सीखने के सन्दर्भ में चोंमस्की का भाषाई सिद्धान्त क्या है ? वर्णन कीजिए।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
प्रश्न – सीखने के सन्दर्भ में चोंमस्की का भाषाई सिद्धान्त क्या है ? वर्णन कीजिए।
उत्तर- नॉम चोमस्की अमरीका के एक प्रसिद्ध भाषाविज्ञानी, दर्शनशास्त्री राजनीतिक उद्घोषक व तर्कशास्त्री हैं जिन्हें 2005 में ” विश्व के सर्वश्रेष्ठ बौद्धिक व्यक्ति” के रूप में चुना गया है।
आपने भाषा के वैज्ञानिक स्वरूप पर अपने व्यापक विचार प्रस्तुत किये हैं।
चोमस्की का भाषाई सिद्धान्त–चोमस्की के भाषा विज्ञान सिद्धान्त का आधार यह है कि भाषा संरचना के मूल सिद्धान्त जैविक रूप से मनुष्य के मस्तिष्क में निहित होते हैं; और जीन के रूप में संचारित होते रहते हैं। उनका तर्क है कि सामाजिक, सांस्कृतिक भिन्नता के बावजूद सभी मानव एक समान भाषायी संरचना के अधीन होते हैं; और वह इस पर यह तर्क देने के बजाय कि मानव भाषा किसी भी अन्य प्राणी जाति के संचार के साधनों के असमान है, वह स्किनर के व्यावहारिक मनोविज्ञान का विरोध करते हैं। चोमस्की का भाषा विज्ञान उनके उस संरचना से प्रारम्भ है, जो उनके भाषायी सिद्धांत की तार्किक संरचना का शुद्ध रूप है, जिसमें व्याकरण के एक रूप को दूसरे रूप में बदलने का तरीका दिया गया है। इस तरीके ने शब्दों के क्रम को व्यक्त करके एक शुद्ध रूप में व्याकरण निर्माण किया है, जिसमें परिवर्तन के नियमों के अन्तर्गत विषय रहित व्याकरण को बढ़ाया गया है।
संभवतः इस क्षेत्र में उनका सर्वाधिक (समयबद्ध जाँचा गया) योगदान का दावा यह है कि भाषा वह प्रारूपमय ज्ञान है जिसमें औपचारिक व्याकरण का प्रयोग हुआ है। यह भाषा की रचनात्मक और उत्पादकता जुड़ा है। दूसरे शब्दों में, “किसी भाषा का सामान्य व्याकरण श्रोता या वक्ता की उस योग्यता की व्याख्या कर सकता है जिससे उसे अनंत तरीकों से अपनी बात को व्यक्त करने (जिसमें उपन्यास भी शामिल है) की क्षमता मिलती है परन्तु जिसमें व्याकरण के सीमित स्वरूप को शामिल किया जाता है। वह अपने आप को हमेशा पाणिनि के व्याकरण शास्त्र के प्रति कृतज्ञ मानता है जबकि उसका आधुनिक विचार उसके जीन के व्याकरण के सिद्धान्त से जुड़ा है और वह अपने पूर्व के ज्ञान के विवेकपूर्ण विचारों के कारण भी है।
एक प्रचलित अवधारणा यह भी है कि चोमस्की ने यह सिद्ध किया है कि भाषा पूर्णतः प्राकृतिक है एवं सार्वभौमिक है। चोमस्की ने केवल यह परीक्षण किया यदि मानव शिशु और बिल्ली का बच्चा दोनों समान तर्क करने में सक्षम हों तो मनुष्य हमेशा समझने की योग्यता प्राप्त करेगा और भाषा उत्पन्न करेगा जबकि बिल्ली का बच्चा कभी भी कोई योग्यता प्राप्त नहीं करेगा। चोमस्की ने यह स्पष्ट किया कि जो भी प्रासंगिक क्षमता मनुष्य में है वह बिल्ली में नहीं है, क्योंकि भाषा ग्रहण यंत्र उसमें उतने नहीं जितने कि मनुष्य में, उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि भाषा विज्ञान का एक कार्य यह सुनिश्चित करना भी है कि वह यंत्र कैसा है और मनुष्य की भाषा विस्तार क्षमता को कौन नियंत्रित करता है। इन्हीं नियंत्रण के फलस्वरूप जो परिणाम आते हैं वही सार्वभौमिक व्याकरण के रूप में परिभाषित होते हैं। यद्यपि चोमस्की ने सार्वभौमिक व्याकरण सिद्धान्त इस विश्वास से प्रतिपादित किया कि भाषा विशेष रूप से मानवीय है। विभिन्न प्रयोगशालाओं में किये गये लगान्तर अध्ययन यह बताते हैं कि कुछ विशेष बंदर प्रजातियों में भाषा ग्रहण करने की प्रवृत्ति पायी जाती हैं, जिनमें चिंपाजी, बोनोबोस, गुरिल्ला, और औरना ग्यूटन्स शामिल हैं, अतः विशाल बंदर आंशिक रूप से वह ग्रहण कर सकते हैं जो मानसिक कार्य भाषा ग्रहण यंत्र द्वारा होते हैं।
चोमस्की का यह विचार बच्चों में भाषा ग्रहण करने पर शोध करने वालों पर गहन प्रभाव डालने वाला रहा है। यद्यपि एजिजाबेथ बेट्स और माइकल टीम सैलो जैसे शोधकर्ताओं ने चोमस्की के इस सिद्धान्त का पुरजोर विरोध किया और जोड़ने वाले इन सिद्धान्तों के समर्थन करने के बजाय भाषा की असंख्य सामान्य प्रक्रिया यंत्रीकरण के द्वारा मस्तिष्क में होने वाले सघन व जटिल सामाजिक पर्यावरण से सम्पर्क करने वाला बताया, जिसमें भाषा का प्रयोग होता है और उसे सीखा जाता है ।
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *