शैक्षिक उद्देश्य से क्या तात्पर्य है ? शैक्षिक उद्देश्यों के निर्धारण के विभिन्न उपयोग की विवेचना करें ।
प्रश्न – शैक्षिक उद्देश्य से क्या तात्पर्य है ? शैक्षिक उद्देश्यों के निर्धारण के विभिन्न उपयोग की विवेचना करें ।
उत्तर- शैक्षिक लक्ष्य सामान्य कथन होते हैं जो किसी प्रकार के परिवर्तन को प्रस्तावित करते हैं । इनकी प्रकृति दार्शनिक होती है तथा स्वरूप अधिक व्यापक होता है । उद्देश्यों की प्रमुख विशेषताएँ तीन प्रकार की होती हैं
(i) किसी अंतिम लक्ष्य के लिए जो क्रिया की जाती है उसके लिए ये दिशा प्रदान करते हैं ।
(ii) इसके अन्तर्गत किसी क्रिया द्वारा नियोजित परिवर्तन लाया जाता है ।
(iii) इनकी सहायता से क्रियाओं की व्यवस्था की जाती है ।
अतः शैक्षिक उद्देश्यों से तात्पर्य छात्रों में होने वाले उस परिवर्तन से है जो शैक्षिक क्रियाओं द्वारा नियोजित रूप में लाया जाता है । बी. एस. ब्लूम ने शैक्षिक उद्देश्य को निम्नलिखित रूप से परिभाषित करते हुए इसके अर्थ को और अधिक स्पष्ट किया है-
“शैक्षिक उद्देश्यों की सहायता से केवल पाठ्यक्रम की ही रचना तथा अनुदेशन के लिए निर्देशन ही नहीं दिया जाता बल्कि ये मूल्यांकन की प्रविधियों के विशिष्टीकरण में भी सहायक होते हैं । “
Educational objectives are not only the goals towards which the curriculum is shaped and towards which instruction is guided but they are also the goals that provide the detailed specification for the construction and use of evaluative technique.
– B.S. Dloom
शैक्षिक उद्देश्यों के निर्धारण का कार्य प्रायः प्रभावशाली व्यक्तियों की इच्छा, उनके अनुभवों तथा कुछ अटकलों एवं अनुमानों के आधार पर होता रहा है जिसे सर्वथा उचित नहीं माना जा सकता है। वैज्ञानिक दृष्टि से शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण, विश्लेषणात्मक-संश्लेषणात्मक प्रक्रिया पर आधारित होना चाहिए। इसके अन्तर्गत पर्याप्त संख्या में संगृहीत घटकों का विश्लेषण किया जाता है, उनमें से उपयुक्त घटकों का चयन करके, शैक्षिक महत्व की दृष्टि से उनका अध्ययन किया जाता है तत्पश्चात् उन्हें शैक्षिक उद्देश्यों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह प्रक्रिया जटिल एवं श्रमसाध्य होती हैं। इसके अन्तर्गत बहुत अधिक गवेषणापूर्ण प्रयोगात्मक कार्य करने की आवश्यकता होती है। इसमें वैज्ञानिक एवं तार्किक दोनों प्रकार के कार्य करने होते हैं ।
एडवर्ड ए. क्रग ( Edward A. Krug) ने अपनी पुस्तक (Curriculum Planning) में शैक्षिक उद्देश्यों के निर्धारण के चार विभिन्न उपागमों का उल्लेख किया है
1. प्रबुद्ध एवं रुचि सम्पन्न व्यक्तियों का अभिमत संग्रह (Collection of Opinion of Intellectuals and Interested Peoples) – विभिन्न वार्त्ताओं एवं परिचर्चाओं के आयोजन के द्वारा इस कार्य को सम्पन्न किया जाता है। इसके मौखिक एवं लिखित दोनों ही रूप हो सकते हैं। क्रग महोदय ने इसकी सफलता के लिए तीन पूर्व स्थितियों को आवश्यक माना है
(1) पर्याप्त उच्चस्तरीय अभिप्रेरणा |
(2) जिन लोगों ने पाठ्यक्रम के क्षेत्रों में पर्याप्त कार्य किये हों, उनका अधिक से अधिक संभागी होना ।
(3) शैक्षिक उद्देश्यों तथा विद्यालयों में अपनाये जाने वाले क्रिया-कलापों के पारस्परिक संबंध का समुचित ज्ञान ।
इन उपर्युक्त अनिवार्यताओं के अभाव में उत्पन्न कठिनाइयों से निपटने के लिए क्रग महोदय ने कुछ और सुझाव दिये हैं, जो इस प्रकार हैं
(i) चर्चा के लिए एकत्रित समूह को अभिप्रेरित करने के लिए प्रारम्भ में कुछ वार्त्ताओं, फिल्म प्रदर्शनों आदि का आयोजन किया जाये ।
(ii) संभागियों को आमंत्रित करते समय कुछ उपयोगी पुस्तकों, लेखों आदि का अध्ययन करके आने का सुझाव दिया जाये जिससे उनके अभिमत को ठोस आधार मिल सके ।
(iii) संभागियों को उनके द्वारा प्रस्तावित उद्देश्यों से संबंधित कुछ अनुभवजनित उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाये ।
2. आधारभूत क्षेत्रों का अध्ययन (Study of Basic Fields) – शैक्षिक उद्देश्यों के निर्धारण के लिए, इसके आधारभूत क्षेत्रों का ज्ञान होना आवश्यक है । दर्शन, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान आदि इसके आधारभूत क्षेत्र हैं। चूँकि प्रत्येक संभागी से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह सभी क्षेत्रों का सम्यक् ज्ञाता हो, अतः इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित समस्याओं का अध्ययन कर लेना उपयुक्त हो सकता है । इसके लिए वार्त्ताओं, अध्ययन दलों आदि की व्यवस्था की जा सकती है ।
3. व्यापक क्षेत्रों का विश्लेषण (Analysis of Broader Fields) – इस उपागम के अन्तर्गत प्रारम्भ में उद्देश्यों के व्यापक क्षेत्रों की एक सूची तैयार की जाती है जिसको आधार मानकर कार्य आरम्भ किया जाता है। विद्यालयों में अपनाये जाने वाले क्रिया-कलापों के सन्दर्भ में इस सूची का विश्लेषण करके उद्देश्यों को अंतिम रूप दिया जाता है । स्टैनले निस्बत द्वारा प्रस्तुत सूची भी इसी उपागम पर आधारित है जिसका उल्लेख पूर्व में किया जा चुका । है । यह उपागम समय साध्य अवश्य है किन्तु इसके कई लाभ भी हैं
> क्रग महोदय ने इस उपागम के चार प्रमुख लाभ बताये हैं –
(i) अन्य पूर्व- वर्णित उपागमों की अपनी सीमाएँ हैं क्योंकि वे छोटे वर्गों में ही अपनाये जा सकते हैं जिससे वे निष्कर्षों को आवश्यक व्यापक आधार नहीं दे पाते । प्रस्तुत उपागम सम्पूर्ण विद्यालयी कार्यक्रमों के लिए उपयुक्त होता है ।
(ii) इस उपागम में शैक्षिक उद्देश्यों को एक ओर विद्यालयी क्रिया-कलापों तथा दूसरी ओर दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान से सीधे रूप में सम्बद्ध किया जा सकता है।
(iii) यद्यपि उद्देश्यों के व्यापक क्षेत्र प्रायः स्पष्ट होते हैं किन्तु पूर्व वर्णित उपागमों में उन्हें खोजने की कृत्रिम प्रक्रिया अपनाई जाती है। व्यापक क्षेत्रों की सूची पर आधारित होने से इस उपागम में शक्ति और समय का अपव्यय बच जाता है।
(iv) यह उपागम पूर्णतः प्रत्यक्ष एवं स्पष्ट है जिससे यह अधिक रुचिकर भी है ।
4. समस्या आधारित उपागम (Problem Oriented Approach)पूर्व- वर्णित व्यापक क्षेत्रों की सूची पर आधारित उपागम निस्सन्देह उपयोगी एवं व्यावहारिक है किन्तु इसकी एक महत्वपूर्ण सीमा है, इसका अनुभूत आवश्यकताओं के स्थान पर अनुमानित आवश्यकताओं पर आधारित होना । अनुमानित बात की अनुभूत बात से संगति बैठना आवश्यक नहीं है। स्टैनले निस्बत द्वारा प्रस्तावित सूची की भी इसी आधार पर आलोचना की गई है । अतः पूर्व-वर्णित उपागमों की सीमाओं को देखते हुए समस्या आधारित उपागम को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
इसका प्रारम्भ प्रस्तुत समस्याओं को लेकर किया जाता है। जो समस्या सामने आती है उसका विश्लेषण करके ऐसे उद्देश्यों का निर्माण किया जाता है जो उसका समाधान कर सके । यह उपागम निर्णय लेने, मूल्यांकन करने तथा शैक्षिक परिवर्तनों को निर्देशित करने के सिद्धांत पर आधारित है। समस्या जितनी अधिक विवादास्पद होती है, उसका विश्लेषण, विवेचन एवं अवबोधन के लिए उतना ही अच्छा आधार प्रदान करता है । इसको स्पष्ट करने के लिए एक उदाहरण लिया जा सकता है ।
मान लीजिए किसी विद्यालय में उसके पुस्तकालय को विकसित करने तथा उसका सदुपयोग करने की समस्या है । इस समस्या का समाधान ढूँढ़ना ही प्रमुख उद्देश्य है किन्तु प्रमुख उद्देश्य पर विचार करना प्रारम्भ करते ही अनेक प्रश्न उपस्थित होंगे जैसे
क्या विद्यालय अपने छात्रों को अवकाश का सदुपयोग कराने के उद्देश्य से पुस्तकालय को प्रयुक्त करना चाहता है ?
क्या विद्यालय छात्रों से पत्र-पत्रिकाओं का सदुपयोग कराना चाहता है ?
क्या विद्यालय छात्रों को विभिन्न प्रकार के सन्दर्भ साहित्य से परिचित कराना चाहता है ? किस प्रकार की पुस्तकालय सेवा उपयुक्त रहेगी ?
पुस्तकालय को कक्षा की क्रियाओं से कैसे सम्बद्ध किया जाये ? आदि । इस कार्य में जिन प्रमुख तरीकों अथवा विधियों का प्रयोग किया जाता है वे इस प्रकार हैं
(i) कार्य – विश्लेषण विधि (Task or Job Analysis Method.)
(ii) घटना – अध्ययन विधि (Incident-Study Method)
(iii) सांख्यिकीय विधि (Statistical Method)
(iv) अभिमत – अध्ययन विधि (Opinion-Study Method)
(v) नैदानिक विधि (Diagnostic Method)
(vi) जीवन-अध्ययन विधि (Case Study Method)
(vii) पाठ्यक्रम-विश्लेषण विधि (Curriculum-Analysis Method)
(viii) प्रश्नावली विधि ( Questionnaire Method)
(ix) साक्षात्कार विधि (Interview Method)
(x) सम्मेलन विधि ( Conference Method) ।
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