लगभग प्रत्येक वर्ष बिहार प्राकृतिक संकट से भीषण रूप से प्रभावित होता है, इसके बावजूद एजेंसियों द्वारा इस दिशा में अभी तक कोई भी नीति या परियोजना नहीं बनाई गई है। इस क्षति से राहत पाने के लिए क्या आपके पास कोई नीति या परियोजना है ?
बिहार राज्य, एक बहु-आपदा प्रवृण राज्य है, जो मुख्यतः ग्रामीण प्रकृति वाला राज्य है। बिहार की भू-जलवायु परिस्थितियां इसे कई खतरों के प्रति संवेदनशील बनाती हैं। बिहार में रहने वाले लाखों लोगों का जीवन और आजीविका समय-समय पर विभिन्न आपदाओं से प्रभावित होता है। राज्य में विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक और मानव प्रेरित आपदाएँ देखी जाती हैं, जैसे बाढ़, सूखा, भूकंप, अग्नि, चक्रवात (तेज गति की हवाएँ), सड़क दुर्घटनाएँ, भगदड़, महामारी, लू, शीत लहर और भूस्खलन आदि। 2008 की कोसी बाढ़ एवं 15 जनवरी 1934 का भयंकर भूकंप, बिहार और देश के इतिहास में सबसे बड़े आपदाओं में से एक हैं। प्राकृतिक आपदाओं के अलावा, मानव प्रेरित आपदाएँ भी बिहार के लोगों के समक्ष गंभीर चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं।
पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे चरम मौसम की स्थिति की बढ़ती आवृत्ति के साथ आपदाओं के केंद्र में रहे हैं, इस प्रकार उनसे निपटने के लिए एक पर्यावरण-संवेदनशील दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। आपदा के बाद के प्रयासों से लेकर पूर्व- आपदा प्रयासों में बदलाव के साथ; बेहतर संस्थागत व्यवस्था एवं जागरूकता एवं तैयारी में वृद्धि के साथ राज्य अधिक आपदा लचीलेपन की ओर बढ़ रहा है और आपदा जोखिम में कमी और प्रबंधन के क्षेत्र में एक मार्गदर्शक के रूप में उभर रहा है, बिहार अन्य राज्यों हेतु अनुसरण के लिए उदाहरण स्थापित कर रहा है।
बिहार जैसे बहु – आपदा प्रवण राज्य को विभिन्न हितधारकों की भागीदारी की आवश्यकता है, इन आपदाओं से निपटने के लिए एक बहु-अनुशासनात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसमें जोखिम की रोकथाम, जोखिम प्रभावों के शमन, आपदा की घटना, प्रतिक्रिया, पुनर्वास और पुनर्निर्माण का सामना करने की तैयारी के लिए आवश्यक उपायों की योजना आयोजन, समन्वय और कार्यान्वयन की सतत् और एकीकृत प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
कुछ प्रमुख आपदाएं और उनके प्रभाव हैं –
बाढ़ – बिहार की स्थलाकृतियों को कई बारहमासी और गैर-बारहमासी नदियों द्वारा चिह्नित किया गया है, जिनमें से नेपाल से उत्पन्न होने होने वाली नदियां उच्च तलछट का भार वहन करने के लिए जानी जाती हैं, ये तलछट बिहार के मैदानी इलाकों में जमा होते हैं। इस क्षेत्र की अधिकांश वर्षा मानसून के 3 महीनों में केंद्रित होती है, जिसके कारण नदियों का प्रवाह 50 गुना तक बढ़ जाता है और इसके परिणामस्वरूप बिहार में बाढ़ उत्पन्न हो जाती है। 94163 वर्ग किमी के कुल क्षेत्रफल में से 68800 वर्ग किमी. क्षेत्र जोकि बिहार में कुल भूमि क्षेत्र का अनुमानित 73% बाढ़ की चपेट में आता है। बिहार में आने वाली वार्षिक बाढ़ से नुकसान भारत में बाढ़ के कुल नुकसान का लगभग 30-40% है; भारत में बाढ़ से प्रभावित * होने वाली कुल आबादी का 22.1% बिहार राज्य के अंतर्गत होने की सूचना है। बिहार के 28 जिले सबसे अधिक बाढ़ प्रवण माने जाते हैं।
भूकंप : बिहार उच्च भूकंपीय क्षेत्र में स्थित है, जो कि बिहार-नेपाल सीमा के पास हिमालय विवर्तनिक प्लेट से जुड़ने वाली टेक्टॉनिक प्लेट की सीमा पर पड़ता है और इसमें गंगा तट की ओर चार दिशाओं में गतिशील छह उप-सतह वाली भ्रंश रेखाएं हैं। भूगर्भशास्त्रियों द्वारा राज्य के प्रमुख हिस्सों को भूकंपीय क्षेत्र IV और V के तहत वर्गीकृत किया गया है, यानी अति उच्च भेद्यता वाले भूकंप जिनमे अत्यधिक विध्वंस पैदा करने की क्षमता होती है। कुल मिलाकर, बिहार के कुल क्षेत्रफल का 15. 2% हिस्सा जोन V के अंतर्गत वर्गीकृत है और बिहार के कुल क्षेत्रफल का 63. 7 % भाग जोन IV में आता है। 38 जिलों में से 8 जिले भूकंपीय जोन V में आते हैं, जबकि 24 जिले भूकंपीय जोन IV और 6 जिले भूकंपीय जोन III में आते हैं। राज्य में भूकंप के जो पिछले प्रमुख अनुभव हैं; उनमे सबसे विध्वंसक 1934 ई. में आया भूकंप था जिसमें 10,000 से अधिक लोगों की जान चली गई थी, तत्पश्चात 1988 में विनाशकारी भूकंप आया था।
सूखा – यद्यपि बिहार की जलवायु विभिन्न फसलों के उत्पादन के लिए अनुकूल है, राज्य की कृषि मानसून के व्यवहार और वर्षा के वितरण पर निर्भर है। हालांकि राज्य में औसत वर्षा 1120 मिमी है, राज्य के विभिन्न हिस्सों के बीच काफी भिन्नताएं हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण राज्य का बड़ा हिस्सा अब सूखे की चपेट में है। पर्याप्त वर्षा की अनुपस्थिति में उत्तर बिहार सहित बिहार का अधिकांश भाग जो बाढ़ से ग्रस्त रहा है, यदा-कदा सूखे की स्थिति का सामना करता है। दक्षिण और दक्षिण पश्चिम बिहार अधिक संवेदनशील हैं और अक्सर गंभीर सूखे की स्थिति का सामना करता है।
अन्य खतरे – उपरोक्त खतरों के अलावा, राज्य शीत लहर व लू, चक्रवाती तूफान ( तेज गति की हवाएं) और अन्य मानव – प्रेरित खतरे जैसे महामारी, सड़क/नाव दुर्घटनाएं, भगदड़ आदि से भी ग्रस्त है। आग की घटनाएं मुख्य रूप से प्रकृति में स्थानीय हैं पर गाँवों पर उनका गहरा प्रभाव है। चूंकि अधिकांश कच्चे घरों में फूस या छप्पर की छत और लकड़ी के ढांचे होते हैं, गर्मी के महीनों में जब हवाएं अधिक होती हैं, तो पारंपरिक ईंधन से फैलने वाली आग पूरे गाँव को नुकसान पहुंचाती हैं।
आपदा प्रतिरोधी बिहार बनाने की दिशा में बीएसडीएमए (BSDMA) की पहल – हालांकि राज्य एक बहु – आपदा प्रवण राज्य है, यह अधि क से अधिक आपदा लचीलेपन की ओर भी बढ़ रहा है। बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (BSDMA), बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग के साथ मिलकर विभिन्न हितधारकों के जागरूकता सृजन और क्षमता निर्माण तथा प्रभावित आबादी के लिए विभिन्न पहल कर रहा है। बीएसडीएमए का जोर आपदा जोखिमों को कम करने और उनके प्रभावों को कम करने के लिए प्रणाली के संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक सुदृढ़ीकरण की ओर रहा है। सुरक्षा सप्ताह ( सड़क सुरक्षा, भूकंप सुरक्षा, अग्नि सुरक्षा और बाढ़ सुरक्षा), हितधारकों का प्रशिक्षण, सुरक्षित स्कूल कार्यक्रम, सुरक्षित निर्माण दिशानिर्देश, निः शुल्क भूकंप सुरक्षा क्लिनिक और केंद्र, आईईसी सामग्री का व्यापक प्रसार आदि प्राधिकरण के कुछ महत्वपूर्ण पहल हैं।
अन्य संभावित रास्ता –
- एक आव्यूह प्रारूप (matrix format) में सरकार के सभी स्तरों यथा पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों को अपनी भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को समझना चाहिए ।
- सरकार की सभी एजेंसियों और विभागों के बीच क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर एकीकरण होना चाहिए।
- आव्यूह प्रारूप ( matrix format) में पंचायत और शहरी स्थानीय निकाय स्तर तक सरकार के सभी स्तरों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को बढ़ाने की योजना होनी चाहिए।
- क्षेत्रीय दृष्टिकोण होना चाहिए, जो न केवल आपदा प्रबंधन के लिए बल्कि विकास योजना के लिए भी फायदेमंद होगा।
- योजना को इस तरह से डिजाइन किया जाना चाहिए कि इसे आपदा प्रबंधन के सभी चरणों में आरोह्य तरीक (scalable manner) से लागू किया जा सके।
- किसी आपदा के प्रति अनुक्रियाशील एजेंसियों के लिए एक परी । सूची के रूप में सेवा प्रदान करने के लिए एवं पुनः बहाली हेतु एक सामान्यीकृत ढांचा तथा वस्तुस्थिति का आकलन करने एवं बेहतर पुनर्निर्माण के लिए लचीलापन प्रदान करने हेतु बड़ी गतिविधियों यथा प्रारंभिक चेतावनी, सूचना प्रसार, चिकित्सा देखभाल, ईंधन, परिवहन, खोज और बचाव, निकासी, आदि की पहचान करने का एक तरीका होना चाहिए।
- आपदाओं से निपटने के लिए समुदायों को तैयार करने के उपाय होने चाहिए और सूचना, शिक्षा और संचार गतिविधियों की अधिक आवश्यकता पर जोर देना चाहिए।
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