लिंग पाठ्य पुस्तक व पाठ्य-वस्तु पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें ।

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प्रश्न – लिंग पाठ्य पुस्तक व पाठ्य-वस्तु पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें । 
उत्तर – पाठ्य-वस्तु तथा पाठ्य पुस्तक में लिंग व लिंग भेद समाहित है। सामाजिक समस्या उपागम के द्वारा पुस्तक को विषय वस्तु में सामाजिक मुद्दों, समस्याओं को स्थान प्रदान कर उन समस्याओं के विवेकपूर्ण समाधान की ओर प्रवृत्त किया जाता है । पाठ्य-पुस्तक की विषय वस्तु का प्रभाव प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष दोनों ही प्रकार से अधिगमकर्त्ताओं पर पड़ता है और आगे उसी प्रकार के समाज का सृजन होता है। पाठ्य-पुस्तक की विषय-वस्तु में लिंगीय भेद-भावों, सामाजिक कुरीतियों, विशेषतः स्त्रियों से सम्बन्धित कुरीतियों, पर्दा-प्रथा, बाल विवाह, दहेज प्रथा आदि के विषय में अवगत कराके उसकी समाप्ति के लिए प्रेरित करना चाहिए | पाठ्य-पुस्तक में महिलाओं के कर्त्तव्यों, विभिन्न क्षेत्रों में उनके समाप्ति के लिए प्रेरित करना चाहिए । पाठ्य पुस्तक में महिलाओं के कर्त्तव्यों, विभिन्न क्षेत्रों में उनके महत्त्व तथा भागीदारी से सम्बन्धित विषय-वस्तु तथा आवश्यकतानुसार चित्रों का संकलन किया जाना चाहिये जिससे लैंगिक भेद-भावों में न्यूनता आए ।
पाठ्यक्रम संरचना में लैंगिक भेद-भावों को कम करने के लिए व्यक्गित विभिन्नता के सिद्धान्त का पालन किया जाता है । इसके अनुसार बालक तथा बालिकाओं के लिए पृथक-पृथक पाठ्यक्रम की रूपरेखा तैयार की जाती है । अन्तः सम्बन्धित तथा सह-सम्बन्धित पाठ्यक्रम प्रणाली के द्वारा सभी विषयों को परस्पर सम्बद्ध करके पढ़ाया जाता है, जिससे विद्यार्थियों की रुचियों तथा आवश्यकताओं की पूर्ति अनिवार्य तथा वैकल्पिक विषयों के रूप में की जाती है । पाठ्यक्रम के विषय को अन्ततः सम्बन्धित करके पढ़ाये जाने से बालिकाओं को उनकी रुचियों के साथ-साथ आवश्यकता की पूर्ति करने वाले विषयों का अध्ययन भी कराया जाता है।
कक्षा प्रक्रिया में लैंगिक समानता के लिए कक्ष व्यवस्थापन, प्रश्नों की प्रवाहशीलता तथा विभिन्न शिक्षण विधियों के अध्यापन पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए । कक्षा प्रक्रिया के अन्तर्गत लिंगीय समानता हेतु बालक तथा बालिकाओं को समान महत्त्व दिया जाता है। सभी से समान प्रश्न पूछे जाते हैं। स्वानुशासन की पद्धति का विकास किया जाता है। अभद्र व्यवहार, भाषा तथा आचरण को स्थान प्रदान नहीं किया जाता है। सभी शिक्षण विधियों को बिना भेद-भाव के अध्ययन कराया जाता है, जिससे लिंगीय मुद्दों के प्रति और भी अधिक संवेदनशील बनाया जाता है ।
इस प्रकार पाठ्यक्रम की प्रभाविकता हेतु लिंग की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है । समानता के अधिकार को, जो संविधान के द्वारा प्रदान किया गया है, वह तभी प्रभावी होगा जब पाठ्यक्रम में लैंगिक भेद-भावों के प्रति व्यापक दृष्टिकोण का विकास होगा और उसके अध्यापन के प्रति व्यापक दृष्टिकोण का विकास किया जाना चाहिए ।

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