संविधान की कहानी
संविधान की कहानी
संविधान को समझने के लिए, उसके अतीत को जानना जरूरी है। भारत के संविधान की कहानी बड़ी रोचक है। प्राचीन भारत में शासक ‘धर्म’ से बंधे हुए थे । प्रजा को भी ‘धर्म’ का पालन करना होता था। ‘धर्म’ किसी मजहब, संप्रदाय या पंथ से जुड़ा हुआ नहीं था। आजकल जिसे कानून का या विधि का शासन कहते हैं वहीं धर्म के शासन की भावना थी । राजधर्म ही संविधान था ।
भारत में शासन तंत्र और संविधान के प्रथम सूत्र मिलते हैं वेद, स्मृति, पुराण, महाभारत, रामायण और फिर बौद्ध और जैन साहित्य में, कौटिल्य के अर्थशास्त्र और शुक्रनीति में प्राचीन भारत में ‘सभा’, ‘समिति’ और ‘संसद’ के अनेक उल्लेख मिलते हैं। कितने ही गणतंत्रों के होने के प्रमाण मिलते हैं। संसार के सबसे पुराने गणतंत्र भारत में ही जन्मे – पनपे ।
1757 में प्लासी की लड़ाई में विजय के साथ भारत में अंग्रेजी राज की नींव पड़ी। 1857 का व्यापक सिपाही विद्रोह अंग्रेजी राज के विरुद्ध भारतीयों का प्रथम स्वाधीनता संग्राम था । विद्रोह को निर्ममता के साथ दबा दिया गया किंतु इसके साथ ही भारत में कंपनी शासन समाप्त हो गया। कंपनी के अधीन क्षेत्रों पर सीधे ब्रिटिश सरकार का शासन लागू हो गया ।
संवैधानिक सुधारों पर विचार करने के लिए अंग्रेजों का साइमन कमीशन भारत में आया। ब्रिटिश शासकों ने कहा कि भारतीयों में अपने लिए संविधान बनाने की क्षमता नहीं है। इस चुनौती के जवाब में मोतीताल नेहरू की अध्यक्षता में बनी समिति ने एक संविधान का प्रारूप तैयार किया जो ‘नेहरू रिपोर्ट’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अंग्रेजों के शासन में स्वयं भारतीयों द्वारा बनाए गए किसी संविधान की यह पहली रूपरेखा थी । इसे सभी दलों का समर्थन प्राप्त हुआ था। 31 दिसंबर 1929 को जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य अपनाया। 1930 से हर वर्ष 26 जनवरी को स्वाधीनता का प्रण दोहराया जाने लगा। 26 जनवरी तब तक स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाई जाती रही जब तक देश स्वाधीन न हो गया ।
संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को ही हो गई थी। 15 अगस्त 1947 से संविधान सभा स्वाधीन भारत की पूर्ण प्रभुसत्ता-संपन्न संविधान सभा बन गई । डा. राजेन्द्र प्रसाद इसके अध्यक्ष थे और डा. भीमराव आंबेडकर संविधान की प्रारूप समिति के सभापति । यह कोई मामूली बात नहीं थी कि संविधान सभा एक ऐसा संविधान बना सकी जो इस विशाल देश के एक छोर से दूसरे छोर तक लागू हो तथा कितनी ही विविधताओं के बीच एकता पुष्ट करने में सफल हो । डा. आंबेडकर ने 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में बोलते हुए बड़े महत्वपूर्ण शब्दों में कहा था, ‘मैं महसूस करता हूं कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग जिन्हें संविधान को चलाने का काम सौंपा जाएगा, खराब निकले तो निश्चित रूप से संविधान भी खराब सिद्ध होगा। दूसरी ओर, संविधान चाहे कितना भी खराब क्यों न हो, यदि उसे चलाने वाले अच्छे लोग हुए तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा।”
26 नवंबर, 1949 को डा. राजेन्द्र प्रसाद ने अपने समापन भाषण में स्मरणीय शब्दों में देशवासियों को चेतावनी देते हुए कहा था कि कुल मिलाकर संविधान सभा एक अच्छा संविधान बनाने में सफल हुई थी और उन्हें विश्वास था कि यह संविधान देश की आवश्यकताओं को पूरा कर सकेगा। किंतु, “यदि लोग, जो चुनकर आएंगे, योग्य, चरित्रवान और ईमानदार हुए तो वे दोषपूर्ण संविधान को भी सर्वोत्तम बना देंगे। यदि उनमें इन गुणों का अभाव हुआ तो संविधान देश की कोई मदद नहीं कर सकता।”
संविधान पर सदस्यों द्वारा 24 जनवरी, 1950 को हस्ताक्षर किए गए। इसके बाद राष्ट्रगान के साथ अनिश्चित काल के लिए संविधान सभा स्थगित कर दी गई। किंतु, इसके साथ संविधान की यात्रा समाप्त नहीं हुई। यह तो कहानी का आरंभ था । इसके बाद संविधान का कार्यकरण शुरू हुआ। अदालतों द्वारा इसकी व्याख्या हुई। विधानपालिका द्वारा इसके अंतर्गत कानून बने । सांविधानिक संशोधन हुए। इन सबके द्वारा संविधान निर्माण की प्रक्रिया जारी रही। संविधान विकसित होता रहा, बदलता रहा। समय-समय पर जिस-जिस प्रकार और जैसे-जैसे लोगों ने संविधान को चलाया, वैसे ही वैसे नए-नए अर्थ इसे मिलते गए।
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