सीखने से क्या तात्पर्य है ? सीखने की परिभाषा दीजिए एवं उसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – सीखना एक व्यापक शब्द है । यह जन्मजात प्रतिक्रियाओं पर आधारित है व्यक्ति अपनी जन्मजात प्रवृत्तियों से प्रेरित होकर जो क्रिया करता है उसके फलस्वरूप वह किसी नवीन परिस्थिति के सम्पर्क में आता है । जब वह अपने पुराने अनुभवों के आधार पर इस नवीन परिस्थिति द्वारा अपनी प्रवृत्तियों को संतुष्ट नहीं कर पाता है तो वह इस परिस्थिति के साथ समायोजन करने का प्रयत्न करता है। परिणमतः वह अपने उन व्यवहारों को छोड़ देता है जो उक्त परिस्थिति के अनुकूल नहीं होते हैं और नवीन परिस्थिति के अनुकूल व्यवहारों को अपनाने लगता है । इस प्रकार उसके व्यवहार अनुभवों के आधार पर परिवर्तित और परिमार्जित होते रहते हैं । उदाहरणार्थ, शिशु के सामने दीपक ले जाने पर वह स्वाभाविक रूप से उसकी लौ को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाता है, किन्तु लौ हाथ में लगते ही उसे जलन का अनुभव होता है और वह हाथ खींच लेता है । पुनः जब कभी उसके सामने दीपक लाया जाता है तब वह अपने अनुभव के आधार पर अबकी बार लौ को पकड़ने के लिए हाथ नहीं बढ़ाता है वरन् वह उससे दूर भागने का प्रयास करता है । इस प्रकार अनुभव के आधार पर उसके स्वाभाविक व्यवहार में परिवर्तन हो जाता है । मनोविज्ञान के अन्तर्गत इस प्रकार के स्वाभाविक व्यवहार में होने वाले प्रगतिशील परिवर्तन या परिमार्जन को ही सीखना कहते हैं ।
सीखना ही शिक्षा है और दोनों ही एक क्रिया की ओर संकेत करते हैं । सीखना तथा शिक्षा दोनों ही जीवन पर्यन्त तथा सर्वत्र चलती रहती हैं ।
वुडवर्थ — “नवीन ज्ञान और नवीन प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया, सीखने की प्रक्रिया है । ”
क्रो व क्रो– “सीखना, आदतों, ज्ञान और अभिवृत्तियों का अर्जन है । ”
गेट्स एवं अन्य विद्वान – “अनुभवों एवं प्रशिक्षण द्वारा अपने व्यवहारों का संशोधन ओर परिमार्जन करना ही अधिगम है । ”
कॉलविन – ” अनुभव के द्वारा हमारे मौलिक व्यवहारों में परिवर्तन की प्रक्रिया को सीखना कहते हैं । ”
जे० पी० गिलफोर्ड—”व्यवहार के फलस्वरूप, व्यवहार में किसी प्रकार का परिवर्तन आना ही सीखना अथवा अधिगम है । ”
प्रेसी—‘‘सीखना उस अनुभव को कहते हैं जिसके द्वारा व्यवहार में परिवर्तन या समायोजन होता है और जिससे व्यवहार की नई दिशाएँ प्राप्त होती हैं । ”
उपर्युक्त परिभाषाओं को ध्यान में रखते हुए सीखने को साधारणतया निम्न प्रकार परिभाषित किया जा सकता है –
“व्यवहार में किसी प्रकार के परिवर्तन को, जो कि अनुभव का परिणाम है और जो व्यक्ति को आने वाली परिस्थिति का भिन्न प्रकार से मुकाबला करने के लिए तैयार करता है, सीखना कहा जा सकता है। ”
सीखने की प्रकृति अथवा विशेषताएँ (Nature of Characteristics of Learning) – सीखने की विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर योकम और सिम्पसन (Simpson) ने सीखने की कुछ निम्नलिखित विशेषताओं का वर्णन किया है —
- सीखना सार्वभौमिक है (Learning in Universal) – सीखने का गुण केवल किसी विशिष्ट स्थान या विशिष्ट मनुष्यों में ही नहीं पाया जाता है बल्कि संसार के सभी स्थानों में तथा सभी जीवधारियों में पाया जाता है। पशु, पक्षी तथा कीड़े-मकोड़े भी सीखते हैं ।
- सीखना सम्पूर्ण जीवन चलता है (All Living is Learning ) — सीखना एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन पर्यंत चलती रहती है। व्यक्ति जन्म के समय से ही माता-पिता, भाई-बहन तथा परिवार के अन्य सदस्यों में सीखना आरम्भ करता है और वह जीवन भर विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं, संगी-साथी, विद्यालय, अन्य व्यक्तियों आदि से कुछ न कुछ सीखता रहता है ।
- सीखना विकास है (Learning is growth) — व्यक्ति को प्रति क्षण कुछ न कुछ नए अनुभव प्राप्त होते रहते हैं जिनसे वह सीखना है । इसके फलस्वरूप उसका शारीरिक व मानसिक विकास होता है । इस प्रकार सीखना ही विकास का आधार है । पेस्तालॉजी (Pestalozzi) ने वृक्ष और फ्रोबेल ने उपवन के उद्धरण के द्वारा सीखने की इस विशेषता को स्पष्ट किया है ।
- सीखना परिवर्तन है ( Learning is Change) – व्यक्ति अपने तथा दूसरों के अनुभवों के आधार पर अपने व्यवहारों, विचारों, इच्छाओं, मूल प्रवृत्तियों, भावनाओं आदि में परिवर्तन करता है और वास्तव में यही सीखना है । यह बात गेट्स तथा अन्य विद्वानों के विचारों से स्पष्ट हो जाती है। उनके अनुसार– “सीखना, अनुभव व प्रशिक्षण द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है । “
- सीखना अनुकूलन है (Learning is Adjustment) – वातावरण से अभियोजन करने के लिए व्यक्ति को अनेक नए व्यवहारों, क्रियाओं, भाषा, उठने बैठने के तरीका, रहन-सहन, रीति-रिवाज आदि सीखने पड़ते हैं। अतः, सीखने के बाद ही व्यक्ति नई परिस्थितियों से अपना अनुकूलन कर सकता है ।
- सीखना, अनुभवों का संगठन है ( Learning is Organization of Experiences ) — सीखना न तो नए अनुभवों की प्राप्ति है और न पुराने अनुभवों का योग ही है। सीखना, वास्तव में, नए और पुराने अनुभवों का संगठन है। जैसे-जैसे व्यक्ति को नए अनुभव होते जाते हैं वह नई नई बातें सीखता जाता है और अपनी आवश्यकतानुसार उन्हें संगठित करता जाता ।
- सीखना उद्देश्यपूर्ण है ( Learning is Purposive) — सीखना सदैव उद्देश्यपूर्ण होता है। व्यक्ति किसी उद्देश्य से प्रेरित होकर ही कार्य को सीखता है। उद्देश्य जितना ही प्रबल होता है सीखने की प्रक्रिया भी उतनी ही तीव्र होती है । उद्देश्य के अभाव में सीखना निष्फल रहता है । मरसेल (Mursell) ने इस सम्बन्ध में लिखा है—”सीखने के लिए उत्तेजित और निर्देशित उद्देश्य की अति आवश्यकता है और ऐसे उद्देश्य के बिना सीखने में असफलता निश्चित है । “
- सीखना विवेकपूर्ण है (Learning is Intelligent) – सीखना यान्त्रिक कार्य न होकर विवेकपूर्ण कार्य है । वही बात शीघ्रता और सरलतापूर्वक सीखी जा सकती है जो सोच-समझकर बुद्धि का प्रयोग करके की जाती है। बिना सोचे समझे किसी बात को सीखने में सदैव असफलता ही हाथ लगती है । मरसेल का विचार है— ” सीखने की असफलता का कारण समझने में असफलताएँ हैं।”
- सीखना सक्रिय है ( Learning is Active) – किसी कार्य को सीखने के लिए व्यक्ति का सक्रिय होना अत्यन्त आवश्यक है। सक्रिय होकर सीखना ही वास्तविक सीखना है । बालक तभी कुछ सीख सकता है जबकि वह सक्रिय होकर सीखने की प्रक्रिया में स्वयं भाग लेता है। इसी को ध्यान में रखते हुए आज बालकों की शिक्षा में माण्टेसरी, डाल्टन प्लान, किण्डरगार्टन, प्रोजेक्ट पद्धति आदि प्रगतिशील शिक्षण विधियों को अपनाया जा रहा है । सभी विधियाँ बालक की क्रियाशीलता के ऊपर विशेष बल देती हैं ।
- सीखना व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों हैं (Learning is both Individual and social)—व्यक्ति प्रायः स्वयं प्रयत्न करके सीखता है। बहुत-सी बातों को वह दूसरों को देखकर और सुनकर सीखता है । वह समाज में ही रहने का ढंग, बात-चीत करने की कला, उठने-बैठने का ढंग, परम्पराओं और प्रथाओं को मानने, दूसरों से उचित व्यवहार करना आदि सीखता है । इस प्रकार सीखना, व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों ही है । योकम और सिम्पसन के विचारों में…” सीखना सामाजिक है, क्योंकि किसी प्रकार के सामाजिक वातावरण के अभाव में व्यक्ति का सीखना असम्भव है।”
- सीखना वातावरण की उपज है ( Learning is a Product of Environment)—बालक सदैव वातावरण के प्रति प्रतिक्रिया के फलस्वरूप ही सीखता है। बालक ऐसे वातावरण में रहता है उसी के अनुसार सीखता है । यही कारण है कि आजकल विद्यालयीय वातावरण के ऊपर काफी अनुसंधान हो रहे हैं और उसे सक्रिय, उपयुक्त एवं प्रभावशाली बनाने का प्रयास किया जा रहा है ताकि बालक अच्छी क्रियाओं तथा अच्छी बातों को सीख सकें ।
- सीखना खोज करना है (Learning is Discovery ) – सीखना वास्तव में किसी कार्य को सोच-समझ कर करना और एक निश्चित परिणाम पर पहुँचना है अर्थात् नए ज्ञान की खोज करना है। व्यक्ति में खोज की क्षमता जितनी ही तीव्र होती है वह उतनी ही शीघ्रता से किसी बात को सीखता है । मरसेल के विचारों में “सीखना उस बात को खोजने और जानने का कार्य है जिसे एक व्यक्ति खोजना और जानना चाहता है । “
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