वाक्य की परिभाषा देते हुए उसका प्रयोजन बताइये ।

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प्रश्न – वाक्य की परिभाषा देते हुए उसका प्रयोजन बताइये ।

उत्तर – बालकों की भाषा सीखने की प्रक्रिया को ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि शिशु प्रारम्भ में शब्द बोलना न सीखकर, वाक्य बोलना सीखता है। उसके विचारों का स्पष्टीकरण और आदान-प्रदान शब्दों में न होकर, वाक्यों और संकेतों में होता है । शब्दों या पदों का ज्ञान तो उसे बहुत बाद में होता है । इस दृष्टि से हम कह सकते हैं कि भाषा का प्रारम्भ शब्दों से न होकर, शब्द – वाक्यों से होता है। इसीलिए मनोविज्ञान के आचार्यों का कथन है कि ‘वाक्य’ ही भाषा का चरम अवयव है ।

मानव मात्र की भावनाओं, आकांक्षाओं और विचारधाराओं के प्रतीक ‘वाक्य’ ही हैं। इसी बात को सामने रखकर हम कह सकते हैं कि- “मुख से निकलने वाली सार्थक ध्वनियों का समूह, जिससे व्यक्ति की आकांक्षाओं, विचारधाराओं और भावनाओं का दिग्दर्शन होता है, ‘वाक्य’ कहलाता है । ”

वाक्य का ‘भाव’ और ‘अर्थ’ से सम्बन्ध

यदि कोई वक्ता अथवा लेखक अपनी बात श्रोता या पाठक के हृदय तक पहुँचाना चाहता है तो यह नितान्त आवश्यक है कि उसके वाक्य जहाँ अर्थपूर्ण हों वहाँ भावपूर्ण भी हों। यह तो स्पष्ट ही है कि निरर्थक वाक्यों को कोई भी व्यक्ति समझने में असमर्थ होगा। उसी प्रकार यदि कोई वाक्य भावशून्य होगा तो उसका प्रभाव भी श्रोता या पाठक पर न पड़ सकेगा। अर्थ की अपेक्षा भाव सूक्ष्म पदार्थ है । अर्थ की सहायता से ही व्यक्ति भावों की गहराई तक पहुँचने का प्रयास कर सकता है । इस विवेचन से स्पष्ट हो गया होगा कि वाक्य में ‘अर्थ’ और ‘भाव’ दोनों का सामंजस्य होना चाहिए ।

वाक्य का प्रयोजन

वाक्य का मुख्य प्रयोजन भी यही है कि व्यक्ति के भाव तथा अर्थ को भाषा में स्पष्ट किया जाय । वाक्यों के बिना भाषा पंगु है और भाषा के बिना व्यक्ति, पंगु है । ऐसी स्थिति में न तो वह अन्यों के विचार तथा भाव ग्रहण कर सकेगा और न अपने भावों और विचारों को अभिव्यक्ति कर सकेगा । वाक्य-भाषा का वह महत्त्वपूर्ण और अपरिहार्य अंग है, जिसके द्वारा हम अपने भावों और विचारों को अभिव्यक्त करते हैं ।

लेखक अपनी अनुभूतियों का प्रकाशन – वाक्यों के माध्यम से ही करता है। उसकी रचना में प्रभावोत्पादकता, सरलता, स्पष्टता, गम्भीरता तथा सुन्दरता – उसकी वाक्यपर ही आधारित होती है । इस दृष्टि से यह भी कहा जा सकता है कि लेखक वाक्यों के द्वारा ही अपनी शैली का निर्माण करता है ।

मनुष्य के मन में जिज्ञासा की प्रवृत्ति बड़े तीव्र रूप से पाई जाती है । वह संसार भर की सुन्दर, मनोरंजक तथा अनौखी वस्तुओं के सम्बन्ध में जानकारियाँ प्राप्त करना चाहता है। मानव-मन की यह जिज्ञासा भी वाक्यों के द्वारा तृत्त हो सकती है ।

सुन्दर-सुन्द वाक्य, चमत्कारपूर्ण वाक्य, भावपूर्ण वाक्य, कलात्मक वाक्य – इन सबसे भाषा निखर उठती है ।

वाक्य की व्याकरण सम्बन्धी विशेषताएँ

वाक्य की व्याकरण सम्बन्धी विशेषताएँ तीन हैं; यथा – (क) आकांक्षा, (ख) योग्यता और (ग) शब्द – क्रम । इन तीनों की संक्षिप्त व्याख्या नीचे दी जा रही है –

(क) आकांक्षा-एक पद पढ़ने या सुनने के बाद वक्ता या लेखक के विचारों और भावों की जानकारी प्राप्त करने के लिए श्रोता या पाठक के मन में दूसरा पद सुनने या पढ़ने की जो स्वाभाविक उत्कण्ठा उत्पन्न होती है, उसे ‘आकांक्षा’ कहते हैं; यथा-‘ -“कृष्ण मथुरा जाते हैं”—वाक्य में केवल “कृष्ण” के सुनने व पढ़ने से श्रोता या पाठक के मन में जिज्ञासा उत्पन्न होती है और वह तभी शान्त होती है जब वह “मथुरा जाते हैं”; पद सुन अथवा पढ़ लेता है। बिना इसके सुने या पढ़े पाठक की जिज्ञासा बराबर बनी रहती है । वाक्य श्रोता अथवा पाठक की इस जिज्ञासा की पूर्ति करता है ।

(ख) योग्यता – जिसके द्वारा वाक्य का अन्वय करने के उपरान्त उसके अर्थ-बोध में किसी प्रकार की बाधा उपस्थित न हो, उसे योग्यता कहते हैं । ‘तानाजी’ शिवाजी की आज्ञा पाकर, सिंहगढ़ की ओर जाते हैं । यह पूर्ण सार्थक बाक्य है । इसका प्रत्येक पद अपने अर्थ बोधन की “योग्यता” रखता है और कहीं पर भी अर्थ ग्रहण करने में कठिनाई उपस्थित नहीं होती ।

(ग) शब्द – क्रम – वाक्य का तीसरा प्रधान गुण है – ‘शब्द- क्रम’, ‘आकांक्षा’ और ‘योग्यता’ के रहने पर भी वाक्य में शब्दों का क्रम न रहने से, वह पूर्ण अर्थ का द्योतक नहीं हो सकता। शब्दों का प्रयोग क्रमानुसार होने पर ही उचित अर्थ को बोध किसी वाक्य से हो सकता है। वक्ता जो कुछ कहे अथवा लेखक जो कुछ लिखे, वह शब्द-क्रम का ध्यान रखकर कहे अथवा लिखे | उसके भावों और विचारों के साथ उसके शब्दों की श्रृंखला नहीं टूटनी चाहिए। यदि कोई कहे “ रहने वाले थे डॉ. हैडगोवर नागपुर के ” तो इस वाक्य में पदों का संगठन ठीक नहीं है । इसलिए वाक्य दोषपूर्ण है। परन्तु “डॉ. हैडगोवर नागपुर के रहने वाले थे”–कहने से शब्द – क्रम ठीक हो जाता है और अर्थ का भी स्पष्टीकरण हो जाता है ।

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