संधि किसे कहते हैं – संधि के भेद और उदाहरण
संधि किसे कहते हैं – संधि के भेद और उदाहरण
संधि किसे कहते हैं?
दो या अधिक वर्णों के पास-पास आने के परिणामस्वरूप जो विकार उत्पन्न होता है उसे सन्धि कहते हैं. संधि शब्द सम् + धि से बनता है, जिसका शाब्दिक अर्थ मेल या जोड़ होता है. संधि शब्द का विलोम शब्द विग्रह या विच्छेद होता है. यदि दो वर्णों के पास-पास आने से विकार उत्पन्न नहीं हो तो उसे सन्धि नहीं संयोग कहते हैं. संधि में दो या अधिक वर्णों का योग छ: प्रकार से हो सकता है.
संधि की परिभाषा
दो वर्णों के परस्पर मेल से जो परिवर्तन (विकार) उत्पन्न होता है। उसे संधि (Sandhi in Hindi) कहते हैं।
संधि में पहले शब्द के अंतिम वर्ण तथा दूसरे के आदि वर्ण का मेल होता है।
आसान भाषा में कहें तो, “दो वर्णों के पास-पास आने से उनमें जो विकार उत्पन्न होता है। उसे संधि कहा जाता है। जैसे –
हिम + आलय = हिमालय
देव + इन्द्र = देवेन्द्र
संधि के उदहारण – Sandhi Ke Udaharan
- स + अवधान = सावधान
- सौभाग्य + आकांक्षिणी = सौभाग्याकांक्षिणी
- आत्मा + आनंद = आत्मानंद
- चिकित्सा + आलय = चिकित्सालय
- कृपा + आकांक्षी = कृपाकांक्षी
- परम + ईश्वर = परमेश्वर
- ज्ञान + उदय = ज्ञानोदय
- देव + ऋषि = देवर्षि
- वधू + आगमन = वध्वागमन
संधि-विच्छेद किसे कहते हैं
संधि के भेद – Sandhi Ke Bhed
मुख्य रूप से संधि के तीन प्रकार (Sandhi Ke Prakar) होते है- स्वर संधि, व्यंजन संधि और विसर्ग संधि।
- स्वर सन्धि
- व्यंजन संधि
- विसर्ग संधि
1. स्वर संधि किसे कहते हैं ?
दो स्वर वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) उत्पन्न होता है। उसे स्वर संधि कहते हैं।
स्वर + स्वर = स्वर संधि
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः तथा ऋ स्वर हैं। जब यह स्वर वर्ण मिलकर नये रूप में बदल जाते हैं तब वहां स्वर संधि होती है।
स्वर संधि के निम्न पांच भेद हैं।
(i) दीर्घ संधि
(ii) गुण संधि
(iii) वृद्धि संधि
(iv) यण संधि
(v) अयादि संधि
2. व्यंजन संधि किसे कहते हैं ?
व्यंजन के बाद किसी स्वर या व्यंजन के आने से व्यंजन में जो विकार (परिवर्तन) होता है। उसे व्यंजन संधि कहते हैं।
व्यंजन संधि के उदाहरण
सज्जन = सत् + जन (त् + ज = ज्ज)
वागीश = वाक् + ईश (क् + ई = गी)
उद्धार = उत् + हार (त् + ह = द्ध)
Note – व्यंजन संधि का संधि विच्छेद करने पर व्यंजन पर हल् (् ) जरूर लगाना चाहिए। व्यंजन का शुरू रुप हल् वाला रूप (क्, ख्, ग्,….) होता है।
व्यंजन संधि के नियम
(i) किसी वर्ग के प्रथम वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) के आगे कोई स्वर या किसी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण अथवा (य, र, ल, व) आए, तो वर्ग का पहला वर्ण अपने ही वर्ग के तीसरे वर्ण (ग्, ज्, ड्, द्, ब्) में बदल जाता है।
उदाहरण –
दिग्गज = दिक् + गज (क् → ग् में)
अजादि = अच् + आदि (च् → ज् में)
षडानन = षट् + आनन (ट् → ड् में)
सद्भावना = सत् + भावना (त् → द् में)
सुबंत = सुप + अन्त (प् → ब् में)
(ii) किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) के बाद कोई अनुनासिक वर्ण आए, तो वर्ग का पहला वर्ण अपने ही वर्ग के पांचवें वर्ण (ङ्, ञ्, ण, न्, म्) में बदल जाता है।
उदाहरण –
वाङमय = वाक् + मय (क् → ङ् में)
षण्मुख = षट् + मुख (च् → ण् में)
जगन्नाथ = जगत् + नाथ (त् → न् में)
(iii) किसी दीर्घ स्वर का मेल ‘छ’ से होने पर ‘छ’ से पहले ‘च्’ बढ़ा दिया जाता है।
उदाहरण –
अनुच्छेद = अनु + छेद
परिच्छेद = परि + छेद
(iv) यदि ‘त्’ के बाद च या छ हो तो ‘त्’ का ‘च्’ हो जाता है।
उदाहरण –
उच्चारण = उत् + चारण
सच्चरित्र = सत् + चरित्र
• त् के बाद ज या झ, ट, ड, ल हो तो त् क्रमशः ज्, ट्, ड्, ल् में बदल जाता है।
उदाहरण –
सज्जन = सत् + जन
उज्झटिका = उत् + झटिका
बृहट्टीका = बृहत् + टीका
उल्लास = उत् + लास
• यदि त् के बाद श् तथा ह हो तो क्रमशः त् का च् और श् का छ् तथा त् का द् और ह का ध हो जाता है।
उदाहरण –
उद्धार = उत् + हार
उच्छवास = उत् + श्वास
(v) यदि ऋ, र तथा ष के बाद न व्यंजन आता है। तो न के स्थान पर ण हो जाता है।
उदाहरण –
परिणाम = परि + नाम
भूषण = भूष + अन
(vi) यदि म् के बाद य, र, ल, व, श, ष, स, ह आए, तो म् सदैव अनुस्वार ही होता है।
उदाहरण –
संयोग = सम् + योग
संरक्षण = सम् + रक्षण
संविधान = सम् + विधान
संसार = सम् + सार
(vii) जब ‘स’ से पहले ‘अ या आ’ से भिन्न स्वर आए, तो ‘स’ का ‘ष’ हो जाता है।
उदाहरण –
विषम = वि + सम
सुषमा = सु + समा
3. विसर्ग संधि किसे कहते हैं ?
विसर्ग के बाद स्वर या व्यंजन के आने पर विसर्ग में जो विकार (परिवर्तन) उत्पन्न होता है। उसे विसर्ग संधि कहते हैं।
विसर्ग संधि के उदाहरण
1. निराहार = निः + आहार
2. निर्बल = निः + बल
3. मनोयोग = मनः + योग
4. निष्कपट = निः + कपट
विसर्ग संधि के नियम
(i) विसर्ग से पहले ‘अ’ और बाद में ‘अ’ अथवा प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा, पांचवा वर्ण या य, र, ल, व आए तो विसर्ग का हो ‘ओ’ जाता है।
उदाहरण –
मनोनुकूल = मनः + अनुकूल
तपोबल = तपः + बल
मनोयोग = मनः + योग
अधोगति = अधः + गति
अपवाद – पुनः तथा अंतः में विसर्ग का र् हो जाता है।
पुनर्जन्म = पुनः + जन्म
अंतरग्नि = अंतः + अग्नि
(ii) विसर्ग से पहले अ या आ से भिन्न स्वर हों तथा बाद में आ, उ, ऊ अथवा वर्ग का तीसरा, चौथा, पांचवां वर्ण हो या य, र, ल, व आए तो विसर्ग का र् हो जाता है।
उदाहरण –
निराशा = निः + आशा
निर्धन = निः + धन
आर्शीवाद = आर्शीः + वाद
दुर्जन = दुः + जन
बहिमुर्ख = बहिः + मुख
(iii) विसर्ग से पहले कोई स्वर हो तथा बाद में च, छ, श हो तो विसर्ग का श् हो जाता है।
उदाहरण –
दुश्चरित्र = दुः + चरित्र
निश्छल = निः + छल
दुश्शासन = दुः + शासन
(iv) विसर्ग से पहले इ, उ तथा बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ आए तो विसर्ग का ष् हो जाता है।
उदाहरण –
निष्कंटक = निः + कंटक
निष्ठुर = निः + ठुर
निष्प्राण = निः + प्राण
निष्फल = निः + फल
अपवाद –
दुःख = दुः + ख
(v) विसर्ग के बाद ‘र’ व्यंजन हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। तथा उसके पहले का स्वर दीर्घ हो जाता है।
उदाहरण –
नीरज = निः + रज
निरोग = निः + रोग
(vi) विसर्ग से पहले ‘अ’ या ‘आ’ हो तथा बाद में भिन्न स्वर हों तो विसर्ग का लोप हो जाता है।
उदाहरण –
अतएव = अतः + एव
(vii) विसर्ग के बाद ‘त’ या ‘थ’ आए तो विसर्ग का ‘स्’ हो जाता है।
उदाहरण –
नमस्ते = नमः + ते
निस्तेज = निः + तेज
दुस्तर = दुः + तर
(viii) विसर्ग से पहले अ हो तथा विसर्ग के बाद क, ख, प, फ हो तो विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
उदाहरण –
प्रातःकाल = प्रातः + काल
अंतःपुर = अंतः + पुर
पुनःफलित = पुनः + फलित
अपवाद – नमः तथा पुनः में विसर्ग का स् हो जाता है।
नमस्कार = नमः + कार
पुरस्कार = पुरः + कार
स्वर संधि के भेद – Swar Sandhi Ke Bhed
1. दीर्घ संधि किसे कहते हैं – Dirgh Sandhi Kise Kahate Hain
यदि अ, आ या इ, ई या उ, ऊ में से कोई भी स्वर अपने सजातीय स्वर से जुड़े तो बनने वाला स्वर सदैव दीर्घ स्वर होगा. सजातीय स्वरों का यह योग निम्नलिखित तरीक़े से हो सकता है.
2. गुण संधि किसे कहते हैं – Gun Sandhi Kise Kahate Hain
गुण संधि के अंतर्गत दो अलग-अलग उच्चारण स्थानों से उच्चारित होने वाले स्वरों के मध्य संधि होती है, जिसके फलस्वरूप बनने वाला स्वर संधि करने वाले स्वरों से भिन्न होता है. गुण संधि के तीन नियम होते है.
01. यदि प्रथम पद का अंतिम वर्ण अ या आ हो तथा द्वितीय पद का प्रथम वर्ण इ या ई हो तो संधि के फलस्वरूप बनने वाला वर्ण ए होगा, अर्थात: अ / आ + इ / ई = ए.
3. यण् संधि किसे कहते हैं – Yan Sandhi Kise Kahate Hain
जब इ, ई या उ,ऊ या ऋ भिन्न-भिन्न स्वरों के साथ संधि करके क्रमशः य, व्, र् बनाएं तो उसे यण् संधि कहते हैं. यण् संधि के तीन नियम होते हैं जो निम्नलिखित हैं.
01. यदि इ या ई की संधि अपने सजातीय स्वर (इ या ई) के अतिरिक्त किसी भी अन्य असमान स्वर से हो तो संधि के फलस्वरूप बनने वाला वर्ण य होगा और संधि में प्रयुक्त अन्य असमान स्वर की मात्रा य के साथ जुड़ जाएगी.
4. वृद्धि संधि किसे कहते हैं – Vridhi Sandhi
यदि अ या आ के साथ ए या ऐ की संधि होने पर बनने वाला वर्ण ऐ हो और अ या आ के साथ ओ या औ की संधि होने पर बनने वाला वर्ण औ हो तो उसे वृद्धि संधि कहते हैं. वृद्धि संधि के दो नियम होते हैं जो निम्नलिखित हैं.
वृद्धि संधि के उदाहरण – Vridhi Sandhi Ke Udaharan
- एक + एक = एकैक
- सदा + एव = सदैव
- जल + ओक = जलौक
- वन + औषध = वनौषध
5. अयादि संधि किसे कहते हैं – Ayadi Sandhi
यदि ए, ऐ, ओ, औ के साथ किसी भी वर्ण (सवर्ण या असवर्ण) की संधि के फलस्वरूप होने वाला विकार क्रमशः अय, आय, अव, आव हो तो उसे अयादि संधि कहते हैं.
संधि संबंधित प्रश्न उत्तर
Q.1 संधि किसे कहते हैं परिभाषा उदाहरण सहित दीजिए?
Ans. जब दो वर्णों के मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है। उसे संधि कहते हैं।
उदाहरण – हिम + आलय = हिमालय
देव + इन्द्र = देवेन्द्र
Q.2 संधि के भेद कितने होते हैं?
Ans. संधि के तीन भेद या प्रकार होते हैं।
1. स्वर संधि
2. व्यंजन संधि
3. विसर्ग संधि
Q.3 विसर्ग संधि की परिभाषा दीजिए?
Ans. विसर्ग के बाद स्वर या व्यंजन के आने पर विसर्ग में जो विकार उत्पन्न होता है। उसे विसर्ग संधि कहते हैं।
Q.4 स्वर संधि के कितने भेद हैं?
Ans. स्वर संधि के निम्न पांच भेद हैं।
दीर्घ संधि, गुण संधि, वृद्धि संधि, यण संधि तथा अयादि संधि।
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