वंशानुक्रम एवं वातावरण के सापेक्षिक महत्त्व की विवेचना करें।
उत्तर- बालक के शारीरिक और मानसिक विकास को वंशानुक्रम तथा वातावरण दोनों महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं किंतु यह काफी जटिल होता है। इन दोनों विकासों में वंशानुक्रम तथा वातावरण का कितना योगदान है, इसकी माप करना मुश्किल है। इसका मुख्य कारण इन दोनों कारकों का प्रभाव अलग-अलग कम परन्तु साथ-साथ अधिक पड़ता है। गैरेट (H. E. Garrett, 1960) का विचार है कि, “इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि वंशानुक्रम और वातावरण एक-दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव या कारक हैं तथा दोनों ही बालक की सफलता के लिए आवश्यक हैं। ”
वुडवर्थ (R.S. Woodworth, 1960) का कहना है कि, “व्यक्ति के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाली प्रत्येक बात वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाती है परंतु ये बातें इतने पेंचींदा ढंग से संयुक्त होती है कि बहुधा वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभावों में अंतर करना कठिन हो जाता है। ”
उपरोक्त विवेचना के आधार पर यह कहा जा सकता है कि व्यवहार या व्यक्ति, वातावरण एवं वंशानुक्रम दोनों का ही फल है परंतु दोनों कारकों या प्रभावों का जोड़ मात्र नहीं है क्योंकि दोनों कारकों का प्रभाव स्थिर न होकर गतिशील या परिवर्तनशील है। वुडवर्थ (R.S. Woodworth, 1956 ) का विचार है कि, “वंशानुक्रम तथा वातावरण का सम्बन्ध जोड़ के समान न होकर गुण के समान अधिक है, अतः व्यक्ति इन दोनों का गुणनफल है, योगफल नहीं।” (The individual does not equal heredity + environment but does equal heredity x environment.) यदि इस कथन को सत्य भी मान लिया जाय तो इसके आधार पर कहा जा सकता है कि वंशानुक्रम या वातावरण में से यदि कोई कारण शून्य होता है, तो व्यक्ति का अस्तित्त्व सम्भव नहीं है क्योंकि किसी चीज (या संख्या) में शून्य से गुणा किया जाएगा तो सम्पूर्ण राशि शून्य हो जाएगी।
पर्यावरण और वंशानुक्रम का व्यवहार पर सापेक्षिक प्रभाव इन कारकों से सम्बन्धित कारकों की अन्तः क्रिया पर निर्भर करता है। हार्बर तथा फ्रायड (R.N. harber & A. H. Fried, 1975) ने कहा है, “कुछ अध्ययन जो व्यक्तित्व विशेषताओं पर वंशानुक्रम के पड़ने वाले प्रभाव के सम्बन्ध में हैं, इनमें शारीरिक कारकों या दैहिक शीलगुणों (शारीरिक बनावट, हारमोन्स का संतुलन, ज्ञानेन्द्रियाँ किस प्रकार कार्य करती हैं) पर वंशानुक्रम का क्या प्रभाव पड़ता है, इसको महत्त्व दिया है। व्यक्तित्त्व की बनावट में वंशानुगत शारीरिक कारकों की परोक्ष भूमिका होती है। वातावरण सम्बन्धी कारक अर्जित योग्यताओं को न तो शक्तिशाली बना सकते हैं न ही दुर्बल । जीवन की बाद की अवस्थाओं में सामाजिक वातावरण व्यक्तिगत शीलगुणों को अवश्य बढ़ा सकता है और पुर्नबलित कर सकता है लेकिन ऐसा केवल उन्हीं व्यक्तित्त्व शीलगुणों के सम्बन्ध में हो सकता है जिनकी उत्पत्ति का आधार वंशानुक्रम है। ”
अतः बालक के व्यक्तित्त्व एवं व्यवहार को समझने में वातावरण एवं वंशानुक्रम की पारस्परिक अन्तःक्रियाओं (Interactions) तथा इन प्रभावों से सम्बन्धित कारकों की अन्तः क्रियाओं को समझना जरूरी है। संक्षिप्तः वंशानुक्रम एक निर्धारक कारक है तथा वातावरण एक सामान्य शक्ति या कारक है। ये दोनों की कारक एक-दूसरे के पूरक हैं। इन दोनों में से किसी एक कारक के अभाव में व्यक्तित्त्व विकास सम्भव नहीं है। व्यक्तित्त्व विकास में वातावरण की अपेक्षा वंशानुक्रम का योगदान अपेक्षाकृत अधिक है।
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