हिन्दी पाठ्य पुस्तक की आवश्यकता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
- ज्ञानार्जन का साधन- पुस्तकें ज्ञानार्जन का साधन हैं। मानव ने अपने अनुभूत तमाम ज्ञान को पुस्तकों के रूप में संग्रहीत कर रखा है, अतः पुस्तकें ज्ञानार्जन का सशक्त साधन है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने “ज्ञान-राशि के संचित कोश का नाम साहित्य ” माना है। पुस्तकों के अध्ययन से हम विभिन्न विषयों का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
- शिक्षक एवं विद्यार्थियों की मार्गदर्शिका–पुस्तकें शिक्षक तथा अध्यापक दोनों के लिए ही मार्गदर्शक का कार्य करती हैं। अध्यापक एवं विद्यार्थी न केवल पाठ्य पुस्तक का, बल्कि सन्दर्भ पुस्तकों का भी अध्ययन करके मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं।
- स्वाध्याय का आधार– पुस्तकें स्वाध्याय का आधार होती हैं। पुस्तकों के अभाव में स्वाध्याय विकसित होना ही सम्भव नहीं है। ज्ञान के जटिल प्रत्ययों को पाठक पुस्तकों की सहायता से ही स्पष्ट किया जा सकता है। विद्यार्थी और अध्यापक अपने संक्षिप्त ज्ञान का विस्तार भी पुस्तकों की सहायता से ही करते हैं। इस प्रकार पुस्तकें स्वाध्याय का मुख्य आधार है।
- ज्ञान के स्थायित्व का सशक्त साधन– मानव ने जो ज्ञान आज तक अनुभूत किया है, वह पुस्तकों के रूप में ही संग्रहीत किया गया है। दूसरा जब बालक को कक्षा में जो कुछ पढ़ाया जाता है तो वह पुस्तकों का अध्ययन करके ही उस ज्ञान को स्थायी करता है। इस प्रकार पुस्तकें ज्ञान के स्थायित्व का सशक्त साधन हैं।
- सूचनाओं का संग्रह – पुस्तकें सूचनाओं का केन्द्र होती हैं। हम एक प्रकृति की सूचनाओं को एक पुस्तक में पा सकते हैं। विभिन्न प्रकार के कोश इसका प्रमाण हैं। ज्ञान की विभिन्न सूचनाओं का संग्रह हमें सबसे अधिक पुस्तकों के रूप में मिलता है।
- शिक्षक और उसके मूल्यांकन का आधार – पाठ्यक्रम का काफी कुछ मूर्त रूप पुस्तकों के माध्यम से उभरता है । पुस्तकें शिक्षण का आधार होती हैं। विभिन्न विषयों की पाठ्य पुस्तकों के शिक्षण तन्त्र के आधार पर ही शिक्षण कार्य आगे बढ़ता है और उनके आधार पर ही विद्यार्थियों का मूल्यांकन किया जाता है। विद्यार्थी भी अपने होने वाले मूल्यांकन की पूर्व तैयारी पुस्तकों का अध्ययन करके ही करते हैं ।
इस प्रकार से हम देखते हैं कि पाठ्य पुस्तक का अनेक दृष्टियों से महत्त्व है, लेकिन हमें यह बात सदैव ध्यान रखनी चाहिए कि पुस्तकें साधन हैं, साध्य नहीं। पाठ्य-पुस्तकों के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद् ने लिखा है— “निस्सन्देह पाठ्य पुस्तकें बालकों की शिक्षा की दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण एवं सर्वोपयोगी साधन है। विशेषतः भारत के लिए जहाँ अनेक माता-पिता अपने बच्चों के लिए पाठ्य पुस्तक के अतिरिक्त एक भी दूसरी पुस्तक खरीदने में असमर्थ हैं, यह बात और भी. सत्य है । यद्यपि पाठ्य पुस्तक केवल साधन है, साध्य नहीं, तथापि उसका महत्त्व कम नहीं है। सुविचारित एवं सुनियोजित रूप में तैयार की गयी अच्छी पाठ्य पुस्तकों का बालकों की शिक्षा तथा राष्ट्र एवं राष्ट्र – निवासियों के भाग्य – निर्माण में निश्चित ही बहुत योगदान है। ”
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