संविधान की विशेषताएं

संविधान की विशेषताएं

भारत का संविधान | The constitution of India

भारत का संविधान संसार का सबसे लंबा और विशाल संविधान है। यह अनेक प्रकार से अनूठा भी है।
एक संविधान एक नागरिकता : हमारे समूचे देश के लिए एक ही संविधान है। एक ही नागरिकता है। राज्यों के संविधान भी इसी का अभिन्न अंग हैं।
मूल अधिकार, कर्तव्य और निदेशक तत्व : हमारे संविधान में मूल अधिकारों का एक पूरा अध्याय है। उन सीमाओं का भी वर्णन किया गया है जिनके अंतर्गत मूल अधिकारों को लागू किया जा सकता है। एक दूसरे अध्याय में नागरिकों के कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है।
राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद : संविधान ने भारत को एक गणराज्य बनाया है। गणराज्य का अध्यक्ष राष्ट्रपति है। सरकार के सब काम राष्ट्रपति के नाम से किए जाते हैं। राष्ट्रपति को केवल एक सांविधानिक प्रमुख माना जाता है। वास्तविक शक्ति मंत्रिपरिषद के हाथों में होती है। मंत्रिपरिषद जनता द्वारा निर्वाचित लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होती है। मंत्रिपरिषद में प्राय: लोक सभा और राज्य सभा दोनों के सदस्य होते हैं।
संविधान ने बुनियादी तौर पर, संघ तथा राज्य दोनों स्तरों पर संसदीय प्रणाली को अपनाया है। किंतु हमारे यहां संसद भी अपनी मनमानी नहीं कर सकती। उसके द्वारा पास किए गए कानूनों की जांच न्यायपालिका कर सकती है। व्यक्तियों के मूल अधिकार न केवल कार्यपालिका के बल्कि विधानपालिका के विरुद्ध भी लागू होते हैं।
संविधान निर्माताओं का विश्वास था कि सभी को संजोने और साथ लेकर चलने और एक मजबूत भारत का निर्माण करने के लिए संसदीय प्रणाली ही सबसे अधिक अनुकूल थी ।
वयस्क मताधिकार : हमारे देश के सभी नर-नारियों को बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार प्राप्त है। मतदाता बनने के लिए वयस्कता की आयु 21 वर्ष रखी गई थी जो बाद में 18 वर्ष कर दी गई ।
स्वतंत्र न्यायपालिका : भारत के संविधान में एक स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है। उसे न्यायिक पुनरीक्षण की शक्तियां प्रदान की गई हैं। अदालतें इस बात की जांच कर सकती हैं कि विधानपालिका द्वारा बनाए गए कानून अथवा सरकार के द्वारा दिए गए आदेश संविधान और विधि संगत हैं या नहीं। उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) तथा उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) एक ही न्यायिक संरचना के अंग हैं। उनका अधिकार क्षेत्र सभी कानूनों अर्थात संघ, राज्य, दीवानी, फौजदारी या सांविधानिक कानूनों पर होता है। ।
संविधान का परिसंघीय स्वरूप : भारत का संविधान एकात्मक नहीं परिसंघीय है। भारत राज्यों का संघ है। संघ की और राज्यों की अपनी-अपनी अलग विधानपालिका और कार्यपालिका हैं।
हमारे संविधान द्वारा स्थापित संघीय व्यवस्था एक विशेष प्रकार की है। इसमें एकात्मकता के प्रबल तत्व हैं। केवल प्रशासन की सुविधा के लिए देश को विभिन्न राज्यों में विभाजित किया गया था। देश पूर्णतया एक इकाई है। भारत संघ अनश्वर है। इसकी जनता एक ऐसा जनसमूह है जिसे बांटा नहीं जा सकता, अलग नहीं किया जा सकता।
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