विभिन्न स्तरों ( प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक हिन्दी शिक्षण के उद्देश्यों का वर्णन करें।
प्रश्न – विभिन्न स्तरों ( प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक हिन्दी शिक्षण के उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर – विभिन्न स्तरों प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर हिन्दी शिक्षण के उद्देश्य)
(1) प्राथमिक स्तर ( 6 से 10 वर्ष ) पर हिन्दी शिक्षण के उद्देश्य – प्राथमिक स्तर का अर्थ कक्षा 1 से 5 तक की कक्षाओं के बालकों की शिक्षा से है। प्राथमिक कक्षाओं में बालकों का सर्वप्रथम पाठ्य पुस्तकों से परिचय होता है बालक अपने घर के परिवेश से अलग होकर सामूहिक रूप से सीखता है। अतः बालकों में शिक्षा के प्रति अभिरुचि विकसित करने हेतु उन्हें बोधगम्य तथ्यपरक तत्त्वों को ग्रहणशील बनाकर प्रस्तुत करना अपेक्षित होगा। प्राथमिक स्तर पर 6 से 10 वर्ष के आयु वर्ग के बालक होते हैं। अतः शिक्षण उद्देश्य उनके अनुकूल निर्धारित होने चाहिए। प्राथमिक स्तर पर हिन्दी शिक्षण के उद्देश्य को बिन्दुवार निम्नवत् देखा जा सकता है—
(1) बालकों में वर्णमाला के अक्षरों की पहचान की क्षमता का विकास करना ।
(2) स्वर और व्यंजनों के उच्चारणों से अवगत कराते हुए शुद्ध उच्चारण क्षमता का विकास करना।
(3) चित्रों के माध्यम से वस्तुओं के पहचान की योग्यता का विकास करना।
(4) स्वर और व्यंजनों को अलग-अलग लिखना।
(5) संयुक्त व्यंजनों की विशेषता बताते हुए उसके उच्चारण और लेखन की क्षमता का विकास करना।
(6) विभिन्न मात्राओं का बोध कराना।
(7) विचारों तथा शब्दकोश के क्षेत्र में क्रमशः विस्तार करना ।
(8) विचारों में क्रमशः स्पष्टता एवं तर्क-सम्मता उत्पन्न करना ।
(9) वाचन में गति एवं शुद्धता का विकास |
(10) सस्वर वाचन एवं अभिव्यक्ति कौशल का विकास |
(11) समुचित गति के साथ शुद्ध, स्पष्ट एवं सुन्दर लेख का अभ्यास करना ।
(12) पठित विषयों तथा समान रुचि के विषयों पर दूसरों द्वारा प्रकट किए हुए भावों और विचारों का पहले मौखिक और फिर क्रमशः लिखित रूप में बेहिचक स्पष्ट प्रकटीकरण की क्षमता का विकास करना।
(13) आवश्यक भाषायी शिष्टाचार के पालन का अभ्यास करना ।
(14) प्रश्नों का उत्तर अपनी भाषा में देने की क्षमता का विकास।
(15) भाषा और लिपि के सम्यक् ज्ञान का विकास।
(16) छात्रों में पढ़ने की आदत डालना तथा लेख या पाठ के अर्थ ग्रहण की क्षमता का विकास |
(17) छोटी-छोटी कहानियों के वाचन एवं लेखन के द्वारा धीरे-धीरे हिन्दी साहित्य से परिचित कराना।
(18) बालकों के व्यक्तित्व एवं चरित्र निर्माण की दशा-दिशा निर्धारित करना ।
(19) मौन वाचन हेतु प्रेरित करना ताकि वे भावार्थ को स्वयं समझ सकें।
(20) निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु क्रमशः प्रेरित करना ।
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