विशिष्ट शिक्षा के विकास के अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य पर प्रकाश डालें।
उत्तर – पश्चिमी देशों में प्राग-ऐतिहासिक काल में विकलांग बच्चों को जन्म के समय अथवा शैशवावस्था में मार दिया जाता था । इंग्लैंड के राजा हेनरी द्वितीय ने 12वीं शताब्दी में सबसे पहले कानून बनाकर मंदबुद्धि एवं मानसिक रोग ग्रस्त बच्चों को विकलांग बच्चों की सूची से पृथक किया। 16वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में पोप ग्रेगरी प्रथम ने धर्मादेश जारी से. • कर अपने धर्मानुयायियों से विकलांगों की सहायता का निर्देश दिया । मध्यकाल में इसाई चर्चों ने विकलांगों की सेवा का दायित्व ग्रहण किया और उनके लिए अनाथालयों की व्यवस्था की । इस तरह विकलांगों के लिए विशेष शिक्षा एवं व्यवस्थित सेवाओं की अवधारणा का जन्म यूरोप में हुआ ।
सोलहवीं शताब्दी के प्रारंभ में पश्चिमी देशों में बधिरों के नियमित शिक्षण-प्रशिक्षण के जरिए विशिष्ट शिक्षा की शुरुआत हुई। 1555 में स्पेन के महात्मा पेड्रो पॉन्स डी लियोन ने पहली बार बताया कि श्रवण बाधित बच्चों को भी पढ़ाया जा सकता है और वे आसानी से सीख भी सकते हैं । पैब्लो बोनेट ने वर्ष 1620 में बधिरों की शिक्षा पर एक पुस्तक लिखी तथा उन्होंने एक हस्तीय मैनुअल अल्फाबेट का विकास किया । इंग्लैंड निवासी जाँन बुल्वर ने 1644 में बधिरों की शिक्षा के लिए दूसरी पुस्तक प्रकाशित की ।
थोम्स ब्रेडवुड (1767) के द्वारा श्रवण बाधित बालकों की शिक्षा के लिए प्रथम शिक्षण संस्था ब्रिटेन में स्थापित की गई। ब्रेडवुड की विधियों में अक्षर एवं चिह्नों को समझाने के लिए मौखिक तथा शारीरिक रूप से किए जाने वाले कार्य की विधियों का मिश्रण था। इसमें शारीरिक भाषा का अधिक प्रयोग किया गया ।
माइकल डेल (1712-1789) ने 1755 में सर्वप्रथम पेरिस में बधिरों के शिक्षा केन्द्र का शुभारंभ किया और इसके साथ-साथ एम्ब्रोइज सिआर्ड (1742-1882) सांकेतिक भाषा का विकास कर रहे थे । फ्रांस की व्यवस्था में भी इन्द्रीय ज्ञान अर्थात् किसी वस्तु को छूकर और देखकर जानकारी लेने का प्रशिक्षण का भी विकास हुआ जो मोन्टेसरी प्रशिक्षण आयाम में प्रचलित हो गई ।
गैलेन्डट (1787-1851) ने फ्रांस की विधि द्वारा श्रवण बाधित बालकों की शिक्षा का प्रारंभ किया। 1847 में गैलेन्डट ने बधिरों की शिक्षा के लिए सर्वप्रथम संस्था की स्थापना की । इसे आजकल अमेरिकन स्कूल के नाम से जाना जाता है। आगामी वर्ष में बधिरों के लिए न्यूयार्क में विद्यालय का प्रारंभ किया गया । 1863 तक अमेरिका में 22 स्कूल स्थापित हो चुके थे | मासाचुसेट्स में प्रथम मौखिक स्कूल की स्थापना 1867 में बधिरों के लिए हुई । बोस्टन में बधिरों के लिए शिक्षण कार्य (1864) में प्रारंभ हुआ। 1874 में न्यूयार्क शहर में युवकों के लिए शिक्षण कार्य प्रारंभ हुआ ।
इसके पश्चात् ग्राहमबेल (1847-1922) ने श्रवण बाधितों की शिक्षा के लिए अधिक कार्य किया । हेलन केलर (1880-1957) विशिष्ट शिक्षा के क्षेत्र में एक ज्वलन्त उदाहरण है जो स्वयं अन्धा तथा बधिर थी । उसने विशिष्ट शिक्षा द्वारा शारीरिक दोषों पर विजय प्राप्त की थी ।
बधिरों की शिक्षण सेवा के क्षेत्र में समुचित विकास नहीं हो पाया जिसका मुख्य कारण मौखिक और लिखित विधियों के अनुदेशन में सामंजस्य का न होना था, लेकिन आगामी कुछ वर्षों में इस प्रकार का सामंजस्य स्थापित हो गया था । 1880 में मिलन इटली में बधिरों की शिक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस की गोष्ठी हुई । इसने निम्नलिखित दो संस्तुतियाँ की
(i) लिखित विधि की अपेक्षा मौखिक विधि को प्राथमिकता दी जाये । (ii) होंठों का पढ़ना या सांकेतिक भाषा अथवा शारीरिक भाषा की अपेक्षा मौखिक विधि को प्राथमिकता दी जाए ।
20वीं शताब्दी के मध्य से अधिक वर्षों में यूरोप में मौखिक विधियों का शिक्षण क्षेत्र में आधिपत्य रहा तथा यह अपरिवर्तनीय रही । द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् मौखिक शिक्षण की प्रगति ने नई प्रेरणा और शक्ति दी । बधिरों के लिए शिक्षण क्षेत्र में बढ़ते हुए विश्वास तथा हस्तक्षेप ने अधिकांश बधिर बालकों को सामान्य शिक्षण संस्थाओं में शिक्षण हेतु नया आयाम दिया और उन्हें प्रेरित भी किया । शिक्षा की मुख्यधारा के आंदोलन ने अधिकाधिक शक्ति को अमेरिका तथा यूरोप की अपेक्षा ब्रिटेन ने संजोया ।
फ्रांसीसी चिकित्सक जिन मार्क इटार्ड (1774-1838) के प्रयास से 1800 ई. में मानसिक मंद बच्चों के लिए व्यवस्थित शिक्षा का शुभारंभ हुआ। उन्होंने एवेयार्न के जंगल से मिले विक्टर नामक एक 11 वर्षीय जंगली बालक को शिक्षित करने का प्रयास किया। हालाँकि उन्हें इस दिशा में आंशिक सफलता ही मिली। उन्होंने शिक्षण के वैयक्तिकरण, बालक के विद्यमान क्रियात्मक स्तर के अनुसार शिक्षा देने, व्यवहार प्रबंधन और शिक्षक एवं शिष्य के बीच संबंध सुधारने की वकालत की। इस तरह उन्होंने अनुदेशात्मक शिक्षा को • जन्म दिया। यह सब इटार्ड लिखित पुस्तक ‘The Wild Boy of Aveyron’ में अंकित हैं। एडवार्ड सेग्विन ने इस तकनीक को फ्रांस और अमेरिका में प्रचारित किया। 1866 में सेग्विन लिखित पुस्तक “Idiocy and its treatment by physiological Methods? 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध मानसिक मंद बच्चों की शिक्षा के लिए प्रमुख संदर्भ, पुस्तक बनीं – सेग्विन के कार्यों ने मारिया मांटेसरी (1870-1952) को काफी प्रभावित किया । इटार्ड और सेग्विन ने जहाँ अपने प्रयासों को गंभीर एवं पूर्ण रूप से विकलांग बालकों पर किया था वहीं मारिया मांटेसरी ने विशेष तौर पर शिक्षण योग्य बच्चों को अपने अध्ययन का केन्द्र बिन्दु बनाया। मांटेसरी ने इंद्रिय आधारित प्रशिक्षण के अतिरिक्त पठन, लेखन और गणितीय ‘कौशलों के प्रशिक्षण पर जोर दिया।
Hohann Guggenbu Ho (1816-1863) ने 1841 में स्वीट्जरलैंड के पर्वतीय क्षेत्र में मानसिक मंद बच्चों के समग्र उपचार के लिए एक आवासीय संस्था की स्थापना की। बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में डेक़ोली ने बेल्जियम में मानसिक मंद बालकों के लिए एक प्रभावी पाठ्यचर्या का निर्माण किया। कालांतर में उन्होंने मंदबुद्धि बच्चों के लिए पूरे यूरोप स्कूल तक खोल डाली। इसी दौर में एक और मील का पत्थर बना अल्फ्रेड बिने (1857 – 1911) निर्मित बुद्धि परीक्षण का विकास । इस परीक्षण को बुद्धि जाँचने का पहला उपकरण होने का सौभाग्य मिला । वर्ष 1839 में विश्व के पहले अंधे एवं मानसिक मंद बालक ने अमेरिका के पर्किन्स इंस्टीच्यूट फॉर ब्लाईड में दाखिल लिया। 1848 में मानसिक मंद बालकों के लिए पहला आवासीय विद्यालय मैसाच्यूस्ट्स में खुला। 1917 आते-आते अमेरिका के चार राज्यों के अतिरिक्त अन्य सभी राज्यों ने मंद बुद्धि वाले बच्चों को अनुदेशात्मक देखभाल की सुविधा मुहैया करवा दिया।
मंदबुद्धि बालकों को शिक्षण-अधिगम के लिए विशेष कक्षा युक्त सरकारी क्षेत्र का पहला विद्यालय 1859 में जर्मनी में खुला ।
20वीं शताब्दी से पहले अस्थि अपंगों तथा शारीरिक बाधित बालकों के लिए विशिष्ट उपचार सुविधा अल्प मात्रा में उपलब्ध थी। अल्प जीवन शक्ति युक्त बालकों की शिक्षा हेतु विशिष्ट कक्षाओं के माध्यम से 1908 में प्रोविडेन्स रोड्स टापू, मिर्गी रोग से पीड़ित बालकों की शिक्षा वाल्टमोर, मेरीलैन्ड (1899) में प्रथम विशिष्ट कक्षा शिकागों शहर में अमेरिका में स्थापित हुईं। मानसिक बीमारियों का वैज्ञानिक उपचार पर बालकों की मानसिकता से संबंधित सर्वप्रथम एक पुस्तक प्रकाशित हुई जिसका श्रेय एसक्वीरोल (1772-1840) को जाता है। भावनात्मक अशांत बालकों की शिक्षा का प्रारंभ न्यूयार्क में हुआ, जिसकी सर्वप्रथम कक्षा ‘न्यू हावेन पब्लिक स्कूल’ में लड़कों के लिए आरंभ की गई । 1930 के पश्चात् भावनात्मक अशांत बालकों की शिक्षा के क्रमबद्ध विधि का विकास किया गया । द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् श्रवण बाधित बालकों के शिक्षण क्षेत्र में विशेषत; बड़ी तीव्र गति से विकास हुआ। विशिष्ट शिक्षा सेवाएँ द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् तीव्र गति से विस्तारित हुई । शिक्षण संस्थाओं की संख्या में वृद्धि और इसके साथ-साथ विभिन्न प्रकार के दोष युक्त बालकों के क्षेत्र में भी वृद्धि हुई। सरकारी साधन, माता-पिता का बाधित बालक की शिक्षा में सहयोग तथा बचपन में सामान्य स्कूल की प्रारंभिक शिक्षा को हटा दिया गया । इसमें उन बालकों की शिक्षा भी सम्मिलित थी जो मानसिक आघात रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से बाधित तथा अधिगम असमर्थी थे। सन् 1970 तक विश्व के विकसित देशों में सभी प्रकार की श्रेणियों में बाधितों के लिए साधन उपलब्ध किए गए थे, तथा विकासशील देशों में 1981 के पश्चात् साधन उपलब्ध हुए।
व्यावसायिक पुनर्वासन, मानसिक व शारीरिक उपचार आदि जैसी सेवाएँ बाधितों के लिए लाई गई । विस्तृत प्रविधियाँ, कम्प्यूटर का प्रयोग, यातायात के साधन, अधिगम और दृष्टि बाधितों के लिए सहायक सामग्री तथा प्रविधियाँ, दूर – संचार सम्प्रेषण व्यवस्था आदि का प्रयोग बधिरों के लिए प्रारंभ हुआ। दृष्टि बाधितों के लिए वार्ता करने वाले वरदान जो छपाई को छापा (काल्पनिक चित्र) के रूप में परिवर्तित कर देते थे, जिसे अंगुलियों की सहायता से पढ़ा जा सकता था आदि यंत्रों का विकास हुआ । कुर्जवेल के द्वारा विकसित ‘पढ़ने वाला यंत्र’ जो लिखे अथवा छपे हुए को बोलने में बदल देती थी; ने बाधितों की शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाई ।
ब्रिटेन में विशिष्ट शिक्षा का विकास 1870 में शुरू हुआ। वर्ष 1893 में प्रारंभिक शिक्षा (नेत्रहीन – बधिर शिशु) अधिनियम के अंतर्गत नेत्रहीन एवं बधिर व्यक्तियों की शिक्षा के लिए अलग से विशेष विद्यालय खोले जाने का प्रावधान बनाया गया । 1899 में प्रारंभिक शिक्षा (अंगदोषी और मिरगीपीडित शिशु) अधिनियम बनाया गया । इस अधिनियम के तहत विशेष शिक्षा के बन्दोबस्त के लिए स्थानीय अधिकारियों से आग्रह किया गया जबकि प्रारंभिक शिक्षा (अंगदोषी एवं मिरगीपीड़ित शिशु) अधिनियम 1914 के विधायन के जरिये मानसिक मंद बच्चों के लिए शिक्षा का बंदोबस्त करने का काम स्थानीय अधिकारियों को सौंपा गया । शिक्षा अधिनियम (1921) के तहत स्थानीय अधिकारियों को और अधिक सशक्त बना दिया गया ताकि वे ‘प्रमाणित’ बच्चों को विशेष विद्यालयों में भेजने के लिए उनके अभिभावकों को मजबूर कर सकें । शिक्षा अधिनियम 1944 के तहत शारीरिक और मानसिक निर्योग्यता वाले बच्चों को विशेष विद्यालयों की व्यवस्था किए जाने का प्रावधान बनाया गया । शिक्षा (निर्योग्य शिशु) अधिनियम 1970 के विधायन के जरिए गंभीर निःशक्तता ग्रस्त बच्चों को शिक्षा के दायरे में लाया गया । वर्ष 1978 में ब्रिटेन में गठित वार्नक समिति ने भी माना कि ‘‘निर्योग्यों की शिक्षा का आरंभ वैयक्तिक और परमार्थी उद्यम से हुआ।” समिति ने विशेष शैक्षिक आवश्यकताओं वाले बच्चों का दायरा और बढ़ा दिया। वार्नक ने विशेष शिक्षा की धारणा पर प्रश्न चिह्न नहीं लगाया, बल्कि 10 प्रकार के विशेष विद्यालयी प्रावधानों की सिफारिश की। दूसरी ओर 1975 में अमेरिका में ‘सभी विकलांग बच्चों के लिए शिक्षा अधिनियम’ या लोक कानून पास हुआ । इस अधिनियम के तहत तीन से इक्कीस वर्ष के विशेष आवश्यकता वाले बच्चों एवं युवाओं को निःशुल्क, समान एवं समुचित सरकारी शिक्षा मुहैया कराना आवश्यक बना दिया गया। तत्पश्चात् 1990 में इंडिभिजुअल्स बिथ डिसएबिलिटीज एजुकेशन एक्ट (IDEA) ने लोक कानून (PL) का स्थान ले लिया। अमेरिकन्स विथ डिसएबिलिटीज एक्ट (ADA-1990) ने अक्षम व्यक्तियों के नागरिक अधिकारों संबंधी कानूनों पर ध्यान केन्द्रित किया ।
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