सृजनात्मकता के अर्थ एवं विशेषताओं पर प्रकाश डालें ।

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प्रश्न – सृजनात्मकता के अर्थ एवं विशेषताओं पर प्रकाश डालें ।
(Throw light on the meaning and Characteristics of Creativity.) 
उत्तर – सृजनात्मकता की संकल्पना के बारे में विद्वान बहुत कम मतैक्य हैं। कुछ इसे नई वस्तु गढ़ने की योग्यता मानते हैं तथा कुछ अन्य विद्वानों के मतानुसार सृजनात्मकता योग्यता न होकर ऐसी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है जिससे अभिनव और मूल्यवान वस्तुओं का सृजन होता है। एक अन्य वर्ग सृजनात्मकता को प्रक्रिया न मानकर, परिणाम या उत्पाद मानता है। स्पष्ट है, सृजनात्मकता शब्द का कोई एक विशिष्ट परिभाषा नहीं दी जा सकती है| भिन्न-भिन्न मनोवैज्ञानिक इस पर भिन्न परिप्रेक्ष्य में विचार करते हैं। व्यक्ति, अनेक भिन्न तरीकों से सृजनशील हो सकता है (टोर्डा, 1970)। रोड्स (1961) ने सृजनात्मकता के चार तत्त्व – व्यक्ति, प्रक्रिया, मापन व वातावरण में अन्तःक्रिया तथा उत्पाद— बताए हैं। यामामेतो (1964) के अनुसार — नवीन विचारों या परिकल्पनाओं का निर्माण करने, उनका परीक्षण करने तथा परिणामों का सम्प्रेषण करने की प्रक्रिया सृजनात्मकता कहलाती है। यह परिभाषा प्रक्रिया के खोज पक्ष पर बल देती है। टॉरेन्स (Torrance) ने सृजनात्मकता को ‘समस्याओं, ज्ञान में अपूर्णता, अन्तराल, लुप्त तत्त्वों, असंगति आदि के प्रति संवेदनशील होने, कठिनाई को पहचानने, समाधान की खोज करने, कमियों के बारें में अनुमान लगाने या परिकल्पनाओं का निर्माण करने, उनका परीक्षण व पुनर्परीक्षण करने, उन्हें रूपान्तरित करने व उनका पुनः परीक्षण करने तथा परिणामों का सम्प्रेषण करने की प्रक्रिया’ माना है। फीफर (1979) इस परिभाषा को अत्यधिक जटिल व लम्बी तथा सृजनात्मकता की वैज्ञानिक विमा की ओर अधिक उन्मुख मानता है। खेतना तथा टारेन्स (1973) ने इस प्रत्यय को ‘प्रत्यक्ष ज्ञानात्मक सेट से अलग हटकर नए भावों व विचारों को नवीन अर्थपूर्ण सहचारी बन्धों के रूप में संरचित करने की कल्पना शक्ति के रूप में परिभाषित किया है। बेलेक तथा कोगन (1966) ने इसे ‘प्रासंगिकता के किसी मानदंड के अनुरूप अनेक अनोखे संज्ञानात्मक सहचारियों का निर्माण करने या उन्हें उत्पन्न करने की योग्यता’ माना है। पासी के अनुसार, “सृजनात्मकता एक बहु-विमीय गुण है, जो व्यक्तियों में भेदीय रूप से वितरित रहता है और जिसमें मुख्यतः समस्या के समाधान करने, प्रवाह, लचीलापन, मौलिकता, जिज्ञासा व दृढ़ता के तत्त्व निहित होते हैं । ” मेडनिक के अनुसार, “सृजनात्मकता सहचारी तत्त्वों के नये संयोजन बनाने की प्रक्रिया है। नये संयोजन के तत्त्व जितने अधिक दूरगामी होते हैं, उतनी ही प्रक्रिया या समाधान अधिक सृजनात्मक होती है।” हालमैन के विचार में, “सृजनात्मक प्रक्रिया के उत्पाद को मौलिक होना चाहिये व इसमें चार गुण- नवीनता, असंभाव्यता व आश्चर्य होने चाहिये । “
सृजनात्मकता की प्रकृति एवं विशेषतायें  (Nature and Characteristics of Creativity) 
सृजनात्मकता की प्रकृति एवं विशेषताएँ इस प्रकार हैं—
  1. सृजनात्मकता वह योग्यता है जिसके द्वारा व्यक्ति नये विचारों, नये तथ्यों व नवीन वस्तुओं को जन्म देता है।
  2. सृजनात्मकता वह योग्यता है जिसके आधार पर व्यक्ति किसी समस्या का वास्तविक हल खोज पाता है।
  3. सृजनात्मकता की एक विशेषता यह है कि इसके माध्यम से उत्पन्न नये विचार, नये तथ्य या नये पदार्थ मानव जीवन के लिये उपयोगी हों।
  4. सृजनात्मकता का स्वरूप आन्तरिक है जो उचित एवं अनुकूल वातावरण में ही प्रयुक्त होती है तथा विकसित होती है।
  5. सृजनात्मकता की योग्यता लोगों में भिन्न-भिन्न पाई जाती है।
  6. विभिन्न प्रकार के लोग अलग-अलग क्षेत्रों में सृजनात्मक योग्यता रखते हैं, जैसे— कुछ साहित्यिक क्षेत्र में, कुछ कला के क्षेत्र में, कुछ विज्ञान के क्षेत्र में, कुछ तकनीकी के क्षेत्र में व कुछ अन्य क्षेत्रों में।
  7. सृजनात्मक के अपने कुछ मुख्य तत्त्व भी होते हैं, जैसे- नवीनता, मौलिकता, प्रवाहमयता, ननीयता आदि ।
  8. आजकल सृजनात्मकता का मापन उपरोक्त उल्लिखित सृजनात्मक तत्त्वों के सन्दर्भ में किया जाता है।

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