संविधान एवं जनजातियाँ
संविधान एवं जनजातियाँ
‘संविधान एवं जनजातियाँ’ अध्याय में जनजातियों के लिए प्रदत्त संवैधानिक सुविधाओं एवं विशेषाधिकार की चर्चा है. इस अध्याय में ‘झारखण्ड की कुछ प्रमुख जनजातियाँ’ उपशीर्षक के तहत् झारखण्ड की मुख्य जनजातियाँ मुख्यतः संथाल, उराँव, विरहोर, मुण्डा, असुर एवं खरिया के सम्बन्ध में विशेष जानकारी दी गई है. अध्याय के अन्त में राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों में ग्रामवार आदिवासियों का प्रतिशत, तथा संविधान के अनुच्छेद 342 के अन्तर्गत उल्लिखित जनजातियों की सूची दी गई है.
भारत के संविधान में जनजातियों हेतु कुछ सुरक्षात्मक एवं प्रोत्साहनात्मक उपाय किये गये हैं, जो इस प्रकार हैं –
1. सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक हितों का प्रोत्साहन – अनुच्छेद 15(4).
2. पदों और नौकरियों में आरक्षण- अनुच्छेद 16 (4).
3. सम्पत्ति के मामलों में जनजातियों के हितों की सुरक्षा – अनुच्छेद 19(5).
4. मानव के दुर्व्यवहार और बलात् श्रम का प्रतिषेध आदि अनुच्छेद 23.
5. अनुसूचित जनजातियों को अपनी भाषा एवं संस्कृति का संरक्षण सम्बन्धी प्रावधान – अनुच्छेद 29.
6. अनुसूचित जातियों/जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों की शिक्षा और आर्थिक हितों की अभिवृद्धि – अनुच्छेद 46.
7. बिहार, उड़ीसा और मध्य प्रदेश ने राज्यों में जनजातियों कल्याण के भार साधक मंत्री की नियुक्ति – अनुच्छेद 164.
8. लोक सभा एवं विधान सभाओं में आरक्षण – अनुच्छेद 330, 332, 334.
9. आरक्षण के दावे – अनुच्छेद 335.
10. अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की राष्ट्रीय आयोग का गठन (65वें संविधान संशोधन द्वारा ) – अनुच्छेद 338.
11. संविधान के दसवें भाग में अनुच्छेद 244 के तहत् बिहार (झारखण्ड) के कुछ क्षेत्रों में 5वीं अनुसूचित क्षेत्र का गठन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य है –
(क) बिना किसी बाहरी विघ्न के जनजातियों को अपने उपलब्ध अधिकारों का पूरा-पूरा लाभ उठाने में सहायता देना.
(ख) अनुसूचित जनजातियों का विकास करना तथा इनके हितों को संरक्षण एवं प्रोत्साहन प्रदान करना.
> पाँचवीं अनुसूची की प्रमुख विशेषताएँ हैं –
(क) राज्यपाल की विशिष्ट विधायी शक्तियाँ.
(ख) राष्ट्रपति को राज्यपाल का प्रतिवेदन.
(ग) जनजाति सलाह परिषद् का संविधान.
> झारखण्ड की कुछ प्रमुख जनजातियाँ
संथाल – संथाल भारत की सबसे बड़ी जनजातियों में एक है. यह झारखण्ड के अतिरिक्त पश्चिम बंगाल एवं उड़ीसा में बसे हुए हैं. झारखण्ड में (1991) इनकी कुल संख्या लगभग 20 लाख से ऊपर है जो मुख्य तौर पर दुमका, साहेबगंज, गोड्डा, धनबाद एवं गिरीडीह जिलों में बसे हुए हैं. ये प्रोटो- आस्ट्रेलॉइड प्रजाति समूह की है, ये संथाली भाषा बोलते हैं, जो आस्ट्रेशियन वर्ग के मुंण्डारी वर्ग की एक उपभाषा है. संथाली झारखण्ड में हिन्दी के बाद सर्वाधिक बोली जाती है. यह गोत्र बहिर्विवाही एवं पितृवंशीय समाज वाली जनजाति है. संथाल सामान्यतः एक विवाही समाज होता है, जिनमें पति भ्रातृविवाह (लेविटेड ) का प्रचलन है, किन्तु समोदर विवाह, अर्थात् चचेरी, ममेरी, फुफेरी या मौसेरी बहिन से विवाह करना निषिद्ध है. संथालों में झारखण्ड की अन्य जनजातीय समुदाय की तरह युवागृह का प्रचलन नहीं होता है.
संथालों में ग्राम्य पंचायत की अवधारणा होती है, जिसके मुखिया को मांझी कहते हैं. मांझी गाँव के प्रशासन के समक्ष प्रतिनिधित्व करता है, इनकी सम्पत्ति एवं उत्तराधिकार के सम्बन्ध में स्पष्ट धारणा है कि सम्पत्ति पर सिर्फ पुरुषों का उत्तराधिकार होता है एवं सभी पुत्रों को सम्पत्ति का बराबर-बराबर हिस्सा मिलता है.
संथालों का धर्म जीववाद पर आधारित है और इनका प्रधान देवता ‘ठाकुरजी’ होता है जो सृष्टि का रचयिता है. इनमें मृतकों का दाह-संस्कार किया जाता है.
उराँव – जनसंख्या के दृष्टिकोण से उराँव झारखण्ड की दूसरी बड़ी जनजाति समुदाय है.
> यह एक कृषक समुदाय है.
> इनका संकेन्द्रण राँची, गुमला एवं पश्चिम सिंहभूम जिले में हैं.
> ये भी प्रोटो- आस्ट्रेलॉयड प्रजाति या पूर्वी द्रविड़ प्रजाति की श्रेणी में रखा जाता है.
> यह पितृवंशीय एवं गोत्र बहिर्विवाही होते हैं.
> इनके गोत्रों का निर्धारण इनकी टोटम से होता
> टोटम इनके लिए पवित्र होते हैं.
> इनकी भाषा कुरुख है. जो द्रविड़ वर्ग की एक उप- भाषा है.
> उराँव एक विवाही समाज है, किन्तु विशेष परिस्थतियों में एक से अधिक पत्नी भी होती है, किन्तु बहुपति प्रथा का प्रचलन है. तलाक की व्यवस्था भी रहती है. इनव नेत
> सम्पत्ति का विभाजन पुत्रों के मध्य समान-समान, किन्तु भूमिगत सम्पत्ति में बड़े लड़के को अन्य लड़कों से अधिक भूमि मिलती है.
> इनमें ग्राम्य पंचायत की व्यवस्था जिसे परहा पंचायत कहते हैं.
> यह जनजातीय समुदाय भी जीववादी है जिसका सर्वप्रमुख देवता यह धर्मेश होता है.
> हो आदिम जाति समाज में समलिंगीय युवागृह होता है धूमकुरिया कहते हैं;
बिरहोर – खाद्य संग्रहक एवं शिकार पर आश्रित जनजाति जो प्रायः खानाबदोशी होते हैं. झा
> यह प्रोटो-आस्ट्रेलॉयड प्रजाति समूह के हैं जिनमें नीग्रो कल्प के भी कुछ शारीरिक अभिलक्षण हैं.
> इनकी भाषा आस्ट्रे- एशियाटिक परिवार की होती है.
> बिरहोर समाज दो समूहों में बँटे हुए हैं— उथला (खानाबदोश) एवं जाधी (स्थायी वासी).
> विरहोरों की बस्ती को टोडा कहते हैं एवं इसके मुखिया को बनाया जिसे लौकिक एवं अलौकिक (धार्मिक) अधिकार प्राप्त होता है.
> इनका परिवार केन्द्रीय होता है.
> इनमें समलिंगीय युवागृहों (गोत्यारा) का प्रचलन होता है. बोरा-बोंगा इनके प्रमुख देवता हैं. *
मुण्डा – जनसंख्या के दृष्टिकोण से मुण्डा तीसरी प्रमुख जनजाति है. यह मुख्यतः राँची तथा खूँटी जिले में बसे हुए हैं.
> मुण्डा प्रोटो आस्ट्रेलायड प्रजाति समूह का है.
> मुण्डा स्वयं को हरोको कहते हैं.
> इनके जीवकोपार्जन का साधन कृषि है.
> मुण्डा भी प्रायः एक विवाही, पितृवंशीय एवं गोत्र बहिर्विवाही समाज होता है.
> यह गोत्र को किली कहते हैं.
> मुण्डा प्रकृतिवाद होते हैं एवं इनका मुख्य देवता सिंगवोगां (सूर्य देवता) है.
> मुण्डा में भी समलिंगी युवागृह (गितिओरा) होता है.
> मुण्डा मुण्डारी भाषा बोलते हैं. जो आस्ट्रोएशियन भाषा समूह की एक उपभाषा है.
> हो – मुण्डा जनजातीय की ही एक शाखा है जो झारखण्ड के पश्चिम सिंहभूम जिले के कोल्हन नामक क्षेत्र में बसते हैं.
> ‘हो’ पोटो-आस्ट्रेलॉइड प्रजाति समूह का है.
> यह भी गोत्र बहिर्विवाही एक पितृवंशीय समाज होता है.
> इनकी भाषा हो होती है, जो मुण्डा उपभाषा का एक उपवर्ग है
> ‘हो’ में एक समलिंगी युवागृह पाया जाता है, जिसे गितिओरा कहते हैं.
असुर – झारखण्ड की सबसे प्राचीन जनजाति होने के बावजूद इनकी संख्या 7753 (1991) थी. इनका वर्तमान निवास स्थान नेतरहाट के पॉरों के गिर्द है. असुर लौ धातु के सिद्धहस्त कारीगर होते हैं. असुर तीन शाखाओं में बँटे हुए हैं – वरी असुर, वृजिया असुर एवं अगरिया असुरि
खरिया – खरिया मुख्यतः सिंहभूम एवं मानभूम में पाये जाते हैं. यह एक वितृवंशीय एवं गोत्र बहिर्विवाही जनजातीय समुदाय है.
> प्रोटो- आस्ट्रेलॉयड प्रजाति समूह का होने के कारण यह औसत कद के काले एवं इनकी नाक धँसी होती है.
> खरिया या समान तीन उपसमूह में बँटा होता है, पहाड़ी खरिया, धकली खरिया तथा दुध खरिया.
> झारखण्ड की जनजातियों के सम्बन्ध में कुछ अन्य जानकारियाँ
> झारखण्ड में कुल 30 जनजातियाँ हैं.
> झारखण्ड के अनुसूचित क्षेत्रों में लगभग 65.5 प्रतिशत गाँव में 50 प्रतिशत से अधिक जनजातियाँ वास करती हैं.
> अधिकांश जनजातियाँ हिन्दू धर्मावलम्बी हैं.
> झारखण्ड में कुल 212 प्रखण्ड हैं.
> पश्चिमी सिंहभूम में सर्वाधिक अनुसूचित प्रखण्ड हैं. यहाँ के सभी प्रखण्ड ( 23 ) अनुसूचित प्रखण्ड हैं.
> झारखण्ड के अनुसूचित प्रखण्डों 112 में कुल 15641 गाँव हैं. इसमें 1618 गाँव में जनजातियों का प्रतिशत लगभग नगण्य (0 प्रतिशत) है.
> कुल पिछड़ी जाति की संख्या 22 है.
> झारखण्ड की जनजातियों के सम्बन्ध में कुछ डेरा दिया गया है जो विशेष जानकारी में सहायक होगा.
> अनुसूचित जिलों में आदिवासी अल्पसंख्यक प्रखण्ड (ग्रामवार )
प्रखण्ड जहाँ आदिवासी अल्पसंख्यक हैं. गाँवों का प्रतिशत जहाँ गैर-आदिवासी बहुसंख्यक हैं.
> मुख्य बातें
> भारतीय संविधान में जनजातियों को विशेष संरक्षण एवं विकास हेतु सुविधा देने के लिए विशेष प्रावधान किये गये हैं.
> भारतीय संविधान में जनजातियों के लिए संरक्षणात्मक प्रावधान 0) अनुच्छेद 15 (4), 16(4), 19 (5), 23, 29, 330, 332, 334, 335.
> जनजातियों की समस्याओं एवं सरकारी प्रयास के समीक्षा मूल्यांकन एवं सलाह हेतु भारत सरकार द्वारा 65वें संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 338 के अन्तर्गत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के राष्ट्रीय आयोग का गठन किया गया है.
> भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत् झारखण्ड के कुछ क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया गया है.
> झारखण्ड की मुख्य जनजातियों में संथाल, उराँव, विरहोर, मुण्डा, हो, असुर एवं खरिया उल्लेखनीय है.
> संथाल जनजाति झारखण्ड में सर्वाधिक है और यहाँ हिन्दी के बाद सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा संथाली है.
> संथाल गोत्र बहिर्विवाही एवं पितृसत्तात्मक समाज होता
> संथाली समाज में बहुर्विवाह का प्रचलन काफी कम है.
> संथालों में समोदर विवाह हिन्दुओं की तरह निषिद्ध होता है.
> संथाली समाज की एक प्रमुख विशेषता इनमें युवागृह का प्रचलन में नहीं होना है.
> संथालों के ग्राम्य प्रधान को माँझी कहते हैं जो इनका प्रशासन के समक्ष प्रतिनिधित्व करता है.
> संथालों का धर्म जीववाद होता है.
> जनजातियों की जनसंख्या के दृष्टिकोण से झारखण्ड की दूसरी बड़ी जनजाति उराँव है.
> उराँव समाज भी पितृसत्तात्मक एवं गोत्र बहिर्विवाही समाज होता है.
> उराँव प्रोटो-आस्ट्रेलॉयड प्रजाति वर्ग समूह का होता है.
> उराँव एक विवाही समाज होता है एवं बहुपत्नी विवाह का प्रचलन नहीं है.
> उराँवों की भाषा को कुरुख नाम से जाना जाता है जो द्रविड़ वर्ग की एक उपभाषा है.
> इनके पंचायत को ‘परहा’ कहते हैं.
> उराँव के समलिंगीय युवागृह को ‘घूमकुरिया’ कहते हैं.
> झारखण्ड की एक अन्य जनजाति ‘विरहोर’ प्रोटो-आस्ट्रेलॉयड प्रजाति का है जो आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत् है.
> विरहोरों की भाषा आस्ट्रो-एशियाटिक परिवार की होती है.
> विरहोरों में खानाबदोश जीवन व्यतीत करने वाले को उथला एवं स्थायी वास करने वाले को जाघी कहा जाता है तथा इनकी बस्ती को टोडा कहते हैं.
> इनके समलिंगीय युवागृहों को ‘गोत्यारा’ कहते हैं.
> मुण्डा जनजाति भी प्रोटो आस्ट्रेलॉयड प्रजाति समूह का है.
> यह कृषि पर आधारित जनजाति है.
> यह गोत्र बहिर्विवाही, पितृसत्तात्मक एवं प्रायः एकविवाही समाज होता है.
> मुण्डा समाज विभिन्न गोत्रों में बँटा होता है, गोत्री को ‘किली’ कहा जाता है.
> इनका धर्म प्रकृतिवाद पर आधारित होता है और प्रमुख देवता सिंगवोंगा है.
> इनके समलिंगी युवागृह को ‘गितिओरा’ कहते हैं.
> मुण्डा की भाषा मुण्डारी आस्ट्रे- एशियाटिक समूह की उपभाषा है.
> ‘हो’ झारखण्ड की ‘मुण्डा’ जनजाति की एक शाखा है.
> ‘हो’ की प्रजातीय अभिलक्षणा एवं सामाजिक संरचना मुण्डाओं की तरह होता है.
> ‘हो’ की समलिंगीय युवागृह को ‘गितिओरा’ कहा जाता है.
> झारखण्ड में लगभग 30 जनजातियाँ हैं.
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