लिंग के अर्थ पर प्रकाश डालें ।
प्रश्न – लिंग के अर्थ पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – लिंग जैविक क्रिया के साथ-साथ सामाजिक अवधारणा के साथ भी सम्बन्ध रखता है । लिंग दो प्रमुख रूप से है स्त्रीलिंग अर्थात् इससे स्त्री का बोध होता है और पुरुष लिंग इस लिंग से पुरुष होने अर्थात् पुरुष लिंगियों का बोध होता है । स्त्री तथा पुरुष दोनों के गुणों की उपस्थिति जिसमें पायी जाती है उसे किन्नर इत्यादि नामों से पुकारा जाता है । परन्तु भारतीय संविधान ने इनकी पृथक् पहचान और अधिकारों की सुनिश्चितता हेतु इन्हें ‘तृतीय लिंग’ के रूप में मान्यता प्रदान कर दी है। इस प्रकार जैविक क्रिया के आधार पर लिंग के तीन प्रकार हुए — 1. स्त्री लिंग, 2. पुरुष लिंग, 3. तृतीय लिंग ।
लिंग के सम्प्रत्यय को और विस्तार से समझने के लिये लिंग निर्धारण की जैविक प्रक्रिया को जानना आवश्यक हो जाता है जो निम्नवत् है –
इस प्रकार स्त्री- पुरुष दोनों के ही पास 23 जोड़े गुणसूत्रों के होते हैं । स्त्री के गुणसूत्र । XX प्रकार के तथा पुरुष के गुणसूत्र XY प्रकार के होते हैं । स्त्री और पुरुष के XX गुणसूत्रों के मिलान से बालिका के लिंग का और स्त्री के X तथा पुरुष के Y गुणसूत्र के मिलान द्वारा होने वाला लिंग बालक का होता है । इस प्रकार लिंग निर्धारण की प्रक्रिया का जैविक महत्त्व अत्यधिक है परन्तु यह प्रक्रिया स्त्री पुरुष की ऐच्छिक क्रिया न होकर अनैच्छिक क्रिया का परिणाम होती है। फिर भी हमारे समाज में लिंगीय भेद-भावों के बालक या बालिका जन्म लेती है तो स्त्री को दोषी ठहराया जाता है । वास्तविकता तो यह है कि स्त्री के पास XX गुणसूत्र ही होते हैं जबकि पुरुष के पास XY गुणसूत्र । अतः इस क्रिया में पुरुष के गुणसूत्रों का उत्तरदायित्व अधिक है ।
लिंग एक सामाजिक सम्प्रत्यय भी है क्योंकि हमारे समाज के नियमों और उत्तरदायित्वों के निर्वहन में लिंग की केन्द्रीय भूमिका होती है। पुरुषों को उनके लिंग के आधार पर ही प्रायः सभी समाजों में कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं। वहीं बालिकाओं को उनके लिंग के आधार पर सीमित स्वतंत्रता और अधिकार प्राप्त हैं ।
लिंग का निर्धारण करने में जैसा कि पूर्व में भी कहा जा चुका है कि जैविक प्रक्रिया का स्थान अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। इसी कारण लिंग विशेष की शारीरिक संरचना, रुचियों, अभिवृत्तियों तथा क्रिया-कलापों में भिन्नता पायी जाती है । लिंग विशेष के कुछ विशिष्ट गुण भी होते हैं जैसे पुरुषों में वीरता, पराक्रम और वहीं स्त्रियों में धैर्य, करुणा, सहनशीलता इत्यादि के गुण पाये जाते हैं ।
लिंग को जैवकारणों द्वारा तीन लिंगों में विभक्त किया गया है –
1. स्त्री लिंग, 2. पुल्लिंग, 3. नपुंसक लिंग।
यहाँ पर स्त्रीलिंग से स्त्रीबोध तथा पुल्लिंग से पुरुष बोध और नपुंसकलिंग के अन्तर्गत से इन दोनों के अतिरिक्त के लिंगों का बोध होता है ।
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