सर राबर्ट पोल-नीतियाँ, सुधार एवं कार्य | Sir Robert Paul – Policies, Reforms and Works
सर राबर्ट पोल-नीतियाँ, सुधार एवं कार्य | Sir Robert Paul – Policies, Reforms and Works
राबर्ट पोल का प्रारम्भिक जीवन-सर राबर्ट पोल का जन्म सन् 1788 ई. में हुआ था। उसका पिता टोरी बैरनट (Tory Baronet) था। सर राबर्ट पोल को हैरो तथा ऑक्सफोर्ड में शिक्षा के लिए भेजा गया। पोल को छोटे पिट के समान राजनैतिक कार्यों में हिस्सा लेने में महान रुचि थी। वह कुशाग्र एवं तीव्र बुद्धि वाला विद्यार्थी था। वह प्रायः 18-18 घण्टे तक लगातार अध्ययन करता था तथा दो-दो परीक्षाओं में प्रथम स्थान प्राप्त करता था। उसके पिता ने उसके बाल्यकाल में ही उसके लिए आयरलैंड में एक रोटन बैरो की व्यवस्था कर दी थी, जिसमें केवल 12 मतदाता थे। इन्होंने सन् 1809 ई. में सर राबर्ट पोल को अपना प्रतिनिधि निर्वाचित करके इंग्लैंड की संसद में भेजा था। 21 वर्ष की कम उम्र में ही पोल कामन सभा का सदस्य हो गया था।
वह टोरी दल में होनहार तथा उदीयमान राजनीतिज्ञ माना जाने लगा। सन् 1809 ई. में ही वह अपने दल के सदस्य के रूप में सर्राफा कमेटी का सदस्य चुन लिया गया। सन् 1810 ई. में उसे उपमंत्री नियुक्त किया गया। सन् 1812 ई. में तत्कालीन प्रधानमंत्री लार्ड लिवरपूल ने अपने मंत्रिमंडल में उसकी नियुक्ति आयरलैंड के मुख्य सचिव के रूप में की। वह 6 वर्षों तक आयरलैंड में रहा और वहां की समस्याओं का अध्ययन करके उसने अपनी योग्यता का उत्तम परिचय दिया। 1817 ई. में पोल ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा कामन सभा का प्रतिनिधि निर्वाचित किया गया। 1819 ई. में उसने ‘बैंक ऑफ इंग्लैंड’ (Bank of England) पर नकदी चुकाने का भार रखकर विशेष प्रसिद्धि प्राप्त की। 1822 में वह लिवरपूल के मंत्रिमंडल में गृहमंत्री के पद पर नियुक्त किया गया।
गृहमंत्री के रूप में पोल ने फौजदारी कानून (Penal Law) में संशोधन किया। 1827 में उसने कैनिंग (Conning) के मंत्रिमंडल में पद इस वजह से ग्रहण किया, क्योंकि कैथोलिकों की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में उसका कैनिंग से मतभेद था। 1828 ई. में वैलिंगटन (Wellington) के मंत्रिमंडल में उसको गृहमंत्री नियुक्त किया गया। उसी वर्ष उसने लंदन की पुलिस (Meyropolition Police Force) का निर्माण किया। उसे कामन सभा का नेता चुना गया। 1829 ई. में उसने ‘कैथोलिक मुक्ति विधेयक’ (Catholic Emancipation Bill) संसद में प्रस्तुत किया।
अपने महान कार्यों द्वारा 1830 ई. में उसे ‘सर’ (Sir) की उपाधि दी गयी। 1834-35 में पांच माह के लिए वह इंग्लैंड का प्रधानमंत्री रहा, पर कामन सभा में बहुमत न होने के कारण उसे अपना पद छोड़ना पड़ा। 1835 से 1839 की अवधि में उसने ‘टोरी या अनुदार अल’ (Tory of Conservative Party) को संगठित कर शक्तिसम्पन्न बनाया। 1839 ई. में विक्टोरिया ने उसको प्रधानमंत्री का पद स्वीकार करने के लिए आमंत्रित किया। पर शयनकक्ष के सवाल (Bedchamber Question ) पर रानी से मतभेद होने के ‘कारण उसने पद अस्वीकार कर दिया। सन् 1841 ई. में वह इंग्लैंड का प्रधानमंत्री बन गया। उसने अपने मंत्रिमंडल में समकालीन योग्यतम व्यक्तियों को ही लिया।
कार्न ला (Corn Law) के सवाल पर उसके दल में मतभेद हो गया और उसने सन् 1846 ई. में बाध्य होकर इस्तीफा दे दिया। सन् 1850 ई. में घोड़े पर से गिर जाने के कारण 62 वर्ष की आयु में उसका निधन हो गया।
सर राबर्ट पोल के राजनीतिक विचार- यद्यपि पोल टोरी पार्टी का सदस्य था, तथापि वह टोरी पार्टी से बंधा हुआ नहीं था। जरूरत के मुताबिक वह अपने विचारों में बदलाव करता रहता था। वह पार्टी की तुलना में देश हित को सर्वोपरि मानता था। वह जनता के कष्टों को महसूस करता था। कष्टों का निवारण करने के लिए उद्यत रहा करता था। अतएव कभी-कभी देशहित को दृष्टिगत रखते हुए वह अपने दल के स्वार्थों पर भी वह नवीन विचारों को ग्रहण करने में नहीं हिचकता था। उसने मृतप्राय: टोरी दल में नवीन शक्ति का संचार किया और उसने अपने देश की जनता के सम्मुख “उत्तम शासन, सुदृढ़ आर्थिक स्थिति तथा मध्यम मार्गी कार्यक्रम प्रस्तुत किया। सन् 1832 ई. में सुधारवादी कार्यक्रम स्वीकार करने के कारण वह उदारवादी बन गया।
राबर्ट पोल की गृह-नीति
राबर्ट पोल की गृह-नीति का मूल्यांकन निम्नांकित बिन्दुओं के आधार पर किया जा सकता है—
1. अपराध नियम में सुधार- राबर्ट पोल ने फौजदारी कानूनों में सुधार लाने का प्रयास किया। समकालीन इंग्लैंड में छोटे-छोटे अपराधों तथा गंभीर अपराधों के लिए समान दण्ड व्यवस्था थी। उदाहरणार्थ जेब काटना, वृक्ष काटना अथवा चोरी करना आदि। साधारण अपराधों पर आजीवन कारावास अथवा मृत्यु-दण्ड दिया जाता था। पोल ने भयंकर अपराधों की सूची में से 100 अपराध निकाल दिये। उसने पादरियों के विशेष अधिकारों का अंत कर दिया। जेल व्यवस्था में भी सुधार किये गये।
2. नैवीगेशन ऐक्ट की समाप्ति- स्वतंत्र व्यापार प्रणाली का समर्थक होने के कारण पोल ने नैवीगेशन ऐक्ट को खत्म कर देश के व्यापार को प्रोत्साहन प्रदान किया।
3. मजदूर नियम- पोल ने श्रमिकों की दशा में सुधार करने का प्रयत्न किया। उसने सन् 1824 ई. में श्रम नियम (इंवनत बज) पास कर श्रमिकों का वेतन निश्चित किया तथा मालिकों द्वारा श्रमिकों को आपसी सहयोग से ट्रेड यूनियन बनाने का भी अधिकार दिया।
4. पुलिस सुधार- सन् 1828 ई. में पोल ने लंदन में मेट्रोपोलिटन पुलिस (Metropoliton Police) का गठन किया। अब लंदन पुलिस का कार्य अपराधियों की खोज करना तथा अपराधों पर नियंत्रण करना था।
5. कैथोलिक मुक्ति कानून इंग्लैंड का राज्य धर्म प्रोटेस्टेन्ट धर्म था। अतएव कैथोलिक धर्म के अनुयायियों को उच्च पद नहीं मिलते थे। पोल इस व्यवस्था का विरोधी था। उसने सन् 1829 ई. में कैथोलिकों की मुक्ति का कानून (Catholic Emancipation Act) पास करा दिया। इस कानून के अनुसार कुछ विशेष पदों के सिवाय कैथोलिक भी प्रोटेस्टेन्ट धर्मावलम्बियों की तरह उच्च पद प्राप्त कर सकते थे और संसद सदस्य भी निर्वाचित हो सकते थे।
6. खान-अधिनियम- खान मजदूरों की दशा बहुत दयनीय थी। वे ‘गोरे गुलाम’ कहे जाते थे। पोल की सलाह पर लार्ड ऐशले (Commission) की नियुक्ति की और उसे खानों में कार्य करने वाले बच्चों की स्थिति के सम्बन्ध में विशेष रूप से निरीक्षण करने
का आदेश दिया। आयोग ने खानों में काम करने वाले बालकों और बालिकाओं का अति भयावह चित्र प्रस्तुत किया। इसके अनुसार स्त्रियाँ तथा 10 वर्ष से कम आयु के बच्चे खानों में काम नहीं कर सकते थे। इससे अधिक आयु के बच्चों से सप्ताह में केवल तीन दिन काम लिया जा सकता था। ‘खान अधिनियम’ का उपयुक्त प्रकार से पालन कराने के लिए निरीक्षकों की नियुक्तियां की गयीं ।
7. फैक्ट्री अधिनियम- ऐशले (Ashley) के श्रमिकों के हितकारी कार्य से प्रेरणा प्राप्त कर पोल के मंत्रिमंडल के गृहमंत्री ग्रेहम (Graham) ने 1844 ई. के सुध र नियम के कारण टोरी दल में विघटन के संकेत स्पष्ट दिखाई देने लगे। सन् 1832 ई. में पोल ने एक चुनाव घोषणा पत्र जारी किया और उसके आधार पर निर्वाचन में सफलता प्राप्त की। ग्रे (Grey) के पश्चात उसे प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला, परन्तु चार महीने के बाद ही उसे इस्तीफा देना पड़ा। सन् 1839 ई. में उसे प्रधानमंत्री बनने के लिए आमंत्रित किया गया। परन्तु महारानी विक्टोरिया से बैड चैम्बर के सवाल पर मतभेद होने के कारण उसने प्रधानमंत्री बनना अस्वीकार कर दिया। अब पोल की लोकप्रियता में निरन्तर वृद्धि हो रही थी।
पोल – वित्त मंत्री के रूप में – वास्तव में पोल वित्त मंत्री के रूप में अधिक सफल रहा और वह वालपोल (Walpole) की तरह एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री साबित हुआ। सुविधा की दृष्टि से पोल के वित्त और आर्थिक सुधारों के लिए अपनाई गई नीतियों का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है–
1. 1842 का बजट
2. ऋण-पत्रों में परिवर्तन
3. 1844 का बैंक चार्टर अधिनियम और
4. 1845 का बजट।
1. 1842 का बजट- यद्यपि पोल प्रधानमंत्री था और संसद के सामने बजट पेश करना वित्त मंत्री का कार्य था, पर वह आर्थिक सुधार के सम्बन्ध में इतना चिन्तित था कि उसने स्वयं बजट तैयार करके 11 मार्च 1842 को पेश किया। इस बजट में देश की आर्थिक दशा में सुधार करने के लिए तीन महत्वपूर्ण उपायों का वर्णन किया गया—
1. अनाज-नियमों की पुनरावृत्ति, 2. आयकर और चुंगियों का लगाया जाना, 3. आयात-निर्यात कर सम्बन्धी सुधार ।
(i) अनाज नियम- प्रधानमंत्री बनने के समय पोल स्वदेश में बनी हुई वस्तुओं को प्रोत्साहन देने के पक्ष में था। वह ‘ अनाज नियम विरोधी संघ’ (Anti-Corn League) को देश के लिए अहितकर मानता था, पर परिस्थितियों की गंभीरता को समझकर उसने यह निष्कर्ष निकाला कि अनाज-नियमों की पुनरावृत्ति जरूरी था। इसी से देश में अनाज की कमी को दूर किया जा सकता है। 1818 में पोल ने मूल्य के अनुसार आयात कर में कमी या वृद्धि के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इसके अनुसार अनाज का मूल्य लगभग 70 शिलिंग रखा गया था देश में अनाज का मूल्य 73 शिलिंग हो जाने पर उस पर केवल 1 शिलिंग आयात कर लिया जाता था। 64 और 69 शिलिंग के मध्य में होने पर आयात कर बढ़ाकर 16 शिलिंग 1 पोश किया जाना था। पोल की यह योजना सफल न हो सकी। इसका कारण यह था कि इससे उपभोक्ता को नहीं वरन् उत्पादक को फायदा हुआ। तथापि प्रधानमंत्री बनने पर पोल ने ‘Sliding Scale’ पर जोर दिया। उसकी योजना लोकप्रिय न हो सकी। तथापि उससे इंग्लैंड और उसके निवासियों दोनों को फायदा हुआ। आयात की जाने वाली वस्तुओं की वृद्धि हुई। सरकार को आयात कर के रूप में अधि क धन की प्राप्ति हुई, जिससे उसकी स्थिति में सुधार हुआ।
(ii) आयकर व चुंगी-1841 में पोल के प्रधानमंत्री बनने पर बजट में 23, 50,000 पौंड का घाटा था। उसने अनुमान लगाया कि जिस दर से कर लिये जा रहे थे, उससे 1837 से 1843 तक कुल घाटा 10,000,000 पौंड से अधिक होगा। दैनिक प्रयोग की वस्तुओं पर कर की दर पहले से ही बहुत थी अत: उसको बढ़ाया जाना अनुचित था। उसने सम्पत्ति के उन स्वामियों से जिनकी वार्षिक आय 150 पौंड या उससे भी अधिक थी, 3 वर्ष तक प्रति पौंड 7 पैसे की दर से कर लिया। आयकर से सरकार को 37,00,000 पौंड मिलने की आशा थी।
आयकर आयरलैंड के निवासियों से नहीं लिया जाना था। इसके स्थान पर वहाँ चलने वाले टिकटों का मूल्य और शराबों का मूल्य प्रति गैलन 2 शिलिंग बढ़ा दिया गया। इससे पूर्व विदेशी जहाजों द्वारा इंग्लैंड से ले जाने वाले कोयले पर प्रति टन 4 शिलिंग चुंगी ली जाती थी। अब वह चुंगी अंग्रेजी जहाजों द्वारा ले जाये जाने वाले कोयले पर भी लगा दी गयी। यह अनुमान लगाया गया कि इस चुंगी से सरकार को 43,80,000 पौंड आय होगी।
(iii) आयात-निर्यात कर सुधार- पोल सिद्धांत था, “हमें इस देश में रहने के लिए सस्ता देश बनाना चाहिए।” अतः उसने वस्तुओं के मूल्यों को कम करने का निश्चय किया। उसने 750 वस्तुओं पर आयात कर कम कर दिया और बाहर जाने वाले अंग्रेजी माल पर से निर्यात कर को पूर्णतया मुक्त कर दिया। इंग्लैंड के निवासियों को विदेशी वस्तुएं सस्ती मिलने लगीं, अन्य देशों में अंग्रेजी माल का मूल्य कम होने के कारण उसकी मांग बढ़ी और इंग्लैंड के उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए पोल ने विदेशों से आने वाले कच्चे माल पर आयात कर नाममात्र के लिए रखा। उद्योगों में उपयोग की जाने वाली वस्तुओं पर आयात कर कम कर दिया गया। इंग्लैंड में दैनिक प्रयोग में आने वाली विदेशी वस्तुओं पर आयात कर समाप्त कर दिया गया।
2. ऋण-पत्रों में परिवर्तन- नेपोलियन के युद्धों का व्यय वहन करने के लिए सरकार ने जनता से 3.5% की दर पर 250,000,000 पौंड ऋण के रूप में लिये थे। अतः सरकार वार्षिक ब्याज के रूप में बहुत अधिक धन दे रही थी। इससे देश के व्यापार और आर्थिक स्थिरता को हानि पहुँच रही थी। 1844 में पोल ने ब्याज की दर को 3.5% से कम करके 3.25 % और 10 वर्ष उपरान्त 3% कर दिया। यह व्यवस्था की गयी कि जनता इन सालों के उपरान्त अगले 10 वर्षों में अपने ऋण पत्रों का धन सरकार से नहीं ले सकती थी। ब्याज की दर में कमी करने के फलस्वरूप सरकार को 625,000 पौंड वार्षिक बचत और 1,25,000 पौंड कुल बचत हो गई। मैरियट (Marriot) का विचार है कि जनता ने ब्याज की दर में कमी और ऋण-पत्र सम्बन्धी प्रतिबंध निम्नलिखित दो कारणों से सहज ही स्वीकार कर लिया—
(i) पहला, 1841 से ऋण पत्रों का मूल्य लगातार बढ़ता जा रहा था और 100 पौंड के ऋण पत्र का मूल्य 89 पौंड से बढ़कर 99 पौंड हो गया था।
(ii) दूसरा, पोल के आर्थिक और व्यापारिक सुधारों के कारण जनता में व्यापक संतोष व्याप्त हो गया था।
3. 1844 का बैंक चार्टर अधिनियम- 1797 से बैंक ऑफ इंग्लैंड के नोटों के स्थान पर स्वर्ण मुद्राएँ देना बन्द कर दिया था। 1819 में पोल समिति की सिफारिश के अनुसार इस सिद्धांत की स्थापना की गयी कि बैंक नोटों के बदले में स्वर्ण मुद्राएँ दे। पर सरकार ने इस सिद्धांत के क्रियान्वीकरण की ओर कभी ध्यान नहीं दिया। अत: लोगों को नोटों में तनिक भी विश्वास न रहा। नोट इतनी अधिक संख्या में छप गये कि मुद्रा का काफी विस्तार हो गया। उद्योगों और व्यापार की हानि होने लगी। पोल ने 1845 में बैंक चार्टर ऐक्ट पास किया। इस ऐक्ट की तीन मुख्य धाराएँ थीं
प्रथम धारा- पहली धारा के अनुसार बैंक ऑफ इंग्लैंड के दो पृथक-पृथक विभाग स्थापित कर दिये गये—
(a) एक विभाग नोट बनाता था।
(b) दूसरा विभाग लेन-देन करता था।
द्वितीय धारा- दूसरी धारा के अनुसार बैंक ऑफ इंग्लैंड को 14,000,000 पौंड के सरकारी सुरक्षित कोष (Government Securities) तक नोट बनाने की आज्ञा दी गयी। इसके उपरान्त वह नोट उसी समय बना सकता था, जब उसके पास नोट के मूल्य का कम से कम 75% स्वर्ण हो।
तृतीय धारा- तीसरी धारा के अनुसार 1844 के पश्चात स्थापित किये जाने वाले बैंकों को नोट बनाने की आज्ञा प्रदान नहीं की गयी।
4. 1845 का बजट- 1842 में 3 वर्ष के लिए लगाये जाने वाले आयकर की अवधि 1845 में खत्म हो गयी। राज्य के आय-व्यय में लगभग संतुलन हो गया था। पोल ने आयकर लगाने के अपने परीक्षण से प्रोत्साहित होकर इस योजना को तीन वर्ष के लिए बढ़ाने का निश्चय किया।
430 वस्तुओं पर उसने आयात निर्यात कर में कमी कर दी। रूई, ऊन तथा अनेक वस्तुओं पर लगाया जाने वाला आयात-निर्यात कर खत्म कर दिया गया।
मैरियट के अनुसार, “पोल की योजना पांच उद्देश्यों से प्रेरित हुई थी रहने के व्यय को कम करना, उत्पादकों के प्रयोग के लिए आयात किये जाने वाले कच्चे माल को सस्ता करना, कर इकट्ठा करने में मितव्ययिता करना, व्यापार को प्रोत्साहित करना और रोजगार में वृद्धि करना।”
5. 1846 का बजट- 1846 के बजट में अनाज पर लगाये जाने वाले आयात कर की पुनरावृत्ति की गयी। लगभग 10 लाख पौंड का आयात कर खत्म कर दिया गया। लकड़ी और चर्बी पर आयात कर में कमी कर दी गयी । मोटे प्रकार के सूती और ऊनी वस्त्रों पर से कर पूर्णतया खत्म कर दिया गया। अन्य अधिकांश विदेशी
वस्तुओं पर आयात कर लगभग 10 प्रतिशत रखा गया। जूतों, मदिराओं, साबुन, मोमबत्ती, पनीर, मक्खन आदि पर आयात कर में कमी हो गयी। अतएव सामान्य व्यक्ति भी इन वस्तुओं का उपभोग करने लगा। इसी समय आयरलैंड में अकाल पड़ गया। इंग्लैंड में भी जनता भूखों मरने लगी।
जनता में अनाज नियम के खिलाफ भावना तीव्रतर हो उठी। पोल ने महसूस किया कि ” आयरलैंड में अकाल, भुखमरी तथा मनुष्यों के अपार विनाश को रोकने के लिए आवश्यक है कि आयात पर लगे प्रतिबंधों को खत्म किया जाये। ” पोल ने जनता के कल्याण के लिए न केवल अपने दल के हितों का वरन अपनी महत्वाकांक्षाओं का बलिदान कर दिया। उसने भी अनाज नियम का विरोध कर कोण्डन तथा ब्राइट का समर्थन किया। रेम्जेम्योर का कथन है, “पोल एक खुले दिमाग तथा शिक्षा ग्रहण करने वाला मानव था। यद्यपि उसने संरक्षण की नीति का समर्थन करके ही सत्ता प्राप्त की, परन्तु अन्त में यह वही पोल था, जिसने परिस्थितियों से विवश होकर कोण्डन के ध्वज का विजय प्राप्त करायी अर्थात उसकी नीतियों को सफल बनाया। “
पोल ने संसद में एक बिल कार्न ला के खिलाफ पेश किया, जिसके कारण टोरी दल पोल के विरुद्ध हो गया। दल की ओर से उस पर विभिन्न आरोप लगाये जाने लगे। डिजराइली संसद में पोल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, कार्न ला बहुमत से खत्म हो गया, पर इसके साथ ही पोल का भी पतन हो गया । को- अरसन बिल (Co-ercion Bill) के सवाल पर उसके टोरी दल के सदस्यों ने उसके खिलाफ मतदान किया और पोल ने अपनी पराजय स्वीकार करते हुए सन् 1846 ई. में पद से इस्तीफा दे दिया।
पोल की आयरिश नीति- छ: वर्ष तक आयरलैंड के मंत्री के रूप में कार्य करने के कारण पोल को आयरलैंड की समस्याओं का काफी ज्ञान प्राप्त हो चुका था। टोरी दल का सदस्य होने के कारण वह सन् 1800 ई. के यूनियन ऐक्ट के खिलाफ चलने वाले आंदोलन का विरोधी था। उसने ओकोनल के नेतृत्व में चलने वाले आयरलैंड के आंदोलन को कुचल दिया। तथापि उसे आयरिश जनता के दुःखों का ज्ञान अच्छी प्रकार था। अत: उसने आयरलैंड की स्थिति का अध्ययन करने के लिए ‘डेवन आयोग’ (Devon Commission) नियुक्त किया। उसने निम्नलिखित कार्य किये—
(a) आयरलैंड में कैथोलिकों की मांग को पूरा करने के लिए ‘कैथोलिक मुक्ति नियम’ पास कराया।
(b) आयरलैंड के पादरियों की शिक्षा के लिए तीन महाविद्यालयों की स्थापना की। उनके लिए प्रतिवर्ष बीस हजार पौंड के अनुदान की स्वीकृति दी।
(c) इसी समय आयरलैंड में भयंकर अकाल पड़ा। पोल ने अपने दल के स्वार्थों की उपेक्षा करते हुए “कार्न ला” को भंग कराकर आयरिशों के कल्याण करने का प्रयत्न किया, परन्तु वह आयरिश जनता को अपने पक्ष में नहीं कर सका। अन्त में आयरिश समस्या का निदान करने में ही संसद में उसकी पराजय हो गई और उसे इस्तीफा देना पड़ा।
पोल की वैदेशिक नीति – जब 1884 में पोल प्रधानमंत्री बना, तब इंग्लैंड के अन्य देशों से सम्बन्ध खराब थे। उसका चीन और अफगानिस्तान से युद्ध चल रहा था।
पूर्व में पामर्स्टन (Palmerston) द्वारा अपनायी गयी नीति के कारण फ्रांस नाराज था, संयुक्त राज्य अमरीका से अनेक बातों पर मतभेद चल रहा था। पोल शांतिप्रिय प्रध नमंत्री था। उसके विदेश मंत्री लार्ड एबरडीन (Land Aberdeen) थे उसी की शांतिप्रिय नीति का अनुसरण किया। विदेशी मामलों को आपसी समझौते से खत्म करने का प्रयत्न किया। चीन का युद्ध, ‘नानकिन की संधि’ से खत्म कर दिया गया।
अफगानिस्तान में लार्ड एलनबरो (Lord Ellenborough) ने ब्रिटिश सम्मान पुनः प्रतिष्ठित किया। लार्ड एबरडीन ने फ्रांस को लिखे जाने वाले पत्रों को पामर्स्टन के विपरीत शिष्ट और नम्र भाषा में लिखना आरम्भ कर दिया। फ्रांस और इंग्लैंड के सम्बन्धों में सुधार होने लगे। कुछ समय उपरान्त दोनों में सम्बन्ध ‘प्रिटचार्ड घटना’ (Prichard Incident) के कारण पुनः खराब हो गये। प्रिटचार्ड नामक अंग्रेज टेहिटी (Tehiti) में ब्रिटिश राजदूत था। 1843 में फ्रांसीसियों ने टेहिटी पर अपने अधिकार की स्थापना की। प्रिटचार्ड द्वारा इसका विरोध किये जाने पर उसे जेल में बंद कर दिया गया। इस घटना से इंग्लैंड में व्यापक उत्तेजना व्याप्त हो गयी।
प्रिटचार्ड ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए फ्रांस से धन की मांग की।
फ्रांस ने उसकी पूर्ति कर दी और इस प्रकार उसका और इंग्लैंड का झगड़ा खत्म हो गया। कुछ समय पश्चात अल्जीरिया (Algeria) के एक सरदार को मोरक्को के सुल्तान ने शरण दी। इस पर फ्रांस ने सुल्तान से सरदार को वापिस मांगा। पोल को संदेह हुआ कि कहीं इस बहाने फ्रांस मोरक्को पर अपने प्रभुत्व की स्थापना न कर ले, किन्तु जब सुल्तान ने सरदार को वापिस कर दिया तब पोल का यह डर समाप्त हो गया।
इंग्लैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका में अनेक बातों पर झगड़ा था, इनमें दो मुख्य कारण थे—
(i) पहला विवाद उत्तरी अमेरिका के दोनों तटों पर सीमा के सम्बन्ध मे था।
(ii) दूसरे झगड़े का कारण यह था कि अंग्रेजी जहाज अमेरिका के जहाजों की यह देखने के लिए तलाशी लेते थे कि कहीं उनमें अफ्रीका से हब्शी गुलाम तो नहीं जा रहे थे।
विवादों का अन्त करने के लिए पोल ने अनेक कदम उठाये। उसने शांतिपूर्ण ढंग से अमेरिका के साथ चल रहे सीमा विवाद को सुलझाकर अमेरिका को हमेशा के लिए इंग्लैंड का मित्र बना लिया। फ्रांस के साथ उसने मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित किये और चीन के साथ समझौता करके वहाँ चल रहे विवाद को भी शान्त करा दिया। इसी प्रकार भारत में सिंध प्रदेश पर सन् 1843 ई. में पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर भारत की समस्या का हल हमेशा के लिए करा लिया ।
राबर्ट पोल प्रधानमंत्री के रूप में- सन् 1841 ई. में इंग्लैंड की संसद में टोरी दल को बहुमत प्राप्त हुआ। राबर्ट पोल दल का नेता बना । उसको प्रधानमंत्री पद प्राप्त हुआ। पोल ने अपने मंत्रियों का चयन सतर्कता, सावधानी तथा बुद्धिमानी से किया। तत्कालीन प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ उसके मंत्रिमंडल के सदस्य थे। ड्यूक ऑफ विलिंगटन, लार्ड एबरडीन, लार्ड स्टैनले तथा ग्लैडस्टन जैसे महान राजनीतिज्ञ उसके मंत्रिमंडल के सदस्य थे, इन व्यक्तियों ने अपने अनुभव, तीव्र बुद्धि तथा कठिन परिश्रम से उसे चोटी पर पहुँचा दिया। कोण्डन ने कहा है कि-“रूस के जार तथा ग्रान्ड तुर्क दोनों में से कोई भी पोल से अधिक शक्ति सम्पन्न नहीं था।”
राबर्ट पोल का अनुदारवाद – इतिहासकारों का विचार है कि सर राबर्ट पोल एक महान पार्टी का नेता था, परन्तु व्यवहार में उसने स्वयं को दल व्यवस्था के लिए अयोग्य साबित कर दिया, अत: उसे किसी भी दल का सदस्य नहीं समझा जा सकता। टरगौट ने उसे ” अनुदारों में सर्वाधिक उदार तथा उदारों में सर्वाधिक अनुदार” कहा है। टरगौट के इसी विचार को निम्नांकित तथ्यों के आधार पर साबित किया जा सकता है—
1. अनुदारवाद या नया टोरीवाद- सर राबर्ट पोल सन् 1809 ई. में टोरी दल का सदस्य था, परन्तु समकालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए वह प्रगतिशील और स्वतंत्रप्रिय बन गया था। अतएव उसने शासन का प्रगतिशील ढंग से संचालन करने का प्रयत्न किया। उसने टोरीवाद, अनुदारवाद को एक नया रूप तथा नया महत्व प्रदान किया। कालान्तर में पुराना टोरीवाद अनुदारवाद अथवा टोरीवाद कहा जाने लगा। उसका नवीन टोरीवाद, कट्टर टोरीवाद तथा कट्टर उदारवाद के मध्य का सिद्धांत था। उसने अपने सम्पूर्ण राजनीतिक जीवन में अनेक सुधार किये, जैसे 1829 का कैथोलिक इमेन्सिपेशन ऐक्ट, 1832 का संसदीय सुधार बिल तथा 1846 में अन्न अधिनियम की समाप्ति आदि। ये अधिनियम तथा आयरिश जनता के प्रति सहानुभूति पूर्ण व्यवहार उसे एक उदारचरित्र टोरी ही साबित करते हैं। इन कार्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि “वह अनुदारों में सर्वाधिक उदार तथा उदारों में सर्वाधिक अनुदार था ।”
2. उसके प्रगतिशील सुधार- गृहमंत्री के रूप में राबर्ट पोल ने 1822 ई. में फौजदारी कानून की कठोरता में कमी की थी। 1822 ई. में उसने नैवीगेशन ऐक्ट को खत्म कर दिया। 1824 में श्रमिक सम्बन्धी कानून पास किये। 1828 में लंदन पुलिस में सुधार किया। 1829 में कैथोलिक इमैन्सिपेशन ऐक्ट पास कर कैथोलिक जनता को फायदा पहुँचाया, गुप्तचर विभाग को खत्म कर दिया। देश में आने वाली अनेक वस्तुओं पर लगे कर में कमी कर दी तथा कर पूर्णतया समाप्त कर दिया। आयरलैंड की जनता को संतुष्ट करने के लिए उसने विभिन्न सहानुभूतिपूर्ण और लाभदायक कार्य किये।
3. 1829 का कैथोलिक इमैन्सिपेशन ऐक्ट- सर राबर्ट पोल वैलिराइन के मंत्रिमंडल का सदस्य था। इसी मंत्रिमंडल द्वारा कैथोलिक इमैन्सिपेशन ऐक्ट पास किया गया था। इस विधेयक को पास कराने के संबंध में आयरलैंड के एक औकानल ने देश में भारी अव्यवस्था और अशांति पैदा कर दी थी। राबर्ट पोल को यह स्पष्ट ज्ञात हो गया था कि इस बिल का विरोध करना भारी भूल होगी तथा इस बिल को पास करना ही अधिक उचित होगा। इससे यह स्पष्ट हो गया था कि देश, राष्ट्र और जनता की सेवा करना टोरी पार्टी के सिद्धांत का उल्लंघन कर सकता हूँ, परन्तु मैं अपने देश के हितों की अनदेखी नहीं कर सकता।
4. 1832 का संसदीय सुधार बिल – सर राबर्ट पोल के टोरी दल ने साध ारण रूप से तथा हाउस ऑफ लार्ड्स ने विशेष रूप से 1832 ई. में पास होने वाले संसदीय अधिनियम का विरोध किया, क्योंकि दोनों ही बिलों से देश की राजनीतिक शक्ति जमींदारों के, जो सामान्यतया हाउस ऑफ लार्ड्स के सदस्य होते थे, हाथों से निकलकर देश के मध्यम वर्ग के हाथों में आ जाती। अतः वे इस विधेयक के पास होने के कट्टर विरोधी थे, परन्तु सर राबर्ट पोल ने टोरी दल की चिन्ता न करते हुए इस विधेयक का जोरदार समर्थन किया।
5. अन्न अधिनियम की समाप्ति- अन्न अधिनियम के पास हो जाने के फलस्वरूप इंग्लैंड में अन्न महंगा हो गया था। अतएव इस कानून की समाप्ति के लिए देश में उपद्रव और अशांति फैल रही थी। इस कानून को खत्म करने के लिए एक “एन्टी कार्न लाज लीग’ स्थापित की गई थी। एक अनुभवी राजनीतिज्ञ की भाँति सर राबर्ट पोल को यह स्पष्ट हो गया कि इंग्लैंड की जनता के दुखों का मूल कारण अन्न अधि नियम ही है। इसी बीच आयरलैंड में एक भीषण अकाल पड़ा। राबर्ट पोल को पूर्ण विश्वास हो गया कि देश के संकटों के निवारण का एक मात्र उपाय अन्न अधिनियम की समाप्ति ही है। पर टोरी दल ने घोषणा की कि प्रत्येक दशा में अन्न अधिनियम को बनाये रखा जाये।
इस गंभीर स्थिति में भी पोल ने इस विधेयक को पास करवा लिया। उसके इस कार्य पर दल के अनेक सदस्य उसे धोखेबाज समझने लगे और उन्होंने उसका समर्थन करना बंद कर दिया। वे विरोधी दल में मिल गये, पर पोल विचलित नहीं हुआ।
इस प्रकार तत्कालीन परिस्थितियों में पोल स्थिति को ज्यों का त्यों बनाये रखने का समर्थक न था । वह देश में कोई महान या क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं चाहता था। कारण यह था कि वह एक उदार और स्वतंत्र विचारों का टोरी का सदस्य था । वह स्वयं को देश की जरूरतों तथा परिस्थितियों के अनुसार मोड़ लिया करता था और देश और राष्ट्र के हितों से अधिक स्नेह रखता था। जरूरत होने पर वह ऐसे सामान्य सुधार भी कर सकता था, जिन्हें वह देश के कल्याण के लिए जरूरी समझता था।
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