सन् 1832 का अधिनियम | Act of 1832
सन् 1832 का अधिनियम | Act of 1832
सुधार नियम की आवश्यकता – इंग्लैंड का संविधान अन्य देशों के लिए अनुकरणीय रहा है। इसकी वजह यह है कि अन्य देशों की तुलना में इसमें प्रजा की भावनाओं को अधिक ध्यान रखा गया है। इंग्लैंड में दीर्घ काल से प्रतिनिधित्व प्रणाली चलती आ रही है। सन् 1790 ई. में इंग्लैंड के संविधान के सम्बन्ध में एडमण्ड बर्क ने कहा था, “यह उन सभी उद्देश्यों के लिए पूर्णतया उपयुक्त है, जिनके लिए जनप्रतिनिधि की इच्छा अथवा व्यवस्था की जा सकती है, परन्तु इस प्रणाली में समय के अनुसार सुधार नहीं हुआ था, अतः इतनी प्रशंसा होने पर भी इसमें कुछ दोष आ गये थे, क्योंकि शताब्दियों पुरानी पद्धति समय में परिवर्तित प्रभाव के अनुकूल नहीं रही थी।” राजनीति या सामाजिक क्षेत्रों के दोषों को दूर करने के लिए समय-समय पर सभी देशों में सुधार होते हैं। 1832 के ‘सुधार बिल’ का भी यही प्रयोजन था। ‘नेपोलियन के
युद्धों’ के उपरान्त इंग्लैंड की सामाजिक और राजनैतिक स्थिति का पतन हो गया था।
देश में भोजन और सामाजिक समानता का अभाव था, मतदाताओं की संख्या बहुत कम थी, लोग धन व्यय करके संसद के सदस्य (Done by Sachita) बनते थे । सरकारी कर्मचारी भ्रष्ट थे । इन कमियों को दूर किया जाना जरूरी था । फ्रांस की राज्य क्रांति और ‘जुलाई की क्रांति’ से प्रभावित होकर ब्रिटिश जनता ने सुधार की मांग शुरू कर दी। ट्रेविलियन ने लिखा हैए “भूस्वामी से लेकर गाड़ीवान तक, मालिक से लेकर नौकर तक प्रत्येक सुधार की जरूरत पर बात कर रहा था।”
संसदीय पद्धति में व्याप्त दोष
1688 की ‘गौरवपूर्ण क्रांति’ के फलस्वरूप इंग्लैंड में संसद की प्रभुता स्थापित हो गयी थी, पर यह प्रभुता जनसाधारण की न होकर उच्च वर्गों की थीं। इस प्रकार संसद वास्तविक रूप में जनता की प्रतिनिधि संस्था नहीं थी। उसमें कुछ भयंकर त्रुटियां थीं जो निम्न प्रकार थीं
1. मताधिकार में असमानता- मताधिकार के क्षेत्र में भारी असमानता थी, क्योंकि केवल धनी व्यक्ति ही मतदान के अधिकारी थे। अतः जनसंख्या के अनुपात में मतदाताओं की संख्या कम थी। मताधिकार का आधार स्थानीय प्रथाएँ थीं। ‘बरो’ और ‘काउंटियों’ में मताधिकार पद्धति एक समान न होकर विभिन्न प्रकार की पद्धतियों का प्रचलन था। कुछ ‘बरो’ में प्रतिनिधियों का मनोनयन ‘मेयर’ (Mayor) और कारपोरेशन (Corporation ) के द्वारा किया जाता था।
‘काउंटियों’ में मताधिकार की प्रणाली समान थी। काउंटियों में 40 शिलिंग लगान वाली जमीन के स्वतंत्र भू-स्वामियां (Freeholders) को वोट देने का अधिकार था। भूमिहीन मनुष्य मतदान कर नहीं सकते थे। ‘कापी होल्डर’ जो अपनी भूमि के स्वतंत्र मालिक नहीं थे, पट्टे पर जमीन लेने वालों और साधारण कृषकों को, बाट देने का अधि कार प्राप्त न था।
प्रतिनिधियों में असमानता- कॉमन सभा के लिए चुने जाने वाले प्रतिनिधि यों का विभिन्न स्थानों से वितरण उपयुक्त न था। वे औद्योगिक नगरों में रहने लगे थे, पर विभिन्न स्थानों से भेजे जाने वाले प्रतिनिधियों की संख्या अपरिवर्तित थी। प्रत्येक ‘काउन्टी’ (county) और ‘बरो’ (Borough) दो प्रतिनिधि भेजते थे। ‘काउन्टी’ (देहाती क्षेत्र) और ‘बरो’ (नगरीय क्षेत्र) के क्षेत्रफल तथा आबादी को ध्यान में नहीं रखा गया था। इसे एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। कार्नवाल (Cornwall) की जनसंख्या में भारी कमी आ गयी थी, पर वहाँ के उतने ही प्रतिनिधि थे, जितने कि स्कॉटलैंड के औद्योगिक क्रांति के कारण मानचेस्टर, बरकिंघम, शेफील्ड और लीड्स आदि अनेक नवीन और बड़े नगर स्थापित हो गये थे, पर कॉमन सभा में इनका कोई प्रतिनिधित्व न था। दूसरी तरफ कई जनहीन ‘बरो’ को प्रतिनिधि भेजने का अधिकार था, जैसे—
1. ओल्ड सेरम (Old Sarum) केवल एक टीला था।
2. गेटन (Gatton) एक पार्क में एक टूटी हुई दीवार थी ।
3. डनविच (Dunwhich) समुद्र में बह गया था।
तथापि इनके दो- दो व्यक्ति कामन सभा के सदस्य थे। ‘बरो’ में प्रतिनिधित्व की भारी असमानता थी। ‘बरो’ निम्नलिखित तीन प्रकार के थे—
(a) ‘स्वतंत्र बरो’ (Independent Borough)
(b) ‘लघु बरो’ (Pocket Borough)
(c) ‘नष्ट-भ्रष्ट बरो’ (Rosten Barough)
(a) स्वतंत्र बरो- जहाँ तक ‘स्वतंत्र बरो’ का सवाल है, वहाँ महाताओं को स्वतंत्रतापूर्वक मतदान का अधिकार प्राप्त था। पर इस ‘बरी’ की संख्या अधिक कम थी। इनके निर्वाचन क्षेत्र भी छोटे थे। ऐसे ‘बरो’ लगभग 300 प्रतिको निर्वाचित करते थे, जो कामन सभा के कुल सदस्यों के एक तिहाई से भी कम थे।
(b) लघु बरो- ‘लघु बरो’ जमींदारों की सम्पत्ति थे। प्रत्येक जमीदार के पास ऐसे अनेक ‘बरो’ थे। वह किसी भी व्यक्ति को कामन सभा के सदस्य के रूप में भेज सकता था। इस प्रकार से सदस्य जमींदार द्वारा मनोनीत किये जाते थे।
(c) नष्ट-भ्रष्ट बरो-‘नष्ट-भ्रष्ट बरो’ में मतदाताओं की संख्या कम थी। वे धन देकर खरीदे जाते थे।
3. कॉमन सभा जनता की प्रतिनिधि नहीं- कॉमन सथा जनता की वास्तविक प्रतिनिधि न थी। छोटे पिट के शब्दों में, “यह संसद ग्रेट ब्रिटेन की जनता की वास्तविक प्रतिनिधि नहीं है। यह नाममात्र के ‘बरो’ नए और उजड़े नगरों, कुलीन परिवारों, धनी व्यक्तियों और विदेशी शासकों के प्रतिनिधि हैं।” कॉमन सभा पर भू-स्वामियों और धनी व्यक्तियों का एकाधिकार था। लाई सभा के साथ-साथ कॉमन सभा में भी उन्हीं का आधिपत्य था।
कॉमन सभा की सदस्यता का सिद्धांत धन-सिद्धांत था। जिस व्यक्ति के पास जितना अधिक धन या सम्पत्ति होती थी, वह उतने ही अधिक सदस्य कॉमन सभा में भेजने का अधिकार रखता था। सिडनी स्मिथ का कहना है-‘देश पर ड्यूक ऑफ स्टलैंड, लार्ड लान्सडेल, ड्यूक ऑफ न्यूकैंसिल और ‘बरो’ के लगभग बीस अन्य मालिकों का अधिकार है। वे हमारे ऑफिस के स्वामी हैं।”.
4. रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार- निर्वाचन में भ्रष्ट विधियाँ उपयोग में लायी जाती थीं। घूस का प्रचलन था। मतदाताओं को धमकी दी जाती थी। मजदूर अपने मालिकों की इच्छा के अनुसार ही मतदान देने के लिए विवश थे। कृषक अपनी भूमि छीने जाने के डर से अपने भूस्वामियों की आज्ञा के अनुसार ही मतदान किया करते थे। कुछ ‘बरो’ के स्वामी या निवासी समाचार पत्रों में यह विज्ञापन निकलवाते थे कि कितना धन देकर उन वोटों को खरीदा जा सकता था।
मेरियट के अनुसार, “कॉमन सभा का सदस्य बनने में 7 हजार पौंड से अधिक खर्च हो जाना सामान्य सी बात थी।” 1786 में लार्ड बैटिंक (Bentinck) और लार्ड लोथर (Lowther) में से प्रत्येक ने 40 हजार पौंड व्यय किये। 1807 में लार्ड मिल्टन (Milion) और लार्ड लारसेल्स (LordLarcalles) ने मिलकर 2 लाख पाँड व्यय किये। भारी धन व्यय कर कॉमन सभा के सदस्य अपने मतों को बेचकर अपने व्यय किये हुए धन की पूर्ति करते थे। जार्ज तृतीय ने इस मौके का फायदा उठाकर सभा के सदस्यों को धन देकर ‘राजा का मित्र दल’ संगठित किया था। कॉमन सभा में भी घूसखोरी और भ्रष्टाचार व्याप्त था।
सुधारों की मांग- 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध से ही देश के विभिन्न नेता और प्रध नमंत्री संसदीय सुधार की मांग करते आ रहे थे। बड़े पिट, फॉक्स तथा छोटे पिट ने 18वीं शताब्दी में संसदीय पद्धति की बुराइयों को खत्म करने के लिए आवाज उठाई थी, पर कोई ठोस निर्णय न निकल सका था। फ्रांस की क्रांति तथा नेपोलियन के युद्धों ने भी संसदीय सुधार आंदोलन के रास्ते में बाधा डाली, तथापि ‘ लंदन कॉरापोंडिंग सोसायटी’ तथा ‘जन मित्र संघ’ ने 19वीं शताब्दी के प्रथम चतुर्थांश में संसदीय सुधार आंदोलन जारी रखा। 1830 में इस आंदोलन में नई स्फूर्ति तथा उत्साह उत्पन्न हुआ।
1832 के सुधार बिल पर संघर्ष- सुधार के घोर शत्रु जार्ज चतुर्थ की मृत्यु के पश्चात उसका भाई विलियम चतुर्थ जो संसदीय सुधार के पक्ष में था, सिंहासन पर आरूढ़ हुआ। उसी वर्ष फ्रांस में ‘जुलाई क्रांति’ हुई। यह क्रांति संवैधानिक सरकार की विजय थी। उसने इंग्लैंड के सुधार आंदोलन को प्रोत्साहित किया। नवम्बर 1830 में टोरी प्रधानमंत्री वेलिंगटन का ड्यूक हाउस ऑफ कॉमन्स में हार गया। राजा ने तब व्हिग नेता अर्ल ग्रे को मंत्रिमंडल बनाने के लिए आमंत्रित किया।
प्रथम बिल- अर्ल ग्रे संसदीय सुधार का अधिक समर्थक था। सत्तारूढ़ होने के उपरान्त, उसने जॉन रसेल के नेतृत्व में सुधार विधेयक पेश किया। वह समिति की अवस्था में ही हाउस ऑफ कॉमन्स में अस्वीकृत हो गया। विलियम चतुर्थ ने सदन भंग कर दिया और फिर नये चुनाव हुए। चुनावों में व्हिग दल का नारा था, “बिल सम्पूर्ण बिल, बिल और कुछ नहीं बस बिल ” चुनाव में सुधारकों का बहुमत संसद में चुनकर आया।
द्वितीय बिल- जून 1831 में लार्ड जॉन रसेल ने पुन: सुधार बिल पेश किया। इस बार वह सुधार बिल हाउस ऑफ कॉमन्स से पास हो गया। पर इस मौके पर हाउस ऑफ लार्डस के सदस्यों ने बाधाएँ पैदा कीं। वे इस प्रकार का संशोधन पास करना चाहते थे, जो ग्रे तथा उसके दल को मान्य नहीं थे।
तृतीय बिल- मार्च 1832 में लार्ड जॉन रसेल ने तीसरी बार सुधार बिल पेश किया। वह कामन सदन में तो पास हो गया किन्तु हाउस ऑफ लार्ड्स ने उसमें अनेक संशोधन करने पर जोर दिया। तब प्रधानमंत्री ग्रे ने राजा को नये व्हिग पुरुष चुनने तथा बिल पास करवाने पर जोर दिया। जब राजा ने ग्रे की राय अस्वीकार कर दी तो उसने इस्तीफा दे दिया। विलियम चतुर्थ ने वेलिंगटन के ड्यूक को नया मंत्रिमंडल गठित करने के लिए बुलाया, किन्तु वेलिंगटन युद्ध न कर सका। तब राजा पुनः ग्रे को आमंत्रित किया और उसे आश्वासन दिया कि वह नये भद्र पुरुषों का चयन करेगा। इससे लार्ड्स भयभीत हो गये। अधिकांश टोरी भद्र पुरुष अनुपस्थित रहे और रसेल का तीसरा सुधार बिल पारित हुआ तो 1832 का सुधार ऐक्ट बना। ने
1832 के सुधार ऐक्ट की धाराएँ- 1832 के सुधार अधिनियम में 82 धाराएँ थीं। राबर्टसन (Robertson) ने कहा कि “इस कार्यवाही से मताधिकार छिन गया, इसी ने मताधिकार दिया, इससे पुनर्वितरण हुआ, चुनाव सम्बन्धी मशीनरी, रजिस्ट्रेशन तथा भ्रष्ट व्यवहार आदि का सुधार हुआ । “
इस विधेयक की प्रमुख धाराएँ निम्न प्रकार थीं—
1. मत छीनने वाली धाराएँ- (i) 56 बरो, जिनकी संख्या 4000 से कम थी, जैसे विल्टन, माम्सबरी आदि को दो के बजाय केवल एक ही सदस्य संसद में भेजने का अधिकार प्राप्त हुआ। इन परिवर्तनों से वितरण के लिए 143 स्थान प्राप्त हुए।
1. मताधिकार देने वाली धाराएँ – (i) बरो- बरो के मताधिकार के लिए परम्परागत योग्यताएं खत्म कर दी गईं। बरों में 10 पौंड की सम्पत्ति वाले व्यक्ति को सार्वभौम मताधिकार दिया गया था अर्थात सभी पुरुषों को, जो पौंड वार्षिक आय के मकान के स्थायी हों या किरायेदार, वोट देने का अधिकार प्राप्त हो गया था।
(ii) काउण्टी में प्राचीन 40 शिलिंग सम्पत्ति के उन्मुक्त भूमि अधिकारियों, 10 पौंड के कापीहोल्डरों, पट्टेदारों और स्वेच्छा से किराया देने वाले किरायेदारों, जो 50 पौंड प्रतिवर्ष लगान या किराया देते हों, को मताधिकार प्राप्त हुआ।
3. नष्ट भ्रष्ट ‘बरो’ की समाप्ति- 56 नष्ट-भ्रष्ट ‘ बरो’ को जो 111 सदस्य भेजते थे, इस अधिकार से वंचित कर दिया गया। 33 ‘बरो’ जिनकी संख्या 4 हजार से कम थी, केवल एक सदस्य भेज सकते थे। इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप 143 सदस्यों के स्थान खाली हुए जिनका फिर से वितरण किया गया।
4. स्थानों का नया वितरण – खाली होने वाले 143 स्थानों का वितरण इस प्रकार किया गया- काउण्टियों को 65, 22 बड़े नगरों को 44, 21 छोटे नगरों को 21, स्कॉटलैंड को 8, आयरलैंड को 5, सन् 1832 और बाद की कॉमन सभा की सदस्यता का वितरण निम्नलिखित प्रकार से था—
1. इंग्लैंड और वेल्स – 1832 के पूर्व – 1832 के बाद
(i) काउन्टियाँ – 94 159
(ii) बरो – 419 341
2.स्कॉटलैंड – 45 53
3. आयरलैंड – 100 105
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योग 658 658
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सुधार अधिनियम के गुण
मोवेद का विचार है कि, “सुधार अधिनियम ने हमारे इतिहास में क्रांति ला दी, पर यह क्रांति बिल्कुल अंग्रेजी ढंग की थी। अधिनियम वैधानिक विधि से पास किया गया था और जिन्होंने उसकी मांग की थी और जिन्होंने इसका विरोध किया था, दोनों के द्वारा अर्थात सम्पूर्ण राष्ट्र के द्वारा इसको कार्यान्वित किया गया ।
” ‘सुधार अधिनियम’ के गुणों का उल्लेख निम्नांकित पंक्तियों में किया जा सकता है—
(i) ग्रहन के अनुसार, इस अधिनियम ने ‘शासक वर्गों के दैवी अधिकार के सिद्धांत’ को खत्म करके ‘उपयोगिता के सिद्धांत’ को (Principle of Unity) सर्वमान्य बनाया।
(ii) ग्रीन के अनुसार, इस अधिनियम के पूर्व मंत्रियों का चयन राजा की इच्छा पर आश्रित हो गया। इस प्रकार वे लोकप्रिय हो गये।
(ii) नगरों में राजनैतिक सत्ता-भूस्वामियों के स्थान पर मध्यवर्ग के हाथ में आ गई। देहातों में स्वतंत्र भूस्वामियों, कॉपी होल्डरों और किसानों को राजनैतिक सत्ता प्राप्त हो गई।
(iv) राजनैतिक क्षेत्र में मध्यवर्ग का प्रभाव इतना बढ़ गया कि इंग्लैंड के इतिहास में 1832 से 1855 तक का समय ‘मध्यवर्गीय शासनकाल’ (Rule of Middle Class) के नाम से प्रसिद्ध है।
(v) हाल और एल्बियन के अनुसार, इस अधिनियम ने इंग्लैंड में जमींदार वंश का सरकार पर एकाधिकार हमेशा के लिए खत्म कर दिया।
(vi) टाउंट के अनुसार, इस अधिनियम ने भूस्वामियों की शक्ति को कम कर दिया और शक्ति संतुलन को मध्यवर्ग के लिए हस्तान्तरित कर दिया।
(vii) इंग्लैंड के निर्वाचकों की संख्या पहले से तिगुनी से भी अधिक कर दी गयी। अब वह संख्या लगभग 5 लाख हो गई । फलस्वरूप 24 व्यक्तियों में से एक व्यक्ति को मतदान का अधिकार मिल गया।
(vii) इस अधिनियम ने यह स्पष्ट कर दिया कि सम्राट के हाथ में प्रभाव है, शक्ति नहीं। दोनों सभाओं के मध्य संघर्ष होने पर यह निश्चित हो गया कि सम्राट को कामन सभा का ही समर्थन करना पड़ेगा। वह प्रधानमंत्री के अनुरोध को इनकार नहीं कर सकता।
(ix) इस अधिनियम से परिवर्तन के सिद्धांत को मान लिया गया। आगामी सुध ारों के लिए रास्ता सुगम और साफ हो गया।
(x) कॉमन सभा को वास्तव में जनतांत्रिक बना दिया गया। वह लोकमत का प्रतिनिधित्व करने लगी और इससे उसके महत्व में अत्यधिक वृद्धि हो गयी ।
(xi) लार्ड सभा को अपनी सीमित शक्ति का ज्ञान हो गया। वह भविष्य में जनता की इच्छा के समक्ष नतमस्तक होने लगी।
(xii) इंग्लैंड के उत्तरी -पश्चिमी भागों में स्थित व्यावसायिक केन्द्रों को मताधि कार दे दिया गया। अत: इस भाग का महत्व दक्षिणी पूर्वी भाग से अधिक हो गया, जहां के अधिकांश देहाती क्षेत्रों को मताधिकार से वंचित कर दिया गया था।
(xii) टोरियों की सोच में परिवर्तन आ गया, अतः अब वे रूढ़िवादी (Conservative) कहलाने लगे। इसी प्रकार व्हिग उदारवादी (Liberal) कहलाने लगे।
(xvi) रेम्जेम्योर के अनुसार, इस अधिनियम ने टोरियों के दृष्टिकोण मे बदलाव कर दिया और वे पहले से कहीं अधिक सुधारवादी हो गये । यही कारण था कि जब टोरी नेता पोल (Pool) को शक्ति प्राप्त हुई, तब उसने अनेक सुधार सम्बन्धी कार्य किये।
(xv) रेम्जेम्यूर के अनुसार, “इस ऐक्ट से पहले होने वाले सभी संवैधानिक परिवर्तन संकेत तथा पूर्वोदाहरण के नतीजे थे, परन्तु सन् 1832 ई. का सुधार अधि नियम इससे पृथक था। इसके अनुसार हाउस ऑफ लार्ड्स की तुलना में सम्पूर्ण राष्ट्र चाहे उसे मताधिकार प्राप्त था अथवा नहीं, अधिक श्रेष्ठ था। इस अधिनियम से इस बात की पुष्टि होती कि सर्वोच्च सत्ता अन्ततोगत्वा जनता के वास्तविक प्रतिनिधि हाउस ऑफ कॉमन्स में निहित है न कि हाउस ऑफ लार्ड्स में । “
(xvi) बार्कर, आयुविन तथा ओल्ड के मतानुसार, “सन् 1832 ई. के सुधार अधिनियम का महत्व पर्याप्त रूप से स्पष्ट था। इसके पास होने के पश्चात इंग्लैंड में उन राजनीतिक तथा शासन सम्बन्धी सुधारों की श्रृंखला का पास होना संभव हो सका, जिन्होंने कालान्तर में आधुनिक इंग्लैंड की आधारशिला रखी। “
(xvii) हाल तथा एल्वियन के अनुसार, “इस प्रकार इंग्लैंड की जनता ने एक क्रांति ही की। यह क्रांति फ्रांस की सन् 1830 ई. की क्रांति से अधिक वास्तविक क्रांति थी। इस क्रांति ने किसी भी राज्य वंश की राज्य खत्म नहीं किया, परन्तु इसने इंग्लैंड में सामन्त वर्ग तथा उच्च वर्ग का सरकार पर एकाधिकार अवश्य ही खत्म कर दिया। फ्रांस की समकालीन क्रांति ने दो सौ में से एक नागरिक को मतदाता बनाया, परन्तु इंग्लैंड के इस अधिनियम ने लगभग पच्चीस में से एक का मतदाता बनाया।”
‘सुधार अधिनियम’ के दोष
ट्रेवेलियन के मतानुसार, “जनता ने शासक वर्ग से अपना आधुनिक मताधि कार पत्र छीन लिया। उस समय के बाद जनता अपने देश की स्वामी हो गई, पर जनता के राजनैतिक अधिकारों की सीमा को अभी मताधिकार संघर्षों द्वारा निश्चित किया जाना जरूरी था। “
सन् 1832 ई. के ‘सुधार अधिनियम’ द्वारा जनता के राजनैतिक अधिकारों को निर्धारित नहीं किया गया। अतः भविष्य में जनता ने पुनः संसदीय सुधार के लिए आन्दोलन किये। सुधार अधिनियम में प्रमुख दोष या त्रुटियाँ निम्न प्रकार थीं
1. सदनों के बीच तनाव- प्रो. केर (Keir) के अनुसार, इस अधिनियम ने लार्ड्स सभा और कॉमन सभा के शांतिपूर्ण सम्बन्धों की समाप्ति कर दी और उनके मध्य में चौड़ी खाई का निर्माण कर दिया। फलस्वरूप भविष्य में लार्ड्स सभा ने कॉमन सभा के सभी कार्यों का विरोध किया।
2. मंत्रिमंडल की शक्ति में भारी वृद्धि- प्रो. केर के अनुसार, इस अधि नियम ने राजा और लार्डों की शक्तियों में कमी करके मंत्रिमंडल की शक्ति बढ़ा दी, जिससे उसके किसी भी कार्य पर अंकुश नहीं रह गया।
3. लार्ड सभा की महत्वपूर्ण शक्तियाँ- ग्रीन के अनुसार, इस अधिनियम ने लार्ड सभा की शक्ति में कमी नहीं की। 5 वर्ष की अवधि को छोड़कर जब लार्ड्स जॉन रसल (John Russell) प्रधानमंत्री था, आने वाले 36 वर्षों तक व्हिग और टोरी दोनों के मंत्रिमंडलों का निर्माण लार्ड सभा ने किया।
4. कॉमन सभा में नाम मात्र का परिवर्तन – ग्रीन के अनुसार इस अधि नियम ने कॉमन सभा मे नाम मात्र का बदलाव किया । उस पर भूस्वामियों का अधि कार पहले की ही तरह रहा । वे अभी भी सम्पूर्ण देश के आधे ‘बरो’ के स्वामी थे ।
5. बड़ी जनसंख्या को मताधिकार नहीं ग्रीन के अनुसार, इस अधिनियम ने व्यापारियों को मताधिकार दिया, पर मध्य वर्ग में से आधे व्यक्ति मताधिकार से वंचित रखे गये। इसी प्रकार मजदूर वर्ग को, जिसकी मदद से यह अधिनियम पारित हुआ, मताधिकार नहीं दिया गया।
6. पूर्णरूप से जनतंत्रीय नहीं- मोवट के अनुसार, यह अधिनियम पूर्णरूप से जनतंत्रीय नहीं था, इसने शिल्पियों और खेतों में काम करने वाले मजदूरों को मताधिकार नहीं दिया।
7. आंशिक परिवर्तन- रेन्सम के अनुसार, इस ने नगरों में तो भूस्वामियों की शक्ति में काफी कमी कर दी, पर ग्रामों में उनका प्रभाव यथावत् बना रहा।
8. बड़े नगरों तक सीमित- ट्रेवेलियन के अनुसार, इस अधिनियम का सम्बन्ध बड़े नगरों से था। वहां दो जनतंत्रीय संस्थाओं की स्थापना हो गयी, पर ग्रामों में 1888 तक निर्वाचित काउन्टी कौसिलें (County Councils) स्थापित नहीं हुई।
9. मध्यवर्ग को राजनैतिक शक्ति नहीं- रेम्जेम्योर के अनुसार, यह कथन गलत है कि इस अधिनियम ने मध्य वर्ग को राजनैतिक शक्ति दे दी, इसका कारण यह है कि इसने मध्यवर्ग के उन व्यक्तियों को मताधिकार नहीं दिया, जिनके मकानों का किराया 4 शिलिंग प्रति सप्ताह था।
10. खुला मतदान- गुप्त मतदान की प्रणाली शुरू नहीं की गयी। लोग अभी भी सार्वजनिक मंच पर चढ़कर उस व्यक्ति का नाम जोर से बोलते थे, जिसे वे वोट दिया करते थे। इस प्रकार मतदाताओं पर धनी व्यक्तियों का प्रभाव पूर्ववत् बना रहा। ‘अधिनियम’ से मताधिकार का विस्तार होने पर भी नगरों में मिल मालिकों और ग्रामों में भूस्वामियों ने फायदा उठाया।
11. भ्रष्टाचार- मोर्ले के अनुसार, घूस और भष्टाचार में कोई कमी नहीं की गयी, धनी और शक्तिशाली व्यक्ति अब भी धन का प्रलोभन देकर या भय दिखाकर उन व्यक्तियों के वोट ले सकते थे, जिन पर उनका असर था ।
12. भूस्वामियों का प्रभाव – वुडवर्ड के अनुसार, इस अधिनियम ने नगरों में भूस्वामियों के प्रभाव में कोई भी कमी नहीं की। टामस डनकाम्बे (Thomas Doncombe) ने उन व्यक्तियों को, जिनको लार्ड सेलिसबरी (Salisbury) ने उनके घरों से निकाल दिया था, नये घरों में बसाने के लिए 40 हजार पौंड व्यय किये और इस प्रकार उनको अपने प्रभाव के अन्तर्गत लाकर उनके मत हासिल किये।
निष्कर्ष- उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि, “अधिनियम ने कामन सभा को शासन और निर्णय करने वाला सदन बना दिया। इसने पिट के इस निर्भीक सिद्धांत को विरोध की दशा में केवल कॉमन सभा ही राज्य की रक्षा कर सकेगी, जो उसने 200 वर्ष पूर्व प्रतिपादित किया था, अब निश्चित रूप से संविधान का एक आधार घोषित कर दिया । “
इतिहासकार ट्रेवेलियन का कहना है, “यह कहना भ्रमपूर्ण है कि मध्यम वर्ग को सब अधिकार प्राप्त हो गये थे। जो शक्ति अब तक सामन्तों के हाथ में थी, सामन्तों के साथ-साथ मध्यम वर्ग में भी वितरित कर दी गयी।“नेतृत्व अभी भी पीयर्स के हाथों में ही रहा। मध्यम वर्ग का अधिकांश भाग अभी भी संतुष्ट न था। निम्न वर्ग, श्रमिकों तथा कृषकों को भी इससे कोई फायदा नहीं हुआ। अनेक स्थानों पर मतदाताओं की संख्या में कमी हो गयी, जहां इस संख्या में वृद्धि भी हुई थी, वहां जमींदारों के महत्व में भी वृद्धि हो गयी थी। जमींदार वर्ग अपनी भूमि पर कार्य करने वालों अथवा किरायेदारों पर अधिक प्रभाव डाल सकता था। कारण यह था कि वोट हाथ उठाकर प्रत्यक्ष रूप से पड़ते थे। मजदूर वर्ग निराश हो गया और उसने असन्तुष्ट मध्यम वर्ग से सहयोग करके कालान्तर में चार्टिस्ट का समर्थन किया। इस प्रकार सन् 1832 ई. का अधिनियम अंतिम निर्णय नहीं था। कालान्तर में जनता की शिकायतें सन् 1867,1881,1918 तथा1928 ई. में कई ऐक्ट पास करके दूर की गयीं।
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