संकेत बिन्दुओं के आधार पर लगभग 250 शब्दों में किसी एक विषय पर निबंध लिखें।

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प्रश्न – संकेत बिन्दुओं के आधार पर लगभग 250 शब्दों में किसी एक विषय पर निबंध लिखें। 
 (क) समय की महत्ता
(i) भूमिका
 (ii) समय रहते सचेत होना
 (iii) सदुपयोग का लाभ
(iv) दुरुपयोग से हानि
(v) उपसंहार
 (ख) आदर्श अध्यापक
(i) भूमिका
(ii) अध्ययनशीलता
(iii) जो माता-पिता दोनों का प्यार दें
(iv) चरित्रवान
(v) आज अध्यापक की दशा
(vi) उपसंहार
(ग) युवापीढ़ी और नशीले पदार्थ
(i) भूमिका
(ii) युवाओं पर दुष्प्रभाव
 (iii) नशे के प्रकार
 (iv) सामाजिक बुराई
 (v) उपसंहार।
उत्तर –
 ( क ) समय की महत्ता
 (i) भूमिका कहते हैं समय अमूल्य धन है। यह प्रत्येक मनुष्य को बिना धन दिए प्राप्त होता है, किन्तु किसी भी कीमत पर इसे लौटाया नहीं जा सकता। एक बार जाकर यह फिर वापस नहीं आता। समय अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। समय से ही ऋतुएँ आती-जाती हैं, समय पर ही फल-फूल आते हैं, सूरज और चाँद भी अपने समय पर ही उदय-अस्त होते हैं। इनमें कहीं व्यवधान नहीं होता। यही कारण है कि प्रकृति कायम है। भी
(ii) समय रहते चेत जाना: जैसे प्रकृति में समय की महत्ता है, वैसे ही मानव के लिए समय महत्त्वपूर्ण है। सच कहें तो मानव जीवन की सफलता का रहस्य भी समय के समुचित उपयोग में ही छिपा है। सबको समान रूप से दिन के चौबीस घंटे उपलब्ध होते हैं, जो इनका उपयोग करते हैं वे
अब्राहम लिंकन, स्वामी विवेकानन्द और गाँधी बनते हैं। जो इस समय को सोने, मौज-मस्ती करने, बुरी बातें सोचने और करने में गुजारते हैं वे गुमनामी में खो जाते हैं या बदनामी ओढ़ लेते हैं। वे जिन्दगी भर झखते और पछताते हैं ।
(iii) सदुपयोग का लाभ: समय पर काम करने से योग्यता हासिल हो जाती है। योग्य व्यक्ति अपना काम उपयुक्त ढंग से करता है और सफल होता है। लोग उसके गुण गाते हैं। एक प्रसिद्ध लेखक का कहना है कि वह व्यक्ति महान् है जो कहता है कि मेरे पास समय का अभाव है।
(iv) उपसंहार : एक बार नेपोलियन का सचिव देर से पहुँचा। नेपोलियन ने कारण पूछा तो उसने कहा — मेरी घड़ी गड़बड़ हो गई है। ठीक समय नहीं बताती । नेपोलियन ने कहा—’सुनो, या तो तुम अपनी घड़ी बदल दो अन्यथा मुझे अपना सचिव बदलना पड़ेगा।’ यह है समय का महत्त्व |
(ख) आदर्श अध्यापक
(i) भूमिका : शिक्षक शब्द परंपरा से चली आ रही गुरु-शिष्य परंपरा का हिन्दी रूपांतर है। भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा चली आ रही है जिसमें राम और कृष्ण भी गुरुकुल में रहे।
(ii) परिचय : ऐसे ही हमारे विद्यालय में शिक्षक हैं श्री कृष्ण कुमार दूबे जी जो हमारे प्रिय शिक्षक हैं। वे अति मृदुभाषी, सहनशील, कर्तव्यनिष्ठ, सदाचारी, अनुशासनप्रिय हैं। वे सादा जीवन उच्च विचार के प्रतीक हैं। मेरे शिक्षक सरस्वती के वरद्पुत्र हैं। वे हिन्दी, अंग्रेजी और गणित के इतने अच्छे जानकार हैं कि वर्ग में ही विद्यार्थी को हिन्दी विषय के सभी आयामों शुद्ध उच्चारण, व्याकरण के सभी नियमों, अंग्रेजी के सभी विन्यास, गणित के कई तरह के फार्मूलों इत्यादि को इतने सहज ढंग से समझाते हैं कि विद्यार्थियों को उसे पुनः पढ़ने की आवश्यकता महसूस नहीं होती ।
(iii) चरित्रवान : हमारे शिक्षक अनुशासनप्रिय इतने हैं कि स्कूल प्रांगण में उनके प्रवेश से ही लगता है कि स्कूल प्रांगण अनुशासित हो गया है। सभी शिक्षक यहाँ तक कि प्रधानाध्यापक भी उनकी इज्जत करते हैं। विद्यार्थी को वे कभी भी मारते नहीं, नजर का खेल दिखाते हैं, जो अनुशासन की पहली सीख है। हमारे शिक्षक आचार के इतने पवित्र हैं कि सादा जीवन उच्च विचार उनके जीवन का अंग बन गया है। खादी की धोती, खादी का कुर्ता ही उनकी सर्वप्रिय पोशाक है जो उनके गाँधीवादी होने का पुख्ता सबूत देती है। स्कूल में समय से आना और समय से जाना उनकी दिनचर्या है। स्कूल के सभी नियमों का पालन वे स्वयं भी सावधानी से करते हैं, अपने विद्यार्थियों को भी पालन करने की शिक्षा देते हैं।
 (iv) उपसंहार : अत: हमारे शिक्षक श्री कृष्ण कुमार दूबे जी बहुत ही प्रिय हैं। मैं उनके निर्देशन में राष्ट्र के भावी कर्णधार बनने की प्रेरणा ग्रहण करता हूँ और आशा करता हूँ कि उनके आचार-विचार, सादगी, सत्यवादिता, अनुशासनप्रियता हमें आगे बढ़ने में सहायक होगी।
(ग) युवा पीढ़ी और नशीले पदार्थ
(i) भूमिका : अनादि काल से नशीले पदार्थों का सेवन किया जाता रहा है। कहते हैं कि देवता भी सोमरस पीया करते थे। लेकिन आज की युवा पीढ़ी यह समझने के लिए तैयार नहीं है कि तब वह शक्तिवर्धक के रूप में ग्रहण किया जाता था। अनेक प्रकार की प्राकृतिक जड़ी-बूटियाँ भी हैं जो नशा प्रदान करती हैं जिसे अनुभवी वैद्य जानते पहचानते हैं। नयी युवा पीढ़ी ने अपनी जिन्दगी में इन नशीले पदार्थों का सेवन जिस प्रकार करना शुरू कर दिया है उससे उसका भविष्य तो अंधकारमय होता ही है, देश का भविष्य भी अंधकारमय हो रहा है। इससे नैतिकता, मूल्य, मानवता सबके सब नष्ट होते जा रहे हैं।
(ii) युवाओं पर दुष्प्रभाव : पीनेवाले को पीने का बहाना चाहिए। कोई गम भुलाने को पोता है कोई पीने को मजबूर है। आज की युवा पीढ़ी काफी चिंताग्रस्त रह रही है। प्रकृति से दूर होती जा रही है। चिंता चिता से बढ़कर है। उसे यह समझ नहीं है। बुरी संगति और अपनी इच्छाओं को बढ़ा लेना ही इसका मुख्य कारण है। लेकिन अनेक प्रकार के नशीले पदार्थों के सेवन से युवाओं का शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक और नैतिक प्रतन हो रहा है।
(iii) नशे के प्रकार : देश में उपजनेवाले या उत्पादित तथा विदेश से आयातित नशीले पदार्थ अनेक प्रकार के हैं। गाँजा, भाँग और तम्बाकू खेतों में उगाए जाते हैं। स्प्रीट मिश्रित अनेक शराब नशीले पदार्थ के रूप में बाजारों में उपलब्ध हैं। कारखानों में नशीले पदार्थों के मिश्रण से अनेक दर्द निवारक और खाँसी की दवा बनती है। शक्तिवर्धक (टॉनिक) भी नशीले पदार्थयुक्त हैं। वहीं, हेरोईन, ब्राउन सूगर, हशीश, मारफीन, स्मैक, चरस, अफीम, डमेरौल आदि का प्रयोग खूब बढ़ता जा रहा है जो मारक है।
(iv) सामाजिक बुराई : आज नशीले पदार्थों का सेवन स्कूली छात्र/छात्राओं, छोटे-छोटे बच्चे और युवा खुलकर करने लगे हैं। सरकार को अच्छी-खासी राजस्व की उगाही लाइसेंसी दुकानों से मिल रही है। लेकिन नशा करने वाले युवा सदैव हानि में रहते हैं। जब कोई व्यक्ति नशा ले लेता है तो मर्यादा का ख्याल भूल जाता है। मन से शर्म, संकोच सामाजिकता का भय समाप्त हो जाता है।
(v) उपसंहार : आज युवा पीढ़ी को नैतिक शिक्षा दिए जाने की आवश्यकता है। प्रचार-प्रसार के विभिन्न माध्यमों से ऐसे अनेक कार्यक्रम चलाए जाएँ जिससे स्वस्थ मनोरंजन हों। उन युवाओं के साथ अपनत्व और प्रेमपूर्ण व्यवहार का स्वस्थ वातावरण तैयार किए जाएँ। माता-पिता को अधिक जिम्मेवारी लेने की अनिवार्य आवश्यकता है।

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