संवेगों के नियंत्रण पर प्रकाश डालें।

प्रश्न – संवेगों के नियंत्रण पर प्रकाश डालें।
उत्तर – प्रत्येक सामाजिक समूह बालकों से यह अपेक्षा करता है कि वह संवेगों पर नियन्त्रण करना सीखेंगे। सम्भवतः इसी कारण बालकों के संवेगों को उचित दिशा में नियन्त्रित करना आवश्यक है। अनेक अध्ययनों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि जब एक बार संवेगात्मक व्यवहार प्रतिमानों को बालक अच्छी तरह सीख लेता है तो उनको छोड़ना उसके लिए कठिन होता है। साथ ही साथ इनको संशोधित करना भी कठिन होता है (T.A. Jersield, et al., 1974)। संवेगात्मक नियन्त्रण में सुखात्मक और दुःखात्मक दोनों प्रकार के संवेगों को नियन्त्रित करना होता है। सुखात्मक संवेगों को उचित दिशा प्रदान करने की आवश्यकता होती है जबकि दुःखात्मक संवेगों को एक विशिष्ट ढंग अथवा समाज द्वारा मान्य ढंग से व्यक्त करना सीखने या सिखाने की आवश्यकता होती है। संवेगों को नियन्त्रित करने के कुछ लोकप्रिय और प्रमुख प्रकार निम्न प्रकार से हैं-
( 1 ) शमन (Repression ) – यह एक प्रकार की मानसिक मनोरचना (Mental Mechanism) है जिसके द्वारा व्यक्ति अप्रिय, दुःखद और कष्टकारी घटनाओं, विचारों, इच्छाओं और प्रेरणाओं आदि को चेतना से जानबूझकर निकाल देता है। इस मनोरचना के द्वरा प्राप्त व्यक्ति दुःख और अप्रिय लगने वाली अनुभूतियों को इस मनोरचना के द्वारा बाहर निकाल देता है; उदाहरण के लिए, यदि सुबह-सुबह दूध वाले से झड़प में बहुत क्रोध आया, यह बहुत बुरा लगा तो इस बात को विभाग से यह कहकर निकाल दिया जो हुआ, दूध वाला ही बेवकूफ है इस प्रकार का विचार करके किसी अन्य कार्य में जुट गए।
( 2 ) संवेगात्मक शक्ति को समाज द्वारा स्वीकृत ढंग से व्यक्त करना (Express Emotions into Useful and Socially Aproved Channels ) – इस ढंग को मार्गान्तीकरण (Redirection) भी कह सकते हैं। इसमें बालक को इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाता है कि वह अपने संवेगों का प्रकाशन इस ढंग से करता है किं लोग उसे पसन्द करने लग जाते हैं, उदाहरण के लिए भय संवेग को इस प्रकार मार्गान्तरित किया जा सकता है कि बालक बुरे कार्यों को करने से डरने लग जाए।
( 3 ) अध्यवसाय (Industriouness) – बालकों के संवेगों को नियन्त्रित करने का एक ढंग यह है कि बालकों में संवेगों के उत्पन्न होने और व्यक्त करने का समय ही न मिले। इसके लिए आवश्यक है कि बालकों को पढ़ने-लिखने या किसी अन्य लाभदायक काम में व्यस्त रखा जाए। जब बच्चे अपनी रुचि के अनुसार कुछ कार्यों को करने में व्यस्त रहते हैं तब उनमें संवेग कम उत्पन्न होते है।
(4) विस्थापन (Displacement) पेज (J.D. Page, 1960) के अनुसार, यह वह मनोरचना है जिसमें किसी वस्तु या विचार से सम्बन्धित संवेग किसी अन्य वस्तु या विचार में स्थानान्तरित हो जाता है। उदाहरण के लिए, एक बन्ध्या स्त्री दूसरे बच्चे से प्रेम करे या कोई अपनी स्त्री से क्रोधित हो परन्तु अपनी स्त्री पर क्रोध व्यक्त न करके अपने कुत्ते या किसी अन्य पर क्रोध व्यक्त करे।
( 5 ) प्रतिगमन (Regression) कोलमैन (1974) के अनुसार अहम् (Ego), एकता और संगठन को बनाए रखने के लिए तथा तनाव (Stress) को दूर करने के लिए जब व्यक्ति कम परिपक्व प्रत्युत्तरों का सहारा लेता है तो यह मनोरचना प्रमिगमन कहलाती है। इस मनोरचना में बालक अपने से कम आयु के बालकों जैसा व्यवहार कर अपने संवेगात्मक तनाव को दूर करता है। उदाहरण के लिए, बालक ईर्ष्या और क्रोध को तोड़-फोड़ या बिस्तर पर पेशाब करके व्यक्त करे तो यह प्रतिगमन है।
( 6 ) संवेगात्मक रेचन (Emotional Catharsis) रेचन का अर्थ है कि शमित (Repressed) संवेगों को मुक्त करना। रेचन को परिभाषित करते हुए हरलॉक (1974) ने लिख है कि “Clearing the system of pent-up energy is known as emotional catharsis.” संवेगात्मक रेचन (Emotional Catharsis) के दो प्रकार हैं
(क) शारीरिक रेचन (Physical Catharsis) शारीरिक रेचन का अर्थ है संवेगों के कारण उत्पन्न शारीरिक शक्ति का व्यय होना। बालकों में संवेगों के कारण उत्पन्न शारीरिक शक्ति का व्यय मुख्यतः तीन प्रकार से होता है जैसे विभिन्न खेलों द्वारा (दौड़ना, कूदना, तैरना आदि), चिल्लाने के द्वारा या जोर से हँसने के द्वारा। परन्तु जोर से चिल्लाकर या जोर से हँस कर संवेगों द्वारा उत्पन्न शारीरिक शक्ति को व्यय करने के तरीके समाज द्वारा अधिक मान्य नहीं हैं।
(ख) मानसिक रेचन ( Mental Catharsis) इसमें बालक संवेगों द्वारा उत्पन्न शक्ति का व्यय उन परिस्थितियों और व्यक्यिों के प्रति अपनी अभिवृत्तियों को बदल कर करता है जिनके कारण संवेग उत्पन्न हुए है । मानसिक रेचन के लिए संवेगात्मक सहनशीलता आवश्यक है। एक अध्ययन (J.L. Singer, 1968) में यह देखा गया है कि अधि कांश बच्चे अपने संवेगों के कारण उत्पन्न शक्ति को निकालने के लिए दिवास्वप्नों (Daydreams) का सहारा लेते हैं। मानसिक रेचन बालक उस समय उपयोग में लाता है जब बालक में मानसिक योग्यताओं का विकास पर्याप्त मात्रा में हो जाता है, विशेष रूप से कल्पना का विकास हो जाता है।
अध्ययनों में देखा गया है कि बालक जो संवेगात्मक रेचन सीख जाते हैं, उन्हें उनके संवेगों से सन्तुष्टि ही प्राप्त नहीं होती है, बल्कि उन्हें उनके समूह से अनुमोदन (Approval) भी मिलता है। बालकों में संवेगात्मक रेचन निम्न प्रकार से सहायक हो सकते हैं (1) बालकों को प्रतिदिन कुछ मेहनत का काम या खेल खेलने चाहिए; (2) माता-पिता को चाहिए कि बालक के साथ स्वस्थ सम्बन्ध रखें और बालक को इस बात का प्रशिक्षण दें कि वह किस प्रकार अपनी समस्याओं का समाधान करे। (3) माता-पिता को चाहिए कि वह बालकों की संवेगात्मक समस्याओं को सुनें और उन्हें समझाएँ कि वह किस प्रकार संवेगों को अपनाए। (4) बच्चों का हँसमुख बनाकर संवेगात्मक रेचन सम्भव है। (5) बच्चों को सिखाया कि वह किन परिस्थितियों में चिल्ला कर या जोर से बोलकर उत्पन्न संवेगों से छुटकारा पाएँ।
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