1857 से 1947 ई के मध्य बिहार में पश्चिमी शिक्षा के विकास पर चर्चा करें।

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प्रश्न – 1857 से 1947 ई के मध्य बिहार में पश्चिमी शिक्षा के विकास पर चर्चा करें।
उत्तर – 
अंग्रेजों ने भारत में क्षेत्रीय नियंत्रण हासिल कर लिया था और वे राजनीतिक स्वामी बन गए थे, उन्होंने 1813 ई. तक शिक्षा के क्षेत्र में कोई हस्तक्षेप नहीं किया। 1813 के बाद, भारतीयों के सहयोग से या सीमित संख्या के साथ ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों ने भारत में पश्चिमी शिक्षा प्रणाली की शुरुआत की। भारत में आवश्यक शिक्षा के प्रकार को लेकर भारतीयों और अंग्रेजों के बीच एक बड़ी बहस हुई, जिसे ‘ओरिएंटलिस्ट’ और ‘एंग्लिसिस्ट्स’ (पाश्चात्यवादी) के नाम से जाना जाता है, इस महान बहस में, अंत में एंग्लिसिस्ट्स, भारत में पश्चिमी शिक्षा प्रणाली को करने में सफल रहे। भारत में शिक्षा के विकास को देखने के लिए 1823 ई. में सार्वजनिक निर्देश की एक सामान्य समिति गठित की गई थी।

विलियम बेंटिक ने 1835 में घोषणा की कि फारसी की जगह अदालती भाषा के रूप में अंग्रेजी का प्रयोग किया जाये, अंग्रेजी भाषा में किताबें कम कीमतों पर उपलब्ध कराई गई थीं और अंग्रेजी शिक्षा को बढावा देने के लिए अधिक धनराशि आवंटित की गई थी, और प्राच्य शिक्षा के विकास के लिए आवंटित निधि को कम कर दिया गया था। बेंटिक के पश्चात गवर्नर जनरल के रूप में पदभार ग्रहण करने वाले लॉर्ड ऑकलैंड ने भी ढाका, पटना, बनारस, इलाहाबाद, आगरा, दिल्ली और बरेली में अंग्रेजी कॉलेज खोलकर अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन को जारी रखा।

1854 का वुड्स डिस्पैच पश्चिमी शिक्षा के विकास में एक और मील का पत्थर था । वुड्स डिस्पैच ने भारत में शिक्षा के आगे के विकास के लिए एक मॉडल के रूप में काम किया। भारत में पश्चिमी शिक्षा के विकास लिए सरकारी समर्थन के अलावा, ईसाई मिशनरियों और अन्य लोगों ने गहरी दिलचस्पी ली। कलकत्ता में हिंदू कॉलेज की स्थापना, जिसे बाद के समय में प्रेसीडेंसी कॉलेज कहा गया, वहाँ डेविड हरे और अन्य सहयोगियों ने हिंदुओं के बीच धर्मनिरपेक्ष शिक्षा को बढ़ावा देने में मदद की। पश्चिमी शिक्षा के साथ, महिला शिक्षा को भी व्यापक संरक्षण प्राप्त हुआ। बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसी में भी शिक्षा के प्रचार-प्रसार के सम्बन्ध में समान प्रारूप को देखा गया।

बोर्ड ऑफ कंट्रोल के सभापति चार्ल्स वुड के शिक्षा सम्बंधी निर्देश (डिस्पैच) के अनुसार 9 जनवरी, 1863 ई. को पटना महाविद्यालय की स्थापना हुई। बिहार का सबसे पुराना तथा उच्च शिक्षा के लिए सर्वोत्कृष्ट महाविद्यालय होने के कारण राज्य में इसे गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। पटना कॉलेज में कला संकाय में स्नात विभाग 1917 ई. में तथा भौतिकी एवं रसायन विभाग 1919 ई. में खाले गए। सन् 1917 ई. में पटना विश्वविद्यालय की स्थापना से बिहार में उच्च शिक्षा के विस्तार का एक नया अध्याय प्रारंभ हुआ। 1925 ई. में पटना मेडिकल कॉलेज की स्थापना की गई। विज्ञान सम्बंधी शिक्षा देने के लिए 1928 ई. में एक स्वतंत्र महाविद्यालय के रूप में पटना साइंस कॉलेज की स्थापना की गई।

1917 ई. में ब्रिटिश सरकार ने शिक्षा में सुधार हेतु सुझाव देने के लिए सैडलर आयोग का गठन किया। आयोग ने व्यावहारिक विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी डिप्लोमा एवं डिग्री की उपाधि का प्रबंध करने की बात की तथा व्यावसायिक शिक्षा हेतु विद्यालय एवं महाविद्यालय की स्थापना का सुझाव दिया। इसके पूर्व ही पूसा में 1902 ई. में एग्रीकल्चरल रिसर्च सेन्टर एवं एक्सपेरिमेंट फॉर्म के रूप में कृषि सम्बंधी शोध एवं प्रयोग केन्द्र स्थापित हो चुका था। इस संस्थान का मुख्य उद्देश्य कृषि के क्षेत्र में नए-2 अनुसंधानों को बढ़ावा देना था। 1930 ई. में पटना में पशु चिकित्सालय की स्थापना की गई। इसका मुख्य उद्देश्य पशुधन को बढ़ाना था। खनिज संसाधनों के उचित दोहन के लिए 1926 ई. में धनबाद में ‘इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स’ की स्थापना की गई। इंजीनियरिंग की शिक्षा देने के लिए ‘पटना इंजीनियरिंग कॉलेज’ की स्थापना की गई।

शिक्षा के प्रचार-प्रसार में स्वयंसेवी संस्थाओं तथा प्रमुख व्यक्तियों ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। इस क्षेत्र में आर्य समाज तथा ईसाई मिशनरियों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। आर्य समाज ने वैदिक धर्म के पुनरूत्थान के लिए डी.ए.वी. स्कूलों की श्रृंखला की शुरूआत की। ब्रह्म समाज के तत्त्वाधान में पटना में राममोहन राय सेमिनरी की स्थापना की गई। ईसाई मिशनरियों ने मूलतः अपने धर्म के प्रचार के लिए शिक्षा के कई केन्द्र खोले। मुसलमानों के बीच शिक्षा के प्रचार के लिए भी कई केन्द्रों की स्थापना की गई। मूसलमानों में शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हेतु प्रेरणास्त्रोत बना अलीगढ़ आन्दोलन जिसके नेता सैयद अहमद खाँ मुस्लिम समाज में जागृति हेतु प्रयासरत थे। मुजफ्फरपुर में ‘बिहार साइंटिफिक सोसायटी’ की स्थापना की गई। 1872 ई. में इसकी स्थापना ईमदाद अली खाँ ने की। कालांतर में 1873 ई. में इसकी एक शाखा की स्थापना पटना में हुई। पटना में ‘मोहम्मडन एजुकेशन सोसायटी’ की स्थापना हुई जिसके द्वारा ‘मोहम्मडन एंग्लो एरेबिक स्कूल’ की स्थापना 1886 ई. में पटना सिटी में की गई।

1914 ई. में बिहार – उड़ीसा की सरकार ने अपने प्रांत में नारी शिक्षा के सम्बंध में जाँच-पड़ताल करने के लिए एक समिति का गठन किया। समिति ने महिलाओं में उच्च शिक्षा के विस्तार के लिए बांकीपुर तथा कटक (उड़ीसा) के कन्या विद्यालयों में इण्टरमीडियट श्रेणी खोलने की सिफारिश की। सरकार ने यह भी निर्णय लिया था कि प्रत्येक कमिश्नरी में आर्थिक सुविधानुसार कम से कम एक कन्या महाविद्यालय अवश्य खोला जाए। नीतिगत फैसला के बावजूद प्रगति काफी धीमी रही। बिहार – उड़ीसा में शिक्षा पाने वाली लड़कियों की संख्या 1927 ई. में केवल 0.7% ही थी। सन् 1929 ई. में हार्टोग कमिटी ने बिहार का उल्लेख करते हुए लिखा- ‘लगभग 25 लाख लड़कियों में से यहाँ के विद्यालयों में शिक्षा पाने वाली लड़कियों की संख्या केवल 1 लाख 16 हजार है और उनमें भी अधिकांश प्राथमिक विद्यालयों में ही है। फिर भी जागृति के लक्षण स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहे बाद में सहशिक्षा की भी व्यवस्था की गई और अनेक विद्यालय खोले गए। 1947 ई. में दरभंगा मेडिकल कॉलेज की स्थापना हुई।

स्पष्ट है कि 1857 से लेकर 1947 के बीच बिहार में पश्चिमी शिक्षा के विकास के पर्याप्त चिह्न दृष्टिगोचर होते हैं।

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