। शिक्षकों के किए हुए कार्यों का निरीक्षण भी करना होता है । इन सारी बातों का उचित प्रबंध करने के लिए काफी समय चाहिए । इसलिए हमें प्रधानाध्यापक के कार्य को कभी भी उसके अध्यापन कार्य द्वारा नहीं आँकना चाहिए ।
(xiii) शैक्षिक नेतृत्व – शिक्षा क्षेत्र में नवीन विचारों को सीखने के लिए उसे हमेशा तत्पर रहना चाहिए और उपयोगी सिद्धांतों को प्रयोग में लाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए । शैक्षिक विषयों पर प्रगतिशील दृष्टिकोण रखना चाहिए | नई पद्धतियों को भारतीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए प्रयोग में लाने का प्रयत्न करना चाहिए । अध्यापकों को शिक्षा की नवीन प्रणालियों एवं विधियों पर प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए । शिक्षा के क्षेत्र में नवीनतम उन्नति का ज्ञान होना चाहिए । शैक्षिक विचारों के प्रोत्साहन हेतु अध्यापक-सभा बुलानी चाहिए । उन सभाओं में वार्ता के लिए प्रजातान्त्रिक मार्ग अपनाना चाहिए । प्रधानाचार्य को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि शिक्षण और सीखने पर जो अनुसंधान हुए हैं उनका साहित्य अध्यापकों को प्राप्त कराया जाए । कक्षा के निरीक्षण द्वारा विद्यालय में प्रस्तुत समस्या की खोज भी की जानी चाहिए ।
(xiv) अध्यापकों से मानवीय सम्पर्क – अलग से विवरण दिया गया है ।
(xv) स्वास्थ्य सेवा एवं शारीरिक शिक्षा की देखभाल – प्रधानाध्यापक को देखना चाहिए कि छात्रों की नियमित डॉक्टरी परीक्षा के लिए साधन जुटाए जाएँ। डॉक्टरी परीक्षा के लिए अनुगमन कार्यक्रम (Follow up) की योजना बनानी चाहिए। उसे देखना चाहिए कि शारीरिक शिक्षा कार्यक्रम समस्त छात्रों को समान अवसर प्रदान किया जा रहा है । वह देखे कि क्रीड़ा, खेल और शारीरिक शिक्षा पर लगे अध्यापक की शक्तियों का उपयोग छात्रों के विकास के लिए ही हो रहा है, न कि विजय प्राप्त करने वाली टीमों के निर्माण में ।
(xvi) पाठ्यक्रम सहगामिनी क्रियाएँ – सभी छात्रों की विभिन्न योग्यताओं के विकास के लिए प्रधानाध्यापक को भिन्न-भिन्न पाठ्यक्रम सहगामिनी क्रियाओं का प्रबंध करना चाहिए | उसे पाठ्यक्रम सहगामिनी क्रियाओं का सम्पूर्ण कार्यक्रम अध्यापक एवं छात्रों के सहयोग से बनाना चाहिए । पाठ्यक्रम सहगामिनी क्रियाओं का उपयोग मुख्यतया विद्यालय या अपने पद के विज्ञापन करने हेतु नहीं करना चाहिए। उसे देखना चाहिए कि सभी छात्रों को पाठ्यक्रम सहगामिनी क्रियाओं में भाग लेने का अवसर प्रदान किया जा रहा है ।
(xvii) मूल्यांकन एवं मार्गदर्शन – प्रधानाध्यापक को देखना चाहिए कि छात्रों का मूल्यांकन कार्यक्रम नियमित रूप से हो रहा है। उसे अध्यापकों को अपने ही मूल्यांकन उपकरण बनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। उसे देखना चाहिए कि विद्यालय छात्रों को व्यावसायिक एवं निजी मार्गदर्शन प्रदान कर रहा
है ।
(xviii) अनुशासन – अलग से वितरण दिया गया ।
(xix) समुदाय के प्रति उत्तरदायित्व – अलग से विवरण दिया गया । ह
(xx ) विद्यालय प्रबंधक कमेटी तथा विभाग के प्रति उत्तरदायित्व – प्राइवेट स्कूलों में प्रबंधक कमेटियाँ होती हैं। उनके सहयोग तथा संरक्षण के बिना विद्यालय सुचारू रूप से चलाया नहीं जा सकता । अतः उनसे संबंध बनाए रखने का विशेष उत्तरदायित्व प्रधानाचार्य पर आ जाता है ।
(xxi) शैक्षिक प्रयोगात्मक कार्य – विद्यालय में आवश्यकतानुसार शैक्षिक प्रयोगात्मक अथवा क्रियात्मक अनुसंधान करने का उत्तरदायित्व भी प्रधानाचार्य का है ।
(xxii) कर्मचारियों का चुनाव प्राय: सहायता प्राप्त तथा बिना सहायता के विद्यालयों में कर्मचारियों के उचित चुनाव का उत्तरदायित्व प्रधानाचार्य को निभाना होता है ।
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