विकेंद्रीकरण केवल विभिन्न स्थानों पर उद्योगों का विस्तार नहीं है। स्वामित्व, जो बहुत कम लोगों के हाथों में सीमित है, उस स्वामित्व का बड़ी संख्या में लोगों के मध्य भी विकेंद्रीकरण आवश्यक है। क्यों और कैसे ?

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प्रश्न – विकेंद्रीकरण केवल विभिन्न स्थानों पर उद्योगों का विस्तार नहीं है। स्वामित्व, जो बहुत कम लोगों के हाथों में सीमित है, उस स्वामित्व का बड़ी संख्या में लोगों के मध्य भी विकेंद्रीकरण आवश्यक है। क्यों और कैसे ?
उत्तर – 

भारत में उद्योगों का विकेंद्रीकरण देश के विभिन्न क्षेत्रों में औद्योगिक पुनर्वितरण या कोर शहरी क्षेत्रों से उद्योगों के प्रसार को दर्शाता है। इस रणनीति का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण और शहरी अर्थव्यवस्था के बीच एक मजबूत संबंध की स्थापना के साथ एक समान क्षेत्रीय विकास है। बड़े और मध्यम से लेकर सूक्ष्म और लघु तक के उद्योगों के सभी पैमाने शहरी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में आबादी के साथ स्थित हैं। इस तरह के भीड़भाड़ वाले शहरी क्षेत्र ने औद्योगिक विस्तार के लिए अड़चन की स्थिति पैदा कर दी है। इस तरह के खतरे को दूर करने के लिए शहरी क्षेत्रों से उद्योगों का विकेन्द्रीकरण देश के अलग-अलग हिस्सों में किया जाना आवश्यक है जिससे कि उपनगरीय और ग्रामीण लोगों को भी रोजगार के अवसर प्रदान किए जा सकें।। 1990-91 के आर्थिक सुधारों की अवधि के बाद, देश के विभिन्न हिस्सों में कई सूक्ष्म, लघु और मध्यम स्तर के उद्यम उभरे हैं।

हालांकि, विकेन्द्रीकरण के उद्देश्यों को केवल भौगोलिक रूप से उद्योग के विस्तार से प्राप्त नहीं प्राप्त किया जा सकेगा, इसके बजाय तेजी से बढ़ती आर्थिक असमानता को देखते हुए, बहुत कम लोगों के हाथों से बड़ी संख्या में लोगों के बीच उद्योगों के स्वामित्व को विकेंद्रीकृत करने की भी तत्काल आवश्यकता है।

सरकार निम्नलिखित तरीकों से स्वामित्व के संदर्भ में उद्योगों के विकेंद्रीकरण के लिए नीति की परिकल्पना कर सकती है –

  • उद्योगों के प्रमुख संकेतक के रूप में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) का विस्तार : सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) का देश के विभिन्न हिस्सों में विस्तार विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया के वास्तविक उद्देश्यों को पुनर्जीवित कर सकता है। ये इकाइयां शहरी और ग्रामीण लोगों को समान रूप से रोजगार के अवसर प्रदान करती हैं। वास्तव में ये विनिर्माण इकाइयाँ जनक या मुख्य प्रतिष्ठानों की सहायक इकाई के रूप में कार्य करती लेकिन बड़े पैमाने के उद्योगों के बंद होने, निवेश की अनुपलब्धता और सस्ते आयात के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण वर्तमान में इनको बने रहने में बहुत मुश्किल हो रही है और वो जीवित नहीं रह पा रहे हैं। इसके अलावा, एमएसएमई का विस्तार उद्योगों के विकेंद्रीकरण के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इनमें से अधिकांश उद्योग मध्यम या निम्न वर्ग के व्यक्तियों या समूह के स्वामित्व में हैं। इनमें से कुछ समाज के कमजोर वर्गों जैसे महिलाओं, एससी, एसटी, आदिवासियों, आदि से संबंधित हैं। इस प्रकार, सुसंगत नीति साधनों के माध्यम से एमएसएमई को बढ़ावा देने से सरकार को अधिक विवेकपूर्ण तरीके से उद्योगों के विकेंद्रीकरण के उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, उद्योगों के विकेंद्रीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग कृषि अर्थव्यवस्था और शहरी औद्योगिक अर्थव्यवस्था के बीच कड़ी के रूप में कार्य करते हैं। कृषि क्षेत्रों का कच्चा माल इन औद्योगिक इकाइयों के माध्यम से निर्मित उत्पादों में बदल जाता है। इस प्रकार के उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करते हैं। इसी तरह, MSMEs की तरह, खाद्य उद्योग भी छोटे किसानों सहकारी समितियों, किसान उत्पादक कंपनियों (FPCs) और स्वयं सहायता समूहों (SHG) के स्वामित्व में है। अगर सरकार उद्योग का अधिक सार्थक विकेंद्रीकरण देखना चाहती है तो उसे खाद्य प्रसंस्करण उद्योग पर काफी ध्यान देना चाहिए, न केवल भौगोलिक विस्तार के मामले में बल्कि स्वामित्व और प्रभावों के सम्बन्ध में भी।
  • औद्योगिक क्षेत्र के निर्वाह के लिए विभिन्न औद्योगिक पार्कों की स्थापनाः उत्पादकता के उच्च रिकॉर्ड के साथ विनिर्माण इकाइयों के सुधार के बिना अर्थव्यवस्था में नए जोश का संचार असंभव है। औद्योगिक क्षेत्र का त्वरित पुनरुद्धार भी एक सकारात्मक बदलाव ला सकता है और ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकता है।
  • देश भर में उद्योगों के अधिक रचनात्मक विकेन्द्रीकरण प्रक्रिया को प्राप्त करने में सहायता समूहों ( सहज), वित्तीय नीति समिति (financial policy Committee-FPC) और सहकारी समितियों को मजबूत करना भी सरकार के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा। वर्तमान में, ये गैर-सरकारी निकाय अपनी वास्तविक क्षमता से बहुत नीचे के स्तर पर काम कर रहे हैं।

उद्योगों का विकेंद्रीकरण और क्षेत्रीय विकास दोनों परस्पर संबंधित घटनाएं हैं। उद्योगों की एक प्रभावी विकेन्द्रीकरण प्रक्रिया न केवल धन, आजीविका आदि के असमान वितरण से उत्पन्न समस्याओं का समाधान करती है, बल्कि यह बड़े मुद्दों जैसे समावेशी विकास, क्षेत्रीय संतुलित विकास, सतत विकास आदि को भी संबोधित करती है। समय की मांग है कि ऐसे विकेंद्रीकरण नीतियों को निर्मित करना होगा जो सभी संभावित कारणों को ध्यान में रखेगा और उद्योग के अधिक व्यापक प्रभावी, समावेशी विकेंद्रीकरण के लिए प्रयास करेगा, न केवल देश भर में वितरण के मामले में बल्कि स्वामित्व और प्रभावों के संदर्भ में भी।

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