सृजनात्मकता के सिद्धान्त की विवेचना करें।

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प्रश्न – सृजनात्मकता के सिद्धान्त की विवेचना करें।
(Discuss the theories of Creativity.)
उत्तर- सृजनात्मकता के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं—
  1. आकस्मिक लाभवृत्ति सिद्धान्त (Serendipty Theory) — इसके अनुसार महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त आकस्मिक रूप से विकसित होते हैं चाहे वे विज्ञान से सम्बन्धित हो या कला से, जैसे- गैलवनी का जीवित उत्तक पर विद्युतीय प्रभाव की खोज, पावलव की अनुबंधित अनुक्रिया आदि सभी आकस्मिक है। इस सिद्धान्त के समर्थकों कैनन (Cannon, 1940) एवं मैकलीन (McClean, 1941) का यह विश्वास है कि ऐसी परिस्थिति में भाग्य व्यक्ति का साथ देता है। इस सिद्धान्त के विरोध में प्रो० सी० वी० रमन का कहना है कि “अनुसंध ान भाग्य से या अकस्मिक रूप से नहीं होता। ” यह कथन पूर्णतः सत्य है, क्योंकि अनुसंध ान यदि भाग्य या संयोग पर आधारित होता तो वह कार्य वैज्ञानिक ही क्यों करते ।
  2. मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त (Psychoanalytic Theory) — यद्यपि फ्रायड के मनोविश्लेषण सिद्धान्त ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया है तथापि साहित्य और कला पर इसका विशेष प्रभाव है। फ्रायड का विश्वास था कि दमित अचेतन इच्छाओं की (Sublimation) सृजनशीलता का निर्धारण करता है। क्रिस (Kris, 1953 ) का मत है कि समस्त सृजनात्मक चिंतन में यह प्रारंभिक प्रक्रियाओं को कुछ मात्रा में नियंत्रित कर लेता है। यह सृजनशील व्यक्ति और सृजनात्मक प्रक्रिया की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। फ्रॉयड ने क्लात्मक सृजनात्मक प्रक्रिया की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। फ्रॉयड ने कलात्मक सृजनात्मकता में मनोविश्लेषणात्मक व्यवस्था प्रस्तुत की। फ्रॉयड ने लियोनार्डो दा विन्ची कवि तथा अन्य लेखकों का अध्ययन किया तथा उदात्तीकरण की अवधारणा का विकास किया। फ्रॉयड मानता है कि जीवन की कठिनाइयों के साथ अनुकूलीकरण आवश्यक है।
    फ्रॉयड के अनुसार, “सृजनात्मक व्यक्ति यथार्थ से हट जाता है, क्योंकि वह मूल प्रवृत्यात्मक व्यवहार की आवश्यकता को संतुष्ट नहीं कर पता । वह सृजनात्मक क्रियाओं द्वारा अपनी प्रबल आकांक्षा तथा इच्छाओं को संतुष्ट कर सकता है। यही कारण है कि उदात्तीकरण ने उच्च मानसिक स्थिति में अचेतन मन की भूमिका को सृजनात्मक कार्य में अस्वीकार किया है। पूर्व चेतना प्रणाली सृजनात्मकता का आवश्यक तत्त्व है। जब तक पूर्व चेतना विकसित नहीं होगी, सृजनात्मकता विकसित नहीं होगी । ”
  3. साहचर्यात्मक सिद्धान्त ( Associative Theory) — इस सिद्धान्त के अनुसार सृजनात्मक चिंतन के अंतर्गत साहचर्यात्मक तत्त्वों के नये संयुक्तियों (Combinations) के तत्त्व जितने ही अधिक परस्पर दूरस्थ होंगे, प्रक्रिया उतनी ही सृजनात्मक होगी। सर्जनशीलता का सिद्धान्त उद्दीपक अनुक्रिया साहचर्यों पर आधारित है। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन विल्सन (Wilson, 1954) ने किया। माल्ट्जमैन (Maltzman, 1960) का विचार है कि प्रत्येक साहचर्यात्मक अनुक्रिया प्रत्येक दूसरी साहचर्यात्मक अनुक्रिया से संबंधित है, अतः प्रयोज्य दूरस्थ साहचर्यात्मक अनुक्रियाएँ प्रकट करेगा।
  4. स्थानांतरण सिद्धान्त (Transfer Theory) — बहुत से मनोवैज्ञानिकों का विश्वास है कि सृजनात्मक कृतियाँ ही समस्या का समाधान है और वैज्ञानिक अभियंता आदि वातावरण में समस्याएँ खोजते हैं, सृजनात्मक चिंतन और समस्या समाधान होने पर समस्या समाधान के द्वारा सृजनात्मक चिंतन को तथा सृजनात्मक चिंतन के द्वारा समस्या समाधान को समझा जा सकता है। यह समानता सोचने में सहायक होती है कि प्रत्येक समाधान में कुछ-न-कुछ सर्जनशीलता पाई जाती है।
  5. प्रतिभा का सिद्धान्त (Theory of giftedness) – स्पियरमैन (Spearman, 1930) का मत है कि प्रत्येक सृजनात्मक कार्य पारस्परिक सम्बन्ध या सह-सम्बन्ध (Inducing Correlates) का विषय है। इन्होंने बुद्धि को सृजनात्मक चिंतन का आधार माना है जिसे उन्होंने ‘जी’ घटक कहा है, जो समस्त योग्यताओं का सार है। थर्स्टन ने भी इन्हीं की भाँति सृजनात्मक चिंतन की व्याख्या बौद्धिक आधार पर की है। इस प्रकार सृजनात्मक चिंतन का सिद्धान्त इन्हीं के बुद्धि सिद्धान्त से संबंधित है। इनके अनुसार जिस व्यक्ति का जितना अधिक सम्पर्क कार्य के अचेतन पक्ष में होगा, वह उतना ही अधिक सृजनशील होगा।
  6. प्रक्रिया सिद्धान्त (Process Theory)– गिलफोर्ड (Guilford, 1964) ने सृजनात्मक चिंतन में अवस्थाओं (Stages) शब्द की अपेक्षा प्रक्रिया (Process) या पक्ष (Aspect) शब्द प्रयोग करने में उपर्युक्तता बताई है। वैलेख (Wallach, 1926) ने सृजनात्मक प्रक्रिया में चार सोपान बताए हैं—उपक्रम (Preaparation), उद्दीप्त (Illumination), उद्भवन (Incubation) और सत्यापन (Verification)। पैट्रिक (Pettrick, 1937) एवं विनाके (Vinacke, 1960) ने अपने वर्षों के अनुसंधानों के आधार पर बताया है कि इन सोपानों का उपयोग करके सृजनात्मक चिंतन किया जा सकता है। रीसमैन (Reisman, 1931) ने सृजनात्मक प्रक्रिया के 6 आवश्यक सोपान बताए हैं— कठिनाई का निरीक्षण, समस्त उपलब्ध सूचनाओं का सर्वेक्षण आवश्यकता का विश्लेषण, वस्तुनिष्ठ समाधानों की रचना, समाधानों का आलोचनात्मक विश्लेषण, नवीन विचार का जन्म।
  7. अभिप्रेरणात्मक सिद्धान्त ( Motivational Theory)– सृजनशील व्यक्ति किसी समस्या के समाधान के लिए अभिप्रेरित होता है। रोजर्स (Rogers, 1961) के मतानुसार यदि मनुष्य की सृजनात्मक प्रवृत्ति में अभिप्रेरणा विद्यमान हो तो वह स्वयं को प्रत्यक्षीकृत (Actualize) करने का प्रयास करेगा। वह अपने विभवता का अनुभव करेगा तथा उच्च निष्पत्ति को प्राप्त करने का प्रयास करेगा। रीसमैन (Reisman, 1931) ने इसका समर्थन करते हुए बताया कि समस्या समाधानों में उसकी अपनी आंतरिक पुरस्कार व्यवस्था पाई जाती है जो उत्पादक अविष्कारकों (Productive inventors) के निरीक्षणों पर आधारित है।
  8. मानसिक स्वास्थ्य का सिद्धान्त (Mental Health Theory) — इस सिद्धान्त का आधार मनोविश्लेषणात्मक है। यह सिद्धान्त सर्जनशीलता के संदर्भ में मनोविश्लेषण का विस्तार एवं पूर्ण व्याख्या है। मास्लो (Maslow, 1958) ने अभिप्रेरणा को सर्जनशीलता का आधार माना है। इनका विश्वास है कि सर्जनशीलता “पूर्ण व्यक्तित्व संगठन या सचेतन मस्तिष्क” और पूर्व सचेतन के मध्य अवरोध का समापन करती है। इस प्रकार सचेतन से सामग्री पुनः प्राप्त (Retrive) करके यथार्थ जगत में लौट आता है। इस प्रकार व्यक्ति पूर्ण क्रियाशील बना जाता है। इसी को मास्लों ने आत्म-सिद्धि (Sefl-actualization) कहा है। व्यक्ति उच्च सिद्धिकरण स्तरों पर उच्च संश्लेषणात्मक योग्यताओं को विकसित करता है और अपनी शक्तियों का प्रयोग बौद्धिक कार्यों में करता है।
  9. संज्ञानात्मक सिद्धान्त (Cognitive Theory) — इस सिद्धान्त के अंतर्गत यह देखा जाता है कि सृजनशील व्यक्ति किस प्रकार वस्तुओं एवं घटनाओं का प्रत्यक्षीकरण एवं चिंतन करता है। गार्डनर (Gardner, 1959) ने पियाजे के प्रात्यक्षिक केंद्रीकरण (Perceptual Centration) तथा प्रात्यक्षीकरण की शुद्धता ध्यान में केन्द्रीकरण की क्षमता पर निर्भर करती है और क्षेत्र के अधिकतर भाग का पर्यावलोकन (Scanning) करती है।
  10. स्वतंत्रता सिद्धान्त (Independence Theory) – इस सिद्धान्त का यह दृष्टिकोण है कि बालकों को उनकी सर्जनशीलता की सुरक्षा हेतु अध्यापकों एवं अभिभावकों को अनाप्तवादी (Non-authoritarion) अभिवृत्तियों के द्वारा सहायता करनी चाहिए। इसलिए बालकों को प्रारंभिक प्रयासों में ऋणात्मक मूल्यांकन के परिणामों से अवगत नहीं कराना चाहिए। परिवेशीय दबाव या प्रतिबंधन के अभाव में भूतकालीन सभ्यता उसे पुनः सृजन करने में सहायता करेगी।
  11. व्यक्तित्व शीलगुण सिद्धान्त ( Personality Trait Theory) — यह सिद्धान्त उन व्यक्तित्वशील गुणों से संबंधित है जो सृजनशील व्यक्ति में पाए जाते हैं। हरग्रीव्ज (Hergrreaves, 1927) ने कल्पनाओं में क्रियात्मक कारक को मान्यता दी है। गिलफोर्ड एवं उनके सहयोगियों (Guilford and Others, 1957) ने सर्जनशीलता स्वभाव तथा प्रकृति में संबंध प्राप्त किया है। सत्य तो यह है कि इस सिद्धान्त का प्रतिपादन विभिन्न क्षेत्रों में सृजनशील व्यक्ति से संबंधित परिणामों के आधार पर हुआ है। सृजनशील व्यक्ति अन्य व्यक्तियों से भिन्न होते हैं क्योंकि उनके व्यक्तित्व में ऐसी विशेषताएँ होती हैं, जो सृजनात्मक उत्पादन के लिए प्रेरणात्मक होती है।
  12. बुद्धि सिद्धान्त (Intelligence Theory)– गिलफोर्ड (Guilford, 1950) ने बुद्धि प्रतिरूप की संरचना (Structure of Intellect Model) प्रस्तुत किया और यह विश्वास प्रकट किया कि सर्जनशील मानसिक योग्यताओं का समूह है। वह बुद्धि के प्रतिरूप की संरचना आच्छादित रूप में मानते हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार गिलफोर्ड ने उत्पादन प्रक्रिया का प्रयोग आवृत्ति, विषय वस्तुओं, विभिन्न इकाइयों, वर्गों, संबंधों, प्रणालियों, रूपांतरणों और उपयोग के उत्पादकों के रूप में किया है जो एक प्रकार से अशाब्दिक सर्जनशीलता ही है ।

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