स्पेन में अमीरों का शासन (Administration of Rich People in Spain)
स्पेन में अमीरों का शासन (Administration of Rich People in Spain)
स्पेन में इस्लामिक साम्राज्य का अभिन्न अंग बनने के बाद अमीरों का प्रभाव बढ़ने लगा । अमीर सैद्धांतिक रूप से मगरीब ( उतरी अफ्रीका और स्पेन) के गवर्नर-जनरल की अधीनता को स्वीकार करता था, परंतु व्यावहारिक दृष्टि से वह शासन में पूर्णतः स्वतंत्र था । दमिश्क का खलीफा भी स्पेन के अमीर के चुनाव में विशिष्ट योगदान होता था ।
अमीर अब्दुल अजीज – अब्दुल अजीज, जो मूसा के दूसरे पुत्र थे, को स्पेन का पहला – शासक नियुक्त किया गया। अजीज ने इसबिलिया अथवा सेवाईल को अपनी राजधानी बनाया। रोडेरिक की विधवा एगीलोना के साथ अब्दुल अजीज ने शादी की । कहा जाता है कि अमीर अपनी ईसाई पत्नी के प्यार में अंधा हो चुका था जिसने लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया था कि अब्दुल ईसाई के रूप में अपना धर्म परिवर्तन कर सकता है। इसकी सूचना खलीफा सुलेमान को भी मिली। परिणामस्वरूप स्पेन के प्रथम अमीर को मौत के घाट उतार दिया गया। उसका सिर धड़ से अलग कर दमिश्क में खलीफा के पास भेज दिया गया l
अल-शाम इब्न मलिक अल-खवलानी – अमीर अब्दुल अजीज के पश्चात् अमीर स्पेन की राजगद्दी पर बैठा परंतु उनका शासनकाल किसी भी दृष्टि से उल्लेखनीय नहीं था। इसके बाद मालिक अल शाम की स्पेस का शासन चला। अमीर मलिक अल-शाम का काल ही विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण साबित हुआ। उसने राजधानी का स्थानांतरण कोर्डोवा में कर दिया, जो भविष्य में स्पेन के उमैयद राजवंश के शासनकाल में काफी प्रसिद्ध हुआ। अल-शाम को एक योग्य संगठनकर्ता और सफल शासक की श्रेणी में रखा जा सकता है। जमीन के संपूर्ण क्षेत्रफल का माप तथा कर व्यवस्था की नये सिरे से लागू कर पर विशेष रूप से ध्यान दिया।
अल-शाम के पश्चात अमीर-पद के लिए यामनीतियों और मुदारीतियों के बीच फिर से लडाइयाँ होने लगीं। बाद में दोनों के बीच समझौता हो गया और यह तय हुआ कि बारी-बारी से एक वर्ष के बाद उनके बीच में से ही कोई अमीर बनेगा। नयी समझौता पृष्ठभूमि में मुदारीतियों के प्रतिनिधि यूसुफ इब्न अब्दुर्रहमान अल-फिहर की नियुक्ति अमीर के रूप में की गयी। 746 ई. में उसे खलीफा मारवान द्वितीय ने मान्यता प्रदान कर दी। समझौते के अनुसार युसुफ को दूसरे वर्ष अमीर का पद छोड़ देना था। वह ऐसा करने के लिये तैयार नहीं हुआ और लगभग दस वर्षों तक शासन करता रहा। स्पेन के मशहूर उमैयद राजवंश की स्थापना इसी युसुफ को विस्थापित कर अब्दुर्ररहमान इब्न मुआविया द्वारा किया गया ।
स्पेन में उमैयद राजवंश की स्थापना (Establishment of Ummayid Ancestry in Spain)
मध्यकालीन विश्व इतिहास में इस्लामिक साम्राज्य की स्थापना को एक अद्वितीय घटना कड़ा जाता है। यद्यपि स्पेन में अब्दुर्रहमान मुआविया के द्वारा उमैयद राजवंश की स्थापना तथा उसके पूर्व अब्बासी सभ्यता-संस्कृति की प्रगति और विस्तार का महत्वपूर्ण कार्य इस्लामी इतिहास में कोई मामूली घटना नहीं थी।
अब्दुर्रहमान इब्न-मुआविया (756-788 ई.) (Abdurehman-Ibn-Muabwiya (756788 AD)
पश्चिम एशिया में उमैयद खलीफाई अब्बासियों द्वारा अन्त कर दिया गया। अब्बासियों ने अपनी शक्ति बढ़ाई । यहाँ उन्होंने अब्बासी खलीफाई स्थापित की । यद्यपि अब्बासियों ने उमैयदों का खात्मा कर दिया परंतु उनमें से एक दमिश्क का दसवां उमैयद खलीफा हिशाम का पौत्र, अब्दुर्रहमान इब्न मुआविया 750 ई. में भागकर अपने प्राणों की रक्षा करने में सफल हो गया। वह सीरिया से भागकर मौरितानिया मोरक्को आ गया। यहाँ उसके मामा ने उसकी काफी आवभगत की। अब वह स्पेन के बिल्कुल पास था। अब्दुर्रहमान एक अत्यंत महत्वाकांक्षी युवक था। उसने स्पेन पर उमैयद प्रभुत्व की स्थापना का दृढ़ संकल्प कर लिया। उस दौरान समय ने भी उसका काफी साथ दिया था। उस दिन बहुत से सीरियाई सैनिक दमिश्क से स्थानीय बर्बर विद्रोहों को कुचलने के लिए आये हुए थे। कुछ कारणों की वजह से वे अब्बासियों से संतुष्ट नहीं थे। युवक अब्दुर्रहमान ने, जो महान् उमैयद खलीफा मुआविया का वंशज था और जिसमें योग्य नेतृत्व के सभी गुण वर्तमान थे, सीरियाई सैनिक दल को अपने पक्ष में मिलाने का प्रयास किया। इसमें वह सफल भी हुआ। इस युद्ध में उसकी सहायता करने हेतु उसके समर्थकों का प्रभावशाली दल और सशक्त सेना थी ।
कोर्डोवा की विजय और स्पेन में उमैयद राजवंश की स्थापना – अब्दुर्रहमान 755 ई.-मैं अपने समर्थकों के दल और सेना के साथ स्पेन जा पहुँचा। उसने उस देश में अपना दक्षिण स्पेन के पश्चात एक के बाद दूसरे नगर आत्मसमर्पण कर दिया। आर्कीडोना, सीडोना और विजित स्पेन के नागरिकों ने खुले हृदय से इस उमैयद राजकुमार का स्वागत किया। क महत्त्वाकांक्षा और आत्मविश्वास को स्पेन की शुरुआती सफलता ने और बढ़ाया। वह कोडर्डोवा की तरफ अग्रसर हो गया। उधर स्पेन का अब्बासी गवर्नर युसुफ अपनी सेना के साथ गदलक्यूवीर के तट पर अब्दुर्रहमान का मार्ग में बाधक बन गया था। 14 मई, 756 ई. को शत्रु सेनाओं के मध्य भीषण युद्ध छिड़ चुका था। शीघ्र ही युद्ध ने अपना निर्णय उमैयद राजकुमार के पक्ष में दे दिवों) युसुफ अपने प्राणों की रक्षा कर युद्धस्थल से पलायन कर गया। राजधानी कोडोंवा को इसमें अपने कब्जों में कर लिया। इसके बाद वह राजमहल और हरम का भी अपने अधिकार में कर लिया।
कोर्डोवा पर सफलता प्राप्त करने का आशय यह नहीं था। समस्त स्पेनी मुस्लिम साम्राज्य का स्वामी अब्दुर्रहमान बन गया। उत्तर से भगोड़े अब्बासी गवर्नर युसुफ द्वारा लगातार हमले होते रहे थे। अंत में टोलेडो में एक मुठभेड़ में उसे मौत के घाट उतार दिया गया। युसुफ की हत्या के बाद अब्बासी खलीफा के उमैयद खलीफा ने उमैयद सत्ता के विरोध के रूप में नया गवर्नर नियुक्त किया। नया गवर्नर अब्दुर्रहमान की सत्ता के विरुद्ध विद्रोह करने की इच्छा रखता था। अब्दुर्रहमान ने प्रतिउत्तर में गवर्नर का सिर काटकर उस पर नमक और कपूर मलकर और उसे अब्बासी पताके से बाँधकर दमिश्क भेज दिया। इस प्रकार जल्द ही अब्दुर्रहमान ने मुस्लिम स्पेन के अधिकांश क्षेत्रों को जीत लिया स्पेन लगभग तीन सदी तक उम्मैयद राजवंश के अधीन रहा।
अब्दुर्रहमान की आंतरिक एवं बाह्य समस्याएँ : स्पेन में उमैयद राजवंश की स्थापना अब्दुर्रहमान ने किया था, जो एक अपने आप में एक महान कार्य था। किन्तु शासन की बागडोर अपने हाथ में लेने के पश्चात् उसने सोचा कि कोर्डोवा का ताज काँटों भरा है। वास्तविकता के विभिन्न गंभीर संकटों से अब्दुर्रहमान ने स्वयं को घिरा हुआ पाया। अरब के अमीर-उमरा और बधू ने उसका साथ छोड़ दिया था । अपने जातीय स्वरूप के अनुरूप ये अधीनस्थ क्षेत्रों में कुव्यवस्था का प्रसार कर रहे थे। ये लोग व्यक्तिगत स्वार्थों से प्रेरित होकर विद्रोह एवं षड़यंत्र की शुरुआत कर चुके थे, साथ ही अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र राज्यों की स्थापना के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किया। यह मार्ग अत्यंत कठिन था। जब विद्रोही अरब अमीरों और जागीरदारों को हार का सामना करना पड़ा तो स्थानीय शासकों और सामंतों का मदद लेना प्रारंभ कर दिया। इन विद्रोहियों ने लियोन, कटालोनिया, नावेरे के ईसाई शासक पेपीन तथा उसके उत्तराधिकारी पुत्र शार्लमां से सहयोग लेना आरंभ कर दिया। इस प्रकार अब्दुर्रहमान की आंतरिक समस्याएं उसकी बाह्य समस्याओं में शामिल हो गयीं।
स्पेन में मुस्लिम शासन स्थापित न हो, यह स्पेन के विस्थापित ईसाई शासक तथा आसपास के ईसाई शासकों की दिली इच्छा थी। अतः फ्रैंक शासक दोगुने जोश से स्पेन के उमैयद विरोधी तत्वों को सहयोग करने लगे थे। फ्रँक शासक शार्लमां अब्दुर्रहमान के लिए नाकों चने चबाने के समान था। उल्लेखित कठिनाइयों के अतिरिक्त नवजात साम्राज्य के संगठन का प्रश्न भी अत्यंत जटिल था। साम्राज्य में चारों तरफ शांति की स्थापना करना उसका एकमात्र उद्देश्य था। वह बाह्य आक्रमणों से बचना चाहता था। उस शासन की समुचित व्यवस्था करनी थी। भौतिक एवं नैतिक प्रगति साम्राज्य में लाकर शिक्षा, साहित्य कला एवं संस्कृति को उन्नतशील बनाना था। स्पष्ट है कि अब्दुर्रहमान की समस्याएँ अत्यंत जटिल थीं, फिर भी उसने अपने बल चातुर्य से इन कल्पनाओं का सामाधान किया और साम्राज्य को विकास कार्य पर अग्रसर किया।
साम्राज्य का सृदृढ़ीकरण: स्पेन पर अब्दुर्रहमान ने पहले अब्बासी खलीफाई के तेइस गर्वनरों पर अपना नियंत्रण व्यापित किया था। इसके उपरान्त अब्दुर्रहमान ने स्पेन पर अधिकार कर लिया था और शुक्रवार के नमाज में अब अब्बासी खलीफा के नाम के स्थान पर अब्दुर्रहमान का नाम पढ़ा जाने लगा। इसके बावजूद भी उसे खलीफा नहीं कहा जाता था। जनता भ्रमित और मूर्ख जो थी। उसने ‘अमीर’ कहलाना ही पसन्द किया। विभिन्न परेशानियों के बावजूद उसने अपने अधीन बर्बरों की चालीस हजार से भी अधिक लोगों को सेना में भर्ती किया ।
विद्रोहों का दमन – साम्राज्य में फैली अराजकता को कुचल कर अब्दुर्रहमान ने शान्ति व्यवस्था कायम की। उसने असाधारण योग्यता, महत्वाकांक्षा और शक्ति का परिचय देते हुए विद्रोहियों को पराजित किया। यमनी और शिया विद्रोहियों का सहयोग लिया गया था। साम्राज्य में सभी जगह बर्बरों ने अशांति फैला रखा था। उनका दमन करने में अब्दुर्रहमान को दस वर्ष का समय लगा। इतना ही नहीं, जिन अरब उमरा और बदुओं ने प्रारंभ में इस उमैयद राजकुमार का साथ दिया था, अब वे भी अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के चलते उसके विरोधी हो गये थे। उन्होंने अपने-अपने राज्यों में विद्रोह करके अशांति व्याप्त कर दी थी। अब्दुर्रहमान ने एक-एक करके इन विद्रोहियों का दमन कर दिया। सेविला का शेख जिसने उमैयद राजकुमार को प्रारंभ में काफी सहायता की थी, विद्रोही बन बैठा था। अब्दुर्रहमान ने उसकी हत्या कर शांति की स्थापना की । बदर को अमीर का दाहिना हाथ कहा जाता था। उसके द्वारा भी विद्रोह किया गया तो उसे भी इसी ढंग की सजा मिली। इस प्रकार कुछ ही वर्षों में सारे विद्रोहों का दमन कर अब्दुर्रहमान ने सामाज्य में शांति एवं सुव्यवस्था कायम कर दी । अरब उमराओं ने स्पेन के जिन राज्यों पर कब्जा किया था, वहाँ पहले सामंतवादी प्रभाव थी लेकिन अब अब्दुलर्रमान द्वारा वहाँ राजतंत्र कायम कर दी गई।
शार्लमां के साथ संघर्ष : अब्दुर्रहमान का प्रतापी फ्रैंक शासक शार्लमां के साथ संघर्ष एक भीषण समस्या थी। जिन दिनों वह अपने साम्राज्य में विद्रोहों का दमन करने में लीन था, उन दिनों साम्राज्य का उत्तरी क्षेत्र विरोधी ईसाई शासकों के अत्याचार से त्रस्त हो उठा था। ईसाइयों ने चारों तरफ आतंक फैला दिया था तथा इस क्षेत्र की मुस्लिम प्रजा को पीड़ित कर रखा था। उनके भीषण आक्रमण से तंग आकर मुसलमान स्पेन के उत्तरी क्षेत्रों को छोड़कर चले गये। लूगो, ओपटो, सलानका कास्टियाला, जमोरा, सेगोविया आदि क्षेत्रों पर अलफोंसों के पुत्र फूएला ने कब्जा कर लिया। ईसाई लुटेरे शासकों ने प्रतापी फ्रैंक शासक शार्लमां से भी मुसलमानों के विरुद्ध मदद देने के पक्षधर थे ।
शार्लमां एक प्रतिभाशाली शासक था, जो सभी गुणों से परिपूर्ण था। अरबों की आंतरिक फूट का लाभ उठाकर वह स्पेन पर कब्जा करना चाहता था। वह इस सुनहरे अवसर को हाथ से जाने नहीं चाहता था। शार्लमां विशाल सेना के साथ शृंखलाओं को पार किया और मार्ग के भूखंडों पर अधिकार करता हुआ वह सारगोसा तक पहुँच गया। परंतु सारगोसा में हुसैन बिन यहयाअल-अंसारी के नेतृत्व में इस्लाम की सेना ने जमकर शार्लमां से टक्कर ली। इसी समय उसके साम्राज्य के दुश्मनों ने उसके राज्य पर हमला कर दिया। अतः विजय की उम्मीद छोड़कर शार्लमां स्वदेश वापस लौट गये। वापसी यात्रा में पेरानीज पार करते हुए शार्लमां के पृष्ठरक्षक सैनिक तथा कुछ सामंतों की मौत हो गयी। उनमें एक रोलां भी था, जो प्रसिद्ध फ्रांसीसी महाकाव्य चान्सन डी रोलां (Chanson de Rolanb) का नायक है। अब्दुर्रहमान ने इस प्रकार पश्चिम के महान् एवं प्रतापी सम्राट शार्लमां के समक्ष अपनी श्रेष्ठता को प्रमाणित कर दिया था और मजबूर होकर शार्लमां ने उससे मैत्री सम्बन्ध स्थापित कर ली।
अब्दुर्रहमान की अन्य उपलब्धियां : अब्दुर्रहमान ने अपने सम्पूर्ण प्रतिद्वन्द्वियों को कुचल कर शार्लमां के अभियान को असफल करके स्पेन पर अधिकार कर लिया। उसका अब कोई विरोधी शेष नहीं बचा था। वह एक योग्य एवं लोक कल्याणकारी शासक भी था। उसने स्पेन में उमैयद राजवंश की सत्ता कायम कर दी थी। अपनी राजधानी कोर्डोवा के सौंदर्य में वृद्धि एवं जनकल्याण के अन्य कार्यों को संपन्न कर अब्दुर्रहमान ने काफी प्रसिद्धि हासिल कर ली थी। अरब का भगोड़ा राजकुमार अल्प अवधि में चौतरफा प्रसिद्धि हासिल कर ली।
कोर्डोवा के सौंदर्य में वृद्धि–उम्मैयद राजकुमार ने साम्राज्य में शान्ति व्यवस्था कायम की। उसने साम्राज्य में उदार एवं सुसंचालित प्रशासन की व्यवस्था कायम की तथा भौतिक प्रगति की ओर अपना ध्यान आकृष्ट किया। सौंदर्य के उपासक अब्दुर्रहमान ने अपनी राजधानी कोडर्डोवा को काफी सुंदर बनाया। ग्वादलक्यूवीर नदी पर एक पुल बनाया गया। इससे शहर की जल-वितरण की व्यवस्था हल हो गयी। उसने एक भव्य एवं अत्यंत आकर्षक राजमहल का निर्माण किया तथा महल की शोभा के लिए मनोहर बाग बगीचे लगाये गये। अरब से खजूर तथा अन्य देशों से आकर्षक वृक्षों को लाकर इन बगीचों में लगाया गया जिसके फलस्वरूप बगीचों की सुन्दरता में चार चांद लग गए। शहर को चारों ओर से दीवारों द्वारा घेरा गया। नये राजमार्ग बनाए गये और सुरक्षा की समुचित व्यवस्था की गयी। उसने कोडर्डोवा में प्रसिद्ध मस्जिद का भी निर्माण कार्य शुरु किया, जो उसकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है। इस मस्जिद के निर्माण कार्य को उसके उत्तराधिकारियों द्वारा पूर्ण किया गया था। निर्माण पूरा हो जाने पर कोर्डोवा मस्जिद पश्चिम का काबा कहा जाने लगा। उसने सरायें, ताल, कुएं, नहरें, अनेक अस्पतालों का निर्माण करवाया।
संगठित एवं जनहित के कार्य–अब्दुलर्रहमान एक नेक इन्सान था। वह हमेशा अपनी प्रजा के गुण देखना चाहता था। स्पेन में रहनेवाली विभिन्न जातियों-मुसलमान, यहूदी, बर्बर, गौथ आदि-के बीच समन्वय स्थापित कर एकता एवं राष्ट्रीय चेतना का संचार भी किया। रूप, धर्म, जाति आदि का भेदभाव जड़ से समाप्त कर वह अपनी प्रजा के बीच एकता एवं सहयोग की भावना का प्रसार करना चाहता था। राज्य में निवास करने वाले जिम्मियों को सभी प्रकार की स्वतंत्रता एवं सुविधाएं प्रदान किया। उनके साथ अच्छी तरह पेश आया। इसके बदले में इस्लामी कानून के अनुरूप यहूदियों और ईसाइयों से जजिया कर अवश्य वसूल किया गया, किंतु जजिया की वसूली में उदारता बरती गयी तथा स्त्रियों, बच्चों, वृद्धों एवं निःसहायों को इससे मुक्त रखा गया। अब्दुर्रहमान ने दुखी एवं दरिद्रजनों की आर्थिक रूप से काफी सहयोग किया और अनुचित एवं कठोर करों को समाप्त कर अपनी प्रजा को राहत पहुंचायी। किसानों को अपनी उपज का पांचवां हिस्सा भूमि कर के रूप में राज्य कोष में जमा करना पड़ता था। अब्दुर्रहमान के शासनकाल के दौरान प्रजा काफी खुशहाल थी।
मूल्यांकन – 57 वर्ष की अवस्था में अब्दुर्रहमान की मृत्यु 788 ई. में हो गयी। वह लगभग 33 वर्ष तक शासन किया। सभी इतिहासकारों ने अब्दुर्रहमान की एक व्यक्ति विजेता और शासक के रूप में भूरि-भूरि प्रशंसा की है। वह आकर्षक और प्रभावोत्पादक व्यक्तित्व का स्वामी था। अरब के इस योद्धा ने अपनी योग्यता, साहस, संगठन, क्षमता और महत्वाकांक्षा के बल पर अकेले ही अपनी मातृभूमि से हजारों मील दूर जाकर एक नये साम्राज्य की स्थापना की । उसे एक ऐतिहासिक पुरुष की श्रेणी में रखा जा सकता है। उसके विजय अभियान तथा संगठन के कार्य एक विजेता और शासक के रूप में उसकी महानता के प्रमाण हैं। वह प्रशासन सुधार और जनकल्याण का पक्षधर था । उसे साहित्य, कला एवं संस्कृति से काफी लगाव था तथा उसे विद्वान पुरुष की श्रेणी में रखा जा सकता था । अपने युग का वह एक सफल कवि था | अब्दुर्रहमान मुआविया इस्लाम के इतिहास में शीर्ष स्थान रखता है। विद्वानों, कवियों, कलाकारों और श्रेष्ठजनों का वह काफी सम्मान करता था और उनके बीच में वह काफी प्रसन्न रहता था। उसे कला एवं साहित्य से काफी लगाव था ।
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